कन्नड़ भाषा में पत्र क्या कहते है? - kannad bhaasha mein patr kya kahate hai?

पत्र को खत, कागद, उत्ताम, जादू, लेख, कडिद, पाती, चिट्टी इत्यादि कहा जाता है। इन शब्दों से संबंधित भाषाओं के नाम बताइए।

पत्र को खत उर्दू भाषा में, कागद कन्नड़ में, उत्तरम, जाबू और लेख तेलगू में और तमिल में कडिद कहा जाता है।

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रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की कविता ‘भगवान के डाकिए’ आपकी पाठ्यपुस्तक में है। उसके आधार पर पक्षी और बादल को डाकिए की भाँति मानकर अपनी कल्पना से लेख लिखिए।

‘डाकिया’ ऐसा व्यक्ति है जो लोगों के लिए अपने झोले में पत्र लाता है। हर मनुष्य इसे देखकर अपने पत्र की चाह करने लगता है। इसे किसी बात की कोई चिंता नहीं होती कि पत्र के अंदर क्या संदेश है? इसे पढ़कर कोई खुश होगा या दुखी। वह तो पेशे के अनुरूप कर्तव्यबद्ध होता है। पत्रों को उनके पते तक पहुँचाना ही उसका काम है। यदि हम प्राकृतिक साधनों को देखें तो पाते हैं कि वे भी किसी डाकिए से कम नहीं। ईश्वर के ऐसे संदेश जो केवल हम महसूस करते हैं, इनके द्वारा दिए जाते हैं। पक्षी जो स्वछंद उड़ते हैं उनके लिए देशों की सीमा-रेखाओं का कोई बंधन नहीं होता। वे फूलों की सुगंध को अपने पंखों द्वारा एक देश से दूसरे देश में पहुँचा देते हैं। बादल एक देश में बनते हैं और दूसरे देश में बरसते हैं। इसके क्या मायने हैं? यदि इस पर विचार करें तो पाएँगे कि ये इस बात का संदेश देते हैं कि लोगों को विश्व बंधुत्व की भावना से प्रेरित होना चाहिए सभी को मिलजुलकर आपसी सहयोग से रहना चाहिए।

इसके अतिरिक्त प्रकृति के जिस भी साधन को देखें तो वह संदेश देता ही दिखाई देगा। जैसे-किसी कवि ने सच ही कहा है कि-

फूलों से नित हँसना सीखो
भौरों से नित गाना।
तरु की झुकी डालियों से
सीखो नित शीश झुकाना।
वर्षा की बूँदों से सीखो
सबको गले लगाना।
सीख हवा के झोंकों से
लो, कोमल भाव जगाना।

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पत्र जैसा संतोष फोन या एसएमएस का संदेश क्यों नहीं दे सकता?

पत्र जैसा संतोष फोन या एस.एम.एस. का संदेश नहीं दे सकता, क्योंकि पत्रों का अस्तित्व स्थाई होता है; उनमें मानवीय प्रेम व लगाव का समावेश रहता है। पत्रों को हम सहेज भी सकते हैं लेकिन फोन पर की गई बात अस्थाई होती है। एस.एम.एस से संदेश सीमित शब्दों में भेजे जाते हैं। पत्र भावना प्रधान हैं व शिक्षाप्रद होते हैं। अमिट यादें उनके साथ जुड़ी होती हैं। पत्रों को एकत्रित करके पुस्तक का रूप भी दिया जा सकता है जबकि फोन या एस.एम.एस. मैं ऐसा नहीं होता। संदेश भेजने का सस्ता साधन भी पत्र ही हैं।

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केवल पड़ने के लिए दी गई रामदरश मिश्र की कविता ‘चिट्ठियाँ’ काे ध्यानपूर्वक पढ़िए और विचार कीजिए कि क्या यह कविता केवल लेटर बॉक्स में पड़ी निर्धारित पते पर जाने के लिए तैयार चिट्ठियों के बारे में है? या रेल के डिब्बे में बैठी सवारी भी उन्हीं चिट्ठियों की तरह हैं जिनके पास उनके गंतव्य तक का टिकट है। पत्र के पते की तरह और क्या विद्यालय भी एक लेटर बॉक्स की भाँति नहीं है जहाँ से उत्तीर्ण होकर विद्यार्थी अनेक क्षेत्रों में चले जाते हैं? अपनी कल्पना को पंख लगाइए और मुक्त मन से इस विषय में विचार-विमर्श कीजिए।

‘रामदरश मिश्र जी’ ने अपनी कविता ‘चिट्ठियाँ’ में यह बताना चाहा है कि लेटरबॉक्स में अनेक चिट्ठियाँ होती हैं कोई दुख की कोई सुख की लेकिन सभी अपने-अपने लिफाफों में बंद होती हैं। कोई अपना सुख-दुख दूसरे को नहीं कहती। सभी अपनी मंजिल पाना चाहती हैं अर्थात् अपने पते पर जाना चाहती हैं। यह एक-दूसरे का साथ भी क्या है कि जब हम एक-दूसरे से हँस-रो नहीं सकते। अंत में कवि ने अपने मुख्य विचार को दर्शाना चाहा है कि क्या हम भी इन चिट्ठियों की भाँति नहीं हो गए ऐसा कवि का कहना इसलिए है क्योंकि आज समाज में एक साथ रहते हुए भी हम एक-दूसरे से किसी प्रकार का कोई संबंध नहीं रखते, सभी आत्मकेंद्रित हो गए हैं। कवि का यह कहना कि रेल कं डिब्बे में बैठी सवारियाँ भी उन्हीं चिट्ठियों की तरह भी बिल्कुल सही हैं, क्योंकि वहाँ भी सभी लोग मिलकर बैठते तो हैं लेकिन मन में चाह कंवल मंजिल पाने की होती है। किसी से किसी का कोई संबंध नहीं होता। यदि संपर्क होता भी है तो वह स्थाई नहीं होता।

विद्यालय को पूरी तरह से लेटरबॉक्स की चिट्ठियों की भाँति नहीं कहा जा सकता क्योंकि विद्यालय में पढ़कर भले ही विद्यार्थी अपनी मंजिल की ओर बढ़ते हैं लेकिन विद्यालय में वे मेल-जोल, आपसी प्रेम, एक-दूसरे के प्रति समर्पण आदि की भावनाएँ सीखते हैं। वहाँ शिक्षक सदा उनकी निगरानी करता है, काफी हद तक उन्हें आत्मकेंद्रित नहीं होने देता। विद्यालय में नैतिक शिक्षा के द्वारा भी विद्यार्थी सामाजिक भावनाओं को समझता है लेकिन जब विद्यार्थी स्कूली जीवन के पश्चात् जीवन का बोझ अपने कंधों पर लादता है तो उसमें स्वार्थ की भावना अधिक जन्म लेने लगती है। आर्थिक परेशानियों से जूझते हुए वह आत्मकेंद्रित होता चला जाता है और चिट्ठियों की भाँति केवल अपने बारे में ही सोचने लगता है।

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पत्र लेखन की कला के विकास के लिए क्या-क्या प्रयास हए? लिखिए।

पत्र-लेखन के विकास हेतु स्कूली पाठ्यक्रम में पत्र लेखन विषय के रूप में शामिल किया गया है। विश्व डाक संघ ने 16 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए पत्र लेखन प्रतियोगिताओं का भी आयोजन किया है ताकि बच्चों की रुचि पत्र-व्यवहार में बनी रहे।

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कन्नड ಕನ್ನಡकन्नड एवं अंग्रेजी में एक द्विभाषी संकेतपट्ट बोली जाती है क्षेत्र कुल बोलने वाले भाषा परिवारआधिकारिक स्तर आधिकारिक भाषा घोषित नियामकभाषा कूट ISO 639-1ISO 639-2ISO 639-3

कर्नाटक, भारत, संयुक्त राज्य, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर, यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त अरब अमीरात के समुदाय
कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश, गोआ, तमिल नाडु
६ करोड़ निवासी (२००१, मात्र भारत में), ९० लाख की द्वितीय भाषा
द्रविड़
  • द्रविड़ भाषाएँ
    • प्रोटो-कन्नड
      • कन्नड
 
भारत (कर्नाटक)
कर्नाटक सरकार की विभिन्न संस्थाएँ
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भारत के कन्नड भाषी

इस पन्ने में हिन्दी के अलावा अन्य भारतीय लिपियां भी है। पर्याप्त सॉफ्टवेयर समर्थन के अभाव में आपको अनियमित स्थिति में स्वर व मात्राएं तथा संयोजक दिख सकते हैं। अधिक...

कन्नड या कन्नडा (ಕನ್ನಡ) भारत के कर्नाटक राज्य में बोली जानेवाली भाषा तथा कर्नाटका की राजभाषा है। यह भारत की उन २२ भाषाओं में से एक है जो भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में साम्मिलित हैं। यह भारत की सबसे अधिक प्रयोग की जाने वाली भाषाओं में से एक है। ४.५० करोड़ लोग कन्नड भाषा प्रयोग करते हैं। एन्कार्टा के अनुसार, विश्व की सर्वाधिक बोली जाने वाली ३० भाषाओं की सूची में कन्नड २७वें स्थान पर आती है। यह द्रविड़ भाषा-परिवार में आती है पर इसमें संस्कृत के भी बहुत से शब्द हैं। कन्नडा भाषी लोग इसको 'सिरिगन्नड' कहते हैं। कन्नडा भाषा का अस्तित्व कोई 2500 वर्ष पूर्व से है तथा कन्नडा लिपि का प्रयोग कोई 1900 वर्ष से हो रहा है। कन्नड अन्य द्रविड़ भाषाओं की तरह है और तेलुगु, तमिल और मलयालम इस भाषा से मिलली-जुलती हैं। कन्नडा संस्कृत भाषा से बहुत प्रभावित है और संस्कृत के बहुत सारे शब्द कन्नड में भी उसी अर्थ में प्रयुक्त होते हैं। भारत सरकार ने कन्नड को भी भारत की एक शास्त्रीय भाषा (क्लासीकल लैंगवेज) घोषित किया है।

'कन्नड' तथा 'कर्नाटक' शब्दों की व्युत्पत्ति[संपादित करें]

कन्नड तथा कर्नाटक शब्दों की व्युत्पत्ति के सम्बन्ध में भिन्न-भिन्न मत हैं। यदि किसी विद्वान का यह मत है कि "कंरिदुअनाडु" अर्थात् "काली मिट्टी का देश" से कन्नड शब्द बना है तो दूसरे विद्वान के अनुसार "कपितु नाडु" अर्थात् "सुगन्धित देश" से "कन्नाडु" और "कन्नाडु" से "कन्नड" की व्युत्पत्ति हुई है। कन्नडा साहित्य के इतिहासकार आर॰ नरसिंहाचार ने इस मत को स्वीकार किया है। कुछ वैयाकरणों का कथन है कि कन्नडा संस्कृत शब्द "कर्नाट" का तद्भव रूप है। यह भी कहा जाता है कि "कर्णयो अटति इति कर्नाटका" अर्थात जो कानों में गूँजता है वह कर्नाटका है।

प्राचीन ग्रन्थों में कन्नडा, कर्नाट, कर्नाटका शब्द समानार्थ में प्रयुक्त हुए हैं। महाभारत में कर्नाट शब्द का प्रयोग अनेक बार हुआ है (कर्नाटकाश्च कुटाश्च पद्मजाला: सतीनरा:, सभापर्व, 78, 94; कर्नाटका महिषिका विकल्पा मूषकास्तथा, भीष्मपर्व 58-59)। दूसरी शताब्दी में लिखे हुए तमिल "शिलप्पदिकारम्" नामक काव्य में कन्नडा भाषा बोलनेवालों का नाम "करुनाडर" बताया गया है। वराहमिहिर के बृहत्संहिता, सोमदेव के कथासरित्सागर, गुणाढ्य की पैशाची "बृहत्कथा" आदि ग्रंथों में भी कर्नाट शब्द का बराबर उल्लेख मिलता है।

'कर्नाटका' शब्द अंग्रेजी में विकृत होकर कर्नाटिक (Karnatic) अथवा केनरा (Canara), फिर केनरा से केनारीज़ (Canarese) बन गया है। उत्तरी भारत की हिंदी तथा अन्य भाषाओं में कन्नडा शब्द के लिए कनाडी, कन्नडाी, केनारा, कनारी का प्रयोग मिलता है।

आजकल कर्नाटका तथा कन्नडा शब्दों का निश्चित अर्थ में प्रयोग होता है – कर्नाटका प्रदेश का नाम है और "कन्नड" भाषा का।

कन्नड भाषा तथा लिपि[संपादित करें]

द्रविड़ भाषा परिवार की भाषाएँ पंचद्राविड़ भाषाएँ कहलाती हैं। किसी समय इन पंचद्राविड भाषाओं में कन्नड, तमिल, तेलुगु, गुजराती तथा मराठी भाषाएँ सम्मिलित थीं। किन्तु आजकल पंचद्राविड़ भाषाओं के अन्तर्गत कन्नड, तमिल, तेलुगु, मलयालम तथा तुलु मानी जाती हैं। वस्तुत: तुलु कन्नड की ही एक पुष्ट बोली है जो दक्षिण कन्नड जिले में बोली जाती है। तुलु के अतिरिक्त कन्नड की अन्य बोलियाँ हैं–कोडगु, तोड, कोट तथा बडग। कोडगु कुर्ग में बोली जाती है और बाकी तीनों का नीलगिरि जिले में प्रचलन है। नीलगिरि जिला तमिलनाडु राज्य के अन्तर्गत है।

रामायण-महाभारत-काल में भी कन्नड बोली जाती थी, तो भी ईसा के पूर्व कन्नड का कोई लिखित रूप नहीं मिलता। प्रारम्भिक कन्नड का लिखित रूप शिलालेखों में मिलता है। इन शिलालेखों में हल्मिडि नामक स्थान से प्राप्त शिलालेख सबसे प्राचीन है, जिसका रचनाकाल 450 ई. है। सातवीं शताब्दी में लिखे गये शिलालेखों में बादामि और श्रवण बेलगोल के शिलालेख महत्वपूर्ण हैं। प्राय: आठवीं शताब्दी के पूर्व के शिलालेखों में गद्य का ही प्रयोग हुआ है और उसके बाद के शिलालेखों में काव्यलक्षणों से युक्त पद्य के उत्तम नमूने प्राप्त होते हैं। इन शिलालेखों की भाषा जहाँ सुगठित तथा प्रौढ़ है वहाँ उसपर संस्कृत का गहरा प्रभाव दिखाई देता है। इस प्रकार यद्यपि आठवी शताब्दी तक के शिलालेखों के आधार पर कन्नड में गद्य-पद्य-रचना का प्रमाण मिलता है तो भी कन्नड के उपलब्ध सर्वप्रथम ग्रन्थ का नाम "कविराजमार्ग" के उपरान्त कन्नड में ग्रन्थनिर्माण का कार्य उत्तरोत्तर बढ़ा और भाषा निरन्तर विकसित होती गई। कन्नडा भाषा के विकासक्रम की चार अवस्थाएँ मानी गयी हैं। जो इस प्रकार है :

  1. अतिप्राचीन कन्नड (आठवीं शताब्दी के अन्त तक की अवस्था),
  2. हळ कन्नड (प्राचीन कन्नड) (९वीं शताब्दी के आरम्भ से 12वीं शताब्दी के मध्य-काल तक की अवस्था),
  3. नडु गन्नड (मध्ययुगीन कन्नडा) (१२वीं शताब्दी के उत्तरार्ध से 19वीं शताब्दी के पूर्वार्ध तक की अवस्था) और
  4. होस गन्नड (आधुनिक कन्नडा) (१९वीं शताब्दी के उत्तरार्ध से अब तक की अवस्था)।

चारों द्राविड भाषाओं की अपनी पृथक-पृथक लिपियाँ हैं। डॉ॰ एम॰एच॰ कृष्ण के अनुसार इन चारों लिपियों का विकास प्राचीन अंशकालीन ब्राह्मी लिपि की दक्षिणी शाखा से हुआ है। बनावट की दृष्टि से कन्नड और तेलुगु में तथा तमिल और मलयालम में साम्य है। 13वीं शताब्दी के पूर्व लिखे गये तेलुगु शिलालेखों के आधार पर यह बताया जाता है कि प्राचीन काल में तेलुगु और कन्नड की लिपियाँ एक ही थी। वर्तमान कन्नड की लिपि बनावट की दृष्टि से देवनागरी लिपि से भिन्न दिखायी देती हैं, किन्तु दोनों के ध्वनिसमूह में अधिक अन्तर नहीं है। अन्तर इतना ही है कि कन्नड में स्वरों के अन्तर्गत "ए" और "ओ" के ह्रस्व रूप तथा व्यंजनों के अन्तर्गत वत्स्य "ल" के साथ-साथ मूर्धन्य "ल" वर्ण भी पाये जाते हैं। प्राचीन कन्नड में "र" और "ळ" प्रत्येक के एक-एक मूर्धन्य रूप का प्रचलन था, किन्तु आधुनिक कन्नड में इन दोनों वर्णो का प्रयोग लुप्त हो गया है। बाकी ध्वनिसमूह संस्कृत के समान है। कन्नड की वर्णमाला में कुल 47 वर्ण हैं। आजकल इनकी संख्या बावन तक बढ़ा दी गयी है।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • कन्नडा़ लिपि
  • कन्नडा साहित्य

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • कन्नडा-हिन्दी शब्दकोश (हिन्दी विक्षनरी)

सन्दर्भ[संपादित करें]

कन्नड़ भाषा में पत्र को क्या कहते हैं?

पत्र को खत उर्दू भाषा में, कागद कन्नड़ में, उत्तरम, जाबू और लेख तेलगू में और तमिल में कडिद कहा जाता है।

कन्नड़ भाषा में पत्र को क्या कहते हैं immersive Reader 1 Point?

(d) रामदरश मिश्र।

कन्नड़ में पत्र को क्या कहते हैं 2 points?

पत्र को कन्नड़ भाषा में 'कागद' कहते हैं

पत्र को उर्दू भाषा में क्या कहा जाता है?

उर्दू में पत्र को 'खत' कहते है।

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