कबीर एक व्यक्ति होने के बजाय व्यक्तित्व हैं. कबीर जो न हिन्दू हैं और न मुसलमान. कबीर जो दुनियावी होने के बावजूद जाति-धर्म से ऊपर हैं. दुनिया को आईना दिखाते कबीर. समाज में व्याप्त कुरीतियों पर कुठाराघात करते कबीर. एक ऐसी शख्सियत जिस पर हिन्दू और मुसलमान दोनों दावा करते हैं और वह हर तरह के जात-पात से ऊपर उठ गया है.
जब पूरी दुनिया के लोग मोक्ष के लिए काशी की ओर जाते हैं तो कबीर काशी छोड़ कर मगहर की ओर चले जाते हैं. एक जुलाहे का काम करने वाला शख्स जिस पर न जाने कितने ही लोग डॉक्टरेट कर चुके हैं..
तो इसी क्रम में हम आपको रू-ब-रू करा रहे हैं कबीर के सदाबहार दोहों से, जिन्हें सुन कर जीने की सही राह समझ में आती है और हर मुश्किल आसान लगती है.
दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय
जो सुख में सुमिरन करे, दुख काहे को होय
हम सभी परेशानियों में
फंसने के बाद ही ईश्वर को याद करते हैं. सुख में कोई याद नहीं करता. जो यदि सुख में याद किया जाएगा तो फिर परेशानी क्यों आएगी.
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलया कोय
जो मन खोजा आपना, तो मुझसे बुरा न कोय
जब मैं पूरी दुनिया में खराब और बुरे लोगों को देखने निकला तो मुझे
कोई बुरा नहीं मिला. और जो मैंने खुद के भीतर खोजने की कोशिश की तो मुझसे बुरा कोई नहीं मिला.
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर
इस दोहे के माध्यम से कबीर कहना चाहते हैं कि सिर्फ बड़ा होने से कुछ नहीं होता. बड़ा होने के लिए विनम्रता जरूरी गुण है. जिस प्रकार खजूर का पेड़ इतना ऊंचा होने के बावजूद न पंथी को छाया दे सकता है और न ही उसके फल ही आसानी से तोड़े जा सकते हैं.
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब
पल में परलय होएगी, बहुरी करोगे
कब
कल का काम आज ही खत्म करें और आज का काम अभी ही खत्म करें. ऐसा न हो कि प्रलय आ जाए और सब-कुछ खत्म हो जाए और तुम कुछ न कर पाओ.
ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोए
अपना तन शीतल करे, औरन को सुख होए
हमेशा ऐसी बोली और भाषा बोलिए कि उससे आपका अहम न
बोले. आप खुद भी सुकून से रहें और दूसरे भी सुखी रहें.
धीरे-धीरे रे मन, धीरे सब-कुछ होए
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होए
दुनिया में सारी चीजें अपनी रफ्तार से घटती हैं, हड़बड़ाहट से कुछ नहीं होता. माली पूरे साल पौधे को सींचता है और समय आने पर ही फल फलते हैं.
साईं इतनी दीजिए, जा में कुटुंब समाए
मैं भी भूखा न रहूं, साधू न भूखा जाए
यहां कबीर ईश्वर से सिर्फ उतना ही मांगते हैं जिसमें पूरा परिवार का खर्च चल जाए. न कम और न ज्यादा. कि वे भी भूखे न रहें और दरवाजे
पर आया कोई साधू-संत भी भूखा न लौटे.
जैसे तिल में तेल है, ज्यों चकमक में आग
तेरा साईं तुझ में है, तू जाग सके तो जाग
जिस तरह तिल में तेल होने और चकमक में आग होने के बाद दिखलाई नहीं पड़ता. ठीक उसी तरह ईश्वर को खुद के भीतर खोजने की जरूरत है. बाहर खोजने पर सिर्फ
निराशा हाथ लगेगी.
पोथि पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोए
ढाई आखर प्रेम के, पढ़ा सो पंडित होए
कबीर कहते हैं कि किताबें पढ़ कर दुनिया में कोई भी ज्ञानी नहीं बना है. बल्कि जो प्रेम को जान गया है वही दुनिया का सबसे बड़ा ज्ञानी है.
चिंता ऐसी डाकिनी, काट कलेजा खाए
वैद बिचारा क्या करे, कहां तक दवा लगाए
चिंता रूपी चोर सबसे खतरनाक होता है, जो कलेजे में दर्द उठाता है. इस दर्द की दवा किसी भी चिकित्सक के पास नहीं होती.
माया मरी न मन मरा, मर-मर गए
शरीर
आशा, तृष्णा ना मरी, कह गए दास कबीर
इच्छाएं कभी नहीं मरतीं और दिल कभी नहीं भरता, सिर्फ शरीर का ही अंत होता है. उम्मीद और किसी चीज की चाहत हमेशा जीवित रहते हैं.
These Solutions are part of NCERT Solutions for Class 9 Hindi. Here we have given NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sparsh Chapter 9 साखियाँ एवं सबद. प्रश्न-अभ्यास साखियाँ प्रश्न 1. प्रश्न 2.
( पाठ्यपुस्तक से)
‘मानसरोवर’ से कवि
का क्या आशय है?
उत्तर:
मानसरोवर से कवि का आशय है-मन रूपी पवित्र सरोवर, जिसमें मनुष्य को स्वच्छ विचाररूपी जल भरा है। इस स्वच्छ जल में जीवात्मा रूप हंस, प्रभु-भक्ति में लीन होकर स्वच्छंद रूप से मुक्तिरूपी मुक्ताफल चुगते हैं। वे मानसरोवर छोड़कर अन्यत्र जाना भी नहीं चाहते हैं।
कवि ने सच्चे प्रेमी की क्या कसोटी बताई है?
उत्तर:
कवि के अनुसार सच्चे प्रेमी की कसौटी यह है कि उससे मिलने पर मन की सारी मलिनता नष्ट हो जाती
है। पाप धुल जाते हैं।
प्रश्न 3.
तीसरे दोहे में कवि ने किस प्रकार के ज्ञान को महत्त्व दिया है?
उत्तर:
तीसरे दोहे में कवि ने सांप्रदायिकता एवं भेदभाव रहित सच्चे ज्ञान की प्राप्ति को महत्त्व दिया है। संसार के लोग सांसारिकता में फँसकर सच्चे ज्ञान और उसकी महिमा से अनजान रहते हैं। मनुष्य इस ज्ञान को खोजने था पाने की जगह अन्य वस्तुओं की प्राप्ति में अपना समय बेकार में नष्ट करता रहता है।
प्रश्न 4.
इस संसार में सच्चा संत कौन
कहलाता है?
उत्तर:
कबीर के अनुसार, सच्चा संत वह है जो सांप्रदायिक भेदभाव, तर्क-वितर्क और वैर-विरोध के झगड़े में न पड़कर निश्छल भाव से प्रभु की भक्ति में लीन रहता है।
प्रश्न 5.
अंतिम दो दोहों के माध्यम से कबीर ने किस तरह की संकीर्णताओं की ओर संकेत किया है?
उत्तर:
अंतिम दो दोहों के माध्यम से कबीर ने निम्नलिखित संकीर्णताओं की ओर संकेत किया है-
- मुसलमान काबा को अपना पवित्र तीर्थस्थल मानते हैं और हिंदू काशी को पावन स्थल मानते हैं और वहाँ अपने आराध्य का वास मानते हुए राम-रहीम में अंतर करते हैं जबकि यह मनुष्य का किया गया बँटवारा है।
- ऊँचे कुल में जन्म लेने से ही व्यक्ति महान नहीं बन जाता है। उसे अच्छे कर्म ही महान बनाते हैं। व्यक्ति की धारणा यह है कि ऊँची जाति या कुल में पैदा होने से ही वह महान बन गया है। वास्तव में व्यक्ति अपने कर्मों से महान बनता है।
प्रश्न 6.
किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके कुल से होती है या उसके कर्मों से? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर:
किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके कर्मों से होती है, न कि ऊँचे कुल से। आज तक हजारों राजा पैदा हुए और मर गए। परंतु लोग जिन्हें जानते हैं, वे हैं-राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर आदि। इन्हें इसलिए जाना गया क्योंकि ये केवल कुल से ऊँचे नहीं थे, बल्कि इन्होंने ऊँचे कर्म किए। इनके विपरीत कबीर, सूर, तुलसी बहुत सामान्य घरों से थे। इन्हें बचपन में ठोकरें भी खानी पड़ीं। परंतु फिर भी वे अपने श्रेष्ठ कर्मों के आधार पर संसार भर में प्रसिद्ध हो गए। इसलिए हम कह सकते हैं कि महत्त्व ऊँचे कर्मों
का होता है, कुल का नहीं।
प्रश्न 7.
काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए हस्ती चढ़िए ज्ञान कौ, सहज दुलीचा डारि। स्वान रूप संसार है, भैंकन दे झख मारि।
उत्तर:
काव्य-सौंदर्य
भाव-सौंदर्य – ज्ञान का महत्त्व प्रतिपादित करते हुए कबीर कहते हैं कि मनुष्य को ज्ञान रूपी हाथी की सवारी सहज गलीची डालकर करना चाहिए। ऐसा कहते हुए यदि कुत्ता रूपी संसार उसकी आलोचना करता है तो मनुष्य को उसकी परवाह नहीं करना चाहिए। अर्थात् मनुष्य को ज्ञान
प्राप्त करना चाहिए। ऐसा करते हुए उसे आलोचना की परवाह नहीं करना चाहिए।
शिल्प-सौंदर्य-
- सधुक्कड़ी भाषा का प्रयोग है। इसमें ‘हस्ती’, ‘स्वान’, ‘ज्ञान’ आदि तत्सम शब्दों का प्रयोग है।
- तुकांत युक्त इस रचना में स्वर मैत्री अलंकार है।
- रचना में भक्ति रस की प्रधानता है।
सबद (पद)
प्रश्न 8.
मनुष्य ईश्वर को कहाँ-कहाँ हूँढ़ता फिरता है?
उत्तर:
मनुष्य ईश्वर को मंदिर, मसजिद, काबा, कैलाश,
योग, वैराग्य तथा विविध पूजा पद्धतियों में ढूँढता फिरता है। कोई अपने देवता के मंदिर में जाता है, कोई मसजिद में जाता है। कोई उसे अपने तीर्थ स्थलों में खोजता है। कोई योग साधना या संन्यास में परमात्मा को खोजता है। कोई अन्य किसी साधना पद्धति को अपनाकर ईश्वर को खोजता है।
प्रश्न 9.
कबीर ने ईश्वर-प्राप्ति के लिए किन प्रचलित विश्वासों का खंडन किया है?
उत्तर:
कबीर ने ईश्वर की प्राप्ति के लिए निम्नलिखित प्रचलित विश्वासों का खंडन किया है-
- मनुष्य मंदिर, मस्जिद में पूजा-अर्चना करके, नमाज पढ़कर ईश्वर को प्राप्त करना चाहता है किंतु इससे ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती।
- मनुष्य विभिन्न देवालयों तथा धार्मिक स्थानों की यात्रा करता है, पर इससे ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती है।
- मनुष्य योग, वैराग्य जैसी क्रियाएँ करके ईश्वर को पाना चाहता है, पर यह व्यर्थ
- मनुष्य दिखावटी या आडंबरपूर्ण भक्ति करता है, परंतु इससे ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती है।
प्रश्न 10.
कबीर ने ईश्वर को ‘सब स्वाँसों की स्वाँस में
क्यों कहा है?
उत्तर:
कबीर के अनुसार, ईश्वर घट-घट में व्याप्त है। वह साँस-साँस में समाया हुआ है। वह हर प्राणी के मन में विराजमान है।
प्रश्न 11.
कबीर ने ज्ञान के आगमन की तुलना सामान्य हवा से न कर आँधी से क्यों की?
उत्तर:
कबीर दास ने ज्ञान के आगमन की तुलना सामान्य हवा से न करके आँधी से इसलिए की है क्योंकिसामान्य हवा धीरे-धीरे चलकर आसपास की वस्तुओं को प्रभावित नहीं कर पाती है। जबकि आँधी तेज गति से चलकर वस्तुओं की स्थिति में
परिवर्तन कर देती है। इससे छोटी-छोटी वस्तुएँ, कूड़ा-करकटे, पत्तियाँ, घास-फूस उड़कर कहीं दूर चली जाती है। इसी प्रकार ज्ञान की आँधी आने से मनुष्य के मन पर पड़ा अज्ञान का पर्दा उड़ जाता है। मोह-माया, स्वार्थ आदि जैसी बुराइयाँ उड़कर कहीं दूर चली जाती हैं। शरीर से कपट रूपी कूड़ा-करकट उड़ जाता है। उसको मन सांसारिक बंधनों से मुक्त हो प्रभु की भक्ति में लीन हो जाता है।
प्रश्न 12.
ज्ञान की आँधी का भक्त के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
ज्ञान की
आँधी के आने से भक्त के मन के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। उसके मन के भ्रम दूर हो जाते हैं। माया, मोह, स्वार्थ, धन, तृष्णा, कुबुद्धि आदि विकार समाप्त हो जाते हैं। इसके बाद उसके शुद्ध मन में भक्ति और प्रेम की वर्षा होती है जिससे जीवन में आनंद ही आनंद छा जाता है।
प्रश्न 13.
भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) हिति चित्त की वै बूंनी गिराँनी, मोह बलिंडा तूटा।
(ख) आँधी पीछे जो जल बूठा, प्रेम हरि जन भींनाँ।
उत्तर:
(क) यहाँ ज्ञान की आँधी के कारण मनुष्य मन पर पड़े प्रभाव के फलस्वरूप मनुष्य के स्वार्थ रूपी दोनों खंभे टूट गए, तथा मोह रूपी बल्ली भी गिर गई। इससे उसका कामना रूपी छप्पर नीचे गिर गया। उसके मन की बुराइयाँ नष्ट हो गईं। उसका मन साफ हो गया।
(ख) ज्ञान की आँधी के बाद मन प्रभु की भक्ति में रम जाता है। प्रभु भक्ति रूपी ज्ञान की वर्षा के कारण मन प्रेम रूपी जल से भीग जाता है और वह आनंदित हो जाता है। अर्थात् ज्ञान की प्राप्ति के बाद उसका मन
शुद्ध हो जाता है।
रचना और अभिव्यक्ति
प्रश्न 14.
संकलित साखियों और पदों के आधार पर कबीर के धार्मिक और सांप्रदायिक सद्भाव संबंधी विचारों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।
भाषा-अध्ययन
प्रश्न 15.
निम्नलिखित शब्दों के तत्सम रूप लिखिए-
- पखापखी,
- अनत,
- जोग,
- जुगति,
- वैराग,
- निरपख
उत्तर:
तद्भव शब्द तत्सम शब्द
- पखापखी पक्ष-विपक्ष
- अनत अनंत
- जोग योग
- जुगति युक्ति
- वैराग वैराग्य
- निरपख निरपेक्ष/निष्पक्ष
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