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इस पंक्ति के बात करें तो इसमें भगत को बूढ़ा इसलिए कहा गया है क्योंकि भारत का इतिहास है और सबसे ज्यादा शादी है सबसे ज्यादा पुराना है
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जयंती पर विशेष
अंग्रेज और अधिकतर पश्चिमी इतिहासकार 1857 के संग्राम को सिर्फ सैनिक विद्रोह कह कर उसका महत्व कम करना चाहते है. इसके बावजूद भारतीयों ने इस संग्राम के महत्व को समझा है. वीडी सावरकर ने इस पर एक किताब भी लिखी थी. इस संग्राम में रानी लक्ष्मीबाई ने भी अपने हितों की रक्षा के लिए अंग्रेजों से मुकाबला किया.
मणिकर्णिका नाम दिया गया
रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवंबर, 1828 को बनारस के एक मराठी ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उन्हें मणिकर्णिका नाम दिया गया और घर में मनु कहकर बुलाया जाता था. मनु सिर्फ 4 बरस की थीं, जब मां गुज़र गईं. पिता मोरोपंत तांबे बिठूर ज़िले के पेशवा के यहां काम करते थे और पेशवा ने उन्हें अपनी बेटी की तरह पाला. प्यार से नाम दिया छबीली.
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झांसी की ओर बढ़े कदम
मणिकर्णिका का ब्याह झांसी के महाराजा राजा गंगाधर राव नेवलकर से हुआ था. देवी लक्ष्मी पर उनका नाम लक्ष्मीबाई पड़ा. इन्होंने बेटे को जन्म दिया, लेकिन 4 माह का होते ही उसका निधन हो गया. राजा गंगाधर ने अपने चचेरे भाई के बच्चे को गोद लिया और उसे दामोदार राव नाम दिया गया.
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अंग्रेजों की साजिश, हड़प नीति
राजा का देहांत होते ही अंग्रेज़ों ने चाल चली. लॉर्ड डलहौज़ी ने ब्रिटिश साम्राज्य के पैर पसारने के लिए झांसी की बदकिस्मती का फायदा उठाने की कोशिश की. अंग्रेज़ों ने दामोदर को झांसी के राजा का उत्तराधिकारी स्वीकार करने से इनकार कर दिया.झांसी की रानी को सालाना 60000 रुपये पेंशन लेने और झांसी का किला खाली कर चले जाने के लिए कहा गया.
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रानी से मर्दानी तक
झांसी को बचाने के लिए रानी लक्ष्मीबाई ने बागियों की फौज तैयार करने का फैसला किया. उन्हें गुलाम गौस ख़ान, दोस्त ख़ान, खुदा बख़्ेश, सुंदर-मुंदर, काशी बाई, लाला भऊ बख़्दशी, मोती भाई, दीवान रघुनाथ सिंह और दीवान जवाहर सिंह से मदद मिली. झांसी में रानी ने 14000 बागियों की सेना तैयार की.
जब झांसी बना मैदान-ए-जंग
रानी लक्ष्मीबाई, अंग्रेज़ों से भिड़ना नहीं चाहती थीं लेकिन सर ह्यूज रोज़ की अगुवाई में जब अंग्रेज़ सैनिकों ने हमला बोला, तो कोई और विकल्प नहीं बचा. रानी को अपने बेटे के साथ रात के अंधेरे में भागना पड़ा. अंग्रेजों की विशाल और आधुनिक हथियारों से लैस सेना का मुकाबला लक्ष्मी बाई ने बहादुरी से किया लेकिन आखिरकार उन्हें अपनी शहादत देते हुए पराजित होना पड़ा.
ग्वालियर के फूल बाग इलाके में मौजूद उनकी समाधि आज भी उनके साहस और शौर्य की कहानी बयां कर रही है. जिस अंग्रेज सेनापति ह्यूज ने लक्ष्मीबाई को हराया था उसने लिखा
है कि 1857 के विद्रोहियों में एकमात्र मर्द लक्ष्मी बाई थी.
हिंदी की प्रसिद्ध कवियित्री सुभद्राकुमारी चौहान ने भी अपनी कलम के ज़रिये उनकी साहस की जो गाथा हमारे सामने रखी, उसकी मिसाल दूसरी कोई नहीं!
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी
सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी.
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी.
(नवीन शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार व लेखक)
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