भारत छोड़ो आंदोलन कब पारित हुआ था class 8? - bhaarat chhodo aandolan kab paarit hua tha chlass 8?

प्रस्ताव पारित कब हुआ व इसका परिणाम क्या निकला?

भारत छोड़ाे’ प्रस्ताव 8 अगस्त सन् 1942 को पारित हुआ। जैसे ही जनता ने प्रदर्शन किया वैसे ही सरकार ने गिरफ्तारियाँ भी प्रारंभ कर दी। इन्हीं गिरफ्तारियों में जवाहरलाल नेहरू व उनके साथियों को अहमदनगर किले में बंद किया गया।

1111 Views

‘भारत छोड़ो’ आंदोलन का मुख्य उद्देश्य क्या था?

  • भारतीयों के हित में अंतरिम सरकार बनाने का
  • अंग्रेज़ों द्वारा भारत छोड़कर जाने का
  • भारतीयों को उनके अधिकार दिलाने का
  • भारतीयों को उनके अधिकार दिलाने का

A.

भारतीयों के हित में अंतरिम सरकार बनाने का

821 Views

‘भारत छोड़ो’ आंदोलन में मुख्य भूमिका किसने निभाई?

  • युवाओं ने
  • नेताओं ने
  • आम जनता व स्त्रियों ने
  • आम जनता व स्त्रियों ने

C.

आम जनता व स्त्रियों ने

723 Views

भारत पर अत्यधिक तनाव का समय कौन-सा था?

भारत पर अत्यधिक तनाव का समय 1942 की शुरुआत समय था।

5899 Views

'भारत छोड़ाे’ प्रस्ताव प्रस्ताव का परिणाम क्या हुआ?

  • सरकार ने लोगों की गिरफ़्तारियाँ प्रारंभ की जिसमें नेहरू बी को अहमद नगर किले में बंद 
  • सरकार ने भारतीयों की बात मान ली।
  • सरकार भारत छोडकर चली गई।
  • सरकार भारत छोडकर चली गई।

A.

सरकार ने लोगों की गिरफ़्तारियाँ प्रारंभ की जिसमें नेहरू बी को अहमद नगर किले में बंद 

1820 Views

कांग्रेस कमेटी ने अपनी अपील किसके समक्ष की?

  • ब्रिटिश सरकार के समक्ष
  • संयुक्त राष्ट्र के समक्ष
  • पूरे एशिया के समक्ष 
  • पूरे एशिया के समक्ष 

426 Views

‘भारत छोड़ो’ आंदोलन कब प्रारभं हुआ?

  • सन् 1942 में
  • सन् 1940 में 
  • सन् 1950 में
  • सन् 1950 में

2613 Views

‘भारत छोड़ो’ प्रस्ताव रखने का क्या कारण था?

भारत छोड़ो’ प्रस्ताव ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध था जिसमें आम जनता ने भी यह अपील की अब अंग्रेज़ों को भारत छोड़ देना चाहिए। इसमें स्त्रियों ने भी बढ़-चढ़कर भाग लिया।

3005 Views

‘भारत छोड़ो’ प्रस्ताव कब और किसके द्वारा रखा गया?

‘भारत छोड़ो’ प्रस्ताव 7 और 8 अगस्त सन् 1942 को ‘अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी’ द्वारा रखा गया।

1659 Views

यह तनाव क्यों था?

वास्तव में यह समय द्वितीय विश्व युद्ध का था और भारत को भी डर था कि कहीं यहाँ भी हवाई हमले न हो हों दूसरा तनाव इस बात का था कि अब भारत व इंग्लैंड के आपसी संबंध कैसे होंगे।

2209 Views

स आंदोलन में क्या अपील की गई?

यह एक लंबा और बड़ा प्रस्ताव था। इसमें अंतरिम सरकार बनाने का आवेदन था जिसमें भारत के सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व हो सके। इसमें मित्र शक्तियों के सहयोग से भारत की सुरक्षा और अपनी सारी हथियारबंद और अहिंसक शक्तियों के साथ बाहरी हमले को रोकने का प्रस्ताव भी था।

1233 Views

कांग्रेस कमेटी ने अपनी अपील किसके समक्ष की?

कांग्रेस कमेटी ने अपनी अपील ब्रिटेन और संयुक्त राष्ट्र के समक्ष की।

1102 Views

बंगलुरु में भारत छोड़ो आन्दोलन का एक प्रदर्शन

भारत छोड़ो आन्दोलन, द्वितीय विश्वयुद्ध के समय 8 अगस्त 1942 को आरम्भ किया गया था।[1] यह एक आन्दोलन था जिसका लक्ष्य भारत से ब्रिटिश साम्राज्य को समाप्त करना था। यह आंदोलन महात्मा गांधी द्वारा अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के मुम्बई अधिवेशन में शुरू किया गया था। यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान विश्वविख्यात काकोरी काण्ड के ठीक सत्रह साल बाद 9 अगस्त सन 1942 को गांधीजी के आह्वान पर समूचे देश में एक साथ आरम्भ हुआ। यह भारत को तुरन्त आजाद करने के लिये अंग्रेजी शासन के विरुद्ध एक सविनय अवज्ञा आन्दोलन था।

क्रिप्स मिशन की विफलता के बाद महात्मा गाँधी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ़ अपना तीसरा बड़ा आंदोलन छेड़ने का फ़ैसला लिया। 8 अगस्त 1942 की शाम को बम्बई में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के बम्बई सत्र में 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' का नाम दिया गया था। हालांकि गाँधी जी को फ़ौरन गिरफ़्तार कर लिया गया था लेकिन देश भर के युवा कार्यकर्ता हड़तालों और तोड़फ़ोड़ की कार्यवाहियों के जरिए आंदोलन चलाते रहे। कांग्रेस में जयप्रकाश नारायण जैसे समाजवादी सदस्य भूमिगत प्रतिरोधि गतिविधियों में सबसे ज्यादा सक्रिय थे। पश्चिम में सतारा और पूर्व में मेदिनीपुर जैसे कई जिलों में स्वतंत्र सरकार, प्रतिसरकार की स्थापना कर दी गई थी। अंग्रेजों ने आंदोलन के प्रति काफ़ी सख्त रवैया अपनाया फ़िर भी इस विद्रोह को दबाने में सरकार को साल भर से ज्यादा समय लग गया।

इतिहास[संपादित करें]

आधिकारिक रूप से उपलब्ध शास्त्री का चित्र

।। भारतछोडो का नारा यूसुफ मेहर अली ने दिया था! जो यूसुफ मेहर अली भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के अग्रणी नेताओं में थे.।।

विश्व युद्ध में इंग्लैण्ड को बुरी तरह उलझता देख जैसे ही नेताजी ने आजाद हिन्द फौज को "दिल्ली चलो" का नारा दिया, गान्धी जी ने मौके की नजाकत को भाँपते हुए ८ अगस्त १९४२ की रात में ही बम्बई से अँग्रेजों को "भारत छोड़ो" व भारतीयों को "करो या मरो" का आदेश जारी किया और सरकारी सुरक्षा में यरवदा पुणे स्थित आगा खान पैलेस में चले गये। ९ अगस्त १९४२ के दिन इस आन्दोलन को लालबहादुर शास्त्री सरीखे एक छोटे से व्यक्ति ने प्रचण्ड रूप दे दिया। १९ अगस्त,१९४२ को शास्त्री जी गिरफ्तार हो गये। ९ अगस्त १९२५ को ब्रिटिश सरकार का तख्ता पलटने के उद्देश्य से 'बिस्मिल' के नेतृत्व में हिन्दुस्तान प्रजातन्त्र संघ के दस जुझारू कार्यकर्ताओं ने काकोरी काण्ड किया था जिसकी यादगार ताजा रखने के लिये पूरे देश में प्रतिवर्ष ९ अगस्त को "काकोरी काण्ड स्मृति-दिवस" मनाने की परम्परा भगत सिंह ने प्रारम्भ कर दी थी और इस दिन बहुत बड़ी संख्या में नौजवान एकत्र होते थे। गान्धी जी ने एक सोची-समझी रणनीति के तहत ९ अगस्त १९४२ का दिन चुना था।

९ अगस्त १९४२ को दिन निकलने से पहले ही काँग्रेस वर्किंग कमेटी के सभी सदस्य गिरफ्तार हो चुके थे और काँग्रेस को गैरकानूनी संस्था घोषित कर दिया गया। गान्धी जी के साथ भारत कोकिला सरोजिनी नायडू को यरवदा पुणे के आगा खान पैलेस में, डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद को पटना जेल व अन्य सभी सदस्यों को अहमदनगर के किले में नजरबन्द किया गया था। सरकारी आँकड़ों के अनुसार इस जनान्दोलन में ९४० लोग मारे गये, १६३० घायल हुए,१८००० डी० आई० आर० में नजरबन्द हुए तथा ६०२२९ गिरफ्तार हुए। आन्दोलन को कुचलने के ये आँकड़े दिल्ली की सेण्ट्रल असेम्बली में ऑनरेबुल होम मेम्बर ने पेश किये थे।

मूल सिद्धान्त[संपादित करें]

भारत छोड़ो आंदोलन सही मायने में एक जन आंदोलन था, जिसमें लाखों आम हिंदुस्तानी शामिल थे। इस आंदोलन ने युवाओं को बड़ी संख्या में अपनी ओर आकर्षित किया। उन्होंने अपने कॉलेज छोड़कर जेल का रास्ता अपनाया। जिस दौरान कांग्रेस के नेता जेव्ल में थे उसी समय जिन्ना तथा मुस्लिम लीग के उनके साथी अपना प्रभाव क्षेत्र फ़ैलाने में लगे थे। इन्हीं सालों में लीग को पंजाब और सिंध में अपनी पहचान बनाने का मौका मिला जहाँ अभी तक उसका कोई खास वजूद नहीं था।

जून 1944 में जब विश्व युद्ध समाप्ति की ओर था तो गाँधी जी को रिहा कर दिया गया। जेल से निकलने के बाद उन्होंने कांग्रेस और लीग के बीच फ़ासले को पाटने के लिए जिन्ना के साथ कई बार बात की। 1945में ब्रिटेन में लेबर पार्टी की सरकार बनी। यह सरकार भारतीय स्वतंत्रता के पक्ष में थी। उसी समय वायसराय लॉर्ड वावेल ने कांग्रेस और मुस्लिम लीग के प्रतिनिधियों के बीच कई बैठकों का आयोजन किया।

जनता का मत[संपादित करें]

1946 की शुरुआत में प्रांतीय विधान मंडलों के लिए नए सिरे से चुनाव कराए गए। सामान्य श्रेणी में कांग्रेस को भारी सफ़लता मिली। मुसलमानों के लिए आरक्षित सीटों पर मुस्लिम लीग को भारी बहुमत प्राप्त हुआ। राजनीतिक ध्रुवीकरण पूरा हो चुका था। 1946 की गर्मियों में कैबिनेट मिशन भारत आया। इस मिशन ने कांग्रेस और मुस्लिम लीग को एक ऐसी संघीय व्यवस्था पर राज़ी करने का प्रयास किया जिसमें भारत के भीतर विभिन्न प्रांतों को सीमित स्वायत्तता दी जा सकती थी। कैबिनेट मिशन का यह प्रयास भी विफ़ल रहा। वार्ता टूट जाने के बाद जिन्ना ने पाकिस्तान की स्थापना के लिए लीग की माँग के समर्थन में एक प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस का आह्‌वान किया। इसके लिए 16 अगस्त 1946 का दिन तय किया गया था। उसी दिन कलकत्ता में खूनी संघर्ष शुरू हो गया। यह हिंसा कलकत्ता से शुरू होकर ग्रामीण बंगाल, बिहार और संयुक्त प्रांत व पंजाब तक फ़ैल गई। कुछ स्थानों पर मुसलमानों को तो कुछ अन्य स्थानों पर हिंदुओं को निशाना बनाया गया।

विभाजन की नींव[संपादित करें]

फ़रवरी 1947 में वावेल की जगह लॉर्ड माउंटबेटन को वायसराय नियुक्त किया गया। उन्होंने वार्ताओं के एक अंतिम दौर का आह्‌वान किया। जब सुलह के लिए उनका यह प्रयास भी विफ़ल हो गया तो उन्होंने ऐलान कर दिया कि ब्रिटिश भारत को स्वतंत्रता दे दी जाएगी लेकिन उसका विभाजन भी होगा। औपचारिक सत्ता हस्तांतरण के लिए 15 अगस्त का दिन नियत किया गया। उस दिन भारत के विभिन्न भागों में लोगों ने जमकर खुशियाँ मनायीं। दिल्ली में जब संविधान सभा के अध्यक्ष ने मोहनदास करमचंद गाँधी को राष्ट्रपिता की उपाधि देते हुए संविधान सभा की बैठक शुरू की तो बहुत देर तक करतल ध्वनि होती रही। असेम्बली के बाहर भीड़ महात्मा गाँधी की जय के नारे लगा रही थी।

स्वतंत्रता प्राप्ति[संपादित करें]

15 अगस्त 1947 को राजधानी में हो रहे उत्सवों में महात्मा गाँधी नहीं थे। उस समय वे कलकत्ता में थे लेकिन उन्होंने वहाँ भी न तो किसी कार्यक्रम में हिस्सा लिया, न ही कहीं झंडा फ़हराया। गाँधी जी उस दिन 24 घंटे के उपवास पर थे। उन्होंने इतने दिन तक जिस स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया था वह एक अकल्पनीय कीमत पर उन्हें मिली थी। उनका राष्ट्र विभाजित था हिंदू-मुसलमान एक-दूसरे की गर्दन पर सवार थे। उनके जीवनी लेखक डी-जी- तेंदुलकर ने लिखा है कि सितंबर और अक्तूबर के दौरान गाँधी जी पीड़ितों को सांत्वना देते हुए अस्पतालों और शरणार्थी शिविरों के चक्कर लगा रहे थे। उन्होंने सिखों, हिंदुओं और मुसलमानों से आह्‌वान किया कि वे अतीत को भुला कर अपनी पीड़ा पर ध्यान देने की बजाय एक-दूसरे के प्रति भाईचारे का हाथ बढ़ाने तथा शांति से रहने का संकल्प लें।

धर्म निरपेक्षता[संपादित करें]

गाँधी जी और नेहरू के आग्रह पर कांग्रेस ने अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर एक प्रस्ताव पारित कर दिया। कांग्रेस ने दो राष्ट्र सिद्धान्त को कभी स्वीकार नहीं किया था। जब उसे अपनी इच्छा के विरुद्ध बँटवारे पर मंजूरी देनी पड़ी तो भी उसका दृढ़ विश्वास था कि भारत बहुत सारे धर्मों और बहुत सारी नस्लों का देश है और उसे ऐसे ही बनाए रखा जाना चाहिए। पाकिस्तान में हालात जो रहें, भारत एक लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र होगा जहाँ सभी नागरिकों को पूर्ण अधिकार प्राप्त होंगे तथा धर्म के आधार पर भेदभाव के बिना सभी को राज्य की ओर से संरक्षण का अधिकार होगा। कांग्रेस ने आश्वासन दिया कि वह अल्पसंख्यकों के नागरिक अधिकारों के किसी भी अतिक्रमण के विरुद्ध हर मुमकिन रक्षा करेगी।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन
  • राममनोहर लोहिया
  • जयप्रकाश नारायण
  • भारत छोड़ो आन्दोलन और बिहार
  • आजाद हिन्द सरकार
  • असहयोग आन्दोलन
  • सविनय अवज्ञा आन्दोलन
  • भारतीय राष्ट्रवाद

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. अंकुर, शर्मा (२०१८). "भारत छोड़ो आंदोलन- जानिए पूरी कहानी". Oneindia. अभिगमन तिथि 9 अगस्त 2018.

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • Rejected 'Quit India' resolution drafted by Mohandas K. Gandhi 27April, 1942

भारत छोड़ो आंदोलन कब पारित हुआ?

14 जुलाई, 1942 को वर्धा में काॅन्ग्रेस की कार्यकारिणी समिति ने 'अंग्रेज़ों भारत छोड़ो आंदोलन' का प्रस्ताव पारित किया एवं इसकी सार्वजनिक घोषणा से पहले 1 अगस्त को इलाहाबाद (प्रयागराज) में तिलक दिवस मनाया गया।

भारत छोड़ो आंदोलन कब पारित हुआ और इसका क्या परिणाम निकला?

8 अगस्त, 1942 को बम्बई में हुई अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी की बैठक में भारत छोड़ो आंदोलन प्रस्ताव पारित किया गया। इस प्रस्ताव में यह घोषित किया गया था कि अब भारत में ब्रिटिश शासन की तत्काल समाप्ति भारत में स्वतंत्रता तथा लोकतंत्र की स्थापना के लिए अत्यंत जरुरी हो गयी है।

भारत छोड़ो आंदोलन कब समाप्त हुआ?

आंदोलन को औपचारिक रूप से 1 अगस्त 1920 में शुरू किया गया था। तथा इस आंदोलन को पारित 4 सितंबर 1920 में हुआ था।

भारत छोड़ो प्रस्ताव कब और किसके द्वारा रखा गया class 8?

'भारत छोड़ो' प्रस्ताव 7 और 8 अगस्त सन् 1942 को 'अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी' द्वारा रखा गया

Toplist

नवीनतम लेख

टैग