प्रश्न 64 : मरुभिद् क्या होते हैं ? इनमें पाये जाने वाले अनुकूलनों का वर्णन कीजिये जो इन्हें उन परिस्थितियों में भी जीवित रखने में सहायक होते हैं।
उत्तर–मरुभिद् (Xerophytes) - शुष्क आवासों या मरु प्रदेशों में पाये जाने वाले पेड़-पौधों को मरुभिद् कहते हैं। मरुदभिद् पौधों में जलाभाव या शुष्कता के प्रति सहिष्णुता या इसे सहन करने की अद्भुत क्षमता पाई जाती है।
विभिन्न परिस्थितिविज्ञों में मरुभिद् पौधों को अलग-अलग प्रकार से परिभाषित किया है- शिम्पर (Schimper 1898) के अनुसार व पादप जो कि जलाभाव (drought) की परिस्थितियों में अपनी वाष्पोत्सर्जन क्रिया को मंद करने की क्षमता रखते हैं, उनको मरुभिद् कहा जाता है।
जेन्टेल (Gentel; 1946) के अनुसार मरुभिद् शुष्क आवासों में उगने वाले पौधे होते हैं जो अपनी विशिष्ट आंतरिक संरचना एवं कार्यिकीय विशेषताओं के कारण मृदा एवं वायुमण्डल की शुष्क परिस्थितियों को सहन करने में सक्षम होते हैं।
(I) आकारिकी अनुकूलन (Morphological adaptations) -
1. मूल (Root)- मरुभिद् पौधे प्रायः शुष्क या जलाभाव वाले स्थानों में पाये जाते हैं। इसलिए इनका मूल तंत्र अधिकाधिक जल का अवशोषण करने के लिए अत्यधिक विकसित एवं गहरा होता है। इनमें निम्न अनुकूलन मिलते हैं-
(i) इन पौधों में जड़े चारों तरफ प्रसारित एवं सुविकसित होती: हैं। इनकी जड़ें प्राय मूसला मूल (tap root) प्रकार की होती हैं, जो : जमीन में बहुत अधिक गहराई तक जाती है। मृदा में इन जड़ों की शाखाओं का एक विस्तृत जाल फैला हुआ रहता हैं। सेकेरम मुन्जा (sacchrum munja) में जड़ें, महीन रेशेदार (fibrious) एवं भूमि को ऊपरी सतहों में ही फैली हुई रहती हैं। एक वर्षीय एवं शाकीय मरुभिदों में भी जड़ों की गहराई कम होती है।
(ii) जड़ों में मूल रोम एवं मूल गोप (root cap) सुविकसित होते हैं, जिससे जड़े अधिकाधिक मात्रा में जल का अवशोषण कर सकती है।
(iii) इन पौधों में जड़ों की वृद्धि दर सामान्यतः अधिक पाई जाती है। अनेक पौधों में तो जड़ों की प्रतिदिन वृद्धि 10 से 50 सेमी. तक। होती है। शैलोभिद पौधों में जो चट्टानों के ऊपर पाये जाते हैं, जड़ें चट्टानों के ऊपर फैलने एवं इनकी दरारों को भेदकर वृद्धि करने में सक्षम होती है।
2. स्तंभ (Stem)- मरुदभिदी पौधों के तनों में अनेक प्रकार के अनुकुलन लक्षण पाये जाते हैं, क्योंकि पौधे का यह भाग वातावरण के सीधे सम्पर्क में होता है। तने में पाये जाने वाले प्रमुख आकारिकीय अनुकूलन लक्षण निम्न प्रकार से हैं-
(i) अधिकांश मरुभिद पादप काष्ठीय होते हैं। ये बहुवर्षीय शाक, झाड़ियों अथवा वृक्षों के रूप में पाये जाते हैं।
(ii) कुछ पौधे, जैसे - सिटुलस (Citrullus) एवं सेरिकोस्टोमा (Sericostoma) आदि के तने अत्यधिक शाखित होते हैं, लेकिन इनकी शाखाएं पास-पास सटी हुई होती हैं।
(iii) कुछ मरुभिदों के तने भूमिगत (underground) होते हैं, जैसे- ऐलो (Aloe), अगेव (Agave) एवं सेकरम (Sacchrum) आदि।
(iv) इनके तीनों पर बहुकोशीय रोम (trichomes) बहुतायत से पाये जाते हैं, जैसे- आरनेबिया (Arnebio) एवं केलोट्रोपिस (Calotropis) में। इसके अलावा कुछ पौधों जैसे केलोट्रोपिस में तने व पत्तियों की सतह पर एक मोमी आवरण (waxy coating) पाया जाता है।
(v) कुछ पौधों जैसे कोकोलोबा (Cocoloba) एवं रसकस (Ruscus) तथा नागफनी (Opuntia) में तना रूपान्तरित होकर पत्ती के समान चपटा व हरा हो जाता है, इसे पर्णाभस्तंभ (phylloclade) कहते हैं। ऐस्पेरेगस (Asparagus) में तने की कक्षस्थ शाखाएं (axillary branches) भी हरे रंग की एवं सूच्याकार (acicular) संरचनाओं में रूपान्तरित हो जाती हैं। इनको पर्णाभ पर्व कहते हैं।
3. पर्ण (Leaves)- इनमें निम्न विशेषताएँ पाई जाती हैं-
(i) कई पौधों में प्रारम्भ में ही पत्तियाँ विलुप्त हो जाती हैं, बहुत थोड़े समय के लिए दिखाई देती हैं। इस प्रकार के मरुभिद पौधों को आशुपाती (caducous) कहा जाता है, जैसे लेप्टाडीनिया (Leptadenia pyrotechnica) कुछ पौधों, जैसे- कैर (Cappar is decidua) में पत्तियाँ पूर्णतः अनुपस्थित होती हैं।
(ii) कई मरूभिदों में पत्तियों का आकार छोटा होता है, व जिन पौधों की पत्तियाँ बड़े आकार की होती हैं, उनमें पत्तियों की सतह चमकीली व चिकनी होती है, जिससे तीव्र प्रकाश परावर्तित हो जाता है। इसके कारण पत्ती का तापमान कम हो जाने से वाष्पोत्सर्जन की दर में भी कमी आती है। कुछ पौधों जैसे टेमेरिक्स (Tamarix) की पत्तियाँ नुकीली व सूच्यकार होती हैं।
(iii) कुछ पौधों जैसे नागफनी (Opunita) में पत्तियाँ रूपान्तरित होकर कंटकों में बदल जाती हैं। जबकि कुछ अन्य उदाहरणों जैसे-रसकस (Ruscus), ऐस्पेरगस (Asparagus), केस्यूराइना (Casurina) एवं मुलेनबेकिया (Muehlenbeckia) में पत्तियाँ शल्कों (scales) में अपहृसित हो जाती हैं।
(iv) अनेक पौधों की पत्तियों पर मोम (Wax) व सिलिका (silica) का आवरण पाया जाता है, जैसे- केलोट्रोपिस (Calotropis) में।
(v) मरूभिद पौधों में सामान्यतया पर्ण फलक (lamina) का आकार छोटा हो जाता है, जैसे-खेजड़ी (Prosopis) एवं बबूल (Acacia)। कुछ पौधों जैसे- पारकिन्सोनिया (Parkinsonia) के पर्णक अत्यधिक लघु आकृति के होते हैं, लेकिन इनका प्राक्ष (rachis) चपटा और मोटा होता है। यह पर्णकों को तेज धूप से सुरक्षित रखने का कार्य करता है।
(vi) शुष्क एवं मरुस्थलीय क्षेत्रों में प्रायः तेज गति की हवाएं व आंधियां चलती रहती हैं। अतः ऐसे स्थानों पर पाये जाने वाले मरुभिदों जैसे आरनेबिया (Arnebia) में पत्तियों कर सतह पर बहुकोशीय रोम (trichomes) पाये जाते हैं। ये रोम बाह्यत्वचा एवं पर्णरंध्रों को आवरित कर वाष्पोत्सर्जन की दर को कम करते हैं।
(vii) कुछ एकबीजपत्री मरुभिद पौधों व घासों जैसे, पाओं। (Poa), ऐमोफिला (Ammophila) एवं ऐग्रोपाइरोन (Agropyron) में जलाभाव या शुष्कता के समय पत्तियाँ मुड़कर गोलाकार या नलिका के रूप में लिपट जाती हैं।
(viii) कुछ मरुभिद पौधों जैसे बेन्केसिया (Bankesia), एवं साइकस (cycas) की पत्तियां मोटी, कभी-कभी मांसल या चर्मिल हो जाती हैं।
4. फल तथा बीज (Fruits and Seeds)- निम्न अनुकूलन पाये जाते हैं-
(i) मरुभिद् पौधों में पुष्पन तथा फलों का निर्माण अनुकूलन परिस्थितियों में अर्थात् जल की पर्याप्त मात्रा एवं वातावरण की उपयुक्त परिस्थितियों में होता है।
(ii) इसके अतिरक्ति इन पौधों में बीजों का अंकुरण अधिक तापमान पर होता है, साथ ही बीज अधिक तापमानं के प्रति सहनशीलता भी प्रदर्शित करते हैं।
(iii) प्रायः इन पौधों में फलों एवं बीजों के ऊपरी आवरण कठोर होते हैं जो बीज व भ्रूण को सुरक्षित रखते हैं, साथ ही ये जल के प्रति पारगम्य होते हैं।
(II) आंतरिक संरचना के अनुकूलन लक्षण (Anatomical adaptations)- आकारिकीय अनुकूलन लक्षणों के साथ-साथ मरुभिद् पौधों की आंतरिक संरचनाओं में भी विभिन्न प्रकार के विशिष्ट लक्षण पाये जाते हैं, जिनके कारण इन पौधों में जल के न्यूनतम व्यय को सुनिश्चित किया जाता है। आंतरिक संरचना का अध् ययन करने पर इन पौधों की जड़ों, तने व पत्तियों में विभिन्न प्रकार के अनुकूलने पाये जाते हैं जो निम्न हैं-
(i) बाह्यत्वचा पर लिंग्निन एवं क्यूटिन की एक मोटी पर्त विकसित हो जाती है। कुछ मरुदभिदों जैसे केलोट्रोपिस में बाह्य त्वचा के ऊपर मोम या सिलिका का निक्षेपण पाया जाता है। बाह्य त्वचा पर अनेक प्रकार के बहुकोशीय रोम (trichomes) आदि पाये जाते हैं। विभिन्न पादप भागों की बाहरी सतह चमकीली होती है जिससे इन पर पड़ने वाला सूर्य का प्रकाश परावर्तित हो जाता है।
(ii) इनकी बाह्यत्वचा कोशिकाएं छोटे आकार की एवं पास-पास सटी हुई सुसंहत रूप से व्यवस्थित होती हैं (compactly arranged) इन कोशिकओं की बाहरी भित्तियाँ लिग्नीकृत (lignified) होती हैं। कुछ पौधे जैसे कनेर (Nerium) है।
चित्र- कनेर पर्ण का अनुप्रस्थ काट
की पत्तियों में तो ऊपरी बाह्य त्वचा बहुस्तरीय होती है। बाह्य में उपस्थित एक से अधिक परतें, इन वायवीय भागों की तेज धूप से रक्षा करती हैं, तथा वाष्पोत्सर्जन की गति को कम कर देती हैं।
(iii) कुछ विशेष प्रकार की मरुभिदीय घासों, जैसे पोआ (Poa) एवं सामा (Psamma) की पत्तियों में ऊपरी बाह्य त्वचा में उपस्थित मोटर या आवर्धक या बुलीफार्म कोशिकाओं (motor or Hinge or bulliform cells) की उपस्थिति के कारण ये पत्तियाँ लिपट कर गोलाकार हो जाती हैं। इससे ये तेज धूप में सुरक्षित रहती हैं तथा इस पर्व पर उपस्थित रंध्रों (stomata) से वाष्पोत्सर्जन भी नहीं होता।
(iv) कुछ पौधों, जैसे- केस्यूराइना (Casuarina) एवं इफीड्रा (Ephedra) में तने की बाह्य रूपरेखा उभारों एवं गत (ridge and grooves) में विभेदित रहती हैं। यहाँ गर्तीय स्थलों (grooves) में धासे हुए रंध्र (stomata) भी पाये जाते हैं। इन खॉचों या गुहिकाओं में रंध्रों के आसपास बहुकोशिकीय रोम (trichome) भी पाये जाते है। उपर्युक्त सभी अनुकूलन लक्षण इन पौधों में वाष्पोत्सर्जन द्वारा जल ह्यस को कम करने में सहायक होते हैं।
(v) मरुभिदों में वल्कुट ऊतक (crotex) भी सुविकसित पाया जाता है। इन वल्कुट ऊतक में अधिकांशतया रजिन व लेटेक्स वाहिकाएँ पाई जाती हैं, जैसे- पाइनस (Pinus) एवं केलोट्रोपिस (Calotropis) में।
(vi) मांसल या गूदेदार पौधों (succulents) जैसे नागफनी (Opuntia), ग्वारपाठा (Aloe) एवं डंडथोर (Euphorbia) आदि में जल संचय करने के लिए विशेष प्रकार की पतली भित्ति वाला मृदूतकी कोशिकाएं विकसित हो जाती हैं।
चित्र- केजुराइना (Custaurina) स्तम्भ का अनुप्रस्थ काट (vii) मरुभिद् तनों की आंतरिक संरचना में अधोत्वचा (hypodermis) भी पूर्णतया सुविकसित होती हैं, एवं यह दृढ़ोतकी (sclerenechyma) कोशिकाओं द्वारा निर्मित होती है, जैसे केलोट्रोपिस (चिच) एवं पाइनस में। ये दृढ़ोतक कोशिकाएँ इन पौधों को यांत्रिक दृढ़ता प्रदान करने का कार्य करती हैं।
चित्र- ऑक (Calotropis) स्तम्भ का अनुप्रस्थ काट
(viii) शुष्कतारोधी (drought resistant) मरुभिद पोधों में प्रायः कोशिकाएँ छोटी आकृति की होती हैं, तथा इनके बीच अंतर-कोशिकीय स्थान भी कम मात्रा में पाये जाते हैं। इनकी आंतरिक संरचना में यांत्रिक ऊतकों की बहुलता होती है।
(ix) मरुभिद् पौधों की अंतश्त्वचा कोशिकाओं में प्रायः स्टार्च कण उपस्थित होते हैं, इसीलिए यहां अवश्त्वचा को मंड–आच्छद (starch sheath) भी कहा जाता हैं।
(x) मरुभिद् पौधों में सर्वहन ऊतक पूर्णतया सुविकसित होते हैं, लेकिन इनमें फ्लोयम (phloem) की तुलना में जाइलम (xylem) अधिक विकसित होता है। जाइलम ऊतक की वाटिकाएं बड़ी आकृति की एवं लम्बी होती हैं तथा इनकी भित्तियों पर लिग्निन का स्थूलन अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में पाया जाता है।
(xi) मरुभिद पौधों में द्वितीयक वृद्धिद के कारण सुविकसित वार्षिक वलयें (annual rings), कॉर्क एवं छालें पाई जाती हैं।
(xii) मरुभिद पौधों की पत्तियों में पर्णमध्योतक (leafmesophyll) में खंभाकार खंभ मृदूतक एवं स्पंजी मृदूतक सुविभेदित होते हैं। स्पजीं मृदूतक की तुलना में खंभ मृदूतक अधिक विकसित होते हैं, जैसे नेरियम (Nerium) में, जहां खंभ मृदूतक ऊपरी एवं निचली बाह्य त्वचा के अधिक पास होती है एवं स्पंजी मृदूतक इन दोनों ऊतकों के मध्य स्थित होता है। पाइनस की सूच्याकार पत्तियों (needles) में पर्ण मध्योतक की कोशिकाएँ अंर्तवलित (folded mesophyll) पायी जाती हैं।