ईसाई मिशनरी का आदिवासी पर क्या प्रभाव पड़ा? - eesaee mishanaree ka aadivaasee par kya prabhaav pada?

विषयसूची

  • 1 झारखंड में ईसाई मिशनरी ने क्या प्रभाव डाला?
  • 2 भारत में सर्वप्रथम कौन सी ईसाई मिशनरी आई?
  • 3 झारखंड में स्थापित होने वाला पहला ईसाई मिशनरी संस्था कौन है?
  • 4 भारत में आने वाला प्रथम ईसाई धर्म प्रचारक कौन थे?
  • 5 ईसाई मिशनरियों का आदिवासियों पर क्या प्रभाव पड़ा?
  • 6 भारत में ईसाई मिशनरी की स्थापना कब हुई?

झारखंड में ईसाई मिशनरी ने क्या प्रभाव डाला?

इसे सुनेंरोकेंईसाई मिशनरियों का झारखण्ड में आदिवासियों और ग्रामीण इलाको के बच्चो को सबसे पहले शिक्षा देने काम ईसाई मिशनरियों ने ही शुरू किया। झारखण्ड में सबसे पहले विद्यालयों खोलने का श्रेय ईसाई मिशनरियों को ही जाता है, ईसाई मिशनरियों ने झारखण्ड में बहुत से स्कूलों का निर्माण करवाया।

भारत में सर्वप्रथम कौन सी ईसाई मिशनरी आई?

थॉमस द एपोस्टल:

  • सेंट थॉमस द एपोस्टल, जो 52 ई में क्रैनगोर (कोडुंगल्लूर) के पास मालियानकारा में मालाबार तट पर उतरे थे।
  • भारत में आधुनिक केरल के सैंट थॉमस के पारंपरिक महत्वों के अनुसार माना जाता है कि थॉमस को रोमन साम्राज्य के बाहर यात्रा गोस्पेल का प्रचार करने के लिए मालाबार तट जो आधुनिक केरल में है तक यात्रा की।

ईसाई मिशनरी क्या होता है?

इसे सुनेंरोकेंईसाई मिशनरी वह लोग हैं जो भारत में ईसाई धर्म का प्रचार कर रहे हैं। यह लोग कई स्कूल-कॉलेज और अस्पताल जैसी संस्थाओं से जुड़कर अपने धर्म का प्रचार कर रहे हैं।

झारखंड में स्थापित होने वाला पहला ईसाई मिशनरी संस्था कौन है?

झारखण्ड में आने वाला प्रथम ईसाई मिशन –

1)सोसायटी फॉर प्रोपेगेशन ऑफ गॉस्पेल (एस.पी.जी.) मिशन
2) रोमन कैथोलिक मिशन
3) द युनाइटेड फ्री चर्च ऑफ स्कॉटलैंड
4) गॉस्सनर इवेंजेलिल लुथरन (जी.ई.एल.) मिशन
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भारत में आने वाला प्रथम ईसाई धर्म प्रचारक कौन थे?

इसे सुनेंरोकेंभारत में कहां और कैसे हुई ईसाई धर्म की शुरुआत? मान्यता है कि भारत में ईसाई धर्म की शुरुआत सबसे पहल केरल के तटीय नगर क्रांगानोर से हुई. माना जाता है कि ईसा मसीह के 12 प्रमुख शिष्यों में से एक सेंट थॉमस 52 A.D में केरल के कोडुन्गल्लुर आए थे. भारत आने के बाद सेंट थॉमस ने 7 चर्च बनावाए.

भारत में ईसाई धर्म का प्रचार करने की अनुमति कब मिलेगी?

इसे सुनेंरोकेंउन सभी क्षेत्रों में शीघ्र ही ईसाई धर्मप्रचार का कार्य प्रारंभ हुआ। भारत में विशेष रूप में गोवा के आसपास और बाद में संत फ्रांसिस ज़ेवियर के नेतृत्व में दक्षिण के पूर्वी तटवर्ती प्रांतों में काथलिक धर्म का प्रचार हुआ; आज भी वहाँ रोमन काथलिक काफी संख्या में विद्यमान हैं। संत फ्रांसिस जेवियर ने सन् 1549 ई.

ईसाई मिशनरियों का आदिवासियों पर क्या प्रभाव पड़ा?

इसे सुनेंरोकेंAnswer: ईसाई मिशनरियों का झारखण्ड में आदिवासियों और ग्रामीण इलाको के बच्चो को सबसे पहले शिक्षा देने काम ईसाई मिशनरियों ने ही शुरू किया। झारखण्ड में सबसे पहले विद्यालयों खोलने का श्रेय ईसाई मिशनरियों को ही जाता है, ईसाई मिशनरियों ने झारखण्ड में बहुत से स्कूलों का निर्माण करवाया।

भारत में ईसाई मिशनरी की स्थापना कब हुई?

इसे सुनेंरोकेंमाना जाता है कि भारत में ईसाई धर्म की शुरुवात ईसा मसीह के बारह मूल धर्मदूतों में से एक थॉमस के सन ५२ में केरल में आने के बाद हुई। विद्वानों की सहमति है कि ईसाई धर्म निश्चित तौर पर ६वीं शताब्दी ईस्वी से भारत में स्थापित हो गया था। भारत की २०११ की जनगणना मे मुताबीक २. ॰३% जनसंख्या ईसाई धर्म की है, जो की लगभग २॰.

ईसाई मिशनरी, जिनका आधुनिक भारत पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा है। भारत के सुदूर दक्षिणी भागों में बहुत पहले से ही सीरियाई ईसाइयों की भारी संख्या में उपस्थिति इस बात की द्योतक है कि इस देश में सबसे पहले आने वाले ईसाई मिशनरी यूरोप के नहीं, सीरिया के थे। जो भी हो, राजा गोंडोफ़ारस (लगभग 28 से 48 ई.) से संत टामस का सम्बन्ध यह संकेत करता है कि ईसाई धर्म प्रचारकों का एक मिशन सम्भवत: प्रथम ईसवी के दौरान भारत आया था।

ईसाई धर्म का प्रचार

इतना तो निश्चित रूप से ज्ञात है कि ईसाई मिशनरियों ने धर्मप्रचारक का अपना काम भारत में सोलहवीं शताब्दी के दौरान संत फ़्राँसिस जैवियर के ज़माने से शुरू किया था। संत जैवियर का नाम आज भी भारत के अनेक स्कूल कॉलेज से सम्बद्ध है। पुर्तग़ालियों के भारत आने और गोवा में जम जाने के बाद ईसाई पादरियों ने भारतीयों का बलात् धर्म-परिवर्तन करना शुरू कर दिया। आरम्भिक ईसाई मिशन रोमन कैथोलिक चर्च द्वारा प्रवर्तित थे और वे छुटपुट रूप से भारत आये। लेकिन उन्नीसवीं शताब्दी एग्लिंकन प्रोटेस्टेट चर्च के द्वारा ईसाई धर्म प्रचार का कार्य सुव्यवस्थित ढंग से आरम्भ किया। इस काल में ईस्ट इंडिया कम्पनी ने ईसाई मिशनरियों को अपने राज्य के भीतर रहने की इजाज़त नहीं दी, क्योंकि उसे भय था कि कहीं भारतीयों में उनके विरुद्ध उत्तेजना न उत्पन्न हो जाए। फलस्वरूप विलियम कैरी सरीखे प्रथम ब्रिटिश प्रोटेस्टेट मिशनरियों को कम्पनी को क्षेत्राधिकार के बाहर श्रीरामपुर में रहना पड़ा। अथवा कुछ मिशनरियों को कम्पनी से सम्बद्ध पादरियों के रूप में सेवा करनी पड़ी। जैसा कि डेविड ब्राउन और हेनरी मार्टिन ने किया।

कॉलेजों की स्थापना

सन् 1813 ई. में ईसाई पादरियों पर से रोक हटा ली गई और कुछ ही वर्षों के अन्दर इंग्लैण्ड, जर्मनी और अमेरिका से आने वाले विभिन्न ईसाई मिशन भारत में स्थापित हो गए और उन्होंने भारतीयों में ईसाई धर्म का प्रचार शुरू कर दिया। ये ईसाई मिशन अपने को बहुत अर्से तक विशुद्ध धर्मप्रचार तक ही सीमित न रख सके। उन्होंने शैक्षणिक और लोकोपकारी कार्यों में भी दिलचस्पी लेनी शुरू कर दी और भारत के बड़े-बड़े नगरों में कॉलेजों की स्थापना की और उनका संचालन किया। इस मामले में एक स्काटिश प्रेसबिटेरियन मिशनरी अलेक्जेंडर डफ़ अग्रणी था। उसने 1830 ई. में कलकत्ता में जनरल असेम्बलीज इंस्ट्रीट्यूशन की स्थापना की और उसके बाद कलकत्ता से लेकर बंगाल के बाहर तक कई और मिशनरी स्कूल और कॉलेज खोले। अंग्रेज़ी भाषा सीखने के उद्देश्य से भारतीय युवक इन कॉलेजों की ओर भारी संख्या में आकर्षित हुए। ऐसे युवक बाद में पश्चिमी ज्ञान और मान्यताओं को कट्टर हिन्दू और मुस्लिम समाज तक पहुँचाने का महत्त्वपूर्ण माध्यम बने।

समाज सुधार योगदान

ईसाई मिशन और मिशनरियों ने बौद्धिक स्तर पर तो भारतीयों के मस्तिष्क को प्रभावित किया ही, साथ ही अपने लोकोपकारी कार्यों (विशेष रूप से चिकित्सा सम्बन्धी) से भी यूरोपीय व ईसाई सिद्धान्तों और आदर्शों का प्रचार-प्रसार किया। इस प्रकार ईसाई मिशनरियों ने आधुनिक भारत के विकास पर गहरा प्रभाव डाला। मिशनरियों ने प्राय: बिना पर्याप्त जानकारी के भारतीय धर्म की अनुचित आलोचना की, जिससे कुछ कटुता उत्पन्न हो गई, लेकिन उन्होंने भारत के सामाजिक उत्थान में भी निसंदेह रूप से महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने भारतीय नारी की दयनीय, असम्मानजनक स्थिति, सती प्रथा, बाल हत्या, बाल-विवाह, बहुविवाह और जातिवाद जैसी कुरीतियों की ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट किया। इन सामाजिक व्याधियों को समाप्त करने में ईसाई मिशनरियों का बहुत बड़ा योगदान है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भट्टाचार्य, सच्चिदानन्द भारतीय इतिहास कोश, द्वितीय संस्करण-1989 (हिन्दी), भारत डिस्कवरी पुस्तकालय: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, 57।

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ईसाई मिशनरी के आदिवासियों पर क्या प्रभाव पड़ा?

Answer: ईसाई मिशनरियों का झारखण्ड में आदिवासियों और ग्रामीण इलाको के बच्चो को सबसे पहले शिक्षा देने काम ईसाई मिशनरियों ने ही शुरू किया। झारखण्ड में सबसे पहले विद्यालयों खोलने का श्रेय ईसाई मिशनरियों को ही जाता है, ईसाई मिशनरियों ने झारखण्ड में बहुत से स्कूलों का निर्माण करवाया।

ईसाई मिशनरी क्या होता है?

ईसाई मिशनरी वह लोग हैं जो भारत में ईसाई धर्म का प्रचार कर रहे हैं। यह लोग कई स्कूल-कॉलेज और अस्पताल जैसी संस्थाओं से जुड़कर अपने धर्म का प्रचार कर रहे हैं।

कौन सा ईसाई मिशनरी सबसे पहले भारत आया था?

भारत का पहला ईसाई मिशनरी कौन था?.
थॉमस द एपोस्टल.
जॉन ब्रीडेन.
रिचर्ड निल.
सैंट जॉर्ज.

झारखंड आने वाला प्रथम ईसाई मिशनरी कौन था?

सन् 1893 में फादर जॉन बैपटिस्ट हाफमैन छोटानागपुर में आदिवासियों के बीच कैथोलिक धर्म का प्रचार करने के उद्देश्य से आए थे।

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