अपूर्व अनुभव से क्या शिक्षा मिलती है? - apoorv anubhav se kya shiksha milatee hai?

अपूर्व अनुभव सार वसंत भाग - 1 (Summary of Apurv Anubhav Vasant)

यह कहानी मूलतः जापानी भाषा में लिखा गया है जिसमें तोमोए में पढ़ने वाले तोत्तो-चान तथा यासुकी-चान नामक दो जापानी बच्चों के संघर्ष को दिखाया गया है। यहाँ हरेक बच्चा एक-एक पेड़ को अपने खुद के चढ़ने का पेड़ मानता था और वह उनकी निजी संपत्ति होती थी। तोत्तो-चान यासुकी-चान को अपने पेड़ पर चढ़ने का न्योता देती है। यासुकी-चान को पोलियो हो गया था, जिस कारण वह पेड़ पर चढ़ नहीं सकता था|

तोत्तो-चान का पेड़ मैदान के बाहरी हिस्से में कुहोन्बुत्सु जाने वाली सड़क के पास था। उस बड़े पेड़ पर चढ़ने पर पैर फिसलने लगते थे| ठीक से चढ़ने पर ज़मीन से छह फुट की ऊँचाई पर स्थित द्विशाखा तक पहुँचा जा सकता था। वह झूले जैसी आरामदेह जगह थी। तोत्तो-चान अक्सर खाने की छुट्टी के समय या स्कूल के बाद उस पर चढ़ी मिलती। वहाँ से वह दूर आकाश को या सड़क पर आने-जाने लोगों को देखती।

तोत्तो-चान यासुकी-चान के साथ मिलकर उसे पेड़ पर चढ़ाने की योजना बनाती है। वे अपने घर में माता-पिता को भी इस बारे में कुछ नहीं बताते। तोत्तो-चान अपनी माँ से झूठ बोलती है कि वह यासुकी-चान के घर जा रही है। वह यासुकी-चान को स्कूल में मिलती है और उसे लेकर अपने पेड़ के पास पहुँचती है। इस पेड़ पर वह कई बार चढ़ चुकी थी। तोत्तो-चान चाहती थी कि अब यासुकी-चान भी उस पेड़ पर चढ़े। यासुकी-चान भी पेड़ पर चढ़ने के विचार से बहुत उत्साहित था।

तोत्तो-चान उसे अपने पेड़ के पास ले गई। वहाँ वह चौकीदार के यहाँ से एक सीढ़ी उठाकर ले आई। तोत्तो-चान चौकीदार के छप्पर से एक सीढ़ी घसीटकर पेड़ के तने के सहारे लगा देती है। वह यासुकी-चान को पेड़ पर चढ़ने की कोशिश करने के लिए कहती है। यासुकी-चान बिना सहारे के एक सीढ़ी भी नहीं चढ़ पाता। वह निराश हो जाता है परन्तु तोत्तो-चान हार नहीं मानती और फिर चौकीदार के छप्पर की ओर दौड़कर वहाँ से तिपाई सीढ़ी घसीट लाती है| पसीने से लथपथ तिपाई सीढ़ी को द्विशाखा से लगा देती है। तोत्तो-चान उसको एकएक सीढ़ी पर चढ़ाकर उसे पूरा सहारा दे रही थी। यासुकी-चान भी पूरी शक्ति लगाकर पेड़ पर चढ़ने की कोशिश कर रहा था। आखिरकार वह पेड़ के पास तक पहुँच ही जाता है। तभी तोत्तो-चान को लगता है कि उनकी सारी मेहनत बेकार हो गई है चूँकि यासुकी-चान पेड़ के पास तो पहुँच गया था किंतु पेड़ पर नहीं चढ़ पा रहा था। 

तोत्तो-चान का रोने का मन होने लगा लेकिन वह रोती नहीं है| तोत्तो-चान यासुकी-चान को पेड़ का सहारा लेकर लेटने के लिए कहती है। वह उसे पेड़ की ओर पूरी शक्ति से खींचने लगती है। यह एक खतरे से भरा काम था। यासुकी-चान को तोत्तो-चान पर पूरा विश्वास था। अंत में तोत्तो-चान यासुकी-चान को अपने पेड़ पर खींचकर लाने में सफल हो ही जाती है। पसीने से लथपथ तोत्तो-चान सम्मान से यासुकी-चान का अपने पेड़ पर स्वागत करती है। वे दोनों काफ़ी देर तक पेड़ पर बैठकर इधर-उधर की बातें करते रहे। यासुकी-चान के लिए पेड़ पर चढ़ने का यह पहला और अंतिम अवसर था।

कठिन शब्दों के अर्थ -

• विशाखा - दो शाखाएँ

• आरामदेह - आराम देने वाली 

• आमंत्रित - बुलाया जाना 

• सूना - खाली, सुनसान 

• उत्तेजित - जोश में आना 

• ठिठियाकर - खिलखिलाकर

• धकियाना – धक्का देना 

• छप्पर - झोंपड़ी के ऊपर की छत

• तिपाई - तीन पैरों वाली 

• तरबतर - भीगी हुई 

• धरने में - रखने में 

• हुरै - जीत की खुशी व्यक्त करने वाला शब्द 

• थामना - पकड़ना 

• जोखिम - खतरा

• झिझकता-हुआ - संकोच करता हुआ 

• सूमो-कुश्ती - जापानी पहलवानों की कुश्ती

पाठ से

प्रश्न 1: यासुकी-चान को अपने पेड़ पर चढ़ाने के लिए तोत्तो-चान ने अथक प्रयास क्यों किया? लिखिए।

उत्तर: तोत्तो-चान को लगता है कि यासुकी-चान को भी हर वह खेल खेलने का हक है तो सामान्य बच्चे खेलते हैं। तोत्तो-चान को यह भी लगता है कि उसे हर हाल में अपने दोस्त की मदद करनी चाहिए। अपने दोस्त को पेड़ पर चढ़ने के रोमांच का अनुभव कराने के उद्देश्य से तोत्तो-चान ने अथक प्रयास किया।

प्रश्न 2: दृढ़ निश्चय और अथक परिश्रम से सफलता पाने के बाद तोत्तो-चान और यासुकी-चान को अपूर्व अनुभव मिला, इन दोनों के अपूर्व अनुभव कुछ अलग-अलग थे। दोनों में क्या अंतर रहे? लिखिए।

उत्तर: तोत्तो-चान तो रोज पेड़ पर चढ़ती थी। इसलिए उसके लिए पेड़ पर चढ़ना कोई बड़ी बात नहीं थी। उसे तो इस बात से खुशी मिल रही थी कि उसके प्रयासों के कारण यासुकी-चान पेड़ पर चढ़ पाया था। यासुकी-चान के लिये वह पेड़ पर चढ़ने का पहला और आखिरी मौका था। उसे तो लग रहा होगा कि वह सातवें आसमान पर पहुँच चुका है। उसके लिए पेड़ पर चढ़ना एक अनोखा अनुभव है।

प्रश्न 3: पाठ में खोजकर देखिए-कब सूरज का ताप यासुकी-चान और तोत्तो-चान पर पड़ रहा था, वे दोनों पसीने से तरबतर हो रहे थे और कब बादल का एक टुकड़ा उन्हें छाया देकर कड़कती धूप से बचाने लगा था। आपके अनुसार इस प्रकार परिस्थिति के बदलने का कारण क्या हो सकता है?

उत्तर: जब यासुकी-चान पेड़ पर चढ़ने की कोशिश कर रहा था, और जब तोत्तो-चान उसकी तरह तरह से मदद कर रही थी तब तेज धूप से दोनों पसीने से तरबतर हो रहे थे। जब यासुकी-चान उस दोशाखा पर चढ़ गया तब एक बादल के टुकड़े ने उन्हें छाया प्रदान की। बादल हवा के कारण घूमते रहते हैं। इससे कहीं धूप तो कहीं छाया होती है।

अपूर्व अनुभव से हमें क्या शिक्षा मिलती है?

अपूर्व अनुभव पाठ से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें दूसरो को खुश रखने का प्रयास करना चाहिए व उनकी खुशी में खुश होना चाहिए। अपूर्व अनुभव पाठ का उद्देश्य बच्चों में अपने सहपाठियों के प्रति प्रेम भावना को जागृत करना है। इस पाठ के मुख्य चरित्र है तोत्तो-चान और यासुकी-चान । इन दोनों को अपूर्व अनुभव प्राप्त हुआ ।

अपूर्व अनुभव पाठ का उद्देश्य क्या है?

इस पाठ का उद्देश्य बच्चों में अपने मित्रों के प्रति प्रेम भावना का उदय करना है।

अपूर्व अनुभव कहानी क्या संदेश देती है लिखिए?

अपूर्अव अनुभव नुमान और कल्पना उत्तर- यह स्वाभाविक प्रवृत्ति है कि आत्मा के विरुद्ध कार्य करने वाला अथवा जानबूझकर बुराई करने वाला व्यक्ति अपराध-बोध से ग्रस्त होता है। वह संदेह और भय के कारण स्वयं पर भी विश्वास नहीं कर पाता है। उसे सदैव यही लगता है कि उसकी चोरी या गलती कहीं पकड़ी न जाए।

अनुभव कहानी से क्या शिक्षा मिलती है?

Answer: दृढ़ निश्चय और अथक परिश्रम से सफलता पाने के बाद तोत्तो-चान और यासुकी-चान को अपूर्व अनुभव मिला, इन दोनों के अपूर्व अनुभव कुछ अलग-अलग थे। ... यासुकी-चान का अनुभव - यासुकी-चान को पेड़ पर चढ़ कर अपूर्व खुशी मिली। उसकी मन की इच्छा पूरी हो गई।

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