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इसे सुनेंरोकें1931 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन कराची में हुआ था। कराची अधिवेशन की अध्यक्षता सरदार पटेल ने की थी। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का गठन 1885 में हुआ था।
कराची अधिवेशन में क्या हुआ था?
इसे सुनेंरोकें1931 में कांग्रेस कराची अधिवेशन भारत के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण घटना थी। यह सरदार वल्लभ भाई पटेल की अध्यक्षता में एकमात्र कांग्रेस सत्र था। इस अधिवेशन में गांधी-इरविन समझौते का समर्थन किया गया, जिसने कांग्रेस को सरकार के साथ समान स्तर पर बात करने का अवसर प्रदान किया।
कौन सी घटना भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कराची अधिवेशन 1931 से संबंधित हैं?
इसे सुनेंरोकेंगांधी-इरविन समझौते या दिल्ली समझौते को स्वीकृति प्रदान करने के लिये कांग्रेस का अधिवेशन 29 मार्च 1931 में कराची में आयोजित किया गया वल्लभभाई पटेल इसके अध्यक्ष थे इससे छह दिन पहले भगत सिंह, राजगुरु एवं सुखदेव को फांसी दी गयी थी। यद्यपि गांधीजी ने इन्हें बचाने की कोशिश की थी, किंतु भारतीय गांधीजी से तीव्र नाराज थे।
1931 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन कहाँ हुआ था?
कांग्रेस के अधिवेशन
1930 | अधिवेशन नहीं हुआ | जवाहरलाल नेहरू अध्यक्ष बने रहे |
1931 | कराची | वल्लभ भाई पटेल |
1932 | दिल्ली | आर.डी. अमृतलाल |
1933 | कलकत्ता | श्रीमती नलिनी सेनगुप्ता |
लाहौर अधिवेशन क्या था?
इसे सुनेंरोकें31 दिसम्बर 1929 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन तत्कालीन पंजाब प्रांत की राजधानी लाहौर में हुआ। इस ऐतिहासिक अधिवेशन में कांग्रेस के ‘पूर्ण स्वराज’ का घोषणा-पत्र तैयार किया तथा ‘पूर्ण स्वराज’ को कांग्रेस का मुख्य लक्ष्य घोषित किया। जवाहरलाल नेहरू, इस अधिवेशन के अध्यक्ष चुने गये।
लाहौर अधिवेशन कब हुआ था?
इसे सुनेंरोकें31 दिसम्बर 1929 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन तत्कालीन पंजाब प्रांत की राजधानी लाहौर में हुआ। इस ऐतिहासिक अधिवेशन में कांग्रेस के ‘पूर्ण स्वराज’ का घोषणा-पत्र तैयार किया तथा ‘पूर्ण स्वराज’ को कांग्रेस का मुख्य लक्ष्य घोषित किया।
हरिपुरा अधिवेशन कब हुआ?
इसे सुनेंरोकेंभारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान , भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का 1938 का वार्षिक सत्र यहीं हुआ था, जिसे ‘हरिपुरा सत्र’ कहा जाता है।
त्रिपुरी संकट क्या है?
इसे सुनेंरोकेंराजेंद्र प्रसाद को 1939 के अप्रैल में एस.सी. बोस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के बाद अध्यक्ष के रूप में चुना गया था, जिसे त्रिपुरी संकट के रूप में जाना जाता था। इसने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में गांधी बनाम बोस के आंतरिक संघर्ष को स्थिर किया।
1931
गांधी-इरविन समझौते या दिल्ली समझौते को स्वीकृति प्रदान करने के लिये कांग्रेस का अधिवेशन 29 मार्च 1931 में कराची में आयोजित किया गया। वल्लभभाई पटेल इसके अध्यक्ष थे। इससे छह दिन पहले भगत सिंह, राजगुरु एवं सुखदेव को फांसी दी गयी थी। यद्यपि गांधीजी ने इन्हें बचाने की कोशिश की थी, किंतु भारतीय गांधीजी से तीव्र नाराज थे। गांधीजी से अपेक्षा थी कि वे समझौते पर हस्ताक्षर नहीं करेंगे। गांधीजी को अपनी कराची यात्रा के दौरान जनता के तीव्र रोष का सामना करना पड़ा। उनके खिलाफ प्रदर्शन किये गये तथा उन्हें काले झंडे दिखाये गये। पंजाब नौजवान सभा ने भगत सिंह एवं उनके कामरेड साथियों को फांसी की सजा से न बचा पाने के लिये गांधीजी की तीव्र आलोचना की।
कराची में कांग्रेस का प्रस्ताव
- किसी भी तरह की राजनीतिक हिंसा का समर्थन न करने की बात दोहराते हुये भी कांग्रेस ने इन क्रांतिकारियों के वीरता और बलिदान की प्रशंसा की।
- दिल्ली समझौते को मंजूरी दे दी।
- पूर्ण स्वराज्य के लक्ष्य को पुनः दोहराया गया।
- कांग्रेस ने दो मुख्य प्रस्तावों को अपनाया- इनमें से एक मौलिक अधिकारों और दूसरा राष्ट्रीय आर्थिक कार्यक्रमों से सम्बद्ध था। इन प्रस्तावों के कारण कराची सत्र एक यादगार सत्र बन गया। मौलिक अधिकारों से सम्बद्ध प्रस्ताव में निम्न प्रावधानों को सुनिश्चित किया गया-
- अभिव्यक्त एवं प्रेस की पूर्ण स्वतंत्रता।
- संगठन बनाने की स्वतंत्रता।
- सार्वभौम वयस्क मताधिकार के आधार पर चुनावों की स्वतंत्रता।
- सभा एवं सम्मेलन आयोजित करने की स्वतंत्रता।
- जाति, धर्म एवं लिंग इत्यादि से हटकर कानून के समक्ष समानता का अधिकार।
- सभी धमों के प्रति राज्य का तटस्थ भाव।
- निःशुल्क एवं अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा की गारंटी।
- अल्पसंख्यकों तथा विभिन्न भाषाई क्षेत्रों की संस्कृति, भाषा एवं लिपि की सुरक्षा की गारंटी।
राष्ट्रीय आर्थिक कार्यक्रमों से सम्बद्ध जो प्रस्ताव पारित किये गये, उनमें सम्मिलित थे
- लगान और मालगुजारी में उचित कटौती।
- अलाभकर जोतों को लगान से मुक्ति।
- किसानों को कर्ज से राहत और सूदखोरों पर नियंत्रण।
- मजदूरों के लिये बेहतर सेवा शर्ते, महिला मजदूरों की सुरक्षा तथा काम के नियमित घंटे।
- मजदूरों और किसानों को अपने यूनियन बनाने की स्वतंत्रता।
- प्रमुख उद्योगों, परिवहन और खदान को सरकारी स्वामित्व एवं नियत्रंण में रखने का वायदा।
इस अधिवेशन में कांग्रेस ने पहली बार पूर्ण स्वराज्य को परिभाषित किया और बताया कि जनता के लिये पूर्ण स्वराज्य का अर्थ क्या है। कांग्रेस ने यह भी घोषित किया कि ‘जनता के शोषण को समाप्त करने के लिये राजनीतिक आजादी के साथ-साथ आर्थिक आजादी भी आवश्यक है’।
कांग्रेस का कराची प्रस्ताव वास्तविक रूप से कांग्रेस की मूलभूत राजनीतिक व आर्थिक नीतियों का दस्तावेज था, जो बाद के वर्षों में भी निरंतर बरकरार रहा ।