1857 Ki Kranti Ke Samay Mewad Ke Shashak The -
A. महाराणा तेजसिंह
B. महाराणा रामसिंह
C. महाराणा स्वरूप सिंह
D.
महाराणा फतेहसिंह
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Comments Khushi saini on 03-10-2022
Revolt of 1857 mewar
Asharam on 23-07-2022
1857 के दौरान मेवाड़ के महाराणा को था
Anu on 09-07-2022
1857 की क्रांति में धौलपुर का शासक कौन था
Jitendra Gurjar on 12-03-2022
1857 ki kranti ke sm mevad ka raja kon ta
Ravi kumar bairwa on 20-02-2022
Tara so 57 ki Kranti ka prashasnik dhancha
Vishnu on 18-12-2021
18 57 Ki Kranti ke Samay mewad ke Maharana kaun the
अग्रेजों की अधीनता स्वीकार करने वाली प्रथम रियासत - करौली(1817)
सम्पूर्ण भारत में 562 देशी रियासते थी तथा राजस्थान में 19 देशी रियासत थी।
1857 की क्रान्ति के समय ए.जी.जी. - सर जार्ज पैट्रिक लारेन्स(राजस्थान, ए. जी. जी. का मुख्यालय - अजमेर में)
राजपुताना का पहला ए. जी. जी. - जनरल लाॅकेट
1857 की क्रान्ति का तत्कालीन कारण - चर्बी वाले कारतुस
1857 की क्रान्ति में रायफल ब्राउन बेस के स्थान पर चर्बी वाले कारतुस राॅयल एनफिल्ड नामक कारतुस का प्रयोग करते है।
1857 की क्रान्ति का प्रतिक चिन्ह - कमल का फुल व रोटी
31 मई 1857 विद्रोह की योजना बनाई
नाम -दिल्ली चलो
नेतृत्व - बहादुरशाह जफर(अंतिम मुगल शासक)
10 मई 1857 को मेरठ के सैनिक ने विद्रोह कर दिया जिसे यह समय से पहले शुरूआत होने पर इसकी असफलता का मुख्य कारण था।
राजस्थान में 1857 की क्रान्ति में छः सैनिक छावनी थी।
- नसीराबाद - अजमेर
- ब्यावर - अजमेर
- नीमच - मध्यप्रदेश
- देवली - टोंक
- खैरवाड़ा - उदयपुर
- एरिनपुरा - पाली
खैरवाड़ा व ब्यावर सैनिक छावनीयों ने इस सैनिक विद्रोह में भाग नहीं लिया।
1857 की राजस्थान में क्रान्ति
राजस्थान में क्रान्ति का प्रारम्भ नसीराबाद में 28 मई 1857 को सैनिक विद्रोह से होता है।
1. नसीराबाद - 28 मई 1857 (अजमेर)
नेतृत्व - 15 वीं बंगाल नेटिव इन्फेन्ट्री
न्यूबरो नामक एक अंग्रेज सैनिक अधिकारी की हत्या कर दि और दिल्ली के ओर चले।
2. नीमच - 3 जुन 1857 (मध्यप्रदेश)
नेतृत्व - हीरा सिंह
3. देवली - 4 जुन 1857 (टोंक)
देवली और नीमच के सैनिक टोंक पहुंचते है और टोंक की सेना ने विद्रोह किया इससे राजकीय सेना का सैनिक मीर आलम खां के नेतृत्व में टोंक के नवाब वजीर अली के खिलाफ विद्रोह किया। और टोंक, देवली व नीमच के तीनों की संयुक्त सेना दिल्ली चली गई।
4. एरिनपुरा - 21 अगस्त 1857 (पाली)
जोधपुर लीजन टुकड़ी ने एरिनपुरा में विद्रोह किया और इसका नेतृत्व - मोती खां, तिलकराम, शीतल प्रसाद जोधपुर लीजन के सैनिको ने "चलो दिल्ली मारो फिरंगी" का नारा दिया।
आउवा(पाली) - जोधपुर रियासत का एक ठिकाना था।
इसमें ठिकानेदार ठाकुर कुशाल सिंह ने भी विद्रोह किया। गुलर, आसोप, आलनियावास(आस-पास की जागीर) इनके जागीरदार ने भी इस विद्रोह में शामिल होते है।
बिथौड़ा का युद्ध - 8 सितम्बर 1857(पाली)
क्रान्तिकारीयों की सेना का सेनापति ठाकुर कुशाल सिंह और अंग्रेजों की तरफ से कैप्टन हीथकोट के मध्य हुआ और इसमें क्रांतिकारीयों की विजय होती है।
चेलावास का युद्ध - 18 सितम्बर 1857(पाली)
इसमे कुशाल सिंह व ए. जी. जी. जार्ज पैट्रिक लारेन्स के मध्य युद्ध होता है और कुशाल सिंह की विजय होती है।
उपनाम - गौरों व कालों का युद्ध
जोधपुर के पालिटिकल एजेट मेंक मेसन का सिर काटकर आउवा के किले के मुख्य दरवाजे पर लटका दिया। 20 जनवरी 1858 को बिग्रेडयर होम्स के नेतृत्व में अंग्रेज सेना आउवा पर आक्रमण कर देती है। पृथ्वी सिंह(छोटा भाई) को किले की जिम्मेदारी सौंप कर कुशाल सिंह मेवाड़ चला गया।
कुशाल सिंह कोठरिया(सलुम्बर) मेवाड़ में शरण लेता है। इस समय मेवाड़ का ठाकुर जोधासिंह था। इस युद्ध में अंग्रेजों की विजय होती है।
कुशाल सिंह की कुलदेवी सुगाली माता(10 सिर व 54 हाथ) थी।
बिग्रेडियर होम्स सुगाली माता की मुर्ति को उठाकर अजमेर ले जाता है वर्तमान में यह अजमेर संग्रहालय में सुरक्षित है।
अगस्त 1860 में कुशाल सिंह आत्मसमर्पण कर दिया। कुशाल सिंह के विद्रोह की जांच के लिए मेजर टेलर आयोग का गठन किया।
साक्ष्यों के अभाव में कुशाल सिंह को रिहा कर दिया जाता है।
कोटा - 15 अक्टुबर 1857
क्रांती के समय कोटा के महाराजा रामसिंह प्र्रथम थे।
कोटा में विद्रोह कोटा की राजकीय सेना व आम जनता ने किया।
नेतृत्व - लाला जयदयाल, मेहराव खां
इस समय कोटा का पाॅलिटिक्स एजेन्ट मेजर बर्टन था। क्रांतिकारीयों ने मेजर बर्टन और उसके दो पुत्रों व एक अंग्रेज की हत्या कर दि।
1857 की क्रांति में कोटा रियासत सबसे अधिक प्रभावित होती है।
मेजर जनरल रार्बट्स के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना कोटा पर आक्रमण करती है। अधिकांश क्रांतिकारी मारे गये। और अंग्रेजों की विजय होती है।
लाला जयदयाल व मेहराब खां को फांसी दि गई।
जयपुर
1857 की क्रांती के समय जयपुर का महाराजा सवाई रामसिंह -2 था। विद्रोह की योजना बनाने वाले बजारत खां व शादुल्ला खां ने जयपुर में षड़यंत्र रचा लेकिन समय से पूर्व पता चलने पर इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
रामसिंह -2 को सितार-ए-हिन्द की उपाधि प्रदान की।
1857 की क्रांति का परिणाम
भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी का शासन समाप्त कर दिया जाता है और भारत का शासन ब्रिटिश ताज या ब्रिटीश सरकार के अधिन चला जाता है।
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