गणित के प्रश्नो को हल करने के लिए गणित के सूत्र बहुत महत्वपूर्ण होते है इसलिए इस पेज पर हमने गणित के सभी सूत्रों का संग्रह किया है।
यदि आप गणित के सभी अध्याय को एक-एक करके विस्तार से पढ़कर समझना चाहते है तो गणित के पेज को देखे।
अब चलिए गणित के सूत्रों को पढ़कर समझते है।
- गणित के सूत्र
- 1. संख्या पद्धति के सूत्र
- 2. लघुत्तम समापवर्तक एवं महत्तम समापवर्तक के सूत्र
- 3. सरलीकरण के सूत्र
- 4. वर्ग एवं वर्गमूल के सूत्र
- 5. औसत के सूत्र
- 6. बट्टा के सूत्र
- 7. प्रतिशत के सूत्र
- 8. लाभ हानि के सूत्र
- 9. अनुपात समानुपात के सूत्र
- 10. साधारण ब्याज के सूत्र
- 11. चक्रवृद्धि ब्याज के सूत्र
- 12. क्षेत्रमिति के सूत्र
- 13. समय दूरी और चाल के सूत्र
- 14. समय और कार्य के सूत्र
- 15. बीजगणित के सूत्र
- 16. त्रिकोणमिति के सूत्र
- 17. समाकलन के सूत्र
- 18. अवकलन के सूत्र
- 19. मापन की इकाइयां
गणित के सूत्र
1. संख्या पद्धति के सूत्र
(i). प्राकृत संख्याएँ (Natural Number) :- गिनती में उपयोग की जाने वाली सभी खंख्याएँ प्राकृतिक संख्या कहलाती हैं।
जैसे :- 1, 2, 3, 4, 5,………
(ii). सम संख्याएँ (Even Number) :- ऐसी प्राकृतिक संख्या जो 2 से पूर्णतः विभाजित होती हैं, उन्हें सम संख्या कहा जाता हैं।
जैसे :- 2, 4, 6, 8, 10,………
(iii). विषम संख्याएँ (Odd Numbers) :- ऐसी प्राकृतिक संख्या जो 2 से पूर्णतः से विभाजित न हो उन्हें विषम संख्या कहते हैं।
जैसे :- 1, 3, 5, 7, 9,………
(iv). पूर्णांक संख्याएँ :- धनात्मक त्रणात्मक और जीरों से मिलकर बनी हुई संख्याएँ पूर्णांक संख्या होती हैं।
जैसे :- -3, -2, -1, 0, 1, 2,………
पूर्णांक संख्याएँ तीन प्रकार की होती हैं।
- धनात्मक संख्याएँ :- एक से लेकर अनंत तक की सभी धनात्मक संख्याएँ धनात्मक पूर्णांक हैं।
जैसे :- +1, +2, +3, +4, +5,……… - ऋणात्मक संख्याएँ :- 1 से लेकर अनंत तक कि सभी त्रणात्मक संख्याएँ त्रणात्मक पूर्णांक हैं।
जैसे :- -1, -2, -3, -4, -5,……… - उदासीन पूर्णांक :- ऐसा पूर्णांक जिस पर धनात्मक और त्रणात्मक चिन्ह का कोई प्रवाह ना पड़े। और यह जीरो होताा हैं।
जैसे :- -3, -2, -1, 0, 1, 2, 3,………
(v). पूर्ण संख्याएँ (Whole Numbers) :- प्राकृतिक संख्याएँ में 0 से सामिल कर लेने से पूर्ण संख्या बनती हैं।
जैसे :- 0, 1, 2, 3, ………
(vi). भाज्य संख्या (Composite Numbers) :- ऐसी प्राकृत संख्या जो स्वंय और 1 से विभाजित होने के अतिरिक्त कम से कम किसी एक अन्य संख्या से विभाजित हो उन्हें भाज्य संख्या कहते हैं।
जैसे :- 4, 6, 8, 9, 10, 12, ………
(vii). अभाज्य संख्याएँ (Prime Numbers) :- ऐसी प्राकृतिक संख्याएँ जो सिर्फ स्वंय से और 1 से विभाजित हो और किसी भी अन्य संख्या से विभाजित न हो उन्हें अभाज्य संख्याएँ कहेंगे।
जैसे :- 2, 3, 5, 11, 13, 17, ………
(viii). सह अभाज्य संख्या (Co-Prime Numbers) :- कम से कम 2 अभाज्य संख्याओ का ऐसा समूह जिसका (HCF) 1 हो उसे अभाज्य संख्या कहाँ जाता हैं।
जैसे :- (5, 7) , (2, 3)
(ix). परिमेय संख्याएँ (Rational Numbers) :- ऐसी सभी संख्याएँ जिन्हें p/q के रूप में लिखा जा सकता हैं उन्हें परिमेय संख्याएँ कहते है (q हर का मान जीरो नहीं होना चाहिए)
जैसे :- 5, 2/3, 11/4, √25
(x). अपरिमेय संख्याएँ (Irrational Numbers) :- ऐसी संख्याएँ जिन्हें p/q के रूप में नही लिखा जा सकता और मुख्यतः उन्हें (”√”) के अंदर लिखा जाता हैं और कभी भी उनका पूर्ण वर्गमूल नहीं निकलता ऐसी संख्याओं को अपरिमेय संख्या कहाँ जाता हैं।
जैसे :- √3, √105, √11, √17,
नोट :- π एक अपरिमेय संख्या हैं।
(xi). वास्तविक संख्या (Real Numbers) :- परिमेय और अपरिमेय संख्याओ को सम्मलित रूप से लिखने पर वास्तविक संख्याएँ प्राप्त होती हैं।
जैसे :- √3, 2/5, √15, 4/11,
(xii). अवास्तविक संख्या (Imaginary Numbers) :- ऋणात्मक संख्याओं का वर्गमूल लेने पर जो संख्याएँ बनती हैं, उन्हें अवास्तविक संख्या कहते हैं।
जैसे :- √-2, √-5
- लगातार प्राकृत संख्याओं के योग = n(n + 1)/2
- लगातार सम संख्याओं के योग = n/2 (n/2 + 1)
- लगातार विषम संख्याओं के योग = (n/2 + 1)²
- दो क्रमागत पदों का अंतर समान हो तो योग = पदों की संख्या (पहला पद + अंतिम पद)/2
- लगातार प्राकृत संख्याओं के वर्गों का योग = n(n + 1)(2n + 1)/6
- लगातार प्राकृत संख्याओं के घनों का योग = [n(n + 1)/2]²
- प्रथम से n तक कि सम संख्याओं का योग = n(n + 1)
- प्रथम से n तक कि विषम संख्याओं का योग = n²
- भागफल = भाज्य ÷ भाजक (पूर्ण विभाजन में)
- भाज्य = भागफल × भाजक (पूर्ण विभाजन में)
- भाजक = भाज्य ÷ भागफल (पूर्ण विभाजन में)
- भागफल = (भाज्य – शेषफल) ÷ भाजक (अपूर्ण विभाजन में)
- भाज्य = भागफल × भाजक + शेषफल (अपूर्ण विभाजन में)
- भाजक = (भाज्य – शेषफल) ÷ भागफल (अपूर्ण विभाजन में)
महत्वपूर्ण बिंदु :
- संख्या 1 न तो भाज्य है और न अभाज्य
- ऐसी संख्या जो अभाज्य हो एवं सम संख्या हो केवल 2 है।
- वे दो अभाज्य संख्याएँ जिनके बीच केवल एक सम संख्या होती है , अभाज्य जोड़ा कहलाती है, जैसे: 5 व 7, 3 व 5, 11 व 13, 17 व 19, 29 व 31 आदि
- सभी प्राकृत संख्याएँ, पूर्ण, पूर्णाक, परिमेय एवं वास्तविक होती हैं।
- सभी पूर्ण संख्याएँ, पूर्णांक, परिमेय एवं वास्तविक होती हैं।
- सभी पूर्णाक, परिमेय एवं वास्तविक होते हैं।
- सभी पूर्णांक, परिमेय एवं अपरिमेय संख्याएँ वास्तविक होती हैं।
- अभाज्य (रूढ़) एवं यौगिक, सम तथा विषम संख्या होती हैं।
- सभी पूर्णाक, परिमेय एवं अपरिमेय संख्याएँ ऋणात्मक एवं धनात्मक दोनों होती हैं।
- प्राकृत ( अभाज्य, यौगिक, सम एवं विषम ) एवं पूर्ण संख्याएँ कभी भी ऋणात्मक नहीं होती हैं।
- भिन्न संख्याएँ परिमेय होती हैं।
- 2 के अतिरिक्त सभी अभाज्य (रूढ़) संख्याएँ विषम होती हैं।
- 0 ऋणात्मक एवं धनात्मक नहीं है।
- शून्य ( 0 ) में किसी भी संख्या का भाग देने पर शून्य आता है अतः 0/a = 0 (यहाँ पर a वास्तविक संख्या है)
- किसी भी संख्या में शून्य का भाग देना परिभाषित नहीं है अर्थात् यदि किसी भी संख्या में शून्य का भाग देते हैं, तो भागफल अनन्त (Infinite या Non Defined) आता है, अतः a/0 = ∞ (Infinite)
- किसी संख्या में किसी अंक का जो वास्तविक मान होता है , उसे जातीय मान कहते हैं, जैसे: 5283 में 2 का जातीय मान 2 है।
- किसी संख्या में किसी अंक का स्थान के अनुसार जो मान होता है उसे उसका स्थानीय मान कहते हैं, जैसे – 5283 में 2 का स्थानीय मान 200 है।
- दो परिमेय संख्याओं का योगफल अथवा गुणनफल सदैव एक परिमेय संख्या होती है।
- दो अपरिमेय संख्याओं का योगफल अथवा गुणनफल कभी परिमेय संख्या तथा कभी अपरिमेय संख्या होता है।
- एक परिमेय संख्या तथा एक अपरिमेय संख्या का गुणनफल अथवा योगफल सदैव एक अपरिमेय संख्या होता है।
- π एक अपरिमेय संख्या है।
- दो परिमेय संख्याओं या दो अपरिमेय संख्याओं के बीच अनन्त परिमेय संख्याएँ या अनन्त अपरिमेय संख्याएँ हो सकती हैं।
- परिमेय संख्या को दशमलव निरूपण या तो सीमित होता है या असीमित आवर्ती होता है, जैसे:- 3/4 = 0.75 ( सीमित ) 11/3 = 3.666 (असीमित आवर्ती)
- अपरिमेय संख्या का दशमलव निरूपण अनन्त व अनावर्ती होता है, जैसे:- √3, √2
- प्रत्येक सम संख्या का वर्ग एक सम संख्या होती है तथा प्रत्येक विषम संख्या का वर्ग एक विषम संख्या होती है।
- यदि दशमलव संख्याएँ 0.x तथा 0.xy के रूप में दी होती हैं , तो इन्हें परिमेय संख्या p/q के रूप में निम्नवत् बदलते हैं।
0.x = x/10 तथा 0.xy = xy/100 अर्थात् दशमलव के बाद 1 अंक है , तो 10 का , दो अंक हैं, तो 100 का, तीन अंक हैं, तो 1000 का भाग देने पर दशमलव संख्या परिमेय (भिन्न) बन जाती है। - यदि अशान्त ( अनन्त ) आवर्ती दशमलव संख्याएँ 0.x तथा xy के रूप की हैं , तो इन्हें परिमेय संख्या p/q के रूप में निम्नवत् बदलते हैं।
0.x̅ = x/9 तथा 0. x̅x̅ = xx/99 अर्थात् दशमलव के बाद 1 अंक बार सहित हो , तो 9 का , दो अंक बार सहित हों तो 99 का , तीन अंक हों तो 999 का भाग करके दशमलव संख्या परिमेय में बदल जाती है। - यदि अशान्त आवर्ती दशमलव संख्याएँ 0.xy तथा 0.xyz के रूप की हों , तो इन्हें परिमेय संख्या p/q के रूप में निम्नवत् बदलते हैं – 0.x̅y̅ (xy – x)/90 तथा 0.x̅y̅z̅ = (xyz – x)/990 (यहाँ x , y , z प्राकृतिक अंक हैं)
- किसी भी पहाड़े का योग उस संख्या (पहाड़े) के 55 गुने के बराबर होता है। अर्थात् n के पहाड़े का योगफल = 55n
अधिक जानकारी के लिए संख्या पद्धति की पोस्ट पढ़िए।
2. लघुत्तम समापवर्तक एवं महत्तम समापवर्तक के सूत्र
लघुत्तम समापवर्त्य :- दो या दो से अधिक संख्याओं का ‘लघुत्तम समापवर्त्य’ वह छोटी-से-छोटी संख्या है, जो उन दी गई संख्या में से प्रत्येक से पूर्णतया विभाजित हो जाती है।
जैसे :- 3, 5, 6 का लघुतम समापवर्त्य 30 है, क्योंकि 30 को ये तीनों संख्याएँ क्रमशः विभाजित कर सकती हैं।
समापवर्त्य (Common Multiple) :- एक संख्या जो दो या दो से अधिक संख्याओं में । से प्रत्येक से पूरी-पूरी विभाजित होती हो, तो वह संख्या उन संख्याओं की समापवर्त्य कहलाती है।
जैसे :- 3, 5, 6 का समापवर्त्य 30, 60, 90 आदि हैं।
महत्तम समापवर्तक :- ‘महत्तम समापवर्तक’ वह अधिकता संख्या है, जो दी गई संख्याओं को पूर्णतया विभाजित करती है।
जैसे :- संख्याएँ 10, 20, 30 का महत्तम समापवर्तक 10 है।
समापवर्तक (Common Factor) :- ऐसी संख्या जो दो या दो से अधिक संख्याओं में से प्रत्येक को पूरी-पूरी विभाजित करें।
जैसे :- 10, 20, 30 का समापवर्तक 2, 5, 10 है।
अपवर्तक एवं अपवर्त्य (Factor and Multiple) :- यदि एक संख्या m दूसरी संख्या n को पूरी-पूरी काटती है, तो m को n का अपवर्तक (Factor) तथा n को m का अपवर्त्य (Multiple) कहते हैं।
लघुत्तम समापवर्त्य ज्ञात करने की विधियाँ
गुणनखण्ड विधि : दी हुई संख्याओं के अभाज्य गुणनखण्ड ज्ञात कर लेते हैं तथा गुणनखण्डों को घात से प्रदर्शित करते हैं, तत्पश्चात् अधिकतम घात वाली संख्याओं का गुणा करते हैं।
जैसे :- 16, 24, 40, 42 का ल.स.
16 = 2 × 2 × 2 × 2 = 24
24 = 3 × 2 × 2 × 2 = 3 × 23
40 = 5 × 2 × 2 × 2 = 5 × 23
42 = 7 × 3 × 2 = 7 × 3 × 2
ल.स. = 24 × 3 × 5 × 7 = 16 × 105 = 1680
भाग विधि :
इस विधि को निम्न उदाहरण द्वारा समझा जा सकता है।
उदाहरणार्थ: 36 , 48 और 80 का ल. स.
अतः 36 , 48 और 80 का ल. स. = 2 × 2 × 2 × 2 × 3 × 3 × 5 = 720
इसमें संख्याओं को उभयनिष्ठ अभाज्य भाजकों द्वारा विभाजित किया जा सकता है तथा इस क्रिया की पुनरावृत्ति तब तक करते हैं जब तक शेषफल एक प्राप्त हो। इन अभाज्य भाजकों का गुणनफल ही अभीष्ट ल.स. होगा।
महत्तम समापवर्तक ज्ञात करने की विधियाँ
गुणनखण्ड विधि :
इस विधि में दी गई सभी संख्याओं के रूढ़ गुणनखण्ड करते हैं। तथा जो संख्याएँ सभी में सर्वनिष्ठ हों उनका गुणा करते हैं।
जैसे :- 28, 42 और 98 का म.स. –
28 = 2 × 2 × 7
42 = 2 × 3 × 7
98 = 2 × 7 × 7
28, 42 और 98 का म स. = 2 × 7 = 14
भाग विधि :
इस विधि में दी गई संख्याओं में से सबसे छोटी संख्या से उससे बड़ी संख्या में भाग देते हैं, तत्पश्चात् बचे शेष से भाजक में भाग दिया जाता है और यह क्रिया तब तक करते हैं।
जब तक शून्य शेष बचे, तब अन्तिम भाजक ही दी हुई संख्याओं का म.स. होगा यदि संख्या तीन हैं, तो प्राप्त म.स. तथा तीसरी संख्या के साथ यही क्रिया करते हैं। आगे इसी तरह करते जाते हैं।
जैसे :- 36, 54, 81 का म.स. –
सर्वप्रथम 36 तथा 54 का म.स. इस विधि से निकालते हैं।
36) 54 (1
36
18) 36 (2
36
×
अतः 36 तथा 54 का म.स. = 18
अब, 18 तथा 81 का म.स. निकालते हैं।
18) 81 (4
72
9) 18 (2
18
×
अतः 36, 54 तथा 81 का म.स. 9 है।
दशमलव संख्याओं का ल. स. तथा म. स. निकालना
दी गई सभी दशमलव संख्याओं को परिमेय संख्या p/q के रूप में लिखते हैं तथा भिन्नों के आधार पर उनका ल.स. या म.स. ज्ञात करते हैं।
जैसे :- 7, 10.5 एवं 1.4 का म. स.
अतः 7 = 7/1, 10.5 = 105/10, 1.4 = 14/10
म.स. = 7 , 105 14 का म.स./1 , 10 , 10 का ल.स. = 7/10 = 0.7
भिन्नों का म.स.प. एवं ल.स.प. :
- भिन्नों का म.स.प. = अंशों का म.स.प./हरों का ल.स.प.
- भिन्नों का ल.स.प. = अंशों का ल.स.प./हरों का म.स.प.
महत्तम समापवर्तक और लघुत्तम समापवर्तक के सूत्र :
- भिन्नों का लघुत्तम समापवर्तक (L.C.M) = अंशों का ल.स./हरों का म.स.
- भिन्नों का महत्तम समापवर्तक (H.C.F.) = अंशों का म.स./हरों का ल.स.
- ल.स × म.स. = पहली संख्या × दूसरी संख्या
- ल.स. = (पहली संख्या × दूसरी संख्या) ÷ म.स.
- म.स. = (पहली संख्या × दूसरी संख्या) ÷ ल.स.
- पहली संख्या = (ल.स. × म.स) ÷ दूसरी संख्या
- दूसरी संख्या = (ल.स. × म.स) ÷ पहली संख्या
अधिक जानकारी के लिए महत्तम समापवर्तक और लघुत्तम समापवर्तक पोस्ट जरूर पढ़िए।
3. सरलीकरण के सूत्र
किसी गणितीय व्यंजक को साधारण भिन्न या संख्यात्मक रूप में बदलने की प्रक्रिया ‘सरलीकरण’ कहलाती है।
इसके अन्तर्गत गणितीय संक्रियाओं जैसे जोड़, घटाव, गुणा, भाग आदि को BODMAS क्रम के आधार पर हल करते हुए दिए गए व्यंजक का मान प्राप्त किया जाता है।
कोष्ठक चार प्रकार के होते हैं –
― → रेखा कोष्ठक (Line Bracket)
( ) → छोटा कोष्ठक (Simple or Small Bracket)
{ } → मझला कोष्ठक (Curly Bracket)
[ ] → बड़ा कोष्ठक (Square Bracket)
इनको इसी क्रम में सरल करते हैं ।
यदि कोष्ठक के पहले ऋण चिह्न हो, तो सरल करने पर अन्दर के सभी चिह्न बदल जाते हैं।
BODMAS का नियम :- BODMAS में कोष्ठक (Bracket), का (of), भाग (Division), गुणा (Multiplication), जोड़ (Addition), तथा घटाव (Subtraction) की क्रिया एक साथ कि जाती हैं।
अतः BODMAS संबंधी प्रश्नों को हल करने के लिए प्रश्नों को उपर्युक्त दिए गए क्रम में ही हल करें अर्थात सबसे पहले Bracket की क्रिया करते हैं।
Bracket में सबसे पहले रेखा कोष्ठक ( – ) फिर छोटा कोष्ठक ( ) फिर मझोला कोष्ठ { } फिर बड़ा कोष्ठक [ ] को हल करते हैं। तब का (of) की क्रिया, फिर भाग (÷) की क्रिया, फिर गुणा (×) की क्रिया तथा अंत में घटाव की क्रिया करते हैं उपर्युक्त क्रियाओं में से एक या अधिक के अनुपस्थित रहने पर क्रम में कोई परिवर्तन नहीं होता हैं।
B → कोष्ठक ( Bracket ) रेखा कोष्ठक, छोटा कोष्ठक, मझला कोष्ठक, बड़ा कोष्ठक
O → का ( Of )
D → भाग ( Division )
M → गुणा ( Multiplication )
A → योग ( Addition )
S → अन्तर ( Subtraction )
अधिक जानकारी के लिए BODMAS का नियम की पोस्ट जरूर पढ़िए।
उपरोक्त क्रम के अलावा व्यंजकों के सरलीकरण में विभिन्न बीजगणितीय सूत्रों का भी प्रयोग किया जाता है।
सरलीकरण की महत्वपूर्ण सर्वसमिकाएं :
उभयनिष्ट गुणक : c(a+b) = ca + cb
द्विपद का वर्ग:
- (a+b)² = a² + 2ab + b²
- (a-b)² = a² – 2ab + b²
दो पदों के योग एवं अन्तर का गुणनफल : a² – b² = (a+b) (a-b)
अन्यान्य सर्वसमिकाएँ(घनों का योग व अंतर) :
- a³ – b³ = (a-b) (a² + ab + b²)
- a³ + b³ = (a+b) (a² – ab + b²)
द्विपद का घन :
- (a + b)³ = a³ + 3a²b + 3ab² + b³
- (a – b)³ = a³ – 3a²b + 3ab² – b³
बहुपद का वर्ग :
- (a + b + c)² = a² + b² + c² + 2ab + 2bc + 2ca
दो द्विपदों का गुणन जिनमें एक समान पद हो : (x + a )(x + b ) = x² + (a + b )x + ab
गाउस (Gauss) की सर्वसमिका : a³ + b³ + c³ – 3abc = (a+b+c) (a² + b² + c² – ab -bc – ca)
लिगेन्द्र (Legendre) सर्वसमिका
- (a+b)² + (a-b)² = 2(a² + b²)
- (a+b)² – (a-b)² = 4ab)
- (a+b)4 – (a-b)4 = 8ab(a² + b²)
लाग्रेंज (Lagrange) की सर्वसमिका
- (a² + b²)(x² + y²) = (ax+by)² + (ay-bx)²
- (a² + b² + c²) (x² + y² + z²) = (ax+by+cz)² + (ay-bx)² + (az-cx)² + (bz-cy )²
अधिक जानकारी के लिए सरलीकरण की पोस्ट जरूर पढ़िए।
4. वर्ग एवं वर्गमूल के सूत्र
- किसी संख्या को उसी संख्या से गुणा करने पर जो गुणनफल प्राप्त होता है, उस गुणनफल को उस संख्या का वर्ग कहते हैं तथा उस संख्या को उस गुणनफल का वर्गमूल कहते हैं।
- किसी संख्या n के वर्ग को n2 से प्रदर्शित किया जाता है, जबकि वर्गमूल को √n से प्रदर्शित किया जाता है।
- किसी संख्या का वर्ग करने पर प्राप्त गुणनफल में अंकों की संख्या, संख्या के अंकों के दोगुने या दोगुने से 1 कम होती है।
- यदि संख्या में x अंक है , तो उसके वर्ग में अंकों की संख्या 2x या (2x – 1) होगी।
- किसी भी संख्या के वर्ग में इकाई स्थान पर 2, 3, 7 व 8 कभी भी नहीं आता है।
- 1 से छोटी संख्या का वर्गमूल उस संख्या से हमेशा बड़ा होता है।
- ऋणात्मक संख्याओं का वर्गमूल एक काल्पनिक संख्या होती है।
- वर्गमूल दो विधियों द्वारा निकाला जाता है (i) गुणनखण्ड विधि (ii) भाग विधि
- बड़ी संख्या का वर्गमूल भाग विधि द्वारा निकालना चाहिए।
- यदि किसी संख्या में दशमलव के बाद अंकों की संख्या विषम हो तो अन्त में एक शून्य लगाएं।
- किसी संख्या में दशमलव के बाद जितने अंक होते हैं , वर्गमूल में दशमलव के बाद उसके आधे अंक होते हैं , जैसे किसी संख्या में दशमलव के बाद 4 अंक हैं, तो वर्गमूल में 2 अंक, जैसे:- √0.09 = 0.3
- एक या दो अंकों वाली संख्या का वर्गमूल एक अंक वाली संख्या होती है . तीन या चार अंक वाली संख्या का वर्गमूल दो अंकों वाली संख्या होती है 5 या 6 अंकों वाली संख्या का वर्गमूल 3 अंकों वाली संख्या तथा 6, 7 और 8 अंकों वाली संख्या का वर्गमूल 4 अंकों वाली संख्या होती है।
- यदि किसी संख्या में इकाई के स्थान पर 2, 3, 7 या 8 हो, तो उस संख्या का वर्गमूल पूरा – पूरा नहीं निकलता। अतः दशमलव संख्या में प्राप्त होता है।
- सम संख्या का वर्गमूल सम व विषम संख्या का वर्गमूल विषम होता है।
- किसी पूर्ण वर्ग संख्या के अन्त में शून्यों की संख्या कभी भी विषम नहीं होती।
- सम संख्या का वर्ग सम , विषम संख्या का वर्ग विषम होता है।
- 1 को छोड़कर किसी भी संख्या का वर्ग 3 या 4 के गुणज से 1 अधिक होता है , अथवा 3 या 4 का गुणज होता है।
यदि n कोई धन पूर्णांक है, तो
(n + 1)² – n² = ( n + 1 + n ) ( n + 1 – n )
= ( 2n + 1 )
यथा
(6)² – (5)² = (2 × 5 + 1)
= 11
दो अंकों की संख्या जिसके इकाई स्थान पर 5 हो , का वर्ग निम्न प्रकार करते हैं
(25)² = 2 × 3 ( सैकड़े ) + 52
= 2 × 300 + 25
= 625
तथा
(35)² = 3 × 4 ( सैकड़े ) + 52
= 3x 400 + 25
= 1225
वर्ग एवं वर्गमूल से सम्बंधित सर्वसमिकाएँ:
- √ab = √a × √b
- (ab)1/2 = √ab = (a)1/2 × (b)1/2
- √a/b = √a/√b
- (ab)1/2 = √a/b = a1/2b1/2
- (a+b)2 = a2 + 2ab + b2
- (a-b)2 = a2 – 2ab + b2
- (a+b)2 + (a-b)2 = 2(a2 + b2)
- (a+b)2 – (a-b)2 = 4ab)
- (a+b)4 – (a-b)4 = 8ab(a2 + b2)
अधिक जानकारी के लिए वर्ग एवं वर्गमूल के सूत्र जरूर पढ़े।
5. औसत के सूत्र
दो या दो से अधिक सजातीय पदों का ‘औसत’ वह संख्या है, जो दिए गए पदों के योगफल को उन पदों की संख्या से भाग देने पर प्राप्त होती है। इसे ‘मध्यमान’ भी कहा जाता है।
औसत = सभी राशियों का योग/राशियों की संख्या
सभी राशियों का योग = औसत × राशियों की संख्या
जैसे :- x1 , x2 , x3 , . . . . . . xn पदों का औसत = x1 + x2 + x3 + . . . . . . xn/n
औसत के सूत्र
- प्रथम n प्राकृतिक संख्याओं का औसत = (n+1)/2
- n तक की प्राकृत संख्याओं का औसत = (n+1)/2
- लगातार n तक की पूर्ण संख्याओं का औसत = n/2
- n तक की सम संख्याओं का औसत = (n+2)/2
- लगातार n तक की प्राकृत विषम संख्याओं का औसत = (n+1)/2
- n तक विषम संख्याओं का औसत = n
- लगातार n तक सम संख्याओं का औसत = n+1
- प्रथम n प्राकृत संख्याओं के वर्गों का औसत = (n+1) (2n+1)/6
- प्रथम n प्राकृतिक संख्याओं के घनों का औसत = n(n+1)² / 4
संख्याओं के श्रेणी का अंतर समान हो, तो
- औसत = (पहली संख्या + अंतिम संख्या) / 2
- नए व्यक्ति की आयु = (नया औसत × नयी संख्या) – (पुराना औसत × पुरानी संख्या)
- G₁ तथा G₂ राशियों का औसत क्रमशः A₁ तथा A₂ हो तो (G₁ + G₂) राशियों का औसत = (G₁ × A₁) + (G₂ × A₂) / (G₁ + G₂) होगा।
- G₁ तथा G₂ राशियों का औसत क्रमशः A₁ तथा A₂ हो तो (G₁ – G₂) राशियों का औसत = (G₁ × A₁) – (G₂ × A₂) / (G₁ – G₂) होगा।
औसत के गुण :
- यदि सभी संख्याओं में ‘a’ की वृद्धि होती है, तो उनके औसत में भी ‘a’ की वृद्धि होगी।
- यदि सभी संख्याओं में ‘a’ की कमी होती है, तो उनके औसत में भी ‘a’ की कमी होगी।
- यदि सभी संख्याओं में ‘a’ की गुणा की जाती है, तो उनके औसत में भी ‘a’ की गुणा होगी।
- यदि सभी संख्याओं को ‘a’ से भाग दिया जाता है, तो उनके औसत में भी ‘a’ से भाग होगा।
अधिक जानकारी के लिए औसत की पोस्ट पढ़े।
6. बट्टा के सूत्र
जब सामान्यतः कोई व्यापारी अपने ग्राहक को कोई समान बेचता हैं, तो अंकित मूल्य पर कुछ छूट देता हैं, इसी छूट को बट्टा कहते हैं बट्टे का सामान्य अर्थ छूट से हैं।
Note : बट्टा सदैव अंकित मूल्य पर दिया जाता हैं।
विक्रय मूल्य = अंकित मूल्य – बट्टा
यदि किसी वस्तु को बेचने पर r% का बट्टा दिया जा रहा हो, तो
वस्तु का विक्रय मूल्य = अंकित मूल्य × (100-r)/100
बट्टा के महत्वपूर्ण तथ्य :
1. यदि किसी वस्तु के अंकित मूल्य पर क्रमशः r% व R% का बट्टा दिया जा रहा हो, तो
- वस्तु का विक्रय मूल्य = अंकित मूल्य × (100 – r) / 100 × (100 – R) / 100)
2. यदि दो बट्टा श्रेणी r% तथा R% हो, तो
- इनके समतुल्य बट्टा (r + R – rR/100)% होगा।
3. यदि किसी वस्तु पर r% छूट देकर भी R% का लाभ प्राप्त करना हो, तो
- वस्तु का अंकित मूल्य = क्रय मूल्य × [(100 + R) / (100 – r )]
4. यदि किसी वस्तु पर r% छूट देने के उपरान्त भी R% का लाभ प्राप्त करना हो, तो
- वस्तु का अंकित मूल्य [(r + R / 100 – r) × 100] बढ़ाकर अंकित किया जाएगा।
5. अंकित मूल्य = विक्रय मूल्य × 100 / (100% – %) × 100 / (100% – %) 100 / (100% – % )……….
6. विक्रय मूल्य = अंकित मूल्य × (100% – %)/100 × (100% – %)/100 × (100% – %)/100× ……….
अधिक जानकारी के लिए बट्टा की पोस्ट पढ़े।
7. प्रतिशत के सूत्र
प्रतिशत का अर्थ (प्रति + शत) प्रत्येक सौ पर या 100 में से x प्रतिशत का अर्थ 100 में से x
x% = x/100
भिन्न x/y को प्रतिशत में बदलने के लिए भिन्न को 100 से गुणा करते है।
किसी वस्तु का x/y भाग = उस वस्तु का (x/y) × 100
- x का y प्रतिशत = x × y 100
- x, y का कितना प्रतिशत है = x/y × 100
- y, x से कितना प्रतिशत अधिक है = (y – x)/x × 100
- y, x से कितना प्रतिशत कम है = (x – y)/x × 100
- प्रतिशत वृद्धि = वृद्धि/प्रारंभिक मान × 100
- प्रतिशत कमी = कमी/प्रारंभिक मान × 100
- x को R % बढ़ाने पर, x(1 + R/100) प्राप्त होगा
- x को R % घटाने पर, x(1 – R/100) प्राप्त होगा
अन्य महत्वपूर्ण सूत्र :
- x में y % की वृद्धि होने पर नई संख्या ज्ञात करना = (100 + y)/100 × x
- यदि x का मान y से R% अधिक है तो y का मान x से R % में कम हैं = R/(100 + R × 100)%
- यदि x का मान y से R% कम है तो y का मान x से R % में अधिक हैं = R/(100 – R × 100)%
- किसी वस्तु के मूल्य में R% वृद्धि होने पर भी वस्तु पर कुल खर्च ना बढ़े इसके लिए
- वस्तु की खपत में R% कमी = R/(100 + R × 100)%
- किसी वस्तु के मूल्य में R% कमी होने पर भी वस्तु पर कुल खर्च ना घटे इसके लिए
- वस्तु की खपत में R% वृद्धि = ( R/(100 – R× 100)%
- यदि A = x × y तो x में m% परिवर्तन एवं y में n% परिवर्तन के कारण A में प्रतिशत परिवर्तन = m + n + mn/100
जहाँ वृद्धि के लिए + एवं कमी के लिए – चिन्ह का उपयोग किया जाएगा ।
जनसंख्या पर आधारित सूत्र:
माना किसी शहर की जनसंख्या x है तथा प्रतिवर्ष R% की दर से बढ़ती हैं तब
- n वर्ष बाद जनसंख्या = x[1 + R/100]^n
- n वर्ष पूर्व जनसंख्या = x [1 + R/100]^n
मशीनों के अवमूल्यन संबंधी:
यदि किसी वस्तु का वर्तमान मूल्य x है तथा इसके अवमूल्यन ( मूल्य कम होना ) की दर R% वार्षिक है, तो
n वर्ष बाद मशीन का मूल्य = p(1 – R/100)ⁿ जहाँ वृद्धि के लिए + एवं कमी के लिए – चिन्ह का उपयोग किया जाएगा।
n वर्ष पूर्व मशीन का मूल्य = p/(1 + R/100)ⁿ
5%1/2010%1/1020%1/525%1/430%3/1040%2/550%1/260%3/570%7/1075%3/480%4/590%9/10100%1अधिक जानकारी के लिए प्रतिशत पोस्ट को पढ़े।
8. लाभ हानि के सूत्र
क्रय मूल्य :- जिस मूल्य पर कोई वस्तु खरीदी जाती हैं, उस मूल्य को उस वस्तु का क्रय मूल्य कहते हैं।
विक्रय मूल्य :- जिस मूल्य पर कोई वस्तु बेची जाती हैं, उस मूल्य को उस वस्तु का विक्रय मूल्य कहते हैं।
लाभ :- यदि किसी वस्तु का विक्रय मूल्य उसके क्रय मूल्य से अधिक हो, तो उनके अंतर से प्राप्त धनराशि को लाभ कहते हैं।
हानि :- यदि किसी वस्तु का विक्रय मूल्य उसके क्रय मूल्य से कम हो,तो उनके अंतर से प्राप्त धनराशि को हानि कहते हैं।
प्रतिशत लाभ या प्रतिशत हानि:- 100 रुपए पर जितना लाभ अथवा हानि होती हैं उसे प्रतिशत लाभ अथवा हानि कहते हैं, लाभ अथवा हानि का प्रतिशत हमेशा क्रय मूल्य पर ही ज्ञात किया जाता हैं।
लाभ और हानि के सूत्र :
- लाभ = विक्रय मूल्य – क्रय मूल्य
- हानि = क्रय मूल्य – विक्रय मूल्य
- विक्रय मूल्य = लाभ + क्रय मूल्य
- विक्रय मूल्य = क्रय मूल्य – हानि
- क्रय मूल्य = विक्रय मूल्य – लाभ
- क्रय मूल्य = हानि + विक्रय मूल्य
- लाभ% = (लाभ × 100)/क्रय मूल्य
- हानि% = (हानि × 100)/क्रय मूल्य
- विक्रय मूल्य = क्रय मूल्य(1 + लाभ/100)
- क्रय मूल्य = विक्रय मूल्य / (1 + लाभ/100)
- विक्रय मूल्य = क्रय मूल्य(1 – हानि/100)क्रय मूल्य = विक्रय मूल्य/(1 – हानि/100)
अधिक जानकारी के लिए लाभ और हानि जरूर पढ़े।
9. अनुपात समानुपात के सूत्र
अनुपात (Ratio) :- समान प्रकार की दो राशियों / वस्तुओं के बीच सम्बन्ध को अनुपात कहते हैं।
दो राशियों का अनुपात एक भिन्न के बराबर होता है , अतः यह प्रदर्शित करता है कि एक राशि दूसरी राशि से कितनी गुनी कम या अधिक है।
माना, एक राशि x तथा दूसरी राशि y है, तब इनके बीच अनुपात = x : y
अनुपात के प्रकार
- x तथा y के बीच मध्यानुपात = √x. y
- x तथा y के बीच तृतीयानुपात = y²/x
- x तथा y का विलोमानुपात = 1/x : 1/y = y : x
(i). दो समान अनुपातों के मिश्रित अनुपात को वर्गानुपात कहते हैं।
जैसे :- a : b का वर्गानुपात = a² : b²
(ii). किसी अनुपात के वर्गमूल को वर्गमूलानुपाती कहते हैं।
जैसे :- a : b का वर्गमूलानुपाती = √a : √b
(iii). किसी अनुपात के तृतीय घात को घनानुपाती कहते हैं।
जैसे :- a : b का घनानुपाती = a³ : b³
(iv). किसी अनुपात के घनमूल को घनमूलानुपाती कहते हैं।
जैसे :- a : b का घनमूलानुपाती = ∛a : ∛b
(v). किसी अनुपात के उल्टे को व्युत्क्रमानुपाती कहते हैं,
जैसे :- a : b का व्युत्क्रमानुपाती = 1/a : 1/b
(vi). जब दो अनुपात परस्पर समान होते हैं , तो वे समानुपाती (Proportional) कहलाते हैं।
जैसे :- a : b = c : d हो, तब a, b, c तथा d समानुपाती हैं
(vi). विलोमानुपाती उस अनुपात को कहते हैं जो स्थान बदल लें
जैसे :- a : b = c : d का विलोमानुपात b : a :: d : c
अर्थात् a/b = c/d या b/a = d/c
अनुपात के कुछ विशेष गुण :
- अनुपात में पहली संख्या अर्थात् x को पूर्ववर्ती (Antecedent) तथा दूसरी संख्या अर्थात् y को अनुवर्ती (Consequent) कहते हैं
x : y = x/y - अनुपात हमेशा समान इकाई की संख्या के बीच होता है,
जैसे: रुपया : रुपया, किग्रा : किग्रा, घण्टा : घण्टा, सेकण्ड : सेकण्ड आदि - यदि दो अनुपात x : y तथा P : Q दिए गए हैं, तो Px : Qy मिश्रित अनुपात में कहलाएंगे
- दो संख्याओं a तथा b का मध्य समानुपाती (Mean proportional):- माना मध्य समानुपाती x है, तब a : x :: x : b (सही स्थिति)
हल:- x² = a.b ⇒ x = √a.b
अतः दो संख्याओं a तथा b का मध्य समानुपाती = √a.b होता है - यदि a : b :: C : d हो , तो a : c :: b : d एकान्तरानुपात (Altermendo) कहलाता है अर्थात् a/b = c/d या a/c = b/d (एकान्तरानुपात)
- यदि a : b :: c : d हो, तो (a + b) : b :: (c + d) : d योगानुपात (Componendo) कहलाता है
अर्थात् a/b = c/d, तब (a + b)b = (c + d)d (योगानुपात)
या a/b + 1 c/d + 1 ⇒ (a + b)/b = (c + d)/d - यदि a : b :: c : d हो , तब ( a – b ) : b :: ( c – d ) : d अन्तरानुपात ( Dividendo ) कहलाता है
अर्थात् a/b = c/d ⇒ a/b – 1 = c/d – 1 ⇒ (a – b)/b = (c – d)/d (अन्तरानुपात) - योगान्तरानुपात (Componendo and Dividendo) योगानुपात तथा अन्तरानुपात का सम्मिलन है
- यदि a : b :: c : d हो , तब ( a + b ) : ( a – b ) :: ( c + d ) : ( c – d ) योगान्तरानुपात है
- दो संख्याओं a तथा b का तृतीय समानुपाती (Third Proportional) – माना दो संख्याओं a तथा b का तृतीय समानुपाती x है, तब a : b = b : x (सही स्थिति)
हल:- a/b : b/x ⇒ b² = ax
∴ x = b²/a
अतः दो संख्याओं a तथा b का तृतीय समानुपाती b²/a होता है - तीन संख्याओं a , b तथा c का चतुर्थ समानुपाती ( Fourth Proportional ) माना a , b तथा c का चतुर्थ समानुपाती x है, तब
a : b = c : r ( सही स्थिति )
हल:- a/b = c/x ⇒ a.x = bc
⇒ x bc/a
अतः तीन संख्याओं a , b तथा c का चतुर्थ समानुपाती = bc/a होता है
अधिक जानकारी के लिए अनुपात और समानुपात की पोस्ट पढ़े।
10. साधारण ब्याज के सूत्र
- ब्याज = (मूलधन × समय × दर)/100
- मिश्रधन = मूलधन + साधरण ब्याज
- मिश्रधन = मूलधन × (100 + ब्याज की दर समय)
- मूलधन = मिश्रधन – साधरण ब्याज
- मूलधन = साधारण ब्याज × 100 / समय × ब्याज की दर
- समय = साधरण ब्याज × 100 / मूलधन × ब्याज की दर
- ब्याज की दर = साधरण ब्याज × 100 / मूलधन × समय
- मिश्रधन = मूलधन × (100 + समय × दर)
अधिक जानकारी के लिए साधारण ब्याज जरूर पढ़िए
11. चक्रवृद्धि ब्याज के सूत्र
- चक्रवृद्धि ब्याज = (1 + दर / 100 )^समय – मूलधन
- चक्रवृद्धि ब्याज = मूलधन [(1 + दर / 100)^समय – 1]
- चक्रवृद्धि ब्याज = मिश्रधन – मूलधन
- मिश्रधन की गणना निम्न प्रकार की जाती हैं।
- मिश्रधन = मूलधन × (1 दर / 100)^समय
- मिश्रधन = मूलधन + ब्याज
अधिक जानकारी के लिए चक्रवृद्धि ब्याज जरूर पढ़िए।
12. क्षेत्रमिति के सूत्र
त्रिभुज ∆ (Triangle) :
- समबाहु त्रिभुज का क्षेत्रफल = √3/4 × (भुजा)²
- समबाहु त्रिभुज को परिमिति = 3 × भुजा
- समबाहु त्रिभुज के शीर्ष बिंदु से डाले गए लम्ब की लम्बाई = √3/4 × भुजा
- समद्विबाहु त्रिभुज का क्षेत्रफल = 1/4a√4b² – a²
- समद्विबाहु त्रिभुज की परिमिति = a + 2b या a + 2c
- समद्विबाहु त्रिभुज के शीर्ष बिंदु A से डाले गए लम्ब की लंबाई = √(4b² – a²)
- विषमबाहु त्रिभुज की परिमिति = तीनों भुजाओं का योग = a + b + c
- त्रिभुज का अर्ध परिमाप S = ½ × (a + b + c)
- विषमबाहु त्रिभुज का क्षेत्रफल = √s(s – a)(s – b)(s – c)
- समकोण त्रिभुज का क्षेत्रफल = ½ × आधार × लम्ब
- समकोण त्रिभुज की परिमिति = लंब + आधार + कर्ण = a + b + c
- समकोण त्रिभुज का कर्ण = √(लम्ब)² + (आधार)² = √(c² + a²)
- समकोण त्रिभुज का लम्ब = √(कर्ण)² – (आधार)² = √(b² – a²)
- समकोण त्रिभुज का आधार = √(कर्ण)² – (लम्ब)² = √b² – c²
- समद्विबाहु समकोण त्रिभुज का क्षेत्रफल = ¼ (कर्ण)²
- किसी त्रिभुज की प्रत्येक भुजा को x गुणित करने पर परिमिति x गुणित तथा क्षेत्रफल x^2 गुणित हो जाती हैं।
- समबाहु त्रिभुज का प्रत्येक कोण 60° होता हैं।
- समकोण त्रिभुज के तीनों कोणों का योग 180° अर्थात दो समकोण होता हैं।
आयत (Rectangle) :
- आयत का क्षेत्रफल = लंबाई ×चौड़ाई
- आयत का विकर्ण =√(लंबाई² + चौड़ाई²)
- आयत का परिमाप = 2(लम्बाई + चौड़ाई)
- किसी आयताकार मैदान के अंदर से चारों ओर रास्ता बना हो, तो रास्ते का क्षेत्रफल = 2 × रास्ते की चौड़ाई × [(मैदान की लंबाई + मैदान की चौड़ाई) – (2 × रास्ते की चौड़ाई)]
- यदि आयताकार मैदान के बाहर चारों ओर रास्ता बना हों, तो रास्ते का क्षेत्रफल = 2 × रास्ते की चौड़ाई × [(मैदान की लम्बाई + मैदान की चौड़ाई) + (2 × रास्ते की चौड़ाई)
वर्ग (Square) :
- वर्ग का क्षेत्रफल = (एक भुजा)² = a²
- वर्ग का क्षेत्रफल = (परिमिति)²/16
- वर्ग का क्षेत्रफल = ½ × (विकर्णो का गुणनफल) = ½ × AC × BD
- वर्ग की परिमिति = 4 × a
- वर्ग का विकर्ण = एक भुजा × √2 = a × √2
- वर्ग का विकर्ण = √2 × वर्ग का क्षेत्रफल
- वर्ग की परिमिति = विकर्ण × 2√2
- वर्गाकार क्षेत्र के बाहर चारों ओर रास्ता बना हो तो रास्ते का क्षेत्रफल = 4 × रास्ते की चौड़ाई (वर्गाकार क्षेत्र की एक भुजा + रास्ते की चौड़ाई)
- वर्गाकार क्षेत्र के अंदर चारों ओर रास्ता बना हो तो रास्ते का क्षेत्रफल = 4 × रास्ते की चौड़ाई (वर्गाकार क्षेत्र की एक भुजा – रास्ते की चौड़ाई)
घन (Cube) :
- घन का आयतन = a × a × a
- घन का आयतन = (एक भुजा)³
- घन की एक भुजा 3√आयतन
- घन का विकर्ण = √3a सेंटीमीटर।
- घन का विकर्ण = √3 × एक भुजा
- घन की एक भुजा = विकर्ण/√3
- घन का परिमाप = 4 × a × a
- घन के सम्पूर्ण पृष्ठ का क्षेत्रफल = 6 a² वर्ग सेंटीमीटर।
बेलन (Cylinder) :
- बेलन का आयतन = πr²h
- बेलन के वक्र पृष्ठ का क्षेत्रफल = 2πrh
- बेलन के सम्पूर्ण पृष्ठ का क्षेत्रफल = (2πrh + 2πr²h) वर्ग सेंटीमीटर।
- दोनों सतहों का क्षेत्रफल = 2πr²
- खोखले बेलन का आयतन = πh(r²1 – r²2)
- खोखले बेलन का वक्रप्रष्ठ = 2πh(r1 + r2)
- खोखले बेलन का सम्पूर्ण पृष्ठ = 2πh(r1 + r2) + 2π (r²1 – r²1)
शंकु (Cone) :
- शंकु का वक्र पृष्ठ का क्षेत्रफल = πrl
- शंकु के पृष्ठों का क्षेत्रफल = πr(r + l)
- शंकु का आयतन = (πr²h)/3 घन सेंटीमीटर।
- शंकु की तिर्यक ऊँचाई (l) = √(r² + h²)
- शंकु की ऊँचाई (h) = √(l² – r²)
- शंकु की त्रिज्या (r) = √(l² – h²)
- शंकु का सम्पूर्ण पृष्ठ का क्षेत्रफल = (πrl + πr²) वर्ग सेंटीमीटर।
शंकु का छिन्नक (Frastrum) :
- शंकु के छिन्नक का आयतन = (πh)/3 (R² + r² + Rr)
- तिर्यक भाग का क्षेत्रफल = π (R + r)³, l² = h² + (R – r)²
- छिन्नक के सम्पूर्ण पृष्ठ का क्षेत्रफल = π[R² + r² + l(R + r)]
- तिर्यक ऊँचाई = √(R – r)² + h²
समलम्ब चतुर्भुज (Trapezium Quadrilateral) :
- समलम्ब चतुर्भुज का क्षेत्रफल = ½ × समान्तर भुजाओं का योग × समांतर भुजाओं के बीच की दूरी
- समलम्ब चतुर्भुज का क्षेत्रफल = ½ × ऊँचाई × समान्तर भुजाओं का योग
- समलम्ब चतुर्भुज का क्षेत्रफल = ½ × h × (AD + BC)
- समान्तर चतुर्भुज की परिमिति = 2 × (आसन्न भुजाओं का योगफल)
- समचतुर्भुज का क्षेत्रफल = ½ × विकर्णो का गुणनफल
- समचतुर्भुज की परिमिति = 4 × एक भुजा
- किसी चतुर्भुज का क्षेत्रफल = ½ × एक विकर्ण
- समचतुर्भुज की एक भुजा = √(विकर्ण)² + (विकर्ण)²
- समचतुर्भुज का एक विकर्ण = √भुजा² – (दूसरा विकर्ण/2)²
बहुभुज (Polygon) :
- n भुजा वाले चतुर्भुज का अन्तः कोणों का योग = 2(n -2) × 90°
- n भुजा वाले बहुभुज के बहिष्कोणों का योग = 360°
- n भुजा वाले समबहुभुज का प्रत्येक अन्तः कोण = [2(n – 2) × 90°] / n
- n भुजा वाले समबहुभुज का प्रत्येक भहिष्यकोण = 360°/n
- बहुभुज की परिमिति = n × एक भुजा
- नियमित षट्भुज का क्षेत्रफल = 6 × ¼√3 (भुजा)²
- नियमित षट्भुज का क्षेत्रफल = 3√3×½ (भुजा)²
- नियमित षट्भुज की परिमति = 6 × भुजा
- समषट्भुज की भुजा = परिवृत की त्रिज्या
- n भुजा वाले नियमित बहुभुज के विकर्णो की संख्या = n(n – 3)/2
घनाभ (Cuboid) :
- घनाभ के फलक का आकार = आयताकार
- घनाभ में 6 सतह या फलक होते हैं।
- घनाभ में 12 किनारे होते हैं।
- घनाभ में 8 शीर्ष होते हैं।
- घनाभ का आयतन = लम्बाई × चौड़ाई × ऊँचाई
- घनाभ की लंबाई = आयतन/(चौड़ाई × ऊँचाई)
- घनाभ की चौड़ाई = आयतन/(लम्बाई × ऊँचाई)
- घनाभ की ऊँचाई = आयतन/(लंबाई × चौड़ाई)
- घनाभ का आयतन = l × b × h
- घनाभ का परिमाप = 2(l + b) × h
- घनाभ के समस्त पृष्ठों का क्षेत्रफल = 2(लम्बाई × चौड़ाई + चौड़ाई × ऊँचाई + ऊँचाई × लम्बाई)
- घनाभ के सम्पूर्ण पृष्ठ का क्षेत्रफल = 2(lb + bh + hl)
- घनाभ के विकर्ण = √(लम्बाई)² + (चौड़ाई)² + (ऊँचाई)²
- घनाभ का विकर्ण = √l² + b² + h²
- खुले बक्से के सम्पूर्ण पृष्ठों का क्षेत्रफल = लम्बाई × चौडाई + 2(चौडाई × ऊँचाई + ऊँचाई × लम्बाई)
- कमरे के चारों दीवारों का क्षेत्रफल = 2 × ऊँचाई × (लम्बाई + चौड़ाई)
- किसी कमरे में लगने वाली अधिकतम लम्बाई वाली छड़ = √(लम्बाई)² + (चौड़ाई)² + (ऊँचाई)²
गोला (Sphere) :
- गोला का आयतन = (4πr³)/3 घन सेंटीमीटर
- गोले का वक्र पृष्ठ = 4πr² वर्ग सेंटीमीटर
- गोले की त्रिज्या = ∛3/4π × गोले का आयतन
- गोले का व्यास = ∛ (6 × गोले का आयतन)/π
- गोलाकार छिलके का आयतन = 4/3π(R³ – r³)
- गोले का सम्पूर्ण पृष्ठ = 4πr
- गोले की त्रिज्या = √सम्पूर्ण पृष्ठ/4π
- गोले का व्यास = √सम्पूर्ण पृष्ठ/π
- गोलाकार छिलके का आयतन = 4/3π(R³ – r³)
अर्द्धगोला (Semipsphere) :
- अर्द्ध गोले का वक्र पृष्ठ = 2πr²
- अर्द्धगोले का आयतन = 2/3πr³ घन सेंटीमीटर
- अर्द्धगोले का सम्पूर्ण पृष्ठ = 3πr² वर्ग सेंटीमीटर
- अर्द्वगोले की त्रिज्या r हो, तो अर्द्वगोले का आयतन = 2/3 πr³
- अर्द्वगोले का सम्पूर्ण पृष्ठ = 3πr²
वृत्त (CIRCLE) :
- वृत्त का व्यास = 2 × त्रिज्या = 2r
- वृत्त की परिधि = 2π त्रिज्या = 2πr
- वृत्त की परिधि = π × व्यास = πd
- वृत्त का क्षेत्रफल = π × त्रिज्या² = πr²
- वृत्त की त्रिज्या = √वृत्त का क्षेत्रफल/π
- अर्द्ववृत्त की परिमिति = (n + 2)r = (π + 2)d/2
- अर्द्ववृत्त का क्षेत्रफल = 1/2πr² = 1/8 πd²
- त्रिज्याखण्ड का क्षेत्रफल = θ/360° × वृत्त क्षेत्रफल = θ/360° × πr²
- त्रिज्याखण्ड की परिमिति = (2 + πθ/180°)r
- वृतखण्ड का क्षेत्रफल = (πθ/360° – 1/2 sinθ)r²
- वृतखण्ड की परिमिति = (L + πrθ)/180° , जहाँ L = जीवा की लम्बाई
- चाप की लम्बाई = θ/360° × वृत्त की परिधि
- चाप की लम्बाई = θ/360° × 2πr
- दो संकेन्द्रीय वृत्तों जिनकी त्रिज्याए R1, R2, (R1 ≥ R2) हो तो इन वृत्तों के बीच का क्षेत्रफल = π(r²1 – r²2)
आयतन के सूत्र :
- घन का आयतन = भुजा³
- घनाभ का आयतन = लम्बाई × चौड़ाई ×ऊंचाई
- बेलन का आयतन = πr²h
- खोखले बेलन का आयतन = π(r1² – r2²)h
- शंकु का आयतन = ⅓ πr2h
- शंकु के छिन्नक का आयतन = ⅓ πh[r1² + r2²+r1r2]
- गोले का आयतन = 4/3 πr3
- अर्द्धगोले का आयतन = ⅔ πr3
- गोलीय कोश का आयतन = 4/3 π(r13 – r23)
क्षेत्रमिति की अधिक जानकारी के लिए क्षेत्रमिति की पोस्ट पढ़े।
13. समय दूरी और चाल के सूत्र
चाल (Speed) :- किसी व्यक्ति/यातायात के साधन द्वारा इकाई समय में चली गई दूरी, चाल कहलाती हैं।
चाल का सूत्र = चाल = दूरी / समय
चाल का मात्रक (Unit of Speed) :- चाल का मात्रक मीटर/सेंटीमीटर अथवा किलोमीटर/घण्टा होता हैं।
यदि चाल मीटर/सेंटीमीटर में हैं, तो
- किलोमीटर/घण्टा = 18/5 × मीटर/सेंटीमीटर
यदि चाल किलोमीटर/घण्टा में हैं, तो
- मीटर/सेंटीमीटर = 5/18 × किलोमीटर/घण्टा
दूरी (Distance) :- किसी व्यक्ति/यातायात के साधन द्वारा स्थान परिवर्तन को तय की गई दूरी कहा जाता हैं।
दूरी का सूत्र :-
- दूरी = चाल × समय
समय (Time) :- किसी व्यक्ति/यातायात के साधन द्वारा इकाई चाल से चली गई दूरी, उसके समय को निर्धारित करती हैं।
समय का सूत्र :-
- समय = दूरी / चाल
सापेक्ष चाल (Relative Speed) :- यदि दो वस्तुएं क्रमशः a किलोमीटर/घण्टा व b किलोमीटर/घण्टा की चाल से चल रही हैं, तब
- दोनों विपरीत दिशा में हो, तो सापेक्ष चाल = (a + b) किलोमीटर/घण्टा
- दोनों समान दिशा में हो, तो सापेक्ष चाल = (a – b) किलोमीटर/घण्टा
रेलगाड़ी और प्लेटफॉर्म (Train and Platform) :- जब कोई रेलगाड़ी किसी लम्बी वस्तु/स्थान (प्लेटफार्म/पुल/दूसरी रेलगाड़ी) को पार करती हैं, तो रेलगाड़ी को अपनी लम्बाई के साथ-साथ उस वस्तु की लम्बाई के बराबर अतिरिक्त दूरी भी तय करनी पड़ती हैं,
- अर्थात कुल दूरी = रेल की लम्बाई + प्लेटफॉर्म/पुल की लम्बाई
महत्वपूर्ण तथ्य :
(a). चाल को किलोमीटर/घण्टा से मीटर/सेकेण्ड में बदलने के लिए 5/18 से गुणा तथा चाल को मीटर/सेकेंड से किलोमीटर/घण्टा में बदलने के लिए 18/5 से गुणा करते हैं।
औसत चाल = (कुल चली गई दूरी) / (कुल लगा समय)
(b). यदि कोई वस्तु निश्चित दूरी को x किलोमीटर/घण्टा तथा पुनः उसी दूरी को y किलोमीटर/घण्टा की चाल से तय करती हैं, तो पूरी यात्रा के दौरान उसकी
औसत चाल = (2 × x × y) / (x + y) किलोमीटर/घण्टा होगी।
(c). यदि दो वस्तु एक ही दिशा में a किलोमीटर/घण्टा तथा b किलोमीटर/घण्टा की चाल से गति कर रही हैं, जिनका गति प्रारम्भ करने का स्थान तथा समय समान हैं, तो उनकी सापेक्ष चाल (a – b) किलोमीटर/घण्टा होगी।
(d). यदि दो वस्तु विपरीत दिशा में a किलोमीटर/घण्टा तथा b किलोमीटर/घण्टा की चाल से गति कर रही हैं, जिनका गति प्रारम्भ करने का स्थान व समय समान हैं, तो उनकी सापेक्षिक चाल (a + b) किलोमीटर/घण्टा होगी।
(e). यदि A तथा B चाल में अनुपात a : b हो तो एक ही दूरी तय करने में इनके द्वारा लिया गया समय का अनुपात b : a होगा।
(f). जब एक व्यक्ति A से B तक x किलोमीटर/घण्टे की चाल से जाता हैं तथा t₁ समय देर से पहुँचता हैं तथा जब वह y किलोमीटर/घण्टे की चाल से चलता हैं, तो t₂ समय पहले पहुँच जाता हैं, तो