गलता लोहा कहानी के शीर्षक कौन है? - galata loha kahaanee ke sheershak kaun hai?

Online study material, NCERT Solutions, class 1 to 12 cbse online study material, general knowledge questions and answers in hindi and English, general knowledge quiz online, gk question answer in hindi and English, Educational, Motivational, Technology, General knowledge, Useful information, Computer, Mobile, Education portal, addhyapak latest news today, Income tax related portal, classroom learning videos, cbse study material for class 10 related article, video etc available this website.

‘गलता लोहा’ कहानी में समाज के जातिगत विभाजन और स्तरीकरण पर कई कोणों से टिप्पणी की गई है। यह कहानी लेखक के लेखन में अर्थ की गहराई को दर्शाती है। इस पूरी कहानी में लेखक की कोई मुखर टिप्पणी नहीं है। इसमें एक मेधावी, किन्तु निर्धन ब्राह्मण युवक मोहन किन परिस्थितियों के चलते उस मनोदशा तक पहुँचता है, जहाँ उसके लिए जातीय अभिमान बेमानी हो जाता है।

मोहन सामाजिक जातिगत भेदभावों को तोड़कर धनराम लोहार के आफर पर जाता है, बैठता है, साथ ही उसके काम में भी अपनी कुशलता भी दिखाता है। वैसे ब्राह्मणों का शिल्पकारों के मुहल्ले में उठना-बैठना नहीं होता था। किसी काम-काज के सिलसिले में यदि शिल्पकार होले में आना ही पड़ा तो खड़े-खड़े बातचीत निपटा ली जाती थी।

ब्राह्मण होले के लोगों को बैठने के लिए कहना भी उनकी मर्यादा के विरुद्ध समझा जाता था। मोहन इन जातिगत भेदभाव को भूलकर धनराम के हाथ से हथौड़ा लेकर नपी-तुली चोट मारते, अभ्यस्त हाथों से धौंकनी फूंककर लोहे को दुबारा भट्ठी में गरम करते और फिर निहाई पर रखकर उसे ठोकते-पिटते सुघड़ गोले का रूप दे डालता है । इस प्रकार मोहन जातिगत भेदभाव को गलाकर नया आकार दे देता है। इस प्रकार प्रस्तुत कहानी का शीर्षक ‘गलता लोहा’ सार्थक है।

galta loha class 11

आरोह 

गलता लोहा

लेखक- शेखर जोशी

galta loha class 11 saransh 

 सारांश 

गलता लोहा कहानी में समाज के जातिगत विभाजन और उस पर आधारित रोजगार पर कई कोणों से टिप्पणी की गई है। यह कहानी लेखक के लेखन में अर्थ की गहराई को दर्शाती है। इस पूरी कहानी में लेखक की कोई मुखर टिप्पणी नहीं है। इसमें एक मेधावी, किंतु निर्धन ब्राहमण युवक मोहन किन परिस्थितियों के चलते उस मनोदशा तक पहुँचता है, जहाँ उसके लिए जातीय अभिमान बेमानी हो जाता है। सामाजिक विधि-निषेधों को ताक पर रखकर वह धनराम लोहार के आफर पर बैठता ही नहीं, उसके काम में भी अपनी कुशलता दिखाता है। मोहन का व्यक्तित्व जातिगत आधार पर निर्मित झूठे भाईचारे की जगह मेहनतकशों के सच्चे भाईचारे को प्रस्तावित करता प्रतीत होता है मानो लोहा गलकर नया आकार ले रहा हो।

मोहन के पिता वंशीधर ने जीवनभर पुरोहिताई की। अब वृद्धावस्था में उनसे कठिन श्रम व व्रत-उपवास नहीं होता। पिता का भार हलका करने के लिए वह खेतों की ओर चला, लेकिन हँसुवे की धार कुंद हो चुकी थी। उसे अपने दोस्त धनराम की याद आ गई। वह धनराम लोहार की दुकान पर धार लगवाने पहुँचा।

धनराम उसका सहपाठी था। दोनों बचपन की यादों में खो गए। मोहन ने मास्टर त्रिलोक सिंह के बारे में पूछा। धनराम ने बताया कि वे पिछले साल ही गुजरे थे। दोनों हँस-हँसकर उनकी बातें करने लगे। मोहन पढ़ाई व गायन में निपुण था। वह मास्टर का चहेता शिष्य था और उसे पूरे स्कूल का मॉनीटर बना रखा था। वे उसे कमजोर बच्चों को दंड देने का भी अधिकार देते थे। धनराम ने भी मोहन से मास्टर के आदेश पर डंडे खाए थे। धनराम उसके प्रति स्नेह व आदरभाव रखता था, क्योंकि जातिगत आधार की हीनता उसके मन में बैठा दी गई थी । उसने मोहन को कभी अपना प्रतिद्वंद्वी नहीं समझा।

धनराम पढने में कमजोर था ,इसकी वजह से उसकी पिटाई होती। मास्टर जी का नियम था कि सजा पाने वाले को अपने लिए हथियार भी जुटाना होता था। उसकी मंदता पर मास्टर जी ने व्यंग्य किया-‘तेरे दिमाग में तो लोहा भरा है रे। विद्या का ताप कहाँ लगेगा इसमें?”

हालाँकि धनराम के पिता ने उसे हथौड़े से लेकर घन चलाने की विद्या सिखा दी। एक दिन गंगाराम अचानक चल बसे। धनराम ने सहज भाव से उनकी विरासत सँभाल ली।

इधर मोहन ने छात्रवृत्ति पाई। इससे उसके पिता वंशीधर तिवारी उसे बड़ा आदमी बनाने का स्वप्न देखने लगे। अत: उन्होंने गाँव से चार मील दूर स्कूल में उसे भेज दिया। शाम को थकामाँदा मोहन घर लौटता तो पिता पुराण कथाओं से उसे उत्साहित करने की कोशिश करते। वर्षा के दिनों में मोहन नदी पार गाँव के यजमान के घर रहता था। एक दिन नदी में पानी कम था तथा मोहन घसियारों के साथ नदी पार कर घर आ रहा था। पहाड़ों पर भारी वर्षा के कारण अचानक नदी में पानी बढ़ गया। किसी तरह वे घर पहुँचे इस घटना के बाद वंशीधर घबरा गए और फिर मोहन को स्कूल न भेजा।

उन्हीं दिनों बिरादरी का एक संपन्न परिवार का युवक रमेश लखनऊ से गाँव आया हुआ था। उससे वंशीधर ने मोहन की पढ़ाई के संबंध में अपनी चिंता व्यक्त की तो वह उसे अपने साथ लखनऊ ले जाने को तैयार हो गया। वंशीधर को रमेश के रूप में भगवान मिल गया। मोहन रमेश के साथ लखनऊ पहुँचा। यहाँ से जिंदगी का नया अध्याय शुरू हुआ। घर की महिलाओं के साथ-साथ उसने गली की सभी औरतों के घर का काम करना शुरू कर दिया। रमेश बड़ा बाबू था। वह मोहन को घरेलू नौकर से अधिक हैसियत नहीं देता था। मोहन भी यह बात समझता था। कह सुनकर उसे समीप के सामान्य स्कूल में दाखिल करा दिया गया।

मोहन ने परिस्थितियों से समझौता कर लिया था। वह घर वालों को असलियत बताकर दुखी नहीं करना चाहता था। आठवीं कक्षा पास करने के बाद उसे आगे पढ़ाने के लिए रमेश का परिवार उत्सुक नहीं था। बेरोजगारी का तर्क देकर उसे तकनीकी स्कूल में दाखिल करा दिया गया। वह पहले की तरह घर व स्कूल के काम में व्यस्त रहता। इधर वंशीधर को अपने बेटे के बड़े अफसर बनने की उम्मीद थी। जब उसे वास्तविकता का पता चला तो उसे गहरा दुःख हुआ।

इस तरह मोहन और धनराम जीवन के कई प्रसंगों पर बातें करते रहे। धनराम ने हँसुवे के फाल को बेंत से निकालकर तपाया, फिर उसे धार लगा दी। आमतौर पर ब्राहमण टोले के लोगों का शिल्पकार टोले में उठना-बैठना नहीं होता था। काम-काज के सिलसिले में खड़े-खड़े बातचीत निपटा ली जाती थी। ब्राहमण टोले के लोगों को बैठने के लिए कहना भी उनकी मर्यादा के विरुद्ध समझा जाता था। मोहन धनराम की कार्यशाला में बैठकर उसके काम को देखने लगा।

धनराम अपने काम में लगा रहा। वह लोहे की मोटी छड़ को भट्टी में गलाकर गोल बना रहा था, किंतु वह छड़ निहाई पर ठीक से फंस नहीं पा रही थी। अत: लोहा ठीक ढंग से मुड़ नहीं पा रहा था। मोहन कुछ देर उसे देखता रहा और फिर उसने दूसरी पकड़ से लोहे को स्थिर कर लिया। नपी-तुली चोटों से छड़ को पीटते-पीटते गोले का रूप दे डाला। मोहन के काम में स्फूर्ति देखकर धनराम अवाक् रह गया। वह पुरोहित खानदान के युवक द्वारा लोहार का काम करने पर आश्चर्यचकित था। धनराम के संकोच, धर्मसंकट से उदासीन मोहन लोहे के छल्ले की त्रुटिहीन गोलाई की जाँच कर रहा था। उसकी आँखों में एक सर्जक की चमक थी।

प्रश्न-1. ब्राह्मण टोले के लोग शिल्पकार टोले में बैठना नहीं चाहते क्योंकि-

(अ) वे उन्हें श्रेष्ठ समझते हैं 

(ब) वे शिल्पकारों को नीच समझते हैं

(स) वे उन्हें गरीब समझते हैं 

(द) वे उन्हें मूर्ख समझते हैं

प्रश्न-2. 'साँप सूंघ जाना' का अर्थ है-

(अ) साँप का काटना 

(ब) साँप का चाटना

(स) चुप हो जाना 

(द) खो जाना

प्रश्न-3. कहानी में गोपाल सिंह कौन है?

(अ) दुकानदार 

(ब) सब्जीवाला 

(स) गीतकार 

(द) अध्यापक

प्रश्न-4. गलता लोहा पाठ के लेखक हैं ?

(अ) शेखर गुप्ता 

(ब) शेखर जोशी 

(स) नीरज गुप्ता 

(द) नीरज जोशी

प्रश्न-5. शेखर जी का जन्म कब और कहाँ हुआ ?

(अ) सन् 1938, आगरा में 

(ब) सन् 1932, अल्मोड़ा में

(स) सन् 1933, बिहार में 

(द) सन् 1930, मथुरा में

प्रश्न-6. शेखर जी को निम्न से कौनसा सम्मान मिला है ?

(अ) दादा साहब फाल्के 

(ब) मैग्सेसे सम्मान 

(स) मीरा सम्मान 

(द) पहल सम्मान

प्रश्न-7. शेखर जोशी जी मूल रूप से हैं -

(अ) कहानीकार 

(ब) उपन्यासकार 

(स) निबंधकार 

(द) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न-8. गलत लोहा कहानी में किस पर टिप्पणी की गई है ?

(अ) समाज के जातिगत विभाजन पर 

(ब) शिक्षा की उपलब्धता पर

(स) बेरोजगारी पर 

(द) गुलाम जीवन पर

प्रश्न-9. मोहन किस परिवार से संबंध रखता है ?

(अ) गरीब लोहार परिवार से 

(ब) अमीर लोहार परिवार से

(स) गरीब ब्राह्मण परिवार से 

(द) अमीर ब्राह्मण परिवार से

प्रश्न-10. मोहन पढ़ने में कैसा छात्र है ?

(अ) औसत 

(ब) मंद 

(स) मेधावी 

(द) इममें से कोई नहीं

प्रश्न-11. धनराम कहाँ रहता था ?

(अ) स्वर्णकार टोले में 

(ब) शिल्पकार टोले में

(स) ब्राह्मण टोले में 

(द) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न-12. ‘अनुगूँज’ का अर्थ होता है-

(अ) टकराकर लौटने वाली आवाज़ 

(ब) मीठी आवाज़

(स) तेज आवाज़ 

(द) पुकारने की आवाज़

प्रश्न-13. धप्-धप् की आवाज़ किसे से होती थी ?

(अ) गर्म लोहे पर हथौड़े के पड़ने से 

(ब) ठंडे लोहे पर हथौड़े के पड़ने से

(स) गोल लोहे पर हथौड़े के पड़ने से 

(द) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न-14. मोहन के पिता का क्या नाम है?

(अ) गंगाधर 

(ब) वंशीधर 

(स) गिरिधर 

(द) धाराधर

प्रश्न-15. मोहन किस कार्य से घर से हँसुवे को लेकर निकला था ?

(अ) लकड़ी काटने 

(ब) काँटेदार झाड़ियों को काटने

(स) पशुओं के लिए घास काटने 

(द) जानवरों को काटने के लिए

प्रश्न-16. मोहन के पिता घर का खर्च कैसे चलाते थे ?

(अ) पटवारीगिरी करके (ब) यजमानी करके (स) पुरोहिताई करके (द) नौकरी करके

प्रश्न-17. मोहन के पिता थे -

(अ) बूढ़े (ब) जर्जर शरीर वाले (स) संयमी (द) उपर्युक्त सभी

प्रश्न-18. मोहन के पिता वंशीधर जी रुद्रीपाठ करने में असमर्थता क्यों व्यक्त करते हैं ?

(अ) बीमार होने के कारण (ब) व्रत होने के कारण

(स) दो मील की चढ़ाई के कारण (द) पानी भर जाने के कारण

प्रश्न-19. हँसुवे की धार कैसी हो गई थी ?

(अ) तेज (ब) कुंद (स) मजबूत (द) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न-20. धनराम क्या काम करता था ?

(अ) लोहार था (ब) शिक्षक था (स) पुरोहित था (द) सब्जी बेचता था

प्रश्न-21. मोहन के शिक्षक का का नाम क्या था ?

(अ) मास्टर शिव सिंह (ब) मास्टर देवीलाल (स) मास्टर त्रिलोक सिंह (द) मास्टर गिर्राज सिंह

प्रश्न-22. धनराम मास्टर जी की किस चीज़ से डरता था ?

(अ) आवाज़ से (ब) पढ़ाने से (स) छड़ी से (द) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न-23. शैतानी करते हुए बच्चों को साँप क्यों सूंघ जाता था ?

(अ) मोहन को देखकर (ब) साँप देखकर

(स) त्रिलोक सिंह को देखकर (द) मोहन के पिता को देखकर

प्रश्न-24. ‘प्रार्थना कर ली तुम लोगों ने’ यह कथन किसका है ?

(अ) मोहन का (ब) त्रिलोक सिंह का (स) धनराम का (द) मोहन के दोस्त का

प्रश्न-25. त्रिलोक सिंह का प्रिय शिष्य कौन था ?

(अ) धनराम (ब) सोहन (स) गोपाल (द) मोहन

प्रश्न-26. मोहन पढाई के साथ-साथ और किसमें अच्छा था ?

(अ) गायन में (ब) खेलने में (स) तैरने में (द) छलांग लगाने में

प्रश्न-27. विद्यालय में कौनसी प्रार्थना होती थी ?

(अ) इतनी शक्ति हमें देना दाता (ब) दया कर दान भक्ति का

(स) हे प्रभो आनंददाता! (द) ये सभी

प्रश्न-28. फिसड्डी बालक को दंड कौन देता था?

(अ) त्रिलोक सिंह (ब) मोहन (स) गोपालदास (द) धनराम

प्रश्न-29. धनराम के मन में मोहन के प्रति स्नेह और आदर का भाव क्यों रहा होगा ?

(अ) उसका मित्र होने के करण (ब) बचपन में मन में बिठाई जातिगत हीनता के कारण

(स) मोहन के अमीर होने के कारण (द) उसका भाई होने के कारण

प्रश्न-30. धनराम कहाँ तक पढ़ सका था ?

(अ) तीसरी तक (ब) पांचवी तक (स) आठवीं तक (द) दसवीं तक

प्रश्न-31. मास्टर त्रिलोक सिंह धनराम को क्या कहकर पुकारते थे ?

(अ) धनराम (ब) बेटा (स) धनुवाँ (द) धनी

प्रश्न-32. मास्टर त्रिलोक सिंह ने धनराम से कितने का पहाड़ा सुनाने को कहा?

(अ) बारह का (ब) तेरह का (स) चौदह का (द) सोलह का

प्रश्न-33. मास्टर त्रिलोक सिंह का सामान्य नियम क्या था ?

(अ) सभी से प्रार्थना करवाना (ब) सभी को इनाम देना

(स) सजा पानेवाला स्वयं सजा का हथियार चुने (द) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न-34. धनराम द्वारा दूसरी बार भी पहाड़ा न सुनाने पर मास्टर जी ने क्या काम उसको दिया ?

(अ) दराँतियों पर धार लगाने का (ब) झाड़ू लगाने का

(स) मुर्गा बनने का (द) प्रार्थना याद करने का

प्रश्न-35. धनराम के पिता का नाम क्या था ?

(अ) सोनाराम (ब) मोतीराम (स) गंगाराम (द) मोहनराम

प्रश्न-36. मास्टर त्रिलोक सिंह ने क्या भविष्यवाणी की थी ?

(अ) बड़ा आदमी बनकर मोहन स्कूल का नाम रोशन करेगा |

ब) बड़ा आदमी बनकर धनराम स्कूल का नाम रोशन करेगा |

(स) पंडित बनकर मोहन स्कूल का नाम रोशन करेगा |

(द) मशीन बनाकर धनराम स्कूल का नाम रोशन करेगा |

प्रश्न-37. मोहन ने ऐसा क्या किया जिससे मास्टर त्रिलोक सिंह की भविष्यवाणी सही सिद्ध होती सी प्रतीत हुई ?

(अ) बड़े कॉलेज की परीक्षा पास की (ब) छात्रवृत्ति प्राप्त की

(स) प्रशासनिक परीक्षा पास की (द) शहर के स्कूल में प्रथम आया

प्रश्न-38. वंशीधर तिवारी की क्या इच्छा थी ?

(अ) उसको और यजमान मिलें (ब) मोहन गाँव में ही रहे

(स) मोहन पढ़कर उनकी गरीबी मिटा दे (द) मोहन पुरोहताई का कार्य करे

प्रश्न-39. आगे की पढाई के लिए स्कूल कहाँ था ?

(अ) गाँव में ही (ब) गाँव से चार मील दूर (स) गाँव से बीस मील दूर (द) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न-40. थके मोहन को वंशीधर कैसे उत्साहित करते थे ?

(अ) अच्छा खाना देकर (ब) उसको खेलने का कहकर

(स) विद्याव्यसनी बालकों का उदाहरण देकर (द) उसको दूध पिलाकर

प्रश्न-41. रमेश कौन था ?

(अ) एक शिक्षक (ब) बिरादरी का युवक (स) मोहन का दोस्त (द) मोहन का मामा

प्रश्न-42. रमेश कहाँ रहता था ?

(अ) दिल्ली में (ब) लखनऊ में (स) इलाहाबाद में (द) मेरठ में

प्रश्न-43. वंशीधर तिवारी ने मोहन को रमेश के साथ क्यों भेजा था ?

(अ) नौकरी के लिए (ब) पढ़ने के लिए (स) इलाज के लिए (द) रमेश की मदद करने के लिए

प्रश्न-44. रमेश के घर की दो महिलाओं को मोहन क्या कहता था ?

(अ) ताई और भाभी (ब) चाची और भाभी (स) मामी और मौसी (द) चाची और ताई

प्रश्न-45. रमेश मोहन को कैसे रखता था ?

(अ) भाई की तरह (ब) दोस्त की तरह (स) भतीजे की तरह (द) नौकर की तरह

प्रश्न-46. मोहन शहर के स्कूली जीवन में अपनी पहचान क्यों नहीं बना पाया ?

(अ) नए वातावरण एवं काम के बोझ के कारण (ब) पढ़ने में कमजोर होने के कारण

(स) अध्यापकों के भेदभाव के कारण (द) उपर्युक्त सभी कारण से

प्रश्न-47. मोहन ने अपनी परिस्थितियों से समझौता क्यों कर लिया था ?

(अ) क्योंकि वह समझदार था (ब) क्योंकि परिजनों को दुखी देखना चाहता था

(स) परिजनों को दुखी नहीं करना चाहता था (द) मोहन बड़ा आदमी बनना चाहता था

प्रश्न-48. क्या बहाना करके मोहन को गर्मी की छुट्टियों में गाँव नहीं जाने दिया जाता था ?

(अ) रमेश की तबियत ख़राब होने का (ब) उसकी तबियत ख़राब होने का

(स) अगले दरजे की तैयारी का (द) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न-49. आठवीं के बाद रमेश ने मोहन का दाख़िला कहाँ करवा दिया था ?

(अ) कॉलेज में (ब) तकनीकी स्कूल में (स) एन.सी.सी. में (द) लॉ कॉलेज में

प्रश्न-50. मोहन अपने पैरों पर खड़े होने के लिए क्या करने लगा ?

(अ) कारखानों के चक्कर लगाने लगा (ब) फैक्टरियों के चक्कर लगाने लगा

(स) कारखानों और फैक्टरियों के चक्कर लगाने लगा (द) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न-51. मोहन के पिता को क्या विश्वास था ?

(अ) कि उसकी तबीयत ठीक हो जाएगी (ब) मोहन बड़ा कारीगर बन जाएगा

(स) मोहन बड़ा अफ़सर बनकर आएगा (द) मोहन शिक्षक बन जाएगा

प्रश्न-52. धनराम द्वारा मोहन के विषय में पूछने पर वंशीधर ने क्या उत्तर दिया ?

(अ) मोहन व्यापारी बन गया है (ब) मोहन की सेक्रेटेरियट में नौकरी लग गई है

(स) वह कॉलेज में पढ़ रहा है (द) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न-53. धनराम को किस पर पूरा यकीन था?

(अ) वंशीधर की बात पर (ब) मोहन की मेहनत पर

(स) स्वयं पर (द) त्रिलोक सिंह की भविष्यवाणी पर

प्रश्न-54. वंशीधर जी ने दाँतों में तिनका क्यों लिया था ?

(अ) ताकि उनकी मनोकामना पूर्ण हो जाए (ब) ताकि मोहन साहब बन जाए

(स) ताकि असत्य भाषण का दोष न लगे (द) उपर्युक्त सभी

प्रश्न-55. ‘बेचारे पंडित जी को तो फ़ुर्सत नहीं रहती लेकिन किसी के हाथ भिजवा देते तो मैं तत्काल बना देता’ यह कथन किसका है ?

(अ) मोहन का (ब) रमेश का (स) धनराम का (द) त्रिलोक सिंह का

प्रश्न- 56. ब्राह्मण टोले के लोगों को किस के लिए कहना उनकी मर्यादा के विरुद्ध समझा जाता था ?

(अ) बैठने के लिए (ब) खड़े होने के लिए (स) पढ़ने के लिए (द) दौड़ने के लिए

प्रश्न-57. मोहन का कौनसा व्यवहार धनराम को हैरान कर रहा था ?

(अ) उसका धनराम से बात करना (ब) धनराम के पास बैठे रहना

(स) बिना बोले चला जाना (द) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न-58. लोहे की मोटी छड़ को धनराम किस आकार में मोड़ने का प्रयास कर रहा था ?

(अ) वर्गाकार (ब) त्रिभुजाकार (स) आयताकार (द) गोलाकार

प्रश्न-59. धनराम को मोहन के द्वारा लोहे को गोलाकार देने के कार्य पर ज्यादा आश्चर्य क्यों हुआ ?

(अ) क्योंकि वह अफ़सर था (ब) क्योंकि वह पुरोहित खानदान से था

(स) वह एक पढ़ाकू लड़का था (द) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न-60. मोहन की आँखों में किस की चमक थी ?

(अ) विजेता की चमक (ब) चालाकी भरी चमक (स) सर्जक की चमक (द) आश्चर्य भरी चमक

उत्तर- माला

     2     3     4     5     6     7     8     9     10

                              

11   12    13    14    15    16    17    18   19    20

                                    

21   22    23    24   25    26    27    28    29    30

                                     

31    32    33    34    35    36    37    38    39    40

                                     

41    42    43    44    45    46   47   48   49   50

ब     ब     ब     ब     द     अ     स     स     ब     स

51   52   53    54    55    56    57    58    59    60

                                    

galta loha class 11 prashnottar
galta loha class 11 question answer

 पाठ के साथ 

प्रश्न. 1. कहानी के उस प्रसंग का उल्लेख करें, जिसमें किताबों की विद्या और घन चलाने की विद्या का जिक्र आया है?

उत्तर: जिस समय धनराम तेरह का पहाड़ा नहीं सुना सका तो मास्टर त्रिलोक सिंह ने जबान के चाबुक लगाते हुए कहा कि ‘तेरे दिमाग में तो लोहा भरा है रे! विद्या का ताप कहाँ लगेगा इसमें?’ यह सच है कि किताबों की विद्या का ताप लगाने की सामथ्र्य धनराम के पिता की नहीं थी। उन्होंने बचपन में ही अपने पुत्र को धौंकनी फूंकने और सान लगाने के कामों में लगा दिया था। वे उसे धीरे-धीरे हथौड़े से लेकर घन चलाने की विद्या सिखाने लगे। उपर्युक्त प्रसंग में किताबों की विद्या और घन चलाने की विद्या का जिक्र आया है।

प्रश्न. 2. धनराम मोहन को अपना प्रतिद्वंद्वी क्यों नहीं समझता था?

उत्तर: धनराम मोहन को अपना प्रतिद्वंद्वी नहीं समझता था क्योंकि –

वह स्वयं को नीची जाति का समझता था। यह बात बचपन से उसके मन में बैठा दी गई थी।

मोदन कक्षा का सबसे होशियार लड़का था। वह हर प्रश्न का उत्तर देता था। उसे मास्टर जी ने पूरी पाठशाला का मॉनीटर बना रखा था। वह अच्छा गाता था।

मास्टर जी को लगता था कि एक दिन मोहन बड़ा आदमी बनकर स्कूल तथा उनका नाम रोशन करेगा।

प्रश्न. 3. धनराम को मोहन के किस व्यवहार पर आश्चर्य होता है और क्यों?

उत्तर: मोहन ब्राहमण जाति का था और उस गाँव में ब्राहमण शिल्पकारों के यहाँ उठते-बैठते नहीं थे। यहाँ तक कि उन्हें बैठने के लिए कहना भी उनकी मर्यादा के विरुद्ध समझा जाता था। मोहन धनराम की दुकान पर काम खत्म होने के बाद भी काफी देर तक बैठा रहा। इस बात पर धनराम को हैरानी हुई। उसे अधिक हैरानी तब हुई जब मोहन ने उसके हाथ से हथौड़ा लेकर लोहे पर नपी-तुली चोटें मारी और धौंकनी फूंकते हुए भट्ठी में लोहे को गरम किया और ठोक-पीटकर उसे गोल रूप दे दिया। मोहन पुरोहित खानदान का पुत्र होने के बाद निम्न जाति के काम कर रहा था। धनराम शकित दृष्टि से इधर-उधर देखने लगा।

प्रश्न. 4. मोहन के लखनऊ आने के बाद के समय को लेखक ने उसके जीवन का एक नया अध्याय क्यों कहा है?

उत्तर: मोहन अपने गाँव का एक होनहार विद्यार्थी था। पाँचवीं कक्षा तक आते-आते मास्टर जी सदा उसे यही कहते कि एक दिन वह अपने गाँव का नाम रोशन करेगा। जब पाँचवीं कक्षा में उसे छात्रवृत्ति मिली तो मास्टर जी की भविष्यवाणी सच होती नज़र आने लगी। यही मोहन जब पढ़ने के लिए अपने रिश्तेदार रमेश के साथ लखनऊ पहुँचा तो उसने इस होनहार को घर का नौकर बना दिया। बाजार का काम करना, घरेलु काम-काज में हाथ बँटाना, इस काम के बोझ ने गाँव के मेधावी छात्र को शहर के स्कूल में अपनी जगह नहीं बनाने दी। इन्हीं स्थितियों के चलते लेखक ने मोहन के जीवन में आए इस परिवर्तन को जीवन का एक नया अध्याय कहा है।

प्रश्न. 5. मास्टर त्रिलोक सिंह के किस कथन को लेखक ने ज़बान के चाबुक कहा है और क्यों ?

उत्तर: जब धनराम तेरह का पहाड़ा नहीं सुना सका तो मास्टर त्रिलोक सिंह ने व्यंग्य वचन कहे ‘तेरे दिमाग में तो लोहा भरा है रे! विद्या का ताप कहाँ लगेगा इसमें?’ लेखक ने इन व्यंग्य वचनों को ज़बान के ‘चाबुक’ कहा है। चमड़े की चाबुक शरीर पर चोट करती है, परंतु ज़बान की चाबुक मन पर चोट करती है। यह चोट कभी ठीक नहीं होती। इस चोट के कारण धनराम आगे नहीं पढ़ पाया और वह पढ़ाई छोड़कर पुश्तैनी काम में लग गया।

प्रश्न. 6. (1) बिरादरी का यही सहारा होता है।

(क) किसने किससे कहा?

उत्तर: यह कथन मोहन के पिता वंशीधर ने अपने एक संपन्न रिश्तेदार रमेश से कहा।

(ख) किस प्रसंग में कहा?

उत्तर: वंशीधर ने मोहन की पढ़ाई के विषय में चिंता की तो रमेश ने उसे अपने पास रखने की बात कही। उसने कहा कि मोहन को उसके साथ लखनऊ भेज दीजिए। घर में जहाँ चार प्राणी है, वहाँ एक और बढ़ जाएगा और शहर में रहकर मोहन अच्छी तरह पढ़ाई भी कर सकेगा।

(ग) किस आशय से कहा?

उत्तर: यह कथन रमेश के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए कहा गया। बिरादरी के लोग ही एक-दूसरे की मदद करते हैं।

(घ) क्या कहानी में यह आशय स्पष्ट हुआ है?

उत्तर: कहानी में यह आशय स्पष्ट नहीं हुआ। रमेश ने अपने वायदे को पूरा नहीं किया तथा मोहन को घरेलू नौकर बना दिया। उसके परिवार ने उसका शोषण किया तथा प्रतिभाशाली छात्र का भविष्य चौपट कर दिया। अंत में उसे बेरोज़गार कर घर भेज दिया।

(2) उसकी आँखों में एक सर्जक की चमक थी- कहानी का यह वाक्य

(क) किसके लिए कहा गया है?

उत्तर: यह वाक्य मोहन के लिए कहा गया है।

(ख) किस प्रसंग में कहा गया है?

उत्तर: जिस समय मोहन धनराम के आफ़र पर आकर बैठता है और अपना हँसुवा ठीक हो जाने पर भी बैठा रहता है, उस समय धनराम एक लोहे की छड़ को गर्म करके उसका गोल घेरा बनाने का प्रयास कर रहा है, पर निहाई पर ठीक घाट में सिरा न फँसने के कारण लोहा उचित ढंग से मुड़ नहीं पा रहा था। यह देखकर मोहन उठा और हथौड़े से नपी-तुली चोट मारकर उसे सुघड़ गोले का रूप दे दिया। अपने सधे हुए अभ्यस्त हाथों का कमाल दिखाकर उसने सर्जक की चमकती आँखों से धनराम की ओर देखा था।

(ग) यह पात्र-विशेष के किन चारित्रिक पहलुओं को उजागर करता है?

उत्तर: यह कार्य कहानी का प्रमुख पात्र मोहन करता है जो एक ब्राह्मण का पुत्र है। वह अपने बालसखा धनराम को अपनी सुघड़ता का परिचय देता है। अपनी कुशलता दिखाता है। मोहन का व्यक्तित्व जातिगत आधार पर निर्मित नहीं वरन् मेहनतकश और सच्चे भाई-चारे की प्रस्तावना करता प्रतीत होता है। मानो मेहनत करनेवालों का संप्रदाय जाति से ऊपर उठकर मोहन के व्यक्तित्व के रूप में समाज का मार्गदर्शन कर रहा हो।

galta loha class 11 question answer 

 पाठ के आस-पास 

प्रश्न. 1. गाँव और शहर, दोनों जगहों पर चलनेवाले मोहन के जीवन-संघर्ष में क्या फ़र्क है? चर्चा करें और लिखें।

उत्तर: मोहन को गाँव व शहर, दोनों जगह संघर्ष करना पड़ा। गाँव में उसे परिस्थितिजन्य संघर्ष करना पड़ा। वह प्रतिभाशाली था। स्कूल में उसका सम्मान सबसे ज्यादा था, परंतु उसे चार मील दूर स्कूल जाना पड़ता था। उसे नदी भी पार करनी पड़ती थी। बाढ़ की स्थिति में उसे दूसरे गाँव में यजमान के घर रहना पड़ता था। घर में आर्थिक तंगी थी। शहर में वह घरेलू नौकर का कार्य करता था। साधारण स्कूल के लिए भी उसे पढ़ने का समय नहीं दिया जाता था। वह पिछड़ता गया। अंत में उसे बेरोजगार बनाकर छोड़ दिया गया।

प्रश्न. 2. एक अध्यापक के रूप में त्रिलोक सिंह का व्यक्तित्व आपको कैसा लगता है? अपनी समझ में उनकी खूबियों और खामियों पर विचार करें।

उत्तर: मास्टर त्रिलोक सिंह एक सामान्य ग्रामीण अध्यापक थे। उनका व्यक्तित्व गाँव के परिवेश के लिए बिलकुल सही था।

खूबियाँ 

ग्रामीण क्षेत्रों में अध्यापन कार्य करने के लिए कोई तैयार ही नहीं होता, पर वे पूरी लगन से विद्यार्थियों को पढ़ाते थे। किसी और के सहयोग के बिना वे अकेले ही पूरी पाठशाला चलाते थे। वे ज्ञानी और समझदार थे।

खामियाँ

अपने विद्यार्थियों के प्रति मारपीट का व्यवहार करते और मोहन से भी करवाते थे। विद्यार्थियों के मन का ध्यान रखे बिना ऐसी कठोर बात कहते जो बालक को सदा के लिए निराशा के खंदक में धकेल देती। भयभीत बालक आगे नहीं पढ़ पाता था।

प्रश्न. 3. गलता लोहा कहानी का अंत एक खास तरीके से होता है। क्या इस कहानी का कोई अन्य अंत हो सकता है? चर्चा करें।

उत्तर:कहानी के अंत से स्पष्ट नहीं होता कि मोहन ने लुहार का काम स्थाई तौर पर किया या नहीं। कहानी का अन्य तरीके से भी अंत हो सकता था-

(क) शहर से लौटकर हाथ का काम करना।

(ख) मोहन को बेरोजगार देखकर धनराम का व्यंग्य वचन कहना।

(ग) मोहन के माता-पिता द्वारा रमेश से झगड़ा करना आदि।

galta loha class 11 bhasha ki baat

 भाषा की बात 

प्रश्न. 1. पाठ में निम्नलिखित शब्द लौहकर्म से संबंधित हैं। किसको क्या प्रयोजन है? शब्द के सामने लिखिए –

  • धौंकनी ……………..
  • दराँती ………………
  • सँड़सी ………………
  • आफर ………………
  • हथौड़ा ………………

उत्तर:

  • धौंकनी-यह आग को सुलगाने व धधकाने के काम में आती है।
  • दराँती-यह खेत में घास या फसल काटने का काम करती है।
  • सँड़सी-यह ठोस वस्तु को पकड़ने का काम करती है तथा कैंची की तरह होता है।
  • आफर-भट्ठी या लुहार की दुकान।
  • हथौड़ा-ठोस वस्तु पर चोट करने का औज़ार। यह लोहे को पीटता-कूटता है।

प्रश्न. 2. पाठ में काट-छाँटकर जैसे कई संयुक्त क्रिया शब्दों का प्रयोग हुआ है। कोई पाँच शब्द पाठ में से चुनकर लिखिए और अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए।

उत्तर:

(क) उठा-पटक — उखाड़-पछाड़।

वाक्य – संसद की उठा-पटक देखकर हमें राजनेताओं के व्यवहार पर हैरानी होती है।

(ख) उलट-पलट – बार-बार घुमाना, देखना।

वाक्य – सीता-माता ने राम की अँगूठी को कई बार उलट-पलटकर देखा।

(ग) घूर-घूरकर – क्रोध भरी आँखों से देखना

वाक्य – मास्टर जी घूर-घूरकर देखते तो सभी सहमकर यथास्थान बैठ जाते थे।

(घ) सोच-समझकर – समझदारी से

वाक्य – पिता जी ने सोच-समझकर ही मुझे लखनऊ भेजा था।

(ङ) पढ़ा-लिखाकर – पढ़ाई पूरी करवाकर

वाक्य – मोहन के पिता उसे पढ़ा-लिखाकर अफ़सर बनाना चाहते थे।

प्रश्न. 3.बूते का प्रयोग पाठ में तीन स्थानों पर हुआ है उन्हें छाँटकर लिखिए और जिन संदर्भो में उनका प्रयोग है, उन संदर्भो में उन्हें स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:

(क) बूढ़े वंशीधर के बूते का अब यह सब काम नहीं रहा।

संदर्भ- लेखक स्पष्ट करना चाहते हैं कि वृद्ध होने के कारण वंशीधर से खेती का काम नहीं होता।

(ख) दान-दक्षिणा के बूते पर वे किसी तरह परिवार का आधा पेट भर पाते थे।

संदर्भ- यह वंशीधर की दयनीय दशा का वर्णन करता है, साथ ही पुरोहिती के व्यवसाय की निरर्थकता को भी बताता है।

(ग) सीधी चढ़ाई चढ़ना पुरोहित के बूते की बात नहीं थी।

संदर्भ- वंशीधर वृद्ध हो गए। इस कारण वे पुरोहिताई का काम करने में भी समर्थ नहीं थे

प्रश्न. 4. इन वाक्यों में मोहन को आदेश दिए गए हैं। इन वाक्यों में आप सर्वनाम का इस्तेमाल करते हुए उन्हें दुबारा लिखिए।

  • मोहन! थोड़ा दही तो ला दे बाजार से।
  • मोहन! ये कपड़े धोबी को दे तो आ।
  • मोहन! एक किलो आलू तो ला दे।

उत्तर:

  • आप! थोड़ा दही तो ला दो बाजार से।
  • आप! ये कपड़े धोबी को दे तो आओ।
  • आप! एक किलो आलू तो ला दो।

galta loha class 11 aroh

 विज्ञापन की दुनिया 

प्रश्न. 1. विभिन्न व्यापारी अपने उत्पाद की बिक्री के लिए अनेक तरह के विज्ञापन बनाते हैं। आप भी हाथ से बनी किसी वस्तु की बिक्री के लिए एक ऐसा विज्ञापन बनाइए जिससे हस्तकला का कारोबार चले।

उत्तर:

हाथ का हुनर हाथ की कारीगरी!

हाथों-हाथ बिक गई।

हर जगह सराही गई !!

इसी प्रकार कुछ पंक्तियाँ लिखकर विज्ञापन तैयार किया जाए।

galta loha class 11 extra question answer

अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

प्रश्न-1‘गलता लोहा’ शीर्षक की सार्थकता पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।

उत्तर: ‘गलता लोहा’ कहानी दो सहपाठियों-धनराम लोहार और मोहन (पुरोहित पुत्र) ब्राह्मण के परस्पर व्यवहार को व्यक्त करती हुई दोनों के जीवन का संक्षिप्त परिचय देती है। इस कहानी में तेरह का पहाड़ा न सुना पाने के कारण धनराम से मास्टर जी कहते हैं कि ‘तेरे दिमाग में तो लोहा भरा है, विद्या को ताप इसे कैसे लगेगा।’ कहानी के अंत में मोहन का जाति-भेद भुलाकर धनराम के आफ़र पर बैठकर बातें करना और उसे सरिया मोड़कर दिखाने के बाद यह पंक्ति कही गई। है-“मानो लोहा गलकर नया आकार ले रहा हो।” अतः यह शीर्षक पूर्णतः सार्थक है।

प्रश्न-2 रमेश द्वारा मोहन के पिता को क्या आश्वासन दिया गया था?

उत्तर: रमेश ने मोहन के पिता से कहा कि वह मोहन को अपने साथ लखनऊ ले जाएगा। घर में चार सदस्य हैं एक और बढ़ जाएगा तो क्या ? शहर में रहकर यह वहीं के स्कूल में पढ़ेगा। गाँव में कई मील दूर जाकर पढ़ने की समस्या भी समाप्त हो जाएगी। इस प्रकार की सहानुभूतिपूर्ण बातें कहकर रमेश ने उन्हें आश्वस्त किया था।

प्रश्न-3  मोहन के पिता के जीवन-संघर्ष का अपने शब्दों में वर्णन कीजिए।

उत्तर: मोहन के पिता वंशीधर तिवारी गाँव के पुरोहित थे। पूजा-पाठ, धार्मिक अनुष्ठान करना-करवाना उनका पैतृक पेशा था। इन आयोजनों को करवाने उन्हें दूर-दूर तक चलकर जाना पड़ता था जो अब उनके वृद्ध शरीर के बस की बात नहीं रही। थी। पुरोहिताई में भी अबे आय बहुत कम होती थी। इस कारण घर-परिवार का खर्चा चलाना भी दूभर हो रहा था। मोहन जैसे होनहार बालक को पढ़ा पाना भी एक कठिनाई थी। यजमानों के भरोसे घर चलना मुश्किल था। इन सब कारणों को देखकर लगता है कि उनका जीवन संघर्षपूर्ण था।

प्रश्न-4 मास्टर त्रिलोक सिंह का अपने विद्यार्थियों के प्रति व्यवहार कैसा था?

उत्तर: मास्टर त्रिलोक सिंह मोहन को छोड़कर अन्य सभी के साथ बड़े कठोर थे। किसी भी गलती पर छड़ी से पीटना उनके लिए एक आम बात थी। लड़कों की पिंडलियों पर ऐसी ज़ोर से छड़ी मारते कि छड़ी ही टूट जाती थी। इतना ही नहीं वे मोहन से भी लड़कों को पिटवाते और उठक-बैठक लगवाते थे। जिसकी गलती होती उसी से संटी मँगवाते थे। कभी-कभी ऐसी कड़ी बात कहते कि बालके सदा के लिए निराश हो जाता। पाठशाला के सभी बालकों को उनकी एक आवाज़ से साँप सँघ जाता था।

प्रश्न-5 ‘धनवान रमेश ने मोहन का भविष्य बनाया नहीं बिगाड़ा था’ कैसे?

उत्तर: रमेश मोहन को पढ़ाई करवाने लखनऊ लाया था, पर उसने उसे घरेलू नौकर बना दिया। बाजार से सौदा लाना और घर में काम करना मोहन की दिनचर्या बन गई मुश्किल से उसे एक सामान्य स्कूल में भरती करवाया गया, पर घर के कामकाज के कारण वह विद्यालय में अपनी वैसी जगह नहीं बना सका जैसी उसमें प्रतिभा थी। उसे दिनभर ताने सुनाए जाते कि बी.ए., एम.ए. को नौकरी नहीं मिलती तो…। इसके बाद उसे काम सीखने के लिए कारखाने में डाल दिया गया। इससे मोहन पढ़ भी न सका और गाँव में अपने बूढे माता-पिता के साथ न रह सको। रमेश ने उसे कहीं का भी नहीं छोड़ था।

प्रश्न-6 ‘गलता लोहा’ कहानी का उद्देश्य बताइए।

उत्तर: गलता लोहा शेखर जोशी की कहानी-कला को एक प्रतिनिधि नमूना है। समाज के जातिगत विभाजन पर कई कोणों से टिप्पणी करने वाली यह कहानी इस बात का उदाहरण है कि शेखर जोशी के लेखन में अर्थ की गहराई का दिखावा और बड़बोलापन जितना ही कम है, वास्तविक अर्थ-गांभीर्य उतना ही अधिक। लेखक की किसी मुखर टिप्पणी के बगैर ही पूरे पाठ से गुजरते हुए हम यह देख पाते हैं कि एक मेधावी, किंतु निर्धन ब्राह्मण युवक मोहन किन परिस्थितियों के चलते उस मनोदशा तक पहुँचता है, जहाँ उसके लिए जातीय अभिमान बेमानी हो जाता है। सामाजिक विधि-निषेधों को ताक पर रखकर वह धनराम लोहार के आफर पर बैठता ही नहीं, उसके काम में भी अपनी कुशलता दिखाता है। मोहन का व्यक्तित्व जातिगत आधार पर निर्मित झूठे भाईचारे की जगह मेहनतकशों के सच्चे भाईचारे की प्रस्तावना करता प्रतीत होता है, मानो लोहा गलकर एक नया आकार ले रहा हो।

जय हिन्द : जय हिंदी 

----------------------------

गलता लोहा कहानी का उद्देश्य क्या है?

'गलता लोहा' कहानी का उद्देश्य बताइए। उत्तर: गलता लोहा शेखर जोशी की कहानी-कला को एक प्रतिनिधि नमूना है। समाज के जातिगत विभाजन पर कई कोणों से टिप्पणी करने वाली यह कहानी इस बात का उदाहरण है कि शेखर जोशी के लेखन में अर्थ की गहराई का दिखावा और बड़बोलापन जितना ही कम है, वास्तविक अर्थ-गांभीर्य उतना ही अधिक।

गलता लोहा कहानी का नायक कौन है?

इस पूरी कहानी में लेखक की कोई मुखर टिप्पणी नहीं है। इसमें एक मेधावी, किंतु निर्धन ब्राहमण युवक मोहन किन परिस्थितियों के चलते उस मनोदशा तक पहुँचता है, जहाँ उसके लिए जातीय अभिमान बेमानी हो जाता है। सामाजिक विधि-निषेधों को ताक पर रखकर वह धनराम लोहार के आफर पर बैठता ही नहीं, उसके काम में भी अपनी कुशलता दिखाता है।

मोहन के पिता का नाम क्या था?

मोहन के पिता वंशीधर ने जीवनभर पुरोहिती की। अब वृद्धावस्था में उनसे कठिन श्रम व व्रत-उपवास नहीं होता। उन्हें चंद्रदत्त के यहाँ रुद्री पाठ करने जाना था, परंतु जाने की तबियत नहीं है।

गलता लोहा पाठ से हमें क्या शिक्षा मिलती है?

Answer: गलता लोहा पाठ से हमें शिक्षा मिलती है कि, किस तरह पुरोहित (ब्राह्मण) समाज का एक युवक मोहन अपने जीवन में ऐसी परिस्थितियों का सामना कर चुका होता है कि एक समय में उसे जातीय अभिमान बेईमानी लगने लगती है और उसे जातीय आधार पर निर्मित भाईचारे की असली हकीकत मालूम होती है। उसे कोई भी काम छोटा प्रतीत नहीं होता।

Toplist

नवीनतम लेख

टैग