जन्म सूतक में क्या क्या नहीं करना चाहिए? - janm sootak mein kya kya nahin karana chaahie?

Updated: | Fri, 27 Jul 2018 03:46 PM (IST)

उज्जैन । शास्त्रों में इंसान की जीवन को नियमों के सूत्रों में पिरोया गया है। विज्ञान के साथ शास्त्र का संयोग कर जिंदगी को चुस्त-दुरुस्त और सहज और सरल बनाने की कवायद की गई है ऐसे ही दो शास्त्रोक्त विधान है सूतक और पातक। जब किसी घर में किसी बच्चे का जन्म होता है या परिवार के किसी मृत्यु होती है तो इन दोनों बातों का पालन किया जाता है।

बच्चे के जन्म के समय लगता है सूतक -

जब किसी परिवार में बच्चे का जन्म होता है तो उस परिवार में सूतक लग जाता है । सूतक की यह अवधि दस दिनों की होती है । इन दस दिनों में घर के परिवार के सदस्य धार्मिक गतिविधियां में भाग नहीं ले सकते हैं। साथ ही बच्चे को जन्म देने वाली स्त्री के लिए रसोईघर में जाना और दूसरे काम करने का भी निषेध रहता है। जब तक की घर में हवन न हो जाए।

शास्त्रों के अनुसार सूतक की अवधि विभिन्न वर्णो के लिए अलग-अलग बताई गई है। ब्राह्मणों के लिए सूतक का समय 10 दिन का, वैश्य के लिए 20 दिन का, क्षत्रिय के लिए 15 दिन का और शूद्र के लिए यह अवधि 30 दिनों की होती है।

मृत्यु के पश्चात लगता है पातक –

जिस तरह घर में बच्चे के जन्म के बाद सूतक लगता है उसी तरह गरुड़ पुराण के अनुसार परिवार में किसी सदस्य की मृत्यु होने पर लगने वाले सूतक को ' पातक ' कहते हैं। इसमें परिवार के सदस्यों को उन सभी नियमों का पालन करना होता हैं , जो सूतक के समय पालने होते हैं। पातक में विद्वान ब्राह्मण को बुलाकर गरुड़ पुराण का वाचन करवाया जाता है।

सूतक और पातक हैं शास्त्रोक्त के साथ वैज्ञानिक विधान -

'सूतक' और 'पातक' सिर्फ धार्मिक कर्मंकांड नहीं है। इन दोनों के वैज्ञानिक तथ्य भी हैं। जब परिवार में बच्चे का जन्म होता है या किसी सदस्य की मृत्यु होती है उस अवस्था में संक्रमण फैलने की संभावना काफी ज्यादा होती है। ऐसे में अस्पताल या शमशान या घर में नए सदस्य के आगमन, किसी सदस्य की अंतिम विदाई के बाद घर में संक्रमण का खतरा मंडराने लगता है।

इसलिए यह दोनों प्रक्रिया बीमारियों से बचने के उपाय है, जिसमें घर और शरीर की शुद्धी की जाती है। जब 'सूतक' और 'पातक' की अवधि समाप्त हो जाती है तो घर में हवन कर वातावरण को शुद्ध किया जाता है। उसके बाद परम पिता परमेश्वर से नई शुरूआत के लिए प्रार्थना की जाती है। ग्रहण और सूतक के पहले यदि खाना तैयार कर लिया गया है तो खाने-पीने की सामग्री में तुलसी के पत्ते डालकर खाद्य सामग्री को प्रदूषित होने से बचाया जा सकता है।

ग्रहण के दौरान मंदिरों के पट बंद रखे जाते हैं। देव प्रतिमाओं को भी ढंककर रखा जाता है।ग्रहण के दौरान पूजन या स्पर्श का निषेध है। केवल मंत्र जाप का विधान है। ग्रहण के दौरान यज्ञ कर्म सहित सभी तरह के अग्निकर्म करने की मनाही होती है। ऐसा माना जाता है कि इससे अग्निदेव रुष्ट हो जाते हैं। ग्रहण काल और उससे पहले सूतक के दौरान गर्भवती स्‍त्रियों को कई तरह के काम नहीं करने चाहिए। साथ ही सिलाई, बुनाई का काम भी नहीं करना चाहिए।

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अक्सर आपने किसी के घर में बच्चा पैदा होने पर या किसी के घर में मृत्यु होने पर उस के घर नहीं जाना है या ग्रहण काल से पहले सुना होगा कि पूजा-पाठ नहीं करनी है और मंदिर के पट बंद रहेंगे, ये सब सूतक लग जाने के कारण होता है। आइए जानते हैं यह सूतक क्या है और इसमें क्या-क्या कार्य नहीं करने चाहिए। 

सूतक क्या होता है? 

आम भाषा में कहें तो सूतक अशुद्धि का समय है जिसमें सूतक की अवधि में अपने घर से बाहर नहीं निकलते हैं और बाहर वालों का भी उस घर में आना-जाना वर्जित होता है जहाँ सूतक लगा है। शास्त्रों के अनुसार जन्म के समय जो अशुद्धि नाल काटने से होती है, उसके प्रायश्चित स्वरूप सूतक माना जाता है।

वहीं किसी की मृत्यु के पश्चात जो कर्मकांड होते हैं उसमें होने वाली गतिविधियों के प्रायश्चित स्वरूप सूतक माना जाता है जिसको पातक कहते हैं। इसी प्रकार महिलाओं के मासिक धर्म के दौरान केवल उस महिला के लिए और ग्रहण काल के दौरान सभी लोगों के लिए सूतक माना जाता है।

सूतक का समय

इन सूतक और पातक के लगने की अवधि और दिन अलग-अलग  होते हैं। जन्म के समय लगने वाला सूतक 10 दिनों का होता है। इस अवधि के बाद घर में हवन का आयोजन किया जाता है, सूतक के बाद संतों द्वारा भगवान की कथा सुनी जाती है और फिर घर के सभी लोग पहले की तरह अपने रोजमर्रा के कामों में लग जाते हैं।

प्राचीन शास्त्रों के अनुसार यदि ब्राह्मण के घर में किसी की मृत्यु हो जाए तो उस घर में 10 दिन का सूतक माना जाता है, वहीँ क्षत्रिय के घर में 12 दिन का, वैश्य के घर में 15 दिन का और शूद्र 1 महीने का सूतक लगा मानते हैं, किंतु नए ज़माने में नौकरी और काम-धंधे की भाग-दौड़ की वजह से ज्यादातर लोग 10 दिन का ही सूतक मनाते हैं।

सूतक में वर्जित कार्य

आइए अब जानें कि सूतक में आपको कौन से कार्य नहीं करने चाहिए और किन नियमों का पालन करना चाहिए।

  1. अपने घर-परिवार के बाहर के व्यक्ति को ना ही मिलें और ना छूएं|
  2. कोई भी धार्मिक या मांगलिक कार्य नहीं करने चाहिए और ना ही ऐसे कार्यक्रमों में भाग लेना चाहिए|
  3. जन्म के कारण लगे सूतक में आपको भगवान का स्मरण व भजन कीर्तन करके समय बिताना चाहिए|
  4. परिवार में किसी की मृत्यु के कारण पातक लगने पर संबंधियों को गरुड़ पुराण पढ़ना या किसी विद्वान पंडित से उसकी कथा सुननी चाहिए|
  5. जिस परिवार में सूतक लगा हो उस परिवार के लोग मंदिर दर्शन को भी नहीं जा सकते और ना ही उन्हें वहाँ के दान पात्र में पैसे डालने चाहिए। सूतक के समय किसी को भिक्षा भी नहीं देनी चाहिए, जब तक की आवश्यक ना हो।
  6. जन्म के कारण लगे सूतक में उस जन्मे बच्चे की माँ को रसोई घर में प्रवेश नहीं करना चाहिए।
  7. सूतक या पातक का समय समाप्त हो जाने पर व्यक्ति को किसी पवित्र तीर्थ का जल अपने नहाने के पानी में मिला कर शुद्धि स्नान करना चाहिए या किसी पवित्र नदी में जा कर भी अपने आप को पवित्र किया जा सकता है|
  8. सूतक लगे परिवार के लोग केवल मानसिक जाप या स्मरण कर सकते हैं। उनको माला लेकर कोई जप करना भी वर्जित है और ना ही उन्हें कोई धार्मिक ग्रंथ पढ़ना चाहिए।
  9. यदि सूतक के समय कोई व्रत पहले से करते आ रहे हों तो सूतक के समय में भी उसे करना जारी रखा जा सकता है परंतु किसी व्रत का उद्यापन सूतक काल में नहीं किया जाना चाहिए।

सूतक का वैज्ञानिक तर्क 

आपने अक्सर सुना ही होगा कि नई पीढ़ी के लोग सूतक पातक नहीं मानते परंतु आइए हम आपको बताते हैं कि इन नियमों का वैज्ञानिक तर्क क्या है। पुराने समय में घर की स्त्री को पूरे कार्य संभालने होते थे। उनकी सहायता के लिए सामान्यतया कोई नौकर-चाकर नहीं होते थे।

बच्चे के जन्म के दौरान महिलाओं का शरीर कमजोर हो जाता है और जन्म देने के दौरान उन्हें अत्यधिक दर्द भी झेलना पड़ता है। इसलिए पुराने समय में सूतक माना जाता था ताकि उस समय महिला को पूर्ण विश्राम दिया जाए और वह आराम कर के पहले जैसी चुस्त और स्वस्थ हो जाए। इससे नए जन्मे बच्चे को संक्रमण का भी भय नहीं रहता क्योंकि कोई भी बाहरी व्यक्ति उसके आसपास ना आता था और ना ही उसे खिलाता था।

वहीं मृत्यु के पश्चात लगने वाले पातक का कारण है कि जो लोग किसी के भी दाह संस्कार में शामिल होने के लिए शमशान जाते हैं तो वह अपने साथ संक्रमण ला सकते हैं। जिसने सारे कर्मकांड किए हैं, वह सबसे ज्यादा  संक्रमित हो सकता है, इसलिए वहाँ पातक के नियमों का पालन किया जाता है और इससे यह सुनिश्चित हो जाता है कि संक्रमण बाकी लोगों में ना फैले।

देखा आपने, हमारे पूर्वजों ने जो सूतक और पातक के नियम बनाए उनके बहुत ही अच्छे वैज्ञानिक कारण हैं। ये नियम यह सुनिश्चित करते हैं की हम सबका जीवन स्वस्थ और सुरक्षित रहे

क्या जन्म सूतक में पूजा करनी चाहिए?

जन्म पर सूतक में क्या होता है? किसी के जन्म होने पर परिवार के लोगों पर १० दिन के लिए सूतक लग जाता है। इस दौरान परिवार का कोई भी सदस्य धार्मिक कार्य नहीं करता है। जैसे मंदिर नहीं जाना, पूजा-पाठ नहीं करना।

बच्चे के जन्म पर सूतक कितने दिन का होता है?

वहीं, घर पर किसी नवजात के जन्म के बाद सूतक लग जाता है. पातक के नियमों की अवधि 13 दिनों तक होती है, लेकिन शास्त्रों में सूतक की अवधि अलग-अलग बताई गई है. जैसे ब्राह्मणों में 10 दिन, वैश्य के लिए 20 दिन और क्षत्रिय के लिए 15 दिन और शूद्र के लिए 30 दिन की अवधि होती है.

जन्म सूतक में क्या नहीं करना चाहिए?

सूतक पातक की अवधि में देव शास्त्र गुरु, पूजन प्राक्षाल, आहार आदि धार्मिक क्रियाएं वर्जित होती है। 8. जिस व्यक्ति या परिवार के घर में सूतक-पातक रहता है, उस व्यक्ति और परिवार के सभी सदस्यों को कोई छूता भी नहीं है। वहां का अन्न-जल भी ग्रहण नहीं करता है।

जन्म सूतक में पूजा क्यों नहीं करनी चाहिए?

सूतक का समय: सूतक के विषय में यह माना जाता है कि यह एक अशुभ काल होता है। इसलिए इस समय ना पूजा की जाती है और ना ही देव दर्शन किये जाते हैं। धार्मिक नियमों के अनुसार सूर्य ग्रहण के 12 घंटे पूर्व ही सूतक लग जाता है, इस कारण मंदिरों के पट भी बंद कर दिए जाते हैं।

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