ईधंन (Fuel) ऐसे पदार्थ हैं, जो आक्सीजन के साथ संयोग कर काफी ऊष्मा उत्पन्न करते हैं। 'ईंधन' संस्कृत की इन्ध् धातु से निकला है जिसका अर्थ है - 'जलाना'। ठोस ईंधनों में काष्ठ (लकड़ी), पीट, लिग्नाइट एवं कोयला प्रमुख हैं। पेट्रोलियम, मिट्टी का तेल तथा गैसोलीन द्रव ईधंन हैं। कोलगैस, भाप-अंगार-गैस, द्रवीकृत पेट्रोलियम गैस और प्राकृतिक गैस आदि गैसीय ईंधनों में प्रमुख हैं।
आजकल परमाणु ऊर्जा भी शक्ति के स्रोत के रूप में उपयोग की जाती है, इसलिए विखंडनीय पदार्थों (fissile materials) को भी अब ईंधन माना जाता है।
वैज्ञानिक और सैनिक कार्यों के लिए उपयोग में लाए जानेवाले राकेटों में, एल्कोहाल, अमोनिया एवं हाइड्रोजन जैसे अनेक रासायनिक यौगिक भी ईंधन के रूप में प्रयुक्त होते हैं। इन पदार्थों से ऊर्जा की प्राप्ति तीव्र गति से होती है। विद्युत् ऊर्जा का प्रयोग भी ऊष्मा की प्राप्ति के लिए किया जाता है इसलिए इसे भी कभी-कभी ईंधनों में सम्मिलित कर लिया जाता है।
प्रकार[संपादित करें]
- रासायनिक ईंधन :
- ठोस ईंधन - लकड़ी, कोयला, गोबर, कोक, चारकोल आदि
- द्रव ईंधन - पेट्रोलियम (डीजल, पेट्रोल, घासलेट, कोलतार, नैप्था, एथेनॉल आदि
- गैस इंधन - प्राकृतिक गैस (हाइड्रोजन, प्रोपेन, कोयला गैस, जल गैस, वात्या भट्ठी गैस, कोक भट्ठी गैस, दाबित प्राकृतिक गैस)
नाभिकीय ईंधन (CANDU रिएक्टर के लिये)
- परमाणवीय या नाभिकीय ईंधन :
- नाभिकीय विखण्डन
- नाभिकीय संलयन
ईंधन मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं -
- रसायन - हाइड्रोजन, मिथेन
- जीवाश्म ईंधन - कोयला और पेट्रोलियम
- जैव ईंधन - लकड़ी, काष्ठ कोयला, बायो डीजल
ईंधन के वैशिष्ट्य[संपादित करें]
ईकाई ईंधन से जितनी ऊर्जा प्राप्त होती है उसे उस ईंधन का 'कैलोरी मान' कहा जाता है। प्रमुख ईंधनों के कैलोरी मान नीचे दिये गये हैं।
प्राकृतिक गैस | 53,6 | 12 800 |
एसीटलीन | 48,55 | 11 600 |
प्रोपेन पेट्रोल ब्यूटेन | 46,0 | 11 000 |
डीजल | 42,7 | 10 200 |
ईंधन तेल | 40,2 | 9 600 |
एन्थ्रेसाइट | 34,7 | 8 300 |
कोक | 32,6 | 7 800 |
कोयला गैस | 29,3 | 7 000 |
अल्कोहल 95º पर | 28,2 | 6 740 |
लिग्नाइट | 20,0 | 4 800 |
पीट | 19,7 | 4 700 |
बिटुमिन कोयला | 16,7 | 4 000 |
इन्हें भी देखें[संपादित करें]
- जैव ईंधन
- पेट्रोलियम
- डीजल
- लकड़ी
कोल, एक प्रकार का जीवाश्म ईंधन है।
जीवाश्म ईंधन एक प्रकार का कई वर्षों पहले बना प्राकृतिक ईंधन है। यह लगभग 65 करोड़ वर्ष पूर्व जीवों के जल कर उच्च दाब और ताप में दबने से हुई है। यह ईंधन पेट्रोल, डीजल, घासलेट आदि के रूप में होता है। इसका उपयोग वाहन चलाने, खाना पकाने, रोशनी करने आदि में किया जाता है।
उत्पत्ति[संपादित करें]
पेट्रोल और प्राकृतिक गैस करोड़ों वर्ष पूर्व बने थे। यह मुख्यतः नदी या झील के बहुत नीचे होते हैं। जहाँ यह बहुत उच्च ताप और दाब के कारण ईंधन बन जाते हैं। जिसमें यह अलग अलग परत के रूप में होते हैं। जिसमें पेट्रोल, प्राकृतिक गैस आदि के अलग अलग परत होते हैं। अलग अलग गहराई में अलग अलग ताप और दाब मिलने के कारण यह असमानता आती है।
महत्त्व[संपादित करें]
एक बार इसका उपयोग करने के पश्चात इसे दोबारा प्राप्त नहीं किया जा सकता है। इसके निर्माण के लिए बहुत अधिक तापमान और दाब की आवश्यकता होती है। जिसे मानव द्वारा बना पाना वर्तमान में असंभव है। क्योंकि यह ईंधन प्राकृतिक रूप से ही बनी है। साथ ही इसके निर्माण में लाखों वर्षों का समय भी लग गया था। इस कारण इसका पुनः निर्माण और उतने बड़े क्षेत्र का लाखों वर्षों तक अधिक तापमान और दाब में रखने में अधिक पैसे लगेंगे। इसके स्थान पर यदि अक्षय ऊर्जा का उपयोग किया जाता है तो उसमें इससे कम लागत में ऊर्जा मिल जाती है। लेकिन इस ऊर्जा का उपयोग वर्तमान में बहुत महत्वपूर्ण कार्यों में किया जाता है। इस कारण इसका संरक्षण करना अधिक आवश्यक है।[1]
पर्यावरणीय प्रभाव[संपादित करें]
निजी वाहनों और अन्य यातायात के साधन में इसी ईंधन का उपयोग किया जाता है। लेकिन यह एक सीमित मात्रा में ही पृथ्वी में उपस्थित है। साथ ही इसके उपयोग से वायु प्रदूषण के साथ ही पृथ्वी का तापमान भी बढ्ने लगता है। इस कारण कई स्थानों के बर्फ पिघलते हैं, जिससे पर्यावरण का संतुलन बिगड़ जाता है और कुछ स्थानों पर अधिक बारिश होती है और कुछ स्थानों पर सूखे की स्थिति बन जाती है।
सन्दर्भ[संपादित करें]
- ↑ //web.archive.org/web/20071113215013///www.gr8dubai.com/oil2.htm