हंटर कमेटी में कितने भारतीय थे? - hantar kametee mein kitane bhaarateey the?

जलियाँवाला बाग नरसंहार ने भारत के स्वतंत्रता संघर्ष को एक महत्वपूर्ण मोड़ दिया। 1951 में जलियाँवाला बाग में भारत सरकार द्वारा भारतीय क्रांतिकारियों के जोश और इस नृशंस नरसंहार में जान गँवाने वाले लोगों की याद में एक स्मारक स्थापित किया गया।

यह स्मारक संघर्ष और बलिदान का प्रतीक है और युवाओं में देशभक्ति की भावना पैदा करता है। मार्च 2019 में नरसंहार के एक प्रामाणिक वृत्तांत को दिखाने के लिए याद-ए-जलियाँ संग्रहालय का उद्घाटन किया गया।

हंटर कमेटी में कितने भारतीय थे? - hantar kametee mein kitane bhaarateey the?

राजनीतिक पृष्ठभूमि

अप्रैल 1919 का नरसंहार एक अकेली घटना नहीं थी, बल्कि एक ऐसी घटना थी जो इतिहास में होने वाले अनेक कारणों के परिणामस्वरूप घटित हुई थी। 13 अप्रैल 1919 को क्या हुआ, यह समझने के लिए इससे पहले की घटनाओं के बारे में जानना चाहिए।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने यह मान लिया था कि प्रथम विश्वयुद्ध के समाप्त होने के पश्चात् देश को स्व-शासन की अनुमति दे दी जाएगी, किंतु शाही अधिकारी-तंत्र की कुछ और ही योजनाएँ थीं।

हंटर कमेटी में कितने भारतीय थे? - hantar kametee mein kitane bhaarateey the?

किन कारणों से जलियाँवाला बाग नरसंहार हुआ

रॉलट कानून (काला अधिनियम) 10 मार्च 1919 को पारित किया गया था, जिसमें सरकार को, देशद्रोही गतिविधियों से जुड़े किसी भी व्यक्ति को, उसपर बिना मुकदमा चालाए, कारावास में डालने या कैद करने के लिए अधिकृत किया गया था। इससे देशव्यापी अशांति फैल गई।

रॉलट कानून का विरोध करने के लिए गांधी ने सत्याग्रह शुरू किया।

7 अप्रैल 1919 को गांधी ने रॉलट कानून का विरोध करने के तरीकों का वर्णन करते हुए 'सत्याग्रही' नामक एक लेख प्रकाशित किया।

ब्रिटिश अधिकारियों ने गांधी और सत्याग्रह में भाग लेने वाले अन्य नेताओं के विरुद्ध की जाने वाली कार्यवाहियों पर चर्चा की।

गांधी के पंजाब में प्रवेश करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया और उनके द्वारा आदेश की अवहेलना करने पर उन्हें गिरफ्तार करने का आदेश जारी कर दिया गया।

पंजाब के उप-राज्यपाल (1912-1919) सर माइकल ओड्वायर ने सुझाव दिया कि गांधी को बर्मा में निर्वासित कर दिया जाए, लेकिन उनके साथी अधिकारियों ने इसका विरोध किया क्योंकि उन्हें लगा कि इससे जनता भड़क सकती है।

हिंदू-मुसलमान एकता के प्रतीक, डॉ. सैफ़ुद्दीन किचलू और डॉ. सत्यपाल, नामक दो प्रमुख नेताओं ने अमृतसर में रॉलट कानून के विरुद्ध शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया।

9 अप्रैल, 1919, को जब राम नवमी मनाई जा रही थी, तब ओड्वायर ने उपायुक्त, श्री इरविंग को डॉ. सत्यपाल और डॉ. किचलू को गिरफ्तार करने के आदेश जारी किए।

19 नवंबर 1919 का अमृत बाजार पत्रिका का निम्नलिखित उद्धरण, हंटर आयोग के सामने श्री इरविंग की गवाही के बारे में बात करते हुए ब्रिटिश अधिकारियों की मानसिकता पर प्रकाश डालता है:

हंटर कमेटी में कितने भारतीय थे? - hantar kametee mein kitane bhaarateey the?

"उन्हें (इरविंग को) सर माइकल ओड्वायर की सरकार द्वारा डॉ. किचलू और सत्यपाल को निर्वासित करने का निर्देश दिया गया था। वे जानते थे कि इस तरह के कृत्य के परिणामस्वरूप सार्वजनिक विरोद्ध होगा। वे यह भी जानते थे कि इन लोकप्रिय नेताओं में से कोई भी हिंसा का पक्षधर नहीं था। उन्होंने 10 अप्रैल की सुबह दोनों सज्जनों को अपने घर आमंत्रित किया और, एक अंग्रेज़ व्यक्ति की प्रतिष्ठा पर भरोसा करते हुए, उन दोनों ने बिना किसी तरह की आशंका के उनके निमंत्रण को स्वीकार कर लिया। लेकिन जब वे अतिथियों के रूप में उनके घर में आधा घंटा बिता चुके थे, तब उन्हें पकड़ लिया गया और पुलिस अनुरक्षकों की निगरानी में धर्मशाला की ओर भेज दिया गया! श्री इरविंग ने बिना किसी पश्चात्ताप के अपनी इस करतूत की कहानी बताई जो शायद ही कोई अंग्रेज़ करे।”

10 अप्रैल 1919को अपने दो नेताओं को रिहा करने की माँग को लेकर प्रदर्शनकारियों ने उपायुक्त के आवास तक जुलूस निकाला। यहाँ उनकी तरफ से कोई उकसावा न होने पर भी उनपर गोलियाँ चलाई गईं। कई लोग घायल हुए और मारे गए। प्रदर्शनकारियों ने लाठियों और पत्थरों से जवाबी हमला किया और अपने रास्ते में आने वाले हर यूरोपीय पर आक्रमण किया।

यहाँ हुईं दुर्घटनाओं में से एक में, अमृतसर में मिशन स्कूल की अधीक्षक सुश्री शेरवुड पर हुआ हमला था। उनके द्वारा दी गई गवाही के अनुसार, 10 अप्रैल 1919 को उन्हें रास्ते में रोककर, "उसे मार डालो, वह अंग्रेज़ है" और "गांधी की जय, किचलू की जय" जैसे नारों के बीच, भीड़ द्वारा पीटा गया। उनके बेहोश होने तक उनपर हमला जारी रहा। अंत में, उन्हें मरा हुआ मानकर, भीड़ वहाँ से चली गई। हालाँकि ‘लोकसंग्रह’ नामक बंबई से प्रकाशित एक साप्ताहिक पत्रिका द्वारा एक जवाबी कथन में बताया गया था कि सुश्री शेरवुड को बहुत कम चोटें आई थीं।

हंटर कमेटी में कितने भारतीय थे? - hantar kametee mein kitane bhaarateey the?

अप्रैल 13, 1919 - जलियाँवाला बाग नरसंहार

रॉलट कानून पारित करने के बाद, पंजाब सरकार ने इसके विरुद्ध होने वाली सभी गतिविधियों को दबाने का बीड़ा उठाया।

13 अप्रैल, 1919, को लोग बैसाखी का त्योहार मनाने के लिए एकत्रित हुए थे। हालाँकि, राष्ट्रीय अभिलेखागार में मौजूद दस्तावेजों के अनुसार, अंग्रेज़ी सरकार ने इसे एक राजनीतिक सभा के रूप में देखा।

जनरल डायर के गैरकानूनी सभा को प्रतिबंधित करने वाले आदेशों के विरुद्ध लोग जलियाँवाला बाग में इकट्ठा हुए, जहाँ दो प्रस्तावों पर चर्चा की जानी थी; एक था 10 अप्रैल को हुई गोलीबारी की निंदा, और दूसरा, अंग्रेज़ अधिकारियों से भारतीय नेताओं को रिहा करने का अनुरोध।

जब यह खबर ब्रिगेडियर-जनरल डायर तक पहुँची, तो वह अपने सैनिकों के साथ बाग की ओर चला। उसने बाग में प्रवेश करके अपने सैनिकों को तैनात किया और उन्हें बिना किसी चेतावनी के गोलियाँ चलाने का आदेश दे दिया। लोग बाहर जाने वाले द्वारों की तरफ भागे, लेकिन डायर ने अपने सैनिकों को निकास-द्वारों पर गोली चलाने का निर्देश दिया।

गोलीबारी 10 -15 मिनटों तक जारी रही। 1650 राउंड चलाए गए। गोलियाँ खत्म होने के बाद ही गोलीबारी बंद हुई। जनरल डायर और श्री इरविंग द्वारा दी गई मृतकों की कुल अनुमानित संख्या 291 थी। परंतु मदन मोहन मालवीय की अध्यक्षता वाली एक समिति की रिपोर्ट सहित अन्य रिपोर्टों में मृतकों की संख्या 500 से अधिक बताई गई थी।

जलियाँवाला बाग के पश्चात्

नरसंहार के दो दिन बाद पाँच क्षेत्रों- लाहौर, अमृतसर, गुजरांवाला, गुजरात और लायलपुर- में सैनिक शासन लागू कर दिया गया।
सैनिक शासन की घोषणा द्वारा गवर्नर-जनरल को, क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल किसी भी व्यक्ति के ऊपर कोर्ट-मार्शल द्वारा तत्काल मुकदमा चलाने का अधिकार दिया गया। जैसे ही नरसंहार की खबर पूरे देश में फैली, टैगोर ने अपनी नाइट की उपाधि को त्याग दिया।

हंटर कमेटी में कितने भारतीय थे? - hantar kametee mein kitane bhaarateey the?

हंटर कमेटी में कितने भारतीय थे? - hantar kametee mein kitane bhaarateey the?

हंटर आयोग

14 अक्टूबर 1919 को नरसंहार के बारे में जाँच-पड़ताल करने के लिए उपद्रव जाँच समिति का गठन किया गया। यह बाद में हंटर आयोग के नाम से जानी गई।

हंटर आयोग को सरकार द्वारा उठाए गए कदमों के औचित्य या अनौचित्य पर अपना निर्णय देने के लिए निर्देशित किया गया था। अमृतसर में गड़बड़ी के दौरान प्रशासन में शामिल जनरल डायर और श्री इरविंग सहित सभी ब्रिटिश अधिकारियों से पूछताछ की गई।

निम्नलिखित उद्धरण डायर के नरसंहार के प्रति ग्लानिहीन दृष्टिकोण को दर्शाता है:

प्रश्न - गोलीबारी के बाद, क्या आपने घायलों की देखभाल के लिए कोई उपाए किए ?

उत्तर - नहीं, बिल्कुल नहीं। यह मेरा काम नहीं था। अस्पताल खुले थे और उन्हें वहाँ जाना चाहिए था।

नरसंहार के दिन जनरल डायर की कार्यवाहियों को सर माइकल ओड्वायर की ओर से एक त्वरित स्वीकृति मिली, जिसने उसे तुरंत तार किया था: " आपकी कार्यवाही सही है। उप-राज्यपाल इसका अनुमोदन करते हैं।”

डायर और ड्वायर दोनों को ही उन विभिन्न अखबारों की तरफ से हिंसक आलोचना का सामना करना पड़ा जिन्होंने इस क्रूर नरसंहार का अपना खुद का विवरण दिया था।

21 नवंबर 1919 दिनांकित, इंडिपेंडेंट, इलाहाबाद, से उद्धरण

डायर के कहा, “मैंने गोलियाँ चलाईं और अच्छी तरह से चलाईं। और कोई विचार मेरे लिए महत्वपूर्ण नहीं था"

जनरल डायर ने हंटर आयोग के सामने जो सबूत पेश किया, वह उसके द्वारा किए गए क्रूर कृत्य का स्वीकरण था।

समिति ने इस नरसंहार को ब्रिटिश प्रशासन के सबसे काले प्रकरणों में से एक के रूप में इंगित किया।

1920 में हंटर आयोग ने डायर के कार्यों के लिए उसकी निंदा की। प्रधान सेनापति ने ब्रिगेडियर-जनरल डायर को ब्रिगेड कमांडर के रूप में त्यागपत्र देने के लिए निर्देश दिया और उन्हें सूचित किया कि जैसा मोंटेगु द्वारा महामहिम को लिखे पत्र में उल्लिखित है, भारत में उन्हें कोई और रोज़गार नहीं मिलेगा।

हंटर कमेटी में कितने भारतीय थे? - hantar kametee mein kitane bhaarateey the?

हंटर कमेटी में कितने भारतीय थे? - hantar kametee mein kitane bhaarateey the?

ओड्वायर की हत्या

13 मार्च 1940 को लंदन के कैक्सटन हॉल में एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, ऊधम सिंह ने माइकल ओड्वायर की हत्या कर दी, जिसने डायर की कार्यवाही को मंज़ूरी दी थी और ऐसा माना जाता था कि इस नरसंहार का मुख्य योजनाकार वही था।

गांधी ने ऊधम सिंह की कार्यवाही का खंडन किया और इसे पागलपन का कार्य बताया। उन्होंने यह भी कहा, “हमें बदला लेने की कोई इच्छा नहीं है। हम उस प्रणाली को बदलना चाहते हैं जिसने डायर को जन्म दिया।”

इस प्रकार से, जलियाँवाला बाग नरसंहार भारत को स्वतंत्रता की ओर ले जाने वाली आरंभिक चिंगारी थी। यह पीड़ितों और औपनिवेशिक शासकों दोनों के लिए ही एक दुखद घटना थी। इसने अंग्रेज़ों की धारणाओं और रवैये में घातक दोष का खुलासा किया और आखिरकार उन्हें उस भूमि से जाना पड़ा जिसपर उन्होंने सदियों तक शासन करने की आशा की थी।

हंटर समिति में कुल कितने सदस्य थे?

आठ सदस्यों वाली इस समिति में पांच अंग्रेज़ लॉर्ड हन्टर, जस्टिस सर जॉर्ज रैंकिग, डब्ल्यू एफ़. राइस, मेजर जनरल सर जॉर्ज बैरो एवं सर टॉम्स स्मिथ, तीन भारतीय सदस्य सर चिमन सीतलवाड़, साहबजादा सुल्तान अहमद एवं जगत नारायण थे

हंटर कमेटी में कितने भारतीय सदस्य थे?

इस आयोग में 5 अंग्रेज सदस्य लार्ड हंटर, मि. जस्टिन रैकिन, मि. राइस, मेजर जनरल सर जार्ज बैरो एवं सर टामस स्मिथ तथा तीन भारतीय सदस्य सर चिमन लाल सीतलवाड़, साहबजादा सुल्तान अहमद और जगत नारायण थे.

हंटर कमेटी का गठन कब किया गया था?

लॉर्ड विलियम हंटर ने जांच समिति का नेतृत्व किया। आयोग का गठन 29 अक्टूबर 1919 को किया गया था।

हंटर कमेटी के अध्यक्ष कौन थे?

जलियांवाला बाग हत्याकांड की जांच के लिए कांग्रेस ने भी मदन मोहन मालवीय की अध्यक्षता में एक समिति गठित की थी। इस समिति को तहकीकात समिति कहा गया गया। इस समिति के दूसरे सदस्य महात्मा गांधी, मोतीलाल नेहरु, अब्बास तैयबजी, सी०आर०दास और पुपुल जयकर थे