संस्कृति की विशेषताएँ - Features of Culture
उपरोक्त परिभाषओं का अध्ययन और उसके विश्लेषण से संस्कृति के निम्नलिखित लक्षण एवं विशेषताएं प्रकट होती है।
(1) संस्कृति सामाजिक होती है यदि - कोई व्यक्ति किसी कार्य को विशिष्ट तरीके से करता है तो वह संस्कृति के अन्तर्गत नहीं आता। लेकिन जब व्यक्ति के उसी आदत को सामाजिक स्वीकृति तथा पहचान मिल जाती है तो यह संस्कृति कहलाती है। अतः संस्कृति के लिए सामाजिक स्वीकृति सामाजिक सहभागिता तथा सामाजिक पहचान एक आवश्यक शर्त है। जो विचार मात्र एक दो व्यक्तियों की विशेषता होती है उसे संस्कृति नहीं कह सकते इसके समर्थन में हावेल महोदय कहते हैं क “संस्कृति साझे की चीज है।" जबकि बीयरस्टीड ने कहा है कि ‘“संस्कृति एक सामाजिक विरातस है। अतः किसी संस्कृति का विकास एवं क्षरण सामाजिक स्वीकृति तथा अस्वीकृति पर निर्भर करता है।
(2) संस्कृति सीखी जाती है:- संस्कृति एक सीखा हुआ व्यवहार है यह वंशानुक्रमण से प्राप्त नहीं होता एक व्यक्ति वंशानुक्रमण से काला-गोरा, रोगी निरोगी हो सकता है लेकिन अपनी संस्कृति उसे सीखनी पड़ती है। विभिन्न संस्थाओं आदि के सामाजीकरण के माध्यम से व्यक्ति अपने संस्कृतियों के सीखता एवं आत्मसात कर समाज उपयोगी सदस्य बनता है। सीखने की क्षमता केवल मानवों में ह नहीं वरन् पशुओं में भी होती है, परन्तु पशुओं द्वारा सीखा हुआ व्यवहार संस्कृति नहीं बन पाती है। क्योंकि यह पशुओं की संस्कृति सामूहिक व्यवहार का अंग नहीं बन पाती।
(3) संस्कृति में अनुकूलन की क्षमता होती है - संस्कृति की प्रकृति परिवर्तनीय होती है। संस्कृति में समय, स्थान एवं परिस्थितियों के सन्दर्भ में ढालने की क्षमता होती है। विभिन्न परिस्थितियों किसी व्यक्ति को कैसे अनुकूलन करना चाहिए इसका ज्ञान हमें संस्कृतियों के माध्यम से होता है। यही कारण है कि विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों, तथा कालों की अलग-अलग संस्कृति होती है।
पहाड़ी क्षेत्रों की संस्कृति मैदानी क्षेत्रों से भिन्न होती है, ऊष्ण प्रदेशों की संस्कृति शीत प्रदेशां0 की संस्कृति से भिन्न होती । संस्कृति की अनुकूलन की क्षमता भी समय स्थान के सापेक्ष बदलती रहती है जैसे आदिम काल की अपेक्षा वर्तमान संस्कृति अधिक अनुकूलनीय है जबकी विकसित देशों की अपेक्षा विकासशील देशों की संस्कृति के अनुकूलन की गति मंद होती है। अतः अनुकूलन करने की संस्कृति की क्षमता संस्कृति की महत्वपूर्ण विशेषता है।
(4) संस्कृति हस्तान्तरणीय होती है चूँकि संस्कृति एक सीखा हुआ व्यवहार है। अतः इसे एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी, एक समूह से दूसरे समूह, तथा इससे बढ़कर एक युग से दूसरे युग तक की भी संस्कृति हस्तान्तरणीय होती है। आज मानव यदि सर्वश्रेष्ठ प्राणी होने का दावा करता है तो उसका सबसे बढ़ा कारण उसकी सांस्कृति हस्तान्तरण करने की क्षमता है। मनुष्य अपनी शिक्षा तथा ज्ञान विज्ञान के माध्यम से अपनी संस्कृतियों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित करती है। जिससे संस्कृति समान्यतः और अधिक उपयोगी और समृद्ध हो जाती है। संस्कृतियों का निर्माण अन्य नीवों द्वारा भी होती हैं लेकिन हस्तान्तरण की क्षमता केवल मनुष्यों के ही पास है।
(5) संस्कृति समन्वयकारी होती है:- संस्कृति में समन्वयकारी गुण पाये जाते हैं। संस्कृति विभिन्न क्षेत्रीय विभिन्नताओं आपस में जोड़ने का कार्य करती है। अपनी इसी गुण के कारण ही भारतीय संस्कृति को अनेकता में एक ता वाली संस्कृति कहा जाता है। भारत में लोक संगीत को जितना महत्व मिलता है उतना ही रॉक संगीत को, विभिन्न धर्म, सम्प्रदाय एवं भाषा भाषियों के मध्य जो एकता पायी जाती है उसके पीछे भारतीय संस्कृति को समन्वयकारी गुण ही है।
(6) संस्कृति समूह के लिए आदर्श होती है:- प्रत्येक संस्कृति अपने समूह के लिये आदर्श होती है। समाज को प्रत्येक सदस्य अपने संस्कृति के अनुरूप ही आचरण करता है। एक ही क्षेत्र मे रहने वाले लोग अपनी-अपनी संस्कृति के आधार पर अलग-अलग आचरण एवं व्यवहार करते हैं। प्रत्येक धर्म के उपासकों का आचरण एक साथ रहते हुये अपनी संस्कृति के अनुसार अलग-अलग होता है। किसी हिन्दू की मंदिर में उपासना की पद्धति, किसी मुसलमान के मस्जिद के अजान की पद्धति अलग-अलग होती है।
हिन्दू अपना हाथ धुलते समय कोहनी की तरफ से पानी डालते हुये पंजे की तरफ पानी गिराता है जबकि मुस्लिम पंजे के तरफ से पानी डालते हुये कोहनी की तरफ पानी गिराता है। ये संस्कृतियाँ भिन्न होते हमें अपने समूह के लिये आदर्श होती है।
(7) संस्कृति विशिष्ट होती है- प्रत्येक समाज की सामाजिक, आर्थिक एवं भौगोलिक दशाओं के सन्दर्भ में अपनी विशिष्ट संस्कृति होती है। प्रत्येक समाज की आवश्यकताएँ भिन्न होती हैं जिसकी पूर्ति के लिए ही भिन्न प्रकार के आचार, नियम तथा अविष्कार किये जाते है। जो अपनी संस्कृति को विशिष्टता प्रदान करती है। इन्हीं विशिष्टता के आधार पर ही हम भारत की संस्कृति को अमेरिका, चीन, रूस आदि की संस्कृति से अलग करते है। यदि धोती-कुर्ता भारतीय संस्कृति की विशिष्टता है तो सूट-बूट, टाई पाश्चात्य देशों की।
(8) संस्कृति व्यक्त्वि निर्माण में महत्वपूर्ण होती है प्रत्येक व्यक्ति का पालन पोषण अपनी एक विशिष्ट संस्कृति वातावरण में होती है। वह बालक सामाजीकरण के माध्यम से अपने समाज में प्रचलित रीत-रिवाज, धर्म दर्शन, कला, विज्ञान व व्यवहारों को सीखता है जिससे ही उसके व्यक्तित्व का निर्माण होता है। यही कारण होता है कि ग्रामीण संस्कृति में पला-बढ़ा बच्चा और नगरीय संस्कृति में पले-बढ़े बच्चों के व्यक्तित्व में अन्तर होता है। भारतीय संस्कृति में पले बच्चों और जापानी संस्कृति में पले बच्चों में व्यक्तित्व को हम संस्कृति के आधार पर भिन्न पाते हैं।
(9) संस्कृति अधि-वैयक्तिक एवं अधि-सावयवी है:- सस्कृति सम्बन्धी इस विशेषता व अवधारणा का उल्लेख क्रोबर महोदय ने दिया है। अधि वैयक्तिक से उनका तात्पर्य है कि किसी भी संस्कृति का निर्माण कोई एक व्यक्ति नहीं करता।
प्रत्येक संस्कृति के निर्माण में समाज के प्रत्येक सदस्यों का योगदान होता है। कभी कभी समाज को कुछ ऐसे प्रभावशाली व्यक्तित्व होते है जो किसी खास सांस्कृतिक पक्ष को इतना बढ़ावा देते हैं कि हमें भ्रमवश लगाता है कि इस संस्कृति का निर्माण उनके द्वारा ही हुआ है। लेकिन ऐसा नहीं होता क्योंकि वह संस्कृति पहले से दो समाज में किसी न किसी रूप में रही है। जैसे अहिंसा की संस्कृति के साथ महात्मा गाँधी का नाम। लेकिन इनसे पहले ही हमारे धार्मिक ग्रन्थों में तथा बौद्ध एवं जैन धर्म में आदि में अहिंसा से सम्बन्धित विस्तृत व्याख्या है। इस प्रकार संस्कृति अधि वैयक्तिक तथा अति सावयवी है।
(10) संस्कृति आवश्यकता पूर्ति में सहायक है:- संस्कृति हमारी आवयकता पूर्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। संस्कृति की इस विशेषता पर संस्कृतिक प्रकार्यवादी समाजशास्त्रियों की विस्तृत विवेचना है। जैसे मौलिनोवास्की तथा रैडक्लिफ ब्राउन जैसे प्रकार्यवादियों का मानना है क संस्कृति का कोई भी तत्व बेकार नहीं होता, वह मानव के किसी न किसी आवश्यकताओं की पूर्ति अवश्य करता है। मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ही समय-समय पर अविष्कार होते हैं, जो आगे चलकर संस्कृति का अंग बन जाते हैं।