गुरुत्वाकर्षण के कारण त्वरण का मान क्या होता है? - gurutvaakarshan ke kaaran tvaran ka maan kya hota hai?

  • गुरुत्व (gravity)
    • गुरुत्वीय त्वरण
    • पृथ्वी तल से ऊपर जाने पर गुरुत्वीय त्वरण g का मान
    • पृथ्वी तल से ऊपर जाने पर गुरुत्वीय त्वरण g का मान
      • गुरुत्वीय त्वरण के मान में परिवर्तन
      • गुरुत्वीय त्वरण संबंधी प्रश्न उत्तर
        • 1. गुरुत्वीय त्वरण का न्यूनतम मान कहां होता है?
        • 2. गुरुत्वीय त्वरण का SI मात्रक क्या है?
        • 3. गुरुत्वीय त्वरण का मान अधिकतम होता है?

इस अध्याय के अंतर्गत गुरुत्वीय त्वरण क्या है इसका मान अधिकतम व न्यूनतम कहां होता है। एवं g के मान का परिकलन और पृथ्वी तल से ऊपर जाने पर एवं नीचे जाने पर के g मान में परिवर्तन का अध्ययन करेंगे।

गुरुत्व (gravity)

पृथ्वी द्वारा किसी वस्तु को अपने केंद्र की ओर आकर्षित करने को उसका गुरुत्व भी कहते हैं।
वास्तव में गुरुत्व, गुरुत्वाकर्षण का ही एक विशिष्ट उदाहरण है।

गुरुत्वीय त्वरण

पृथ्वी की ओर मुक्त रूप से गिरती किसी वस्तु के वेग में प्रति सेकंड से होने वाली वृद्धि को पृथ्वी का गुरुत्वीय त्वरण (acceleration due to gravity in Hindi) कहते हैं। इसे g से प्रदर्शित करते हैं।
गुरुत्वीय त्वरण का मान वस्तु के आकार, द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करता है यह केवल वस्तु के स्थान पर निर्भर करता है।
यदि किसी वस्तु का द्रव्यमान m हो तो उस पर आरोपित गुरुत्वीय बल
F = mg
जहां g गुरुत्वीय त्वरण है तो
\footnotesize \boxed { g = \frac{F}{m} }
अतः गुरुत्वीय त्वरण का मात्रक मीटर/सेकंड2 अथवा न्यूटन/किग्रा होता है। एवं विमीय सूत्र [LT-2] है गुरुत्वीय त्वरण एक सदिश राशि है।

पृथ्वी तल से ऊपर जाने पर गुरुत्वीय त्वरण g का मान

माना पृथ्वी का द्रव्यमान Me तथा त्रिज्या Re है तो पृथ्वी तल पर गुरुत्वीय त्वरण
g = G \frac{M_e}{R_e^2}    समी.①

यदि पृथ्वी तल से h ऊंचाई पर गुरुत्वीय त्वरण g’ है जैसा चित्र में दिखाया गया है तो
g’ = G \frac{M_e}{(R_e + h)^2}    समी.②
समी.② को समी.① से भाग देने पर
\large \frac{g'}{g} = \frac{GM_e}{(R_e + h)^2} × \frac{R_e^2}{GM_e}
\large \frac{g'}{g} = \frac{R_e^2}{(R_e + h)^2}
\large \frac{g'}{g} = \frac{R_e^2}{R_e^2(1 + h/R_e)^2}
\large \frac{g'}{g} = \frac{1}{(1 + h/R_e)^2}
g’ = \frac{g}{(1 + h/R_e)^2}
अर्थात   \footnotesize \boxed { g' < g }
अतः समीकरण द्वारा स्पष्ट होता है कि पृथ्वी तल से ऊपर जाने पर गुरुत्वीय त्वरण g का मान घटता है।

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पृथ्वी तल से ऊपर जाने पर गुरुत्वीय त्वरण g का मान

माना पृथ्वी का द्रव्यमान Me तथा त्रिज्या Re है तो पृथ्वी सतह पर गुरुत्वीय त्वरण
g = G \frac{M_e}{R_e^2}    समी.①

यदि हम पृथ्वी में सुरंग बनाकर h गहराई नीचे चले जाते हैं तो यह पृथ्वी (Re – h) त्रिज्या की रह जाएगी। एवं पृथ्वी का द्रव्यमान M’e हो जाता है। यदि h गहराई पर गुरुत्वीय त्वरण g’ है तो
g’ = G \frac{M_e}{(R_e + h)^2}    समी.②

समी.② को समी. ① से भाग देने पर
\large \frac{g'}{g} = \frac{GM'_e}{(R_e - h)^2} × \frac{R_e^2}{GM_e}
\large \frac{g'}{g} = \frac{M'_e R_e^2}{M'_e(R_e - h)^2}
यदि पृथ्वी का घनत्व ρ है तो
Me = \frac{4}{3} πRe3ρ
(चूंकि पृथ्वी गोल है इसलिए यह गोले का घनत्व है जहां Re त्रिज्या है।)
तथा M’e = \frac{4}{3} π(Re – h)3ρ
अतः Me तथा M’e का मान रखने पर
\large \frac{g'}{g} = \frac{4/3π(R_e - h)^3ρ R_e^2}{4/3πR_e^3 ρ (R_e - h)^2}
\large\frac{g'}{g} = \frac{R_e - h}{R_e}
\large\frac{g'}{g} = (1-\frac{h}{R_e})
g’ = g (1-\frac{h}{R_e})
अर्थात   \footnotesize \boxed { g' < g }
अतः इस समीकरण द्वारा स्पष्ट होता है कि पृथ्वी तल से नीचे जाने पर गुरुत्वीय त्वरण g का मान घटता है।

गुरुत्वीय त्वरण के मान में परिवर्तन

  1. गुरुत्वीय त्वरण g का मान पृथ्वी के ध्रुवो़ पर अधिकतम होता है।
  2. गुरुत्वीय त्वरण g का मान भूमध्य रेखा पर न्यूनतम होता है।
  3. पृथ्वी के केंद्र पर गुरुत्वीय त्वरण का मान शून्य होता है।
  4. पृथ्वी सतह से नीचे तथा ऊपर जाने पर गुरुत्वीय त्वरण का मान घटता है।

गुरुत्वीय त्वरण संबंधी प्रश्न उत्तर

1. गुरुत्वीय त्वरण का न्यूनतम मान कहां होता है?

Ans. भूमध्य रेखा पर

2. गुरुत्वीय त्वरण का SI मात्रक क्या है?

Ans. मीटर/सेकंड2

3. गुरुत्वीय त्वरण का मान अधिकतम होता है?

Ans. ध्रुवों पर

जब हम किसी चीज को ऊपर फेंकते है तो वह नीचे क्यो आ जाती है. कभी सोचा है आपने इस बारे में. गुरुत्वाकर्षण का बल उस चीज को नीचे खीच लेता है. तो आखिर यह गुरुत्वाकर्षण है क्या? यह कैसे पैदा होता है? इसी तरह के रोचक सवालों को जानने के लिए पढ़ते है गुरुत्वाकर्षण के बारे में:

न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण नियम (newton's law of gravitation): किन्हीं दो पिंडो के बीच कार्य करने वाला आकर्षण बल पिंडो के द्रव्यमानों के गुणनफल के अनुक्रमानुपाती तथा उनके बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है.
माना दो पिंड जिनका द्रव्यमान m1 एवं m2 है, एक दूसरे से R दूरी पर स्थ‍ित है, तो न्यूटन के नियम के अनुसार उनके बीच लगने वाला आकर्षण बल, F = G  m1m2/R^2 होता है. जहां G एक नियतांक है, जिसे सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण नियतांक कहते हैं और जिसका मान 6.67 X 10^-11 Nm^2 / kg^2 होता है.

गुरुत्व (gravity): न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के अनुसार दो पिंडो के बीच एक आकर्षण बल कार्य करता है. यदि इनमें से एक पिंड पृथ्वी हो तो इस आकर्षण बल को गुरुत्व कहते हैं. यानी कि, गुरुत्व वह आकर्षण बल है, जिससे पृथ्वी किसी वस्तु को अपने केंद्र की ओर खींचती है. इस बल के कारण जो त्वरण उत्पन्न होती है, उसे गुरुत्व जनित त्वरण (g) कहते हैं, जिनका मान 9.8 m/s^2 होता है.
गुरुत्व जनित त्वरण (g) वस्तु के रूप, आकार, द्रव्यमान आदि पर निर्भर नहीं करता है.

g के मान में परिवर्तन:
i) पृथ्वी की सतह से ऊपर या नीचे जाने पर g का मान घटता है.
ii) 'g' का मान महत्तम पृथ्वी के ध्रुव (pole) पर होता है.
iii) 'g' का मान न्यूनतम विषुवत रेखा (equator) पर होता है.
iv) पृथ्वी की घूर्णन गति बढ़ने पर 'g' का मान कम हो जाता है.
v) पृथ्वी की घूर्णन गति घटने पर 'g' का मान बढ़ जाता है.

नोट: यदि पृथ्वी अपनी वर्तमान कोणीय चाल से 17 गुनी अधिक चाल से घूमने लगे तो भूमध्य रेखा पर रखी हुई वस्तु का भार शून्य हो जाएगा.

लिफ्ट में पिंड का भार (weight of a body in lift):
i) जब लिफ्ट ऊपर की ओर जाती है तो लिफ्ट में स्थित पिंड का भार बढ़ा हुआ प्रतीत होता है.  
ii) जब लिफ्ट नीचे की ओर जाती है तो लिफ्ट में स्थित पिंड का भार घटा हुआ प्रतीत होता है.
iii) जब लिफ्ट एक समान वेग से ऊपर या नीचे गति करती है, तो लिफ्ट में स्थित पिंड के भार में कोई परिवर्तन प्रतीत नही होता.
iv)
यदि नीचे उतरते समय लिफ्ट की डोरी टूट जाए तो वह मुक्त पिंड की भांति नीचे गिरती है. ऐसी स्थिति में लिफ्ट में स्थित पिंड का भार शून्य होता है. यही भारहीनता की स्थति है.
v) यदि नीचे उतरते समय लिफ्ट का त्वरण गुरुत्वीय त्वरण से अधिक हो तो लिफ्ट में स्थित पिंड उसकी फर्श से उठकर उसकी छत से जा लगेगा.

ग्रहो की गति संबंधित केप्लर का नियम:
i)
प्रत्येक ग्रह सूर्य के चारों ओर दीर्घवृत्ताकार (eliiptical) कक्षा में परिक्रमा करता है तथा सूर्य ग्रह की कक्षा के एक फोकस बिंदु पर स्थति होता है.
ii) प्रत्येक ग्रह का क्षेत्रीय वेग (areal velocity) नियत रहता है. इसका प्रभाव यह होता है कि जब ग्रह सूर्य के निकट होता है, तो उसका वेग बढ़ जाता है और जब वह दूर होता है, तो उसका वेग कम हो जाता है.
iii) सूर्य के चारों ओर ग्रह एक चक्कर जितने समय में लगाता है, उसे उसका परिक्रमण काल (T) कहते है. परिक्रमण काल का वर्ग (T^2) ग्रह की सूर्य से औसत दूरी (r) के घन (r^3) के अनुक्रमानुपाती होता है. यानी कि T^2 ∝ r^3

यानी कि सूर्य से अधिक दूर के ग्रहों का परिक्रमण काल भी अधिक होता है. उदाहरण: सूर्य के निकटतम ग्रह बुध का परिक्रमण काल 88 दिन है, जबकि दूरस्थ ग्रह वरुण (neptune) का परिक्रमण काल 165 वर्ष है.

नोट: आईएयु (I.A.U.) ने यम (PLUTO) के ग्रह की श्रेणी से निकाल दिया है इसलिए अब दूरस्थ ग्रह वरुण है.

उपग्रह (satellite): किसी ग्रह के चारों ओर परिक्रमा करने वाले पिंड को उस ग्रह का उपग्रह कहते हैं. जैसे चन्द्रमा पृथ्वी का उपग्रह है.

उपग्रह की कक्षीय चाल (orbital speed of  satellite):
i) उपग्रह की कक्षीय चाल उसकी पृथ्वी तल से उंचाई पर निर्भर करती है. उपग्रह पृथ्वी तल से जितना दूर होगा, उतनी ही उसकी चल कम होगी.
ii) उपग्रह की कक्षीय चाल उसके द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करती है. एक ही त्रिज्या के कक्षा में भिन्न-भिन्न द्रव्यमानों के उपग्रहों की चाल समान होगी.
नोट: पृथ्वी तल के अति निकट चक्कर लगाने वाले उपग्रह की कक्षीय चाल लगभग 8 किमी./ सेकंड होती है.

उपग्रह का परिक्रमण काल (orbital speed of a satellite): उपग्रह अपनी कक्षा में पृथ्वी का एक चक्कर जितने समय में लगाता है, उसे उसका परिक्रमण काल कहते हैं
अतः परिक्रमण काल = कक्षा की परिधि/कक्षीय चाल
i) उपग्रह का परिक्रमण काल भी केवल उसकी पृथ्वी तल से ऊंचाई पर निर्भर करता है और उपग्रह जितना दूर होगा उतना ही अधिक उसका परिक्रमण काल होता है.
ii) उपग्रह का परिक्रमण काल उसके द्रव्यमान पर निर्भर नही करता है.
नोट: पृथ्वी के अति निकट चक्कर लगाने वाले उपग्रह पर परिक्रमण काल 1 घंटा 24 मिनट होता है.

भू-स्थायी उपग्रह (geo-stationary satellite):
ऐसा उपग्रह जो पृथ्वी के अक्ष के लंबवत तल में पश्चिम से पूर्व की ओर पृथ्वी की परिक्रमा करता है तथा जिसका परिक्रमण काल पृथ्वी के परिक्रमण काल (24 घंटे) के बराबर होता है, भू-स्थायी उपग्रह कहलाता है. यह उपग्रह पृथ्वी तल से लगभग 36000 किमी. की ऊंचाई पर रहकर पृथ्वी का परिक्रमण करता है. भू-तुल्यकालिक (geosynchronous) कक्षा में संचार उपग्रह स्थापित करने की संभावना सबसे पहले ऑथर सी क्लार्क ने व्यक्त की थी.

पलायन वेग (escape velocity):

पलायन वेग वह न्यूनतम वेग है जिससे किसी पिंड की पृथ्वी की सतह से ऊपर की ओर फेंके जाने पर वह गुरुत्वीय क्षेत्र को पार कर जाता है, पृथ्वी पर वापिस नहीं आता. पृथ्वी के लिए पलायन वेग का मान 11.2 km/s है यानी कि पृथ्वी तल से किसी वस्तु को 11.2 km/s या उससे अधिक वेग से ऊपर किसी भी दिशा में फेंक दिया जाए तो वस्तु फिर पृथ्वी तल पर वापिस नहीं आएगी.

उपग्रह के लिए कक्षीय वेग Vo = √gRe तथा पृथ्वी तल से पलायन वेग Ve = √2gRe' अतः Ve = √2Vo यानी कि पलायन वेग कक्षीय वेग का √2 (यानी कि 41%) बढ़ा दिया जाए तो वह उपग्रह अपनी कक्षा को छोड़कर पलायन कर जाएगा.

गुरुत्वाकर्षण के कारण त्वरण का मान क्या है?

यानी कि, गुरुत्व वह आकर्षण बल है, जिससे पृथ्वी किसी वस्तु को अपने केंद्र की ओर खींचती है. इस बल के कारण जो त्वरण उत्पन्न होती है, उसे गुरुत्व जनित त्वरण (g) कहते हैं, जिनका मान 9.8 m/s^2 होता है. गुरुत्व जनित त्वरण (g) वस्तु के रूप, आकार, द्रव्यमान आदि पर निर्भर नहीं करता है.

गुरुत्वाकर्षण के कारण त्वरण में मूल्य का परिवर्तन क्या है?

गति के तीसरे नियम के अनुसार सेब भी पृथ्वी को आकर्षित करता है। लेकिन गति के दूसरे नियम के अनुसार, किसी दिए हुए बल के लिए त्वरण वस्तु के द्रव्यमान के व्युत्क्रमानुपाती होता है [ समीकरण (9.4)]। पृथ्वी की अपेक्षा सेब का द्रव्यमान नगण्य है।

गुरुत्वीय त्वरण का मात्रक क्या होता है?

इसे g के रूप में निरूपित किया जाता है। यदि कोई पिण्ड धरती के सतह के निकट गुरुत्वाकरण बल के अतिरिरिक्त किसी अन्य बल की अनुपस्थिति में स्वतंत्र रूप से गति कर रही हो तो उसका त्वरण g के बराबर होगा। इसका मान लगभग 9.81 m/s2होता है।

गुरुत्वीय त्वरण का विमीय सूत्र क्या होता है?

प्रश्न 31 – बल–आघूर्ण तथा जड़त्व-आघूर्ण के बीच सम्बन्ध का सूत्र लिखिए । अथवा बल–आघूर्ण, जड़त्व - आघूर्ण एवं कोणीय त्वरण में सम्बन्ध लिखिए ।

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