भारत में मानसूनी वर्षा की क्या विशेषताएं हैं ?`? - bhaarat mein maanasoonee varsha kee kya visheshataen hain ?`?

(ii) भारत के विभिन्न स्थानों में वर्ष-प्रतिवर्ष प्राप्त होने वाली वर्षा की मात्रा में बहुत परिवर्तनशीलता पाई जाती है। ये 15% से 80% तक होती है।

(iii) मानसून में भारत के सभी भागों में एक समान वर्षा नहीं होती अलग-अलग क्षेत्रों में प्राप्त होने वाली वर्षा की मात्रा में अंतर पाया जाता है।

(iv) मानसून और ग्रीष्मकालीन मानसून की अवधि में भी अंतर पाया जाता है।

(v) लगातार भारी वर्षा के अंतराल के बाद बिना वर्षा वाला शुष्क अंतराल होता है।

(vi) भारत में होने वाली मानसूनी वर्षा की एक प्रमुख समस्या बाढ़ और सूखा है। एक और लगातार भारी वर्षा से बाढ़ आ जाती है, वही दूसरी ओर मानसून की विफलताओं के कारण कुछ क्षेत्रों में सूखा पड़ता है।

भारत में होने वाली मानसूनी वर्षा की विशेषताएँ:

  •  मानसून की अवधि जून के प्रारंभ से सितंबर के मध्य तक 100 से 120 दिन के बीच होती है।
  • इसके आगमन के आस-पास सामान्य वर्षण में अचानक वृद्धि हो जाती है। यह कई दिनों तक लगातार होती रहती है। आर्द्रतायुक्त पवनों के जोरदार गर्जन व बिजली चमकने के साथ अचानक आगमन को मानसून ‘प्रस्फोट’ के नाम से जाना जाता है।
  • मानसून में आई एवं शुष्क अवधियाँ होती हैं जिन्हें वर्षण में विराम कहा जाता है।
  • वार्षिक वर्षा प्रतिवर्ष अत्यधिक भिन्नता होती है।
  • यह कुछ पवनविमुखी ढलानों एवं मरुस्थल को छोड़कर भारत के शेष क्षत्रों को पानी उपलब्ध कराती है।
  • वर्षा का वितरण भारतीय भूदृश्य में अत्यधिक असमान है। मौसम के प्रारंभ में पश्चिमी घाटों की पवनमुखी ढालों पर भारी वर्षा होती है अर्थात् 250 से. मी. से अधिक। दक्कन के पठार के वृष्टि छाया क्षेत्रों एवं मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, लेह में बहुत कम वर्षा होती है। सर्वाधिक वर्षा देश के उत्तरपूर्वी क्षेत्रों में होती है।
  • उष्णकटिबंधीय दबाव की आवृत्ति एवं प्रबलता मानसून वर्षण की मात्रा एवं अवधि को निर्धारित करते हैं।
  • भारत के उत्तर पश्चिमी राज्यों से मानसून सितंबर के प्रारंभ में वापसी शुरू कर देती हैं। अक्तूबर के मध्य तक यह देश के उत्तरी हिस्से से पूरी तरह लौट जाती है। और दिसंबर तक शेष भारत से भी मानसून लौट जाता है।
  • मानसून को इसकी अनिश्चितता के कारण भी जाना जाता है। जहाँ एक ओर यह देश के कुछ हिस्सों में बाढ़ा देता है, वहीं दूसरी ओर यह देश के कुछ हिस्सों में सूखे का कारण बन जाता है।

भारत में मानसूनी वर्षा के प्रभाव:

  • भारतीय कृषि मुख्य रूप से मानसून से प्राप्त पानी पर निर्भर है। देरी से, कम या अधिक मात्रा में वर्षा का फसलों पर नकारात्मक प्रभाव डालती है।
  • वर्षा के असमान वितरण के कारण देश में कुछ सूखा संभावित क्षेत्र हैं जबकि कुछ बाढ़ से ग्रस्त रहते हैं।
  • मानसून भारत को एक विशिष्ट जलवायु पैटर्न उपलब्ध कराती है। इसलिए विशाल क्षेत्रीय भिन्नताओं की उपस्थिति के बावजूद मानसून देश और इसके लोगों को एकता के सूत्र में पिरोने वाला प्रभाव डालती है।

1. मानसूनी वर्षा–भारतीय वर्षा को लगभग 75% भाग दक्षिण-पश्चिमी मानसूनों द्वारा प्राप्त होता है, अर्थात् कुल वार्षिक वर्षा का 75% वर्षा ऋतु में, 13% शीत ऋतु में, 10% वसन्त ऋतु में तथा 2% ग्रीष्म ऋतु में प्राप्त होता है।

2. वर्षा की अनिश्चितता—भारतीय मानसूनी वर्षा का प्रारम्भ अनिश्चित है। मानसून कभी शीघ्र | आते हैं तो कभी देर से। कभी-कभी वर्षा ऋतु में सूखा पड़ जाता है तथा कभी अत्यधिक वर्षा से बाढ़े तक आ जाती हैं। किसी वर्ष वर्षा नियत समय से पूर्व ही आरम्भ हो जाती है एवं निश्चित समय से पूर्व ही समाप्त हो जाती है।

3. वितरण की असमानता-भारतीय वर्षा का वितरण बड़ा ही असमान है। कुछ भागों में वर्षा 490 सेमी या उससे अधिक हो जाती है, जबकि कुछ भाग ऐसे हैं जहाँ वर्षा का औसत 12 सेमी से भी कम रहता है।

4. मूसलाधार वर्षा–भारत में वर्षा अनवरत गति से नहीं होती, वरन् कुछ दिनों के अन्तराल से होती है। कभी-कभी वर्षा मूसलाधार रूप में होती है और एक ही दिन में 50 सेमी तक हो जाती है। यह मिट्टी का अपरदन करती है, जिससे मिट्टी के उत्पादक तत्त्व बह जाते हैं।

5. असमान वर्षा–कुछ भागों में वर्षा बड़ी तीव्र गति से होती है तथा कुछ भागों में केवल बौछारों के रूप में। एक ओर मॉसिनराम गाँव (चेरापूँजी) में 1,354 सेमी से भी अधिक वर्षा होती है, तो वहीं राजस्थान में केवल 10 सेमी से भी कम। कुछ स्थानों पर वर्षा की प्राप्ति असन्दिग्ध रहती है। वर्षा हो भी सकती है और नहीं भी। भारत के उत्तरी मैदान में तथा दक्षिणी भागों में ऐसी ही स्थिति पायी जाती है।

6. वर्षा की अल्पावधि-भारत में वर्षा के दिन बहुत ही कम होते हैं। उदाहरण के लिए–चेन्नई में | 50 दिन, मुम्बई में 75 दिन, कोलकाता में 118 दिन तथा अजमेर में केवल 30 दिन।

7. वर्षा की निश्चित अवधि–कुल वर्षा का लगभग 80% जून से सितम्बर तक प्राप्त हो जाता है, फलत: वर्ष का दो-तिहाई भाग सूखा ही रह जाता है, जिससे फसलों की सिंचाई करनी पड़ती है।

8. पर्वतीय वर्षा–भारत की लगभग 95% वर्षा पर्वतीय है, जबकि मात्र 5% वर्षा ही चक्रवातों द्वारा होती है।

9. वर्षा की निरन्तरता—भारत में प्रत्येक मास में किसी-न-किसी क्षेत्र में वर्षा होती रहती है। शीतकालीन चक्रवातों द्वारा जनवरी एवं फरवरी महीनों में उत्तरी भारत में वर्षा होती है। मार्च में चक्रवात असोम एवं पश्चिम बंगाल राज्यों में सक्रिय रहते हैं। इनसे तब तक वर्षा होती है जब तक दक्षिण-पश्चिमी मानसून पुनः चलना न आरम्भ कर दें।

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भारत में मानसूनी वर्षा की क्या विशेषताएं है?

(i) दिन गर्म और राते ठंडी होती है। (ii) शीत ऋतु नवंबर से आरंभ होकर फरवरी तक रहती है। (iii) सहित ऋतू में तापमान दक्षिण से उत्तर की ओर बढ़ने पर घटता जाता है। (iv) भारत में उत्तर-पूर्वी व्यापारिक पवनें प्रभावित होती है इनके कारण कुछ मात्रा में वर्षा तमिलनाडु के तट पर होती है।

28 भारत में मानसूनी वर्षा की क्या विशेषताएं हैं ?`?

मानसूनी वर्षा – सामान्यतः भारत में मानसूनी वर्षा की अवधि 15 जून से 15 सितम्बर तक होती है । हमारे देश में अधिकांश वर्षा दक्षिण – पश्चिमी ग्रीष्मकालीन मानसूनी पवनों से होती है । इस समय देश में वर्षा का 75 से 90% भाग प्राप्त हो जाता है। इसे वर्षा ऋतु भी कहा जाता है ।

मानसूनी जलवायु की विशेषताएं क्या है?

उष्णकटिबंधीय मानसूनी जलवायु वाले तटवर्ती प्रदेशों में तापमान वर्ष भर अधिक रहता है। ग्रीष्मकाल में तापमान सर्वाधिक दर्ज किया जाता है, वहीं वर्षा ऋतु में मेघाच्छादन एवं बारिश के कारण तापमान में गिरावट आती है। गर्मियों में तापमान 30°-45°C तक पाया जाता है, वही गर्मियों का औसत तापमान 30°C होता है।

मानसून से आप क्या समझते हैं मानसून की विशेषताओं का वर्णन कीजिए?

मानसून या पावस, मूलतः एवं अरब सागर की ओर से भारत के दक्षिण-पश्चिम तट पर आने वाली हवाओं को कहते हैं जो भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश आदि में भारी वर्षा करातीं हैं। ये ऐसी मौसमी पवन होती हैं, जो दक्षिणी एशिया क्षेत्र में जून से सितंबर तक, प्रायः चार माह सक्रिय रहती है।