Bharat Ki Aajadi Ke Samay England Ka Samrat Kaun Tha
Pradeep Chawla on 08-09-2018
15 अगस्त 1 9 47 को जब भारत 22 जून 1 9 48 को किंग जॉर्ज VI के शासनकाल के दौरान औपचारिक रूप से त्याग दिया गया तब तक यह शीर्षक जारी रहा।
Pradeep Chawla on 12-05-2019
जब विक्टोरिया के उत्तराधिकारी एडवर्ड सातवीं 1 9 01 में सिंहासन पर चढ़ गए, तो उन्होंने ब्रिटिश सम्राटों के रूप में सम्राट ऑफ इंडिया शीर्षक का उपयोग जारी रखा। 15 अगस्त 1 9 47 को जब भारत 22 जून 1 9 48 को किंग जॉर्ज VI के शासनकाल के दौरान औपचारिक रूप से त्याग दिया गया तब तक यह शीर्षक जारी रहा।
सम्बन्धित प्रश्न
Comments Priya Sharma on 01-07-2022
Bharat ki azadi ke samay England ka samrat ka naam kya hai
Satyam on 03-03-2022
भारत की आजादी के समय ब्रिटेन के सम्राट कौन थे
Aditya on 10-07-2021
Aagneah se pahle kon raja tha
Azaadi k samay England Ka samraat kon tha ? on 27-11-2019
Azaadi k samay England Ka samraat kon tha ?
Bharat ji suatntarta ke same England ka pm kon ta on 30-08-2019
Bharat ki satyata ke same England ka pm kon ta
Prince on 08-07-2019
Independnce k time Ingland ka samrat kon tha
Seema kashyap on 12-05-2019
Who was the prime minister of england when lndia got independence ?
Bharat Ki Swatantrata Ke Samay Briten Ka PradhanMantri Kaun Tha
Pradeep Chawla on 12-05-2019
Clement Attlee
क्लीमेँट एटली
Pradeep Chawla on 12-05-2019
Clement Attlee
क्लीमेँट एटली
सम्बन्धित प्रश्न
Comments Nagesh kumar saini on 03-09-2020
भारत के स्वतंत्र होने के समय ब्रिटिश प्रधानमंत्री हेराल्ड विल्सन थे
Nagesh kumar saini on 03-09-2020
भारत के स्वतंत्र होने के समय ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लीमेंट रिचर्ड थे पूर्व में मैंने कमेंट में हेराल्ड विल्सन बताया था जो कि गलत है
Arvind on 20-02-2020
Bharat ke aajadi ke samaj briten ka PM kon the
Shivani on 30-01-2020
भारत के आजादी के समय ब्रिटेन के राजा रानी कौन थे
Manoj yadav on 14-01-2020
भारत की आजादी के समय ब्रिटेन का राजा कौन था
Komal shukla on 11-01-2020
Bharat ke ajadi prapti ke samay
briten ke primeminister kaun the ?
भारत की आजादी के समय ब्रिटेन का राजा कोन्न था? on 31-12-2019
भारत की आजादी के समय ब्रिटेन का राजा कोंन था?
vikky on 26-11-2019
सविधान से सम्बन्धी सवाल
भारत on 17-07-2019
भारत के स्वतंत्रा के समय ब्रिटेन के प्रधानमत्री कौन थे
Pravin on 12-05-2019
1947 me England ke raja/Rani kon the?
स्वस्तिधर मिश्रा on 12-05-2019
भारत की स्वतंत्रता के समय ब्रिटेन का राजा कौन था।
जितेंद्र कुमार on 12-05-2019
मैं भविस्य में। क्या बनुगा???
Vipin on 12-05-2019
Bhart ki swawtenterta ke samaya beete me kis part ki sarkar thi
Vipin on 12-05-2019
Bhart ki swawtenterta ke samaya berten
me kis part ki sarkar thi
Kailash Chand gurjar on 14-08-2018
Cabinet mission Matin3 sadasya kaun kaun the
ब्रिटिश राज 1858 और 1947 के बीच भारतीय उपमहाद्वीप पर ब्रिटिश द्वारा शासन था।[1] क्षेत्र जो सीधे ब्रिटेन के नियंत्रण में था जिसे आम तौर पर समकालीन उपयोग में "इंडिया" कहा जाता था- उसमें वो क्षेत्र शामिल थे जिन पर ब्रिटेन का सीधा प्रशासन था (समकालीन, "ब्रिटिश इंडिया") और वो रियासतें जिन पर व्यक्तिगत शासक राज करते थे पर उन पर ब्रिटिश क्राउन की सर्वोपरिता थी।
भौगोलिक सीमा[संपादित करें]
ब्रितानी राज गोवा और पुदुचेरी जैसे अपवादों को छोड़कर वर्तमान समय के लगभग सम्पूर्ण भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश तक विस्तृत था। विभिन्न समयों पर इसमें अदन (1858 से 1937 तक),[2] लोवर बर्मा (1858 से 1937 तक), अपर बर्मा (1886 से 1937 तक), ब्रितानी सोमालीलैण्ड (1884 से 1898 तक) और सिंगापुर (1858 से 1867 तक) को भी शामिल किया जाता है। बर्मा को भारत से अलग करके 1937 से 1948 में इसकी स्वतंत्रता तक ब्रितानी ताज के अधिन सीधे ही शासीत किया जाता था। फारस की खाड़ी के त्रुशल स्टेट्स को भी 1946 तक सैद्धान्तिक रूप से ब्रितानी भारत की रियासत माना जाता था और वहाँ मुद्रा के रूप में रुपया काम में लिया जाता था।
ब्रिटिश भारत एवं देशी राज्य[संपादित करें]
ब्रिटिश राज के दौरान भारत में दो प्रकार के क्षेत्र थे:[3]
- ब्रिटिश भारत : भारतीय गवर्नर जनरल या भारतीय गवर्नर जनरल के अधीनस्थ किसी भी अधिकारी के माध्यम से महारानी द्वारा नियंत्रित प्रदेश एवं क्षेत्र।
- देशी राज्य : महारानी के आधिपत्य में आने वाले स्वतन्त्र राज्य।
प्रमुख प्रांत[संपादित करें]
20वीं सदी के अंत में, ब्रिटिश भारत आठ प्रांतों से बना था, जिसका प्रशासन राज्यपाल या उप-राज्यपाल करते थे। निम्न तालिका उनके (आश्रित देशी राज्यों को छोड़कर) क्षेत्रफल एवं जनसंख्या को सूचीबद्ध करती है (लगभग सन 1907):[4]
असम (असम) | 130000 | 6 | मुख्य आयुक्त |
बंगाल (बांग्लादेश, पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखण्ड और ओडिशा) | 390000 | 75 | उप-राज्यपाल |
बंबई (सिंध और महाराष्ट्र, गुजरात एवं कर्नाटक के कुछ हिस्से) | 320000 | 19 | गवर्नर-इन-कॉउंसिल |
बर्मा
(बर्मा) | 440000 | 9 | उप-राज्यपाल |
मध्य प्रांत (मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़) | 270000 | 13 | मुख्य आयुक्त |
मद्रास (तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश, केरल एवं कर्नाटक के कुछ हिस्से) | 370000 | 38 | गवर्नर-इन-कॉउंसिल |
पंजाब
(पंजाब प्रांत, इस्लामाबाद राजधानी क्षेत्र, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, चंडीगढ़ और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली) | 250000 | 20 | उप-राज्यपाल |
संयुक्त प्रांत (उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड) | 280000 | 48 | उप-राज्यपाल |
बंगाल विभाजन (1905-1911) के दौरान, नए राज्य असम और पूर्वी बंगाल का जन्म हुआ, जो उपराज्यपाल द्वारा शाषित थे। 1911 में पूर्वी बंगाल और बंगाल के एक होने के साथ असम, बंगाल, बिहार और उड़ीसा पूर्व में नए राज्य बने।[4]
लघु प्रान्त[संपादित करें]
इनके अतिरिक्त मुख्य आयुक्त द्वारा प्रशासित कुछ लघु प्रान्त भी थे:[5]
अजमेर-मेरवाड़ा
(राजस्थान के हिस्से) | 7000 | 477 |
अंडमान और निकोबार द्वीप समूह
(अंडमान और निकोबार द्वीप समूह) | 78000 | 25 |
ब्रिटिश बलूचिस्तान
(बलूचिस्तान) | 120000 | 308 |
कूर्ग (कोडगु जिला) | 4100 | 181 |
उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांत
(ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा) | 41000 | 2,125 |
रजवाड़े[संपादित करें]
देशी राज्य, या रियासत, बिरिटिश राज के साथ सहायक गठबंधन के अधीन, एवं स्वदेशी भारतीय शासक द्वारा शासित एक संप्रभु इकाई को कहा जाता था। अगस्त 1947 में भारत और पाकिस्तान के ब्रिटेन से स्वतंत्र होने के समय 565 रियासत अस्तित्व में थे। यह देशी राज्य ब्रिटिश भारत का हिस्सा नहीं थे, क्यूंकी वह सीधे ब्रिटिश शासन के अधीन नहीं आते थे। ब्रिटिश शासकों को मान्यता देकर, या उनसे मान्यता छीन कर राज्यों की आंतरिक राजनीति पर अपना प्रभाव कायम रखते थे।
ब्रितानी शासन का वैचारिक प्रभाव[संपादित करें]
भारत की स्वतंत्रता और उसके बाद भारत में संसदीय प्रणाली, एक-व्यक्ति को एक मत का अधिकार और निष्पक्ष न्यायालय आदि ब्रितानी शासन की देन है। भारत में जिला प्रशासन, विश्वविद्यालय और स्टॉक एक्सचेंज संस्थागत व्यवस्था भी ब्रितानी शासन की दैन है। ब्रितानी शासन की सबसे बड़ी दैन अलग-अलग रियासतों में शासन से भारत को मुक्त करना है। मेटकाफ के अनुसार दो सदी के शासन ने ब्रिटिश बुद्धिजीवियों और भारतीय विशेषज्ञों की प्राथमिकता भारत में शान्ति, एकता और अच्छी शासन व्यवस्था कायम करना रहा।[6]
1858–1914[संपादित करें]
1857 का संग्राम: भारतीय समालोचना और ब्रितानी प्रतिक्रिया[संपादित करें]
इस महान क्रांति के 30 वर्ष बाद 1887 में भारत की महारानी विक्टोरिया का स्मारिका चित्र।
यद्यपि 1857 के विद्रोह ने ब्रितानी उद्यमियों को हिलाकर रख दिया और वो इसे रोक नहीं पाये थे। इस गदर के बाद ब्रितानी और अधिक चौकन्ने हो गये और उन्होंने आम भारतीयों के साथ संवाद बढ़ाने का पर्यत्न किया तथा विद्रोह करने वाली सेना को भंग कर दिया।[7] प्रदर्शन की क्षमता के आधार पर सिखों और बलूचियों की सेना की नई पलटनों का निर्माण किया गया। उस समय से भारत की स्वतंत्रता तक यह सेना कायम रही।[8] 1861 की जनगणना के अनुसार भारत में अंग्रेज़ों की कुल जनसंख्या 125,945 पायी गई। इनमें से केवल 41,862 आम नागरिक थे बाकी 84,083 यूरोपीय अधिकारी और सैनिक थे।[9] 1880 में भारतीय राजसी सेना में 66,000 ब्रितानी सैनिक और 130,000 देशी सैनिक शामिल थे।[10]
यह भी पाया गया कि रियासतों के मालिक और जमींदारों ने विद्रोह में भाग नहीं लिया था जिसे लॉर्ड कैनिंग के शब्दों में "तूफान में बांध" कहा गया।[7] उन्हें ब्रितानी राज सम्मानित भी किया गया और उन्हें आधिकारिक रूप से अलग पहचान तथा ताज दिया गया।[8] कुछ बड़े किसानों के लिए भूमि-सुधार कार्य भी किये गये जिसे बादमें 90 वर्षों तक वैसा ही रखा गया।[8]
अन्त में ब्रितानियों ने सामाजिक परिवर्तन से भारतीयों के मोहभंग को महसूस किया। विद्रोह तक वो उत्साहपूर्वक सामाजिक परिवर्तन से गुजरे जैसे लॉर्ड विलियम बेंटिंक ने सती प्रथा पर रोक लगा दी।[7] उन्होंने यह भी महसूस किया कि भारत की परम्परा और रिति रिवाज बहुट कठोर तथा दृढ़ हैं जिन्हें आसानी से नहीं बदला जा सकता; तत्पश्चात और अधिक, मुख्यतः धार्मिक मामलों से सम्बद्ध ब्रितानी सामाजिक हस्तक्षेप नहीं किये गये।[8]
कानूनी आधुनिकीकरण[संपादित करें]
इतिहासकार राधिका सिंह के अनुसार 1857 के बाद औपनिवेशिक सरकार को मजबूत किया और अदालती प्रणाली के माध्यम से अपनी बुनियादी सुविधाओं का विस्तार, कानूनी प्रक्रिया और विधि को स्थापित किया। नई कानून व्यवस्था में पुराने ताज और पूर्व ईस्ट इंडिया कम्पनी का विलय कर दिया गया तथा नई दीवानी और फौजदारी प्रक्रिया को नई दंड संहिता के रूप में प्रस्तावित किया गया, जो मुख्यतः अंग्रेज़ कानून पर आधारित थे। 1860–1880 के दशकों में ब्रितानी राज ने जन्म, मृत्यु प्रमाण पत्र, विवाह सहित दतक, सम्पति दस्तावेज और अन्य कार्यों से सम्बद्ध प्रमाण पत्र अनिवार्य कर दिये। इसका उद्देश्य स्थाई, प्रयोज्य, सार्वजनिक रिकॉर्ड और निरीक्षण योग्य पहचान निर्मित किये जा सकें। हालांकि मुस्लिम और हिन्दू दोनों संगठनों ने इसका विरोध किया जिनकी शिकायत थी कि जनगणना और पंजीकरण महिला गोपनीयता को अनावरित कर दिया। परदा पर्था के नियम महिलाओं को उनके नाम लेने और उनके चित्र लेने से निषिद्ध करता है। पहली अखिल भारतीय जनगणना 1868 से 1871 तक सम्पन्न हुई जिसमें व्यक्तिगत नामों के स्थान पर घर में महिलाओं की कुल संख्या के आधार पर गणना की गई। ब्रितानी राज ने भ्रूण हत्या, वेश्या, कुष्ट रोगियों और हिजड़ों को अलग-अलग समूहों में शामिल करना चाहता था।[11]
शिक्षा[संपादित करें]
ईस्ट इंडिया कम्पनी के दौरान थोमस बैबिंगटन मैकाले ने अपने फ़रवरी 1835 के निर्णय में भारत में स्कूली शिक्षा को अनिवार्य किया और लार्ड विलियम बेंटिक (1828 से 1835 तक गर्वनर जनरल) के विचारों को लागू किया। बेंटिक ने आधिकारिक भाषा के रूप में फारसी के स्थान पर अंग्रेज़ी को लागू करने, अनुदेश अंग्रेज़ी में रखने और अंग्रेज़ी भाषी भारतीय अध्यापकों को प्रशिक्षण देने का अनुग्रह किया था। वो उपयोगितावाद के विचारों से प्रभावित थे। तथापि, बेंटिक का प्रस्ताव लंदन के अधिकारियों द्वारा खारिज कर दिया गया।[12][13]
आर्थिक इतिहास[संपादित करें]
भारतीय अर्थव्यवस्था में 1880 से 1920 तक प्रतिवर्ष 1% के हिसाब से वृद्धि हुई और जनसंख्या में भी लगभग 1% की वृद्धि हुई।[14] इसका परिणाम यह हुआ कि दीर्घकाल में भी प्रति व्यक्ति आय में कोई परिवर्तन नहीं हुआ, जिससे जीवन यापन की लागत और अधिक बढ़ गई। अभी भी अर्थव्यवस्था कृषि प्रधान थी और अधिकतर किसानों का जीवन यापन का माध्यम कृषि था। इसके बाद व्यापक सिंचाई प्रणाली निर्मित की गई एवं निर्यात और भारतीय उद्योग के लिए कच्चे माल के लिए आवश्यक नकदी फसलों को प्रोहत्साहन दिया गया जिसमें मुख्यतः जूट, कपास, गन्ना, कॉफी और चाय शामिल थीं।[15] औपनिवेशिक काल में भारत का सकल घरेलू उत्पाद शेयर 20% से घटकर 5% पर आ गया।[16]
१८७० के दशक से १९०७: समाज सुधारक, गरमदल और नरमदल[संपादित करें]
गोपाल कृष्ण गोखले संवैधानिक और उदार राष्ट्रवादी विचारधारा के समाज सुधारक थे जिन्हें 1905 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया। |
1880 का दशक सामाजिक परिवर्तन का दौर था। उदाहरण के रूप में कवि, संस्कृत की विद्वान रमाबाई ने भारतीय महिलाओं की मुक्ति दिलाने के उद्देश्य से विधवा पुनर्विवाह के किया और स्वयं एक ब्राह्मण परिवार से होते हुये गैर ब्राह्मण से विवाह किया, बाद में उन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया।[17] 1900 तक आते-आते सुधार आंदोलन भारतीय कांग्रेस के माध्यम से होने लगे। कांग्रेस सदस्य गोपाल कृष्ण गोखले ने 'भारतीय सेवक समाज' की स्थापना की जिसने विधायी सुधार (जैसे हिन्दू बाल विधवा का पुनर्विवाह की अनुमति देना) के लिए पैरवी की तथा उसके सदस्यों ने गरिबी सुधार की कसमें ली और सामाजिक अछूतों के लिए कार्य किया।[18]
सन् 1905 तक आते-आते गोखले द्वारा निर्मित आधुनिक सुधारवादियों का एक बड़ा समूह बन गया, जिन्होंने कई जन आंदोलन किये और नये अतिवादी तैयार किये जिन्होंने न केवल जन आंदोलनों की वकालत की बल्कि समाज सुधार को राष्ट्रवाद के रूप में विकसित किया। इन्हीं उदारवादियों में से एक बाल गंगाधर तिलक थे जिन्होंने पृथक हिन्दू राजनीतिक व्यवस्था जुटाने का प्रयास किया और पश्चिम भारत में वार्षिक गणपति महोत्सव की शुरूआत की।[19]
1914–1947[संपादित करें]
1914-1918: प्रथम विश्व युद्ध, लखनऊ संधि[संपादित करें]
1938-1941, द्वितीय विश्वयुद्ध और मुस्लिम लीग का लाहौर प्रस्ताव[संपादित करें]
औद्योगिक पूंजीवाद और मुक्त व्यापार का युग[संपादित करें]
ईस्ट इंडिया कंपनी के भारत में एक क्षेत्रीय शक्ति बनने के तत्काल बाद ब्रिटेन में एक गहरा संघर्ष इस प्रश्न को लेकर छिड़ गया कि जो नया साम्राज्य प्राप्त हुआ है वह किसके हितों को सिद्ध करेगा, साल दस साल कंपनी को ब्रिटेन के अन्य व्यापारिक और औद्योगिक हितों को सिद्धि के लिए तैयार होने पर मजबूर किया गया। सन् 1813 तक आते आते वह दुर्बल होकर भारत में आर्थिक या राजनीतिक शक्ति की छाया भर रह गयी। वास्तविक सत्ता ब्रितानी सरकार के हाथों में आ गयी जो कुछ मिलाकर अंग्रेज पूंजीपतियों के हित सिद्ध करने वाली थी।
इसी दौर में ब्रिटेन में औद्योगिक क्रांति हो गयी और इसके फवस्वरूप वह विश्व के उत्पादन और निर्यात करने वाले देशों की अगली पंक्ति में आ गया। औद्योगिक क्रांति स्वयं ब्रिटेन के भीतर होने वाले बड़े परिवर्तनों की भी जिम्मेदारी रही। समय बीतने के साथ औद्योगिक पूंजीपति शक्तिशाली राजनीतिक प्रभाव के कारण ब्रितानी अर्थव्यवस्था के प्रबल अंग बन गये। इस स्थिति में भारतीय उपनिवेश का शासन करने की नीतियों को अनिवार्य रूप से उनके हितों के अनुकूल निर्देशित करना था। जो भी हो, साम्राज्य में उनकी दिलचस्पी का रूप ईस्ट इंडिया कंपनी की दिलचस्पी से बिलकुल भिन्न था, क्योंकि वह केवल एक व्यापारिक निगम था। उसके बाद भारत में ब्रितानी शासन अपने दूसरे चरण में पहुंचा।
इन्हें भी देखें[संपादित करें]
- १८५७ का प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम
- भारत विभाजन
- भारत का राजनीतिक एकीकरण
- कंपनी राज
- ब्रिटिश काल में भारत की अर्थव्यवस्था
- बंगाल का भीषण अकाल (१७७०)
- १९४३ का बंगाल का अकाल
सन्दर्भ[संपादित करें]
- ↑ Oxford English Dictionary [ऑक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी], द्वितीय संस्करण, 1989: from संस्कृत rāj: to reign, rule; cognate with L. rēx, rēg-is, प्राचीन आयरिश. rī, rīg king (see RICH).
- ↑ मार्शल, पी॰जे॰ (2001), The Cambridge Illustrated History of the British Empire, 400 pp., कैम्ब्रिज और लंदन: कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस, पृ॰ 384, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-521-00254-7
- ↑ "India". वर्ल्ड डिजिटल लाइब्रेरी. मूल से 25 अगस्त 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 17 जून 2014.
- ↑ अ आ Imperial Gazetteer of India vol. IV 1907, पृष्ठ 46
- ↑ Imperial Gazetteer of India vol. IV 1907, पृष्ठ 56
- ↑ थॉमस आर॰ मेटकाफ (1995). The New Cambridge History of India: Ideologies of the Raj (अंग्रेज़ी में). पृ॰ 10-12, 34-35.
- ↑ अ आ इ Spear 1990, पृष्ठ 147
- ↑ अ आ इ ई Spear 1990, पृष्ठ 147–148
- ↑ European Madness and Gender in Nineteenth-century British India Archived 2008-07-04 at the Wayback Machine, सोशल हिस्ट्री ऑफ़ मेडिसिन 1996 9(3):357-382
- ↑ रोबिन्सन, रोनाल्ड एडवर्ड & जॉन गल्लाफर, 1968. Africa and the Victorians: The Climax of Imperialism. गार्डन सिटी, एन॰वाय॰: डबलडे [1]
- ↑ राधिका सिंह, "Colonial Law and Infrastructural Power: Reconstructing Community, Locating the Female Subject", स्टडीज इन हिस्ट्री, (फ़रवरी 2003), 19#1 पृ॰ 87–126 ऑनलाइन
- ↑ सुरेश चन्द्र घोष, "Bentinck, Macaulay and the introduction of English education in India [बेंटिक मैकले और भारत में अंग्रेज़ी शिक्षा का परिचय]" (अंग्रेज़ी में), हिस्ट्री ऑफ़ एजुकेशन, (मार्च 1995) 24#1 पृष्ठ 17–24
- ↑ स्पीयर, पेर्सिवल (1938). "Bentinck and Education" [बेंटिक और शिक्षा]. कैंब्रिज हिस्टोरिकल जर्नल (अंग्रेज़ी में). 6 (1): 78–101. मूल से 9 दिसंबर 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 31 दिसंबर 2018.
- ↑ बी॰आर॰ थॉमलिंसन, The Economy of Modern India [आधुनिक भारत की अर्थव्यवस्था] (अंग्रेज़ी में), 1860–1970 (1996) पृ॰ 5
- ↑ बी॰एच॰ टोमलिंसन, "India and the British Empire, 1880–1935", भारतीय आर्थिक और सामाजिक इतिहास की समीक्षा, (अक्टूबर 1975), 12#4 पृ॰ 337–380
- ↑ मैडिसन, अंगुस (2006). The world economy [विश्व अर्थशास्त्र] (अंग्रेज़ी में), भाग 1–2. ओईसीडी पब्लिशिंग, पृष्ठ 638, doi:10.1787/456125276116, ISBN 92-64-02261-9. अभिगमन तिथि 21 जून 2014.
- ↑ हेलन एस॰ डायर, Pandita Ramabai: the story of her life [पंडित रमाबाई: उनके जीवन की कहानी] (अंग्रेज़ी में) (1900) ऑनलाइन Archived 2014-07-06 at the Wayback Machine
- ↑ डेविड लुद्देन, India and South Asia: a short history [भारत और दक्षिण एशिया: एक लघु इतिहास] (अंग्रेज़ी में) (2002) पृ॰ 197
- ↑ स्टेनली ए॰ वोल्पर्ट, Tilak and Gokhale: revolution and reform in the making of modern India [तिलक और गोखले: आधुनिक भारत के निर्माण में क्रांति और सुधार] (अंग्रेज़ी में) (1962) पृ॰ 67
अन्य सन्दर्भ[संपादित करें]
- पेर्सिवल स्पीयर (1990). "भाग २". A History of India [भारत का इतिहास] (अंग्रेज़ी में). नई दिल्ली और लंदन: पेंगुइन बुक्स. पृ॰ 298. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-14-013836-8. ऑनलाइन संस्करण
बाहरी कडियाँ[संपादित करें]
- क्या हम अंग्रेजों के अत्याचारों को भूलते जा रहे हैं? (कुलदीप नैयर)
- Britain should stop trying to pretend that its empire was benevolent
- Britain should stop trying to pretend that its empire was benevolent
- भारत में ब्रिटिश राज के दुष्परिणाम (डॉ विवेक आर्य)
- धन का वहिर्गमन (ड्रेन ऑफ वेल्थ)