स्टोरी हाइलाइट्स
- उत्तर प्रदेश के भदोही जिले की घटना
- पंजों के निशान खोज रही वन विभाग की टीम
भदोही जिले में परिवार के साथ सो रहे चार वर्षीय बच्चे को एक जानवर ने शिकार बना लिया. बच्चे के शव का आधा हिस्सा खेत में मिला है. मामले की सूचना के बाद वन विभाग की टीम जानवर के पैरों के निशान खोज रही है. वहीं पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया है.
जिले के ऊंज थाना क्षेत्र के पूरे मटुका गांव की वनवासी बस्ती में 4 साल का बच्चा अपने परिजन के साथ सो रहा था. शनिवार सुबह बिस्तर पर बच्चा जब नहीं दिखा तो परिजन खोजने लगे. इसी बीच बच्चे का शव घर के पास खेत में मिलने की जानकारी हुई. लोग मौके पर पहुंचे तो देखा कि बच्चे के शव का आधा हिस्सा गायब था. सिर्फ सीने से सिर तक का हिस्सा ही खेत में पड़ा था. शव को देखकर परिजन में कोहराम मच गया.
बच्चे के पिता हरिलाल का कहना है कि जहां शव था, वहां किसी जानवर के पंजों के निशान थे, जिसे देखकर लगता है कि बच्चे को कोई जानवर उठा ले गया था. वहीं मौके पर पहुंची वन विभाग की टीम जानवर के पैरों के निशान के बारे में जानकारी जुटाने में लगी है. पड़ोसी मुनीम ने कहा कि एक सप्ताह पहले किसी जानवर ने उनके कुत्ते पर हमला किया था. इसके बाद अब यह घटना घट गई. जानवर ने बच्चे का पूरा शरीर खा लिया. खेत में जानवर के पंजे के निशान थे.
सम्बंधित ख़बरें
जिला वन अधिकारी नीरज आर्या ने कहा कि मटका गांव में एक जानवर ने एक बच्चे काे मार दिया है, इसकी हम जांच कर रहे हैं. उसका पग मार्क खोजा जा रहा है कि कौन सा जानवर है. पोस्टमार्टम के लिए बॉडी गई है. जैसे ही रिपोर्ट आएगी तो कंफर्म होगा कि जानवर ने हमला किया है या किसी और कारणों से उसकी मृत्यु हुई है.
रिपोर्टः महेश जायसवाल
वो जानवर जो कभी नहीं मरता
- बीबीसी अर्थ
- बीबीसी हिंदी के लिए
18 दिसंबर 2018
इमेज स्रोत, Cheng/Getty
अमरता की खोज में हमने सब कुछ देखा. मौत को मात देने की कोशिश में इंसान ने धर्म, ग्रह, क्रायोजेनिक्स और जवान कर देने वाले मिथकीय फव्वारे (सेंट आगस्टिन, फ्लोरिडा) को भी देखा-परखा.
जब हम आकाश की छानबीन कर रहे थे, विज्ञान की किताबों के पन्ने पलट रहे थे और धरती के सभी कोनों की खाक छान रहे थे, तब कौन जानता था कि अमरता का रहस्य समुद्र के अंदर तैर रहा था- जेलीफिश के रूप में.
जब हम जेलीफिश के बारे में सोचते हैं, तब हममें से ज्यादातर लोग अपने दिमाग में इसके जीवन के दूसरे चरण "मेडूसा स्टेज" की छवि बनाते हैं.
जीवन के इस चरण में जेलीफिश अपने पुछल्ले टेंटिकल्स के साथ बहने वाले अपारदर्शी गुब्बारे की तरह होते हैं.
जेलीफिश में नर और मादा दोनों होते हैं. उनमें शुक्राणु और अंडाणु भी होते हैं, लेकिन उनके बच्चे दूसरे जीवों की तरह पैदा नहीं होते.
वे अपना जीवन लार्वा के रूप में शुरू करते हैं. लार्वा छोटे सिगार की तरह होते हैं जो पानी में बहते रहते हैं और चिपकने के लिए किसी चट्टान या किसी आसान चीज की तलाश करते हैं.
इमेज स्रोत, Cultura RF/Alexander Semenov/Getty
एक बार जब वे अपने लिए सुदृढ़ जगह ढूंढ़ लेते हैं तब उसके लार्वा पॉलिप में बदल जाते हैं. ये पॉलिप अपना क्लोन खुद बनाते हैं और लगातार बनाते रहते हैं. इस तरह पॉलिप की कॉलोनियां बन जाती हैं.
पॉलिप की एक कॉलोनी कुछ ही दिनों में पूरे के पूरे बोट डॉक को ढंक सकती है. कुछ खास तरह के पॉलिप बड़ी झाड़ियों का रूप ले लेते हैं.
अगर हालात अनुकूल हों तो ये पॉलिप विशाल संख्या में खिल जाते हैं, ठीक उसी तरह जैसे बगीचे में फूल खिले हों.
खिलने पर पॉलिप के अंदर से छोटी जेलीफिश कली की तरह बाहर आ जाती है.
जेलीफिश के जीवन की शुरुआत भले ही असाधारण न हो, लेकिन इनकी मृत्यु के समय चीजें बेहद रोमांचक हो जाती हैं.
- यह भी पढ़ें | दुनिया के सबसे जीवट जीव
इमेज स्रोत, Wildestanimal/Getty
मौत जो कभी आती नहीं
मेडूसा अमर जेलीफिश टुरीटोप्सिस डोहर्नी (turritopsis dohrnii) जब मर जाती है तब उसका शरीर समुद्र की तलहटी में चला जाता है और धीरे-धीरे सड़ने लगता है.
आश्चर्यजनक रूप से इसकी कोशिकाएं फिर से इकट्ठा होती हैं. वे मेडूसा नहीं बनातीं, बल्कि पॉलिप बनाती हैं. इस पॉलिप से नई जेलीफिश निकलती है.
इस तरह मेडूसा जेलीफिश पिछले जीवन को छोड़कर नये सिरे से दोबारा जीवन शुरू करती है.
मौत को मात देने की यह कहानी विज्ञान गल्प जैसी है. यह उस मिथकीय फीनिक्स पक्षी की कहानी जैसी है जिसके बारे में कहा जाता है कि वह अपनी राख से ज़िंदा हो जाती है.
तस्मानिया की जेलीफिश रिसर्चर और मरीन स्टिंगर एडवाइजरी सर्विस की डायरेक्टर डॉक्टर लिसा-एन्न गेर्श्विन कहती हैं, "यह हम सबके दिमाग को उड़ा देने वाली खोज है. यह हमारे समय की सबसे अद्भुत खोजों में से एक है."
- यह भी पढ़ें | शेर न तो राजा हैं, न वो जंगल में रहते हैं
एफ. स्कॉट फिट्जगेराल्ड ने 96 साल पहले बेंजामिन बटन की कहानी लिखी थी, जिस पर बाद में फिल्म भी बनी. उस कहानी में बेंजामिन बटन बूढ़े से जवान होता है.
गेर्श्विन कहती हैं, "जेलीफिश की कहानी बेंजामिन बटन से थोड़ी अलग है. बेंजामिन बटन एक ही रहता है. लेकिन जेलीफिश की कहानी ऐसी है मानो बूढ़े बेंजामिन बटन की एक उंगली कट जाए और वह उंगली एक जवान बेंजामिन बटन में तब्दील हो जाए."
अपनी लाश से दोबारा ज़िंदा होने वाले जीवों में मेडूसा अमर जेलीफिश (टुरीटोप्सिस डोहर्नी) अकेली नहीं है.
2011 में चीन की शियामेन यूनिवर्सिटी में मरीन बायलॉजी के छात्र जिनरू ही ने मून जेलीफिश (ऑरेलिया ऑरिटा, aurelia aurita) को एक टैंक में रखा.
जब वह मून जेलीफिश मर गई तो उस छात्र ने उसके मृत शरीर को दूसरे टैंक में रख दिया और उसकी निगरानी करता रहा.
तीन महीने बाद उसने देखा कि मून जेलीफिश के मृत शरीर के ऊपर एक छोटा पॉलिप बाहर आ रहा था.
मृत शरीर से दोबारा जन्म लेने की यह प्रक्रिया अब तक जेलीफिश की 5 प्रजातियों में देखी जा चुकी है.
टुरीटोप्सिस डोहर्नी हाइड्रोजोआ वर्ग के जीव हैं, जबकि मून जेलीफिश स्काइफोजोआ वर्ग के हैं. इन दोनों में उतना ही अंतर है, जितना अंतर स्तनधारियों और उभयचरों (एंफिबिया, जैसे- मेढ़क) में होता है.
सवाल है कि अनंत जीवन से जेलीफिश का क्या फ़ायदा है? वह ऐसा क्यों करती है?
- यह भी पढ़ें | वो शख़्स जिसकी ज़िंदगी मधुमक्खियों ने बचाई
मरते हैं जीने के लिए
जेलीफिश उम्र बढ़ जाने से या किसी बीमारी के कारण कमजोर हो जाती है या कोई ख़तरा महसूस करती है तो वह अपने अस्तित्व को बचाने के लिए इस अविश्वसनीय तरीके का सहारा लेती है और दोबारा जन्म लेती है.
एक बार जब यह प्रक्रिया शुरू होती है तो जेलीफिश की घंटी (पैराशूट की छतरी जैसा हिस्सा) और इसके टेंटिकल्स गलने लगते हैं.
यह फिर से पॉलिप में बदल जाती है. पॉलिप किसी सतह के साथ चिपक जाते हैं और फिर से एक जेलीफिश के रूप में बढ़ने लगते हैं.
इस प्रक्रिया में जेलीफिश के साथ वास्तव में जो होता है, उसका एक हिस्सा "सेलुलर ट्रांसडिफरेंसिएशन" कहलाता है.
- यह भी पढ़ें | अपने आंगन की गौरैया की ये बातें आप नहीं जानते
नये शरीर की कोशिकाएं पहले से अलग होती हैं और वे नये शारीरिक संरचना का निर्माण करती हैं. जेलीफिश यह प्रक्रिया बार-बार दुहरा सकती है.
डॉक्टर गेर्श्विन का कहना है कि वह जेलीफिश की अमरता और इंसान की अमरता की खोज के बीच फिलहाल कोई संबंध नहीं देखतीं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि भविष्य में इस तरह के जेनेटिक स्प्लिसिंग (genetic splicing) संभव नहीं हो सकते.
कौन जानता है? कुछ जेली जीन्स हों और हम सब 'डॉक्टर हू' (विज्ञान गल्प पर आधारित टीवी सीरियल का हीरो) की तरह हो जाएं और जब हम मरने के करीब हों तो खुद का पुनर्जन्म कर लें.