इंद्रप्रस्थ का नाम दिल्ली कैसे पड़ा - indraprasth ka naam dillee kaise pada

Delhi Name Story: आज दिल्ली का पूरी दुनिया में नाम है. दिल्ली को आज नई दिल्ली के नाम से पूरा विश्व जानता है, लेकिन क्या आप जानते हैं दिल्ली के इस नाम के पीछे की क्या कहानी है.

3500 साल पहले युधिष्ठिर ने यमुना के पश्चिमी तट पर पांडव राज्य की बुनियाद रखी थी.

भारत की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली (Delhi Name History) का नाम भारत में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में मशहूर है. दिल्ली का नाम दुनिया के प्रमुख शहरों में से गिना जाता है. लेकिन, दिल्ली के नाम के भी एक अलग कहानी है. आज जो दिल्ली का नाम है, उसने कई बदलाव देखे हैं और कई नाम बदलने के बाद आज इस शहर का नाम दिल्ली (Delhi History) हुआ है. हालांकि, दिल्ली के आज के इस नाम के पीछे कई कहानियां और तर्क बताए जाते हैं. इन कहानियों में एक खंभे की कहानी है और कहा जाता है कि इस खंभे से दिल्ली का नाम निकला है.

ऐसे में आज हम आपको बताते हैं कि दिल्ली को ये नाम कैसे मिला है और दिल्ली के इस नाम के पीछे क्या कहानी है. आप इन कहानियों के बारे में जानने के बाद समझ पाएंगे कि किस तरह दिल्ली को ये फाइनल नाम मिला है. तो जानते हैं दिल्ली के नाम की क्या कहानी है और इसके अलावा खंभे वाली कहानी क्या है, जिसे दिल्ली के नाम की जननी माना जाता है…

राजा ढिल्लो से आया नाम

अगर इतिहास के पन्नों को पलटकर देखें तो पता चलता है कि दिल्ली पर कई लोगों ने राज किया है और ऐसे ही इसका नाम भी कई बार बदल चुका है. दिल्ली के नाम की कहानी मुगल काल से नहीं बल्कि महाभारत काल से शुरू हो गई थी. कहा जाता है कि करीब 3500 साल पहले युधिष्ठिर ने यमुना के पश्चिमी तट पर पांडव राज्य की बुनियाद रखी थी, जिसका नाम इंद्रप्रस्थ था.

एपिक चैनल की डॉक्यूमेंट्री में बताया गया है कि फिर 800 बीसी से इसके नाम के बदलने का चर्चा शुरु हुआ. साल 800 बीसी में कन्नौज के गौतम वंश के राजा ढिल्लू ने इंद्रप्रस्थ पर कब्जा किया था. कहा जाता है राजा के नाम दिल्ली का नाम इंद्रप्रस्थ से डिल्लू हो गया. रिपोर्ट के अनुसार, स्वामी दयानंद सरस्वती ने अपनी किताब सत्यार्थ प्रकाश में इसकी जानकारी दी है. कहा जाता है कि ढिल्लू का नाम बदलते हुए ढिली, देहली, दिल्ली, देल्ही हो गया.

क्या है खंभे की कहानी?

इसके अलावा दिल्ली के नाम की एक और कहानी है. इस डॉक्यूमेंट्री में कहा गया है, अगर मध्यकालीन युग की बात करें तो 1052 एडी के समय तोमर वंश के राजा आनंगपाल-2 को दिल्ली की स्थापना के लिए जाना जाता है. कहा जाता है कि उस वक्त दिल्ली का नाम ढिल्लिका था. ढिल्लिका नाम के पीछे एक रोचक कहानी भी है. इस रोचक कहानी के अनुसार, ढिल्लिका में राजा के किले में एक लौह स्तंभ खड़ा था और इस खंभे को लेकर एक पंडित ने कहा कि जब तक ये लौह स्तंभ रहेगा, तब तक तोमर वंश का राज रहेगा.

ये बात सुनकर राजा ने इस खुदवाने का निर्णय किया और जब इसे खुदवाया तो पता चला कि ये लौह स्तंभ सांपों के खून में घूसा हुआ था. इसके बाद फिर से इसे लगा दिया. लेकिन, माना जाता है कि ये खंभा पहले की तरह मजबूती से स्थापित नहीं हो पाया और ये लौह स्तंभ ढीला रह गया. माना जाता है कि इस खंभे की वजह से इसका नाम ढिली या ढिलिका पड़ा था. इसका जिक्र चंद बरदाई की फेमस कविता पृथ्वीराज रासो में भी है और इसमें कहा गया है कि ये तोमर वंश की सबसे बड़ी गलतियों में से एक है.

दहलीज से आया शब्द

हालांकि, इतिहासकारों का अलग अलग मानना है. इतिहासकारों का कहना है कि यह शब्द फारसी शब्द दहलीज या देहली से निकला है. दोनों शब्दों का मतलब है दहलीज, प्रवेशद्वार यानी गेटवे. माना जाता है कि इसे गंगा के तराई इलाकों का गेट माना जाता है और इस वजह से इसका नाम दिल्ली हो सकता है.

दिल्ली आज जिस स्वरूप में है, वैसी पहले कभी नहीं थी। दिल्ली सहस्त्राब्दियों पुराना शहर है। हमारे पौराणिक गाथाओं में दिल्ली के प्राचीन नाम का उल्लेख है। दिल्ली के ही पुराने नाम इंद्रप्रस्थ को पांडवों की बसाई नगरी कहा जाता है, जो उनकी राजधानी थी। जानें दिल्ली के नाम से लेकर दिल्ली की खास बातें..



दिल्ली का नाम दिल्ली कैसे पड़ा, इसे जानने के लिए सदियों पीछे साना होगा। ईसा पूर्व 50 में मौर्य राजा थे जिनका नाम था धिल्लु। उन्हें दिलु भी कहा जाता था। माना जाता है कि यहीं से अपभ्रंश होकर नाम दिल्ली पड़ गया। आगे है अलग कहानी…

कुछ इतिहासकार कहते हैं कि तोमरवंश के एक राजा धव ने इलाके का नाम ढीली रख दिया था क्योंकि किले के अंदर लोहे का खंभा ढीला था और उसे बदला गया था। यह ढीली शब्द बाद में दिल्ली हो गया।

एक और तर्क यह है कि तोमरवंश के दौरान जो सिक्के बनाए जाते थे उन्हें देहलीवाल कहा करते थे। इसी से दिल्ली नाम पड़ा। वहीं, कुछ लोगों का मानना है कि इस शहर को हजार-डेढ़ हजार वर्ष पहले हिंदुस्तान की दहलीज़ माना था। दहलीज़ का अपभ्रंश दिल्ली हो गया। दावे मौर्य राजा दिलु को लेकर ही होते हैं। उनसे जुड़ी एक कहानी है। माना जाता है कि उनके सिंहासन के ऐन आगे एक कील ठोकी गई। कहा गया कि यह कील पाताल तक पहुंच गई है। आगे जानें कहानी…

ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की कि जब तक यह कील है, तब तक साम्राज्य कायम रहेगा। कील काफी छोटी थी इसलिए राजा को शक हुआ। उन्होंने कील उखड़वा ली। बाद में यह दोबारा गाड़ी गई, लेकिन फिर वह मजबूती से नहीं धंसी और ढीली रह गई। तब से कहावत बनी कि किल्ली तो ढिल्ली भई। कहावत मशहूर होती गई और किल्ली, ढिल्ली और दिलु मिलाकर दिल्ली बन गया।

महाराज पृथ्वीराज चौहान के दरबारी कवि चंदरबरदाई की हिंदी रचना पृथ्वीराज रासो में तोमर राजा अनंगपाल को दिल्ली का संस्थापक बताया गया है। ऐसा माना जाता है कि उन्होंने ही ‘लाल-कोट’ का निर्माण करवाया था और महरौली के गुप्त कालीन लौह-स्तंभ को दिल्ली लाया। दिल्ली में तोमरो का शासनकाल 900-1200 इसवीं तक माना जाता है।


‘दिल्ली’ या ‘दिल्लिका’ शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम उदयपुर में प्राप्त शिलालेखों पर पाया गया। इस शिलालेख का समय 1170 इसवीं निर्धारित किया गया। महाराज पृथ्वीराज चौहान को दिल्ली का अंतिम हिंदु सम्राट माना जाता है|


1206 इसवीं के बाद दिल्ली दिल्ली सल्तनत की राजधानी बनी। इसपर खिलज़ी वंश, तुगलक़ वंश, सैयद वंश और लोधी वंश समेत कुछ अन्य वंशों ने शासन किया। ऐसा माना जाता है कि आज की आधुनिक दिल्ली बनने से पहले दिल्ली सात बार उजड़ी और विभिन्न स्थानों पर बसी, जिनके कुछ अवशेष आधुनिक दिल्ली मे अब भी देखे जा सकते हैं। दिल्ली के तत्कालीन शासकों ने इसके स्वरूप में कई बार परिवर्तन किया। इसके बाद आया मुगलों का शासन…

मुगल बादशाह हुमायूँ ने सरहिंद के निकट युद्ध में अफ़गानों को पराजित किया तथा बिना किसी विरोध के दिल्ली पर अधिकार कर लिया। हुमायूँ की मृत्यु के बाद हेमू विक्रमादित्य के नेतृत्व में अफ़गानों नें मुगल सेना को पराजित कर आगरा व दिल्ली पर पुनः अधिकार कर लिया। मुगल बादशाह अकबर ने अपनी राजधानी को दिल्ली से आगरा स्थान्तरित कर दिया।

अकबर के पोते शाहजहाँ (1628-1678) ने सत्रहवीं सदी के मध्य में इसे सातवीं बार बसाया जिसे शाहजहानाबाद के नाम से पुकारा गया। शाहजहानाबाद को आम बोल-चाल की भाषा में पुराना शहर या पुरानी दिल्ली कहा जाता है। पुरानी दिल्ली 1638 के बाद मुग़ल सम्राटों की राजधानी रही। दिल्ली का आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफ़र था जिसकी मृत्यु निवार्सन मे ही रंगून मे हुयी।

1857 के सिपाही विद्रोह के बाद दिल्ली पर ब्रिटिश शासन के हुकुमत में शासन चलने लगा। 1857 के इस प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के आंदोलन को पूरी तरह दबाने के बाद अंग्रेजों ने बहादुरशाह ज़फ़र को रंगून भेज दिया तथा भारत पूरी तरह से अंग्रेजो के अधीन हो गया।

प्रारंभ में उन्होंने कलकत्ते (आजकल कोलकाता) से शासन संभाला परंतु ब्रिटिश शासन काल के अंतिम दिनो मे पीटर महान के नेतृत्व मे सोवियत रूस का प्रभाव भारतीय उपमहाद्वीप मे तेजी से बढ़ने लगा| जिसके कारण अंग्रेजों को यह लगने लगा कि कलकत्ता जो कि भारत के धुर पूरब मे था वहां से अफगानिस्तान एवं ईरान आदि पर सक्षम तरीके से आसानी से नियंत्रण नही स्थापित किया जा सकता है आगे चल कर के इसी कारण से 1911 में उपनिवेश राजधानी को दिल्ली स्थानांतरित कर दिया गया एवं अनेक आधुनिक निर्माण कार्य करवाए गये।

सन 1947 में भारत की आजादी के बाद इसे अधिकारिक रूप से भारत की राजधानी घोषित कर दिया गया। दिल्ली में कई राजाओं के साम्राज्य के उदय तथा पतन के साक्ष्य आज भी विद्यमान हैं। सच्चे मायने में दिल्ली हमारे देश के भविष्य, भूतकाल एवं वर्तमान परिस्थितियों का मेल-मिश्रण हैं। तोमर शासको मे दिल्ली कि स्थापना का शेय अनंगपाल को जाता है।

इंद्रप्रस्थ का नाम दिल्ली कब पड़ा?

ऐसा माना जाता है कि उसने ही 'लाल-कोट' का निर्माण करवाया था और लौह-स्तंभ दिल्ली लाया था। दिल्ली में तोमर वंश का शासनकाल 900-1200 इसवी तक माना जाता है। 'दिल्ली' या 'दिल्लिका' शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम उदयपुर में प्राप्त शिलालेखों पर पाया गया, जिसका समय 1170 ईसवी निर्धारित किया गया।

दिल्ली का पूरा नाम क्या है?

दिल्ली का पुराना नाम “इंद्रप्रस्थ” था । जिसके साक्ष्य भारतीय महाकाव्य 'महाभारत' में मिलते हैं उस समय यह पांडवों की राजधानी हुआ करता था। इंद्रप्रस्थ का मतलब होता है इंद्रदेव का शहर मतलब जहां पर इंद्र निवास करते हैं।

दिल्ली का नामकरण कैसे हुआ?

इस शहर को इंद्रप्रस्थ के नाम से जाना जाता था, जहां कभी पांडव रहे थे। समय के साथ-साथ इंद्रप्रस्थ के आसपास आठ शहर : लाल कोट, दीनपनाह, किला राय पिथौरा, फिरोज़ाबाद, जहांपनाह, तुगलकाबाद और शाहजहानाबाद बसते रहे। पांच शताब्दियों से भी अधिक समय से दिल्ली राजनीतिक उथल-पुथल की गवाह रही है।

इंद्रप्रस्थ का पुराना नाम क्या है?

इंद्रप्रस्थ : इस तरह इंद्रप्रस्थ, जो पूर्व में खांडवप्रस्थ था, को पांडव पुत्रों के लिए बनवाया गया था। यह नगर बड़ा ही विचित्र था। खासकर पांडवों का महल तो इंद्रजाल जैसा बनाया गया था

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