भारत की विदेश नीति का प्रमुख लक्षण क्या है? - bhaarat kee videsh neeti ka pramukh lakshan kya hai?

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Civics
Chapter 22 c
Chapter Name भारत की विदेश नीति
Number of Questions Solved 31
Category UP Board Solutions

विस्तृत उत्तीय प्रश्न (6 अंक)

प्रश्न 1.
भारत की विदेश नीति की विवेचना कीजिए। भारत की विदेशी नीति का सबसे प्रमुख लक्षण क्या है?
या
भारत की विदेश नीति के निर्माता के रूप में पं० जवाहरलाल नेहरू के योगदान का परीक्षण कीजिए।
या
पंचशील के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए। [2013, 14]
उत्तर :
भारत की विदेश नीति 15 अगस्त, 1947 को भारत स्वतन्त्र हो गया और 26 जनवरी, 1950 को संविधान लागू हो जाने के बाद से भारत प्रभुत्व-सम्पन्न समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतान्त्रिक गणराज्य बन गया। पण्डित जवाहरलाल नेहरू स्वतन्त्र भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री बने और डॉ० राजेन्द्र प्रसाद प्रथम राष्ट्रपति। अब तक भारत की विदेश नीति के मूलाधार पण्डित जवाहरलाल नेहरू द्वारा स्थापित आदर्श रहे हैं। भारत की विदेश नीति उनके द्वारा दिखाये गये अहिंसा, मैत्री, मानवता, सहयोग और स्नेह के सद्गुणों पर आधारित रही है। पण्डित नेहरू ने बुद्ध के पंचशील जैसे महान् शब्द को लेकर अपनी विदेश नीति में पंचशील को मुख्य आधार बनाया था। भारत की विदेश नीति विश्व के सभी राष्ट्रों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करने में सहायक रही है। इस विदेश नीति के प्रमुख उद्देश्य और आधार निम्नलिखित हैं –

1. शान्ति का पोषक – भारत का सदैव से यही प्रयास रहा है कि विश्व से युद्धों की समाप्ति हो, विस्फोटक वातावरण के स्थान पर शान्ति का वातावरण स्थापित हो। विश्व में शान्ति स्थापित करने के उद्देश्य से भारत ने सदैव ही विश्व के सभी राष्ट्रों से मैत्री बनाये रखने का प्रयत्न किया है। पण्डित नेहरू और अमेरिका के राष्ट्रपति कैनेडी ने मिलकर विश्व शान्ति का पोषण करने में सक्रिय कार्य किये। पण्डित नेहरू ने सोवियत संघ के साथ भी मधुर सम्बन्ध बनाये रखे। श्रीमती इन्दिरा गाँधी और श्री राजीव गाँधी ने भी विश्व में शान्ति स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी।

2. संयुक्त राष्ट्र संघ में विश्वास – विश्व के अन्तर्राष्ट्रीय संघ संयुक्त राष्ट्र संघ में भी भारत ने सदैव पूरी रुचि ली है तथा इसके द्वारा आयोजित कार्यक्रमों और निर्देशों का सदा तत्परता से पालन किया है। कश्मीर के मामले को लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्देश पर भारत ने तुरन्त युद्ध-विराम कर लिया था। इसके अतिरिक्त विश्व के विभिन्न देशों-कोरिया, कांगो, वियतनाम, बांग्लादेश, इजरायल, अफगानिस्तान, हंगरी और स्वेज नहर आदि की समस्या सुलझाने में भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ को पूर्ण सहयोग दिया।

3. गुट-निरपेक्षता की नीति – पं० जवाहरलाल नेहरू ने एक नीति विकसित की थी कि हम किसी एक गुट के साथ न तो विशेष मित्रता रखेंगे और न ही शत्रुता। हम तटस्थ रहेंगे। हमारा उद्देश्य विश्व के दोनों गुटों के मध्य मधुर सम्बन्ध बनाना रहेगा। यह गुट-निरपेक्षता की नीति बहुत लोकप्रिय हुई थी। विश्व के बहुत-से राष्ट्र इस गुट-निरपेक्षता की नीति का पालन करते हैं। अब तो गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों का एक प्रबल संगठन बन गया है। श्रीमती इन्दिरा गाँधी के शासनकाल में यह गुट-निरपेक्षता का कार्य बहुत तेजी से हुआ। वे 1983 ई० में इस संगठन की अध्यक्षा थीं और उनके नेतृत्व में ही सातवाँ गुट-निरपेक्ष सम्मेलन दिल्ली में 7 मार्च से 12 मार्च, 1983 तक हुआ जिसमें 101 देशों ने भाग लिया। स्व० प्रधानमन्त्री श्री राजीव गाँधी ने भी गुट-निरपेक्ष नीति का ही पालन किया है। 16वाँ गुट-निरपेक्ष सम्मेलन 26 अगस्त से 31 अगस्त तक तेहरान (ईरान) में सम्पन्न हुआ था। भारत की ओर से हमारे प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह ने इस सम्मेलन में सक्रिय भूमिका निभाई तथा गुट-निरपेक्ष आन्दोलन (NAM) को और अधिक प्रभावी बनाने हेतु विभिन्न सुझाव प्रस्तुत किये।

4. पंचशील : विदेश नीति की आत्मा – पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने जब भारत की विदेश नीति के आदर्श और व्यवहार निर्धारित किये, तब उन्होंने पाँच मुख्य ध्येय निर्धारित किये। भगवान् बुद्ध के पंचशील शब्द से प्रेरणा पाकर नेहरू जी ने इन्हें पंचशील की संज्ञा दी। ये पंचशील यथार्थ में भारत की विदेश नीति की आत्मा बन गये। इसलिए इन पर ही भारत की विदेश नीति आधारित थी। ये पंचशील के सिद्धान्त निम्नलिखित हैं –

  1. अखण्डता की रक्षा – सभी राष्ट्रों को एक-दूसरे की प्रादेशिक अखण्डता की रक्षा करनी चाहिए। एक-दूसरे की स्वतन्त्रता और राष्ट्रीय सीमा का अतिक्रमण नहीं करना चाहिए। यह मैत्री और सार्वभौमिकता का महान् सिद्धान्त है।
  2. युद्ध को टालना – भारत कभी भी निरुद्देश्य युद्ध नहीं करेगा और दूसरे देशों के साथ भी यही प्रयास करेगा कि वे युद्ध न करें।
  3. गृह-नीति में हस्तक्षेप न करना – सभी राष्ट्रों को एक-दूसरे के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
  4. सहयोग की नीति – सभी राष्ट्रों को मानवता के आदर्श का पालन करते हुए एक-दूसरे का सहयोग करना चाहिए और एक-दूसरे से सहयोग प्राप्त करना चाहिए।
  5. स्वतन्त्रता की रक्षा – कोई भी राष्ट्र कभी-भी ऐसा प्रयास न करे, जिससे किसी भी राष्ट्र का अस्तित्व खतरे में पड़ जाए।

भारत की विदेश नीति का एक लक्ष्य धीरे-धीरे यह बनता गया कि सोवियत रूस को अपना परम मित्र मानकर भारत उनकी ओर विशेष रूप से झुकता चला गया। यह प्रक्रिया पण्डित नेहरू के समय में ही प्रारम्भ हो गयी थी। लालबहादुर शास्त्री, श्रीमती इन्दिरा गाँधी और राजीव गाँधी ने भी सोवियत रूस से अत्यधिक मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध अपनाये। इस सन्दर्भ में भारत और सोवियत रूस के प्रमुख नेताओं की क्रमश: सोवियत और भारत यात्रा बहुत महत्त्वपूर्ण रही।

हाल ही में अमेरिका तथा भारत के सम्बन्धों में प्रगाढ़ता आयी है।

इस तरह उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि भारत की विदेश नीति पंचशील आदर्शों पर आधारित रही है। सभी राष्ट्रों से मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध और पंचशील के महान् आदर्श इस विदेश नीति के प्रमुख आधार हैं। पं० जवाहरलाल नेहरू के अनुसार, “विश्व में शान्ति स्थापित करना ही हमारी वैदेशिक नीति का प्रमुख उद्देश्य है।”

प्रश्न 2.
भारतीय विदेश नीति की विशेषताएँ बताइए। [2009, 12, 13]
या
भारतीय विदेश नीति के प्रमुख लक्षणों को संक्षेप में स्पष्ट कीजिए। [2010]
या
भारत की विदेश नीति के मूल (आधारभूत) सिद्धान्तों की आलोचनात्मक विवेचना कीजिए। [2008, 13]
या
भारत की विदेशी नीति के प्रमुख तत्त्वों का परीक्षण कीजिए। [2009]
या
भारत की विदेशी नति के चार सिद्धान्तों को बताइए एवं पंचशील की व्याख्या कीजिए। भारतीय विदेश नीति के प्रमुख मूल सिद्धान्त क्या हैं? [2010, 11]
या
भारत की विदेश नीति के आधारभूत तत्त्वों (लक्षणों) का वर्णन कीजिए। [2017]
उत्तर :
भारतीय विदेश नीति की प्रमुख विशेषताएँ (लक्षण) निम्नलिखित हैं –

1. राष्ट्रीय हित – किसी भी राष्ट्र की विदेश नीति का प्रमुख आधार राष्ट्रीय हित होता है। भारतीय विदेश नीति के निर्धारण में भी इस तत्त्व का विशेष महत्त्व है। भारतीय विदेश नीति में राष्ट्रीय हित के महत्व को स्पष्ट करते हुए विदेश नीति के सृजनकर्ता कहे जाने वाले भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री नेहरू का मत था कि “हम चाहे कोई भी नीति निर्धारित करें, देश की वैदेशिक नीति से सम्बन्धित की गयी चतुरता राष्ट्रीय हित को सुरक्षित रखने में ही निहित है। भारत की प्रत्येक सरकार अपने राष्ट्रीय हितों को ही प्राथमिकता और सर्वोपरिता देगी। कोई भी सरकार ऐसे आचरण का खतरा नहीं उठा सकती जो राष्ट्रीय हितों के प्रतिकूल हो।’

2. गुट-निरपेक्षता की नीति – गुट-निरपेक्षता अथवा असंलग्नता की नीति भारतीय विदेश नीति की प्रमुख विशेषता है। स्वतन्त्रता-प्राप्ति के समय सम्पूर्ण विश्व को दो गुटों में बँटा देख भारतीय प्रधानमन्त्री पं० जवाहरलाल नेहरू ने नव स्वतन्त्र राष्ट्रों के लिए एक पृथक् सिद्धान्त का प्रतिपादन किया, जिसके अन्तर्गत नवे स्वतन्त्र राष्ट्रों द्वारा दोनों गुटों से पृथक् रहने की नीति को अपनाया गया। गुटों से पृथक् रहने की इसी नीति को गुट-निरपेक्षता की नीति के नाम से जाना जाता है।

3. मैत्री और सह-अस्तित्व की नीति – भारतीय विदेश नीति की एक अन्य प्रमुख विशेषता मैत्री और शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व पर बल देती है। भारत विश्व के सभी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों को बनाने में विश्वास रखता है।

4. विरोधी गुटों के मध्य सामंजस्य स्थापित करने पर बल – भारतीय विदेश नीति द्वारा विश्व के दोनों विरोधी गुटों के मध्य सामंजस्य स्थापित करने के महत्त्वपूर्ण प्रयास किये गये हैं। इस सम्बन्ध में भारत ने विश्व राजनीति में शक्ति का सन्तुलन बनाये रखने में दोनों गुटों के मध्य कड़ी का कार्य किया है।

5. साधनों की पवित्रता की नीति – भारतीय विदेश नीति साधनों की पवित्रता पर विशेष बल देती है। यह नैतिकता व आदर्शवादिता का समर्थन करती है तथा अनैतिकता व अवसरवादिता का घोरें विरोध करती है।

6. पंचशील – भारत शान्ति का पुजारी है, इसलिए उसने विश्व शान्ति स्थापित करने की नीति अपनायी है। 1954 ई० में उसने पंचशील को अपनी विदेश नीति का अंग बनाया। पंचशील का सिद्धान्त महात्मा बुद्ध के उन पाँच सिद्धान्तों पर आधारित है जो उन्होंने व्यक्तिगत आचरण के लिए निर्धारित किये थे। पंचशील के सिद्धान्तों का सूत्रपात पं० जवाहरलाल नेहरू व चीन के प्रधानमन्त्री चाऊ-एन-लाई के मध्य तिब्बत समझौते के समय हुआ था। पंचशील के पाँच सिद्धान्त निम्नलिखित हैं –

  1. सभी राष्ट्र एक-दूसरे की प्रादेशिक अखण्डता और प्रभुसत्ता का सम्मान करें।
  2. कोई राष्ट्र दूसरे राष्ट्र पर आक्रमण न करे और सभी राष्ट्र एक-दूसरे की स्वतन्त्रता का आदर करें।
  3. एक-दूसरे के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप न किया जाए।
  4. प्रत्येक राष्ट्र एक-दूसरे के साथ समानता का व्यवहार करे तथा पारस्परिक हित में सहयोग करे।
  5. शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व की नीति का सभी राष्ट्र पालन करें।

7. निःशस्त्रीकरण में आस्था – भारत हमेशा विश्व-शान्ति का समर्थक रहा है, इसलिए भारत ने सदैव नि:शस्त्रीकरण की प्रक्रिया का समर्थन किया है। भारत का मत है विश्व-शान्ति तभी स्थापित की जा सकती है जब भय और आतंक का वातावरण उत्पन्न करने वाली शस्त्रों की दौड़ से दूर रहा जाए और सभी राष्ट्र संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रतिज्ञा-पत्र का पूर्ण ईमानदारी एवं सच्चाई से पालन करें।

8. संयुक्त राष्ट्र संघ के साथ सहयोग – भारत ने सदा ही विश्व-हितों को प्रमुखता दी है। प्रारम्भ से ही भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ के साथ सहयोग किया है। इसके महत्त्व के विषय में पं० नेहरू ने कहा था कि, “हम संयुक्त राष्ट्र संघ के बिना आधुनिक विश्व की कल्पना नहीं कर सकते।’ कोरिया, हिन्दचीन, साइप्रस एवं कांगो की समस्याओं के समाधान में भारत ने अपनी रुचि दिखलाई थी और संयुक्त राष्ट्र संघ के आदेश पर भारत ने यहाँ अपनी सेनाएँ भेजकर शान्ति-स्थापना में महत्त्वपूर्ण योग दिया था। भारत ने कभी अन्तर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन नहीं किया और संयुक्त राष्ट्र संघ के आदेशों का यथोचित सम्मान किया। भारत के यथोचित सम्मान दिये जाने के कारण ही भारत चार बार सुरक्षा परिषद् का अस्थायी सदस्य चुना गया। डॉ० राधाकृष्णन यूनेस्को के सर्वोच्च पद पर रहे। श्रीमती विजयलक्ष्मी पण्डित साधारण सभा की सभापति रह चुकी हैं। प्रो० बी० ए० राव ने अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में कार्य किया।

9. साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद का विरोध – साम्राज्यवादी शोषण से त्रस्त भारत ने अपनी विदेश नीति में साम्राज्यवाद के प्रत्येक रूप का कटु विरोध किया है। भारत इस प्रकार की प्रवृत्तियों को विश्व-शान्ति एवं विश्व-व्यवस्था के लिए घातक एवं कलंकमय मानता है। 1956 ई० में जब इंग्लैण्ड व फ्रांस मिलकर मिस्र पर आक्रमण कर स्वेज नहर को हड़पना चाहते थे तो भारत ने इसे नवीन साम्राज्यवाद का घोर विरोध किया। भारत ने लीबिया, ट्यूनीशिया, मोरक्को, मलाया, अल्जीरिया आदि देशों के स्वतन्त्रता संग्राम का पूरा समर्थन किया। दक्षिणी अफ्रीका व रोडेशिया के प्रजातीय विभेद का भारत ने जोरदार विरोध किया और संयुक्त राष्ट्र संघ में यह प्रश्न उठाता रहा। के० एम० पणिक्कर के अनुसार, “भारत की नीति हमेशा से यही रही है कि यह पराधीन लोगों की स्वतन्त्रता के प्रति आवाज उठाता रहा है एवं भारत का दृढ़ विश्वास रहा है कि साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद हमेशा से आधुनिक युद्धों का कारण रहा है।”

इस प्रकार भारत की विदेश नीति ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ सिद्धान्त का पालन कर रही है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (शब्द सीमा : 150 शब्द) (4 अंक)

प्रश्न 1.
भारत की विदेश नीति का सबसे मुख्य लक्षण क्या है?
उत्तर :
असंलग्नता या गुट-निरपेक्षता भारत की विदेश नीति का सबसे प्रमुख लक्षण है। स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद ही भारत के द्वारा निश्चित कर लिया गया कि भारत इन दोनों विरोधी गुटों में से किसी में भी शामिल न होते हुए विश्व के सभी देशों के साथ मित्रतापूर्ण सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयत्न करेगा और इस दृष्टि से भारत के द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में असंलग्नता या गुट-निरपेक्षता की विदेश नीति का पालन किया जाएगा। वास्तव में भारत के द्वारा असंलग्नता की विदेश नीति को अपनाने के कुछ विशेष कारण थे। प्रथमतः यदि भारत किसी गुट की सदस्यता को स्वीकार कर लेता तो अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में उसकी स्वतन्त्रता समाप्त हो जाती। वह विश्व राजनीति में स्वतन्त्र रूप से भाग नहीं ले सकता था। दूसरे पक्ष के अनुसार ही अपनी विदेश नीति तय करनी पड़ती, अत: अपने सम्मान को बनाए रखने के लिए असंलग्नता की नीति ही श्रेयस्कर थी। द्वितीयतः सैकड़ों वर्षों के साम्राज्यवादी शोषण से मुक्ति के बाद भारत के सम्मुख सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण प्रश्न आर्थिक पुनर्निर्माण का था और आर्थिक पुनर्निर्माण का यह कार्य विश्व शान्ति के वातावरण में ही सम्भव था। अत: भारत के लिए यही स्वाभाविक था कि वह सैनिक गुटों से अलग रहते हुए अन्तर्राष्ट्रीय तनाव को कम करने का प्रयत्न करे। इस प्रकार राष्ट्रीय हितों और विश्व शान्ति के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए गुट-निरपेक्षता की विदेश नीति अपनायी गयी है।

प्रश्न 2.
भारत की लुक ईस्ट (पूरब की ओर देखो) की नीति क्या है?
उत्तर :
‘पूरब की ओर देखो’ की नीति

वर्ष 1991 में रूस के विघटन तथा अमेरिका के नेतृत्व में उभरती एक ध्रुवीय व्यवस्था व वैश्वीकरण के आलोक में भारत ने अपनी विदेश नीति को नया आयाम दिया तथा उसे व्यावहारिकता प्रदान की। 1991 में भारत ने ‘लुक ईस्ट’ नीति का आरम्भ किया जिसमें ‘एशियान’ (ASEAN) सहित पूर्वी एशिया के देशों के साथ घनिष्ठ आर्थिक व व्यापारिक सम्बन्धों का विस्तार करना था। शीत युद्ध के युग में भारत व पूर्वी एशिया के देशों के पारस्परिक सम्बन्धों को अधिक महत्त्व नहीं दिया गया।

1996 में भारत को ‘एशियान’ संगठन में पूर्ण वार्ताकार का दर्जा प्राप्त हुआ तथा तब से भारत लगातार इसकी शिखर-वार्ताओं में भाग लेता रहा है। वर्ष 2002 में एशियान-भारत शिखरवार्ताओं की शुरुआत हुई। इसी प्रकार सातवीं शिखर-वार्ता अक्टूबर, 2009 में चोम हुआ हिन (थाईलैण्ड) में तथा आठवीं शिखर-वार्ता 2 अक्टूबर, 2010 में हनोई में सम्पन्न हुई, जिसमें भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भाग लिया। भारत व एशियन के मध्य नौवीं शिखर-वार्ता 2011 में जकार्ता में तथा 10वीं शिखर-वार्ता 2012 में दिल्ली में सम्पन्न हुई। इसमें आतंकवाद के विरुद्ध संयुक्त लड़ाई हेतु सहमति बनी। एशियान देशों के साथ बढ़ते सम्बन्धों के कारण द्विपक्षीय व्यापार 1990 में 22.2 बिलियन डॉलर से बढ़कर 2009 में 40 बिलियन डॉलर हो गया। भारत व एशियान देशों के मध्य अगस्त, 2009 में मुक्त व्यापार समझौता सम्पन्न हुआ, जिसमें 4,000 वस्तुओं पर सीमा कर में कटौती की जाएगी। इससे व्यापार को बढ़ावा मिलेगा। यह समझौता 1 जनवरी, 2010 को लागू हो गया है। भारत ने 2005 से ही पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में प्रतिवर्ष भाग लेना आरम्भ किया है। इस सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य यूरोपीय संघ की तर्ज पर पूर्वी एशिया में एक आर्थिक समुदाय का विकास करना है।

भारत ने 1996 में एशियान क्षेत्रीय मंच (ARF) की सदस्यता प्राप्त की थी। यह मंच एशियान क्षेत्र में सुरक्षा सम्बन्धी सहयोग का एक मंच है। भारत तथा पूर्वी एशिया के देशों ने यूरोपियन कम्युनिटी की तर्ज पर पूर्वी एशिया कम्युनिटी की स्थापना का लक्ष्य रखा है। भारत ने पूर्व की ओर देखो नीति की सफलता को देखते हुए इसके दूसरे चरण की शुरुआत 2001 में की, जहाँ इसके प्रथम चरण (1991-2001) में एशियान देशों के साथ आर्थिक व व्यापारिक सम्बन्धों को बढ़ावा दिया गया था। वहीं दूसरे चरण में एशियान के अतिरिक्त पूर्वी एशिया के अन्य देशों-दक्षिण कोरिया, जापान, ऑस्ट्रेलिया आदि के साथ सम्बन्धों को बढ़ाता जा रहा है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (शब्द सीमा : 50 शब्द) (2 अंक)

प्रश्न 1.
भारत की विदेश नीति के उददेश्य बताइए। [2013]
उत्तर :
भारत की विदेश नीति के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं –

  1. अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा बनाये रखना।
  2. सभी राज्यों और राष्ट्रों के बीच शान्तिपूर्ण और सम्मानपूर्ण सम्बन्ध बनाये रखना।
  3. अन्तर्राष्ट्रीय कानून के प्रति और विभिन्न राष्ट्रों के पारस्परिक सम्बन्धों में सन्धियों के पालन के प्रति आस्था बनाये रखना।
  4. सैनिक गुटबन्दियों और समझौते से अपने आपको अलग रखना तथा ऐसी गुटबन्दियों को निरुत्साहित करना।
  5. उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद का विरोध करना।

प्रश्न 2.
पंचशील के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए। [2013]
उत्तर :
पंचशील के सिद्धान्त

भारत की विदेश नीति का एक प्रमुख तत्त्व पंचशील या शान्तिपूर्ण सहअस्तित्व के पाँच सिद्धान्त रहे। ये पाँच सिद्धान्त निम्नलिखित हैं –

  1. एक-दूसरे की प्रादेशिक अखण्डता और सर्वोच्च सत्ता के प्रति पारस्परिक सम्मान की भावना।
  2. एक-दूसरे के क्षेत्र पर आक्रमण का परित्याग।
  3. एक-दूसरे के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने का संकल्प।
  4. समानती और पारस्परिक लाभ के सिद्धान्तों के आधार पर मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों की स्थापना। .
  5. शान्तिपूर्ण सहअस्तित्व।

भारत इस बात के लिए प्रयत्नशील है कि विश्व के विभिन्न राज्यों के द्वारा अपने पारस्परिक व्यवहार में पंचशील के इन पाँचों सिद्धान्तों को स्वीकार कर लिया जाए। पंचशील के सिद्धान्तों को सबसे पहले अपनाने वाले देश चीन के द्वारा इन सिद्धान्तों का खुला उल्लंघन किया गया, किन्तु इससे पंचशील के सिद्धान्तों का महत्त्व कम नहीं हो जाता।

प्रश्न 3.
उत्तर-नेहरू युग में भारत की विदेश नीति की विवेचना कीजिए। [2010]
उत्तर :
उत्तर-नेहरू युग में भारत की विदेश नीति

1962 के पूर्व तक भारतीय विदेश नीति को सामान्यतया सफल समझा जाता था, लेकिन 1962 में चीन के बड़े पैमाने पर आक्रमण और भारतीय सेना की पराजय ने भारतीय विदेश नीति की सफलता के भ्रम को समाप्त कर दिया। अत: नेहरू युग में ही भारतीय विदेश नीति पर पुनर्विचार प्रारम्भ हो गया और इस पुनर्विचार के आधार पर उत्तर-नेहरू युग में भारतीय विदेश नीति ने आदर्शवादिता के स्थान पर राष्ट्रीय हितों के अनुरूप एक यथार्थवादी मोड़ ले लिया। शीतयुद्ध की समाप्ति के उपरान्त भारत ने अमेरिका के साथ अपने सम्बन्धों को सुधारा है। यह व्यावहारिकता का प्रतीक है। 2008 में अमेरिका के साथ भारत ने सिविल परमाणु सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। इसी प्रकार राष्ट्रहित के प्रति व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाते हुए भारत में पूर्वी एशिया, अफ्रीका सेण्ट्रल एशिया आदि के प्रति नीतियों में परिवर्तन किया है। भारतीय विदेश नीति की यह यथार्थवादिता जिन घटनाओं के रूप में देखी जा सकती है, उनमें दो-तीन निश्चित रूप से अधिक महत्त्वपूर्ण हैं।

प्रश्न 4.
भारत ने विश्व के विभिन्न देशों के साथ अपने सम्बन्धों के निर्धारण के लिए किन सिद्धान्तों का अनुसरण किया है?
उत्तर :
भारत ने विश्व के विभिन्न देशों के साथ अपने सम्बन्धों के निर्धारण के लिए निम्नलिखित सिद्धान्तों के अनुसरण का सदैव ध्यान रखा है –

  1. सम्पूर्ण विश्व में शान्ति और सुरक्षा का वातावरण बनाये रखने में हर सम्भव सहयोग देना।
  2. विश्व के सभी देशों से सम्मानजनक सम्बन्ध न्यायसंगत आधार पर बनाये रखना।
  3. विश्व के सभी देशों से मित्रतापूर्ण सम्बन्ध बनाये रखने के साथ अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों और सन्धियों का पूर्ण निष्ठा से पालन करने की दिशा में प्रयासरत रहना।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
किसी भी देश की विदेश नीति की मूल आधारशिला क्या होती है?
उत्तर :
किसी भी देश की विदेश नीति का सबसे प्रमुख आधार होता है-‘राष्ट्रीय हित’।

प्रश्न 2.
भारत व एशियान के मध्य मुक्त व्यापार समझौता कब लागू हुआ? (2012)
उत्तर :
भारत व एशियान मुक्त व्यापार समझौता वर्ष 2010 में लागू हुआ। इस समझौते पर हस्ताक्षर वर्ष 2009 में किए गए थे।

प्रश्न 3.
भारत ने प्रथम अणु परीक्षण कब किया व अन्तरिक्ष में पहला चरण कब आगे बढ़ाया?
उत्तर :
प्रथम अणु परीक्षण 18 मई, 1974 को पोखरण में किया गया और प्रथम भू-उपग्रह ‘आर्यभट्ट प्रथम’ 19 अप्रैल, 1975 को अन्तरिक्ष में भेजा गया।

प्रश्न 4.
1996 में आणविक निःशस्त्रीकरण के क्षेत्र में कौन-सी सन्धि सम्पन्न हुई है?
उत्तर :
1996 में व्यापक परमाणु परीक्षण निषेध सन्धि’ सम्पन्न हुई है। यह सन्धि भेदभावपूर्ण है, इसलिए भारत ने इस सन्धि पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं?

प्रश्न 5.
भारत ने दूसरी बार अणु परीक्षण कब किया?
उत्तर :
भारत ने दूसरी बार आणविक परीक्षण मई, 1998 में पाँच आणविक परीक्षण के रूप में किये।

प्रश्न 6.
भारत की विदेश नीति की दो मुख्य विशेषताएँ बताइए। [2007]
या
पंचशील के कोई दो मुख्य सिद्धान्त बताइए। [2016]
उत्तर :

  1. गुट-निरपेक्षता की नीति तथा
  2. विश्वशान्ति।

प्रश्न 7.
पंचशील के किसी एक सिद्धान्त का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
अहस्तक्षेप।

प्रश्न 8.
इण्डिया, ब्राजील, साउथ अफ्रीका (IBSA) ‘इब्सा’ की स्थापना किस वर्ष हुई थी?
उतर :
इब्सा’ की स्थापना वर्ष 2003 में हुई थी।

प्रश्न 9.
पंचशील के दो सिद्धान्तों के नाम लिखिए। [2012, 14, 15, 16]
उतर :

  1. प्रादेशिक अखण्डता और प्रभुसत्ता का पारस्परिक सम्मान एवं
  2. समानता और पारस्परिक हित में सहयोग।

प्रश्न 10.
भारत की विदेश नीति का प्रमुख लक्षण लिखिए। [2007]
उत्तर :
गुट-निरपेक्षता की नीति भारत की विदेश नीति का प्रमुख लक्षण है।

प्रश्न 11.
भारतीय विदेश नीति का मुख्य लक्ष्य क्या है?
उत्तर :
भारत की विदेश नीति का मुख्य लक्ष्य अपने राष्ट्रीय हितों में अभिवृद्धि करना है।

प्रश्न 12.
शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व का अर्थ क्या है?
उत्तर :
शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व का अर्थ है-जिस व्यक्ति या देश के साथ मतभेद हों, उसके साथ भी शान्तिपूर्वक रहना।

प्रश्न 13.
शिमला समझौता कब एवं किनके बीच हुआ था?
उत्तर :
शिमला समझौता जुलाई, 1972 ई० में भारत की प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी तथा पाकिस्तान के राष्ट्रपति श्री जैड० ए० भुट्टो के बीच हुआ था।

प्रश्न 14.
पंचशील सिद्धान्त के प्रवर्तक कौन थे?
उत्तर :
स्व० पण्डित जवाहरलाल नेहरू।

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
भारत की विदेश नीति का प्रमुख उद्देश्य है
(क) अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा बनाए रखना
(ख) सभी राज्यों और राष्ट्रों के बीच शान्तिपूर्ण और सम्मानपूर्ण सम्बन्ध बनाए रखना
(ग) उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद का विरोध करना
(घ) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 2.
भारत की विदेश नीति की प्रमुख विशेषता है
(क) गुट-निरपेक्षता की नीति
(ख) विश्वशान्ति
(ग) साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद का विरोध
(घ) ये सभी

प्रश्न 3.
‘परमाणु परीक्षण रोक सन्धि’ कब हुई थी?
(क) 1960 में
(ख)1962 में
(ग) 1963 में
(घ) 1965 में

प्रश्न 4.
‘भारत-सोवियत संघ मैत्री सन्धि’ कब सम्पन्न हुई?
(क) 8 अगस्त, 1970 को
(ख) 9 अगस्त, 1971 को
(ग) 9 सितम्बर, 1972 को
(घ) 11 अगस्त, 1975 को

प्रश्न 5.
भारत ने अपना प्रथम अणु परीक्षण कब किया?
(क) 10 मई, 1972 को
(ख) 10 अगस्त, 1973 को
(ग) 18 मई, 1974 को
(घ) 9 सितम्बर, 1975 को।

प्रश्न 6.
भारत ने पूरब की ओर देखो’ की नीति की शुरुआत कब की? [2012]
(क) 1990
(ख) 1991
(ग) 1992
(घ) 1993

प्रश्न 7.
स्वतन्त्र भारत का पहला विदेश मन्त्री कौन था?
(क) अम्बेडकर
(ख) सरदार पटेल
(ग) जवाहरलाल नेहरू
(घ) सरदार स्वर्ण सिंह

प्रश्न 8.
भारत की विदेशी नीति के निर्माता हैं [2014]
(क) महात्मा गांधी
(ख) विनोबा भावे
(ग) जवाहरलाल नेहरू
(घ) डॉ० अम्बेडकर

प्रश्न 9.
पंचशील सिद्धान्त के प्रवर्तक थे [2014]
(क) सरदार वल्लभभाई पटेल
(ख) पं० जवाहरलाल नेहरू
(ग) महात्मा गाँधी
(घ) दलाई लामा

उत्तर :

  1. (घ) उपर्युक्त सभी
  2. (घ) ये सभी
  3. (ग) 1963 में
  4. (ख) 9 अगस्त, 1971 को
  5. (ग) 18 मई, 1974 को
  6. (ख) 1991
  7. (क) अम्बेडकर
  8. (ग) जवाहरलाल नेहरू
  9. (ख) पं० जवाहरलाल नेहरू।

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भारत की विदेश नीति के क्या लक्षण हैं?

भारत की विदेश नीति का एक सिद्धांत यह भी है कि भारत संयुक्त राष्ट्र संघ मे आस्था रखता है।.
असंलग्नता की नीति ... .
निः शस्त्रीकरण मे विश्वास ... .
सहअस्तित्व अथवा पंचशील ... .
अन्तर्राष्ट्रीय सद्भाव, सहयोग एवं मित्रता ... .
साधनों की शुद्धता पर आधारित ... .
रंगभेद का विरोध ... .
विश्व शांति मे विश्वास ... .
नस्लवाद का विरोध.

भारतीय विदेश नीति के मुख्य उद्देश्य क्या है?

भारत की विदेश नीति का उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखना, साम्राज्यवाद का विरोध करना, रंगभेद नीति के खिलाफ खड़ा होना, अंतरराष्ट्रीय विवादों के शांतिपूर्ण और राजनीतिक समाधान का प्रचार करना, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को बढ़ावा देना, गुटनिरपेक्ष और गैर-प्रतिबद्ध रहना है।

भारतीय विदेश नीति का प्रमुख सिद्धांत क्या है?

विश्व की लगभग 1/5 आबादी के साथ भारत को अपना स्वयं का पक्ष चुनने और अपने हितों का ध्यान रखने का अधिकार है। यह निश्चित रूप से अंतर्राष्ट्रीय संबंधों का एक मूल तत्त्व है कि राष्ट्रीय हित सर्वोपरि हैं और भारत ने भी अन्य देशों की तरह विदेशी एवं राष्ट्रीय सुरक्षा नीतियों के अनुपालन में अपने हितों पर बल दिया है।

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