किशोरी देवी कौन से आंदोलन से संबंधित है? - kishoree devee kaun se aandolan se sambandhit hai?

श्रीमती किशोरी देवी किस किसान आन्दोलन से सम्बद्ध रही ?

This question was previously asked in

REET 2021 Level 2 (Social Studies) (Hindi/English/Sanskrit) Official Paper

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  1. बरड़
  2. सीकर
  3. विजौलिया
  4. बीकानेर

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : सीकर

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CT 1: Growth and Development - 1

10 Questions 10 Marks 10 Mins

सीकर किसान आंदोलन तब शुरू हुआ जब सीकर एस्टेट के नए राव राजा कल्याण सिंह ने भू-राजस्व में 25 से 50 प्रतिशत की वृद्धि की।

Important Points  सीकर किसान आंदोलन में महिलाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

  • सीहोत के ठाकुर नाम सिंह ने 25 अप्रैल 1934 ई. को कटराथल में श्रीमती किशोरी देवी की अध्यक्षता में सोशन-का-बस नामक गांव में किसान महिलाओं पर हुए अत्याचारों के विरोध में एक विशाल महिला सभा का आयोजन किया।
  • इस बैठक को रोकने के लिए सीकर एस्टेट ने धारा 144 लागू कर दी।
  • इसके बाद भी सभी नियम तोड़कर महिलाओं की बैठक हुई। इस सभा में बड़ी संख्या में महिलाओं ने भाग लिया।
  • श्रीमती दुर्गादेवी शर्मा, श्रीमती फूलनदेवी, श्रीमती रमादेवी जोशी, श्रीमती उत्तमादेवी, और कई अन्य इस बैठक में प्रमुख प्रतिभागियों में शामिल थीं।

इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि श्रीमती किशोरी देवी सीकर किसान आंदोलन से जुड़ी थीं।

Additional Information 

  • बिजोलिया किसान आंदोलन या बिजोलिया किसान सत्याग्रह का नेतृत्व विजय सिंह पथिक, माणक्य लाल वर्मा और साधु सीताराम दास जैसी प्रतिष्ठित हस्तियों ने किया था।
  • बरार किसान आंदोलन अप्रैल 1922 में न्युनराम शर्मा के नेतृत्व में बूंदी प्रशासन के विरोध में शुरू हुआ। इस तरह के विरोध का कारण किसानों द्वारा भू-राजस्व के भुगतान में वृद्धि थी।
  • बीकानेर किसान आंदोलन 1946 में कुंभराम आर्य द्वारा शुरू किया गया था।

Last updated on Sep 29, 2022

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Kishori Devi was a freedom fighter and social worker from Dularon Ka Bas, Jhunjhunu, Rajasthan. She was wife of Har Lal Singh. She was born in the village Sanwlod, Buhana, Jhunjhunu, Rajasthan

Contents

  • 1 A family committed for freedom
  • 2 पारिवारिक जीवन
  • 3 स्त्रियों पर हमला
  • 4 कटराथल स्त्रियों की कांफ्रेंस 25.4.1934
  • 5 किसान आन्दोलन का दमन
  • 6 1 मार्च 1939 को किसान दिवस का आयोजन
  • 7 पाठ्यपुस्तकों में स्थान
  • 8 Gallery
  • 9 References

A family committed for freedom

Jagirdars imprisoned Sardar Har Lal Singh in 1938 for one year in two cases against him. During this period his mother Foolan Devi and wife Kishori Devi took his place so that the movement is not adversely affected. They took a group of women in year 1939 and reached Jaipur for satyagrah. Both were arrested and put in Jail. Kishori Devi had his 6-month-old son with her who was also kept in Jail. His mother Foolan Devi was released from Jail only after when she was seriously ill. Seth Jamana Lal Bajaj and Hira Lal Shastri tried their best to take her to Jaipur for treatment but she refused to leave his village. His wife Kishori Devi was also active and took part in all the movements, rallies, gatherings etc for the freedom from 1930 - 1947. Her role in the awakening of women in Jhunjhunu district was unique.

पारिवारिक जीवन

हरलाल सिंह का विवाह अठारह वर्ष की उम्र में सांवलोद गाँव के निवासी चौधरी पेमा राम की पुत्री किशोरी देवी के साथ हुआ. उनकी माता राजां देवी ने नववधु का स्वागत किया. आगे होने वाले संघर्ष में उनकी पत्नी तथा माताजी से प्रेरणा और सहयोग मिला वह सर्वथा अकल्पनीय है. वे लम्बी अवधी तक फरार या भूमिगत रहे और जब घर लौटते तो उन्हें कोई शिकायत सुनने को नहीं मिलती. उनकी धर्म पत्नी किशोरी देवी ने संघर्ष में निरंतर उनका साथ दिया. उन्होंने अनेक यातनाएं सहीं, महिलाओं का नेतृत्व किया तथा कई बार जेल यात्रायें कीं. उनकी माताजी फूलां देवी हिम्मतवाली, अक्खड़ स्वभाव की स्पष्टवादी और निडर महिला थी. एक बार जब वे भूमिगत हो गए थे तो पुलिस इनके घर पर तलाशी के लिए आई. पुलिस अधिकारी ने हरलाल सिंह के बारे में पूछा. उनकी माता का जबाव था कि घर में नहीं हैं. पुलिस अधिकारी को विश्वास नहीं हुआ और वह झुक कर चारपाई के नीचे देखने लगा. जैसे ही वह नीचे झुका माताजी ने उसकी पीठ पर यह कहते हुए लात मारी कि क्या तेरा बाप खाट के नीचे छुपा है. [1]

स्त्रियों पर हमला

ठाकुर देशराज[2] ने लिखा है .... 12 अप्रैल 1934 को बोसाणा गांव के डाल सिंह, तेज सिंह, केसरी सिंह, बालू सिंह, जोधाराम, अर्जुन राम नामक जाट किसान खलिहान में काम कर रहे थे। अकस्मात 50 सवारों

[पृ.232]: ने जिनमें नायक बावरी सब लोग हथियारबंद थे, आकर इनको घेर लिया और इन को गिरफ्तार कर लिया। उसी समय इन जाट सरदारों की स्त्रियां उनके लिए भोजन लेकर पहुंची और जब वह भोजन देने लगी तो कर्मचारियों ने सिपाहियों को उन को बेंतों से मार कर भगा देने का हुक्म दिया। फिर क्या था शिकारी जानवरों की तरह सिपाही बेंते लेकर स्त्रियों पर टूट पड़े। इस मार पीट के परिणाम से एक बूढ़ी स्त्री जब बेहोश हो गई तो उसे उन्होंने चोटी पकड़कर घसीटते घसीटते दूर ले जा कर डाल दिया। गिरफ्तारसुधा किसानों ने जब इसका विरोध किया तो उनको भी पीटा गया और फिर उन्हें रस्सों से बांध कर उन्हें सिंगरावट तहसील ले जाया गया।

तहसील में ले जाकर उन किसानों के पैर काठ में फंसा उन्हें औंधे मूंह जमीन में डाल दिया गया। 6 घंटे के बाद वह काठ में से निकाले गए और फिर बिछी हुई खाटों के दोनों तरफ उनकी टांगें करके उन्हें खड़ा किया। फिर उनके सिर पर एक-2 भारी पत्थर रखा गया और उनकी बगलों में एक-एक ईंट रखी गई। रात को उनके खड़ी हथकड़ी लगाई गई और उनहें सोने नहीं दिया गया। जब उन्होंने खाने को मांगा तब कर्मचारियों ने कहा कि अभी तुम्हारे सिर की गर्मी नहीं उतरी है, जब उतरेगी तब रोटो मिलेगी। (अर्जुन अप्रैल 1934)

जांच करने से मालूम हुआ कि 18 अप्रैल 1934 तक उनके साथ वही बर्ताव होता रहा और उन्हें खाने को कुछ नहीं दिया गया। इतना ही नहीं जब उनमें से टट्टी पेशाब के लिए कोई जाना चाहता तो अकेले को न लेजाकर दो आदमियों के एक जोड़ी हथकड़ी लगाकर ले जाते हैं जिसे शर्म के मारे वैसे के वैसे ही लौट कर आ जाते हैं।

[पृ.233]: 18 अप्रैल 1934 के बाद उन लोगों को किसी से नहीं मिलने दिया। इसलिए पता नहीं उन की क्या हालत है। इस घटना की खबर से सारे किसानो में भयंकर उत्तेजना फ़ेल गई, इसलिए उन्होंने महाराजा साहब जयपुर, राजा साहब सीकर और रेजिडेंट जयपुर को तार दिए हैं।

क्या जयपुर राज्य के लिए यह वरताव शोभा की बात है? यदि नहीं तो क्या रियासत ऐसी बातों को रोकने के लिए तुरंत कार्रवाई करेगी?

ठिकाने की ओर से यह दमन-चक्र चल ही रहा था कि सीहोट के ठाकुर ने अपने चक गोलों में जाट स्त्रियों को बेहयाई के साथ बेइज्जत किया। फिर क्या था आग और भी भड़क उठी। सीहोट कांड की निंदा करने के लिए 25 अप्रैल 1934 को कटराथल में श्रीमती किशोरी देवी धर्म पत्नी सरदार हरलाल सिंह के सभापतित्व में एक बृहद स्त्री कॉन्फ्रेंस हुई जिसमें 10 हजार से ऊपर स्त्रियाँ इकट्ठी हुई। सीकर के अधिकारियों ने कॉन्फ्रेंस न होने देने के इरादे से इस गांव पर दफा-144 लगा दी थी किंतु उसकी कोई परवाह नहीं की गई। इस कांफ्रेंस के संयोजक का श्रेय स्वर्गीय श्रीमती उत्तमा देवी जी धर्मपत्नी ठाकुर देशराज जी को है। यहां पर जो प्रस्ताव पास हुए उनमें सीहोट के ठाकुर को दंड देने, किसानों की मांगे जल्द पूरी करने और जयपुर की देखरेख में बंदोबस्त चालू कराने की मांग की गई। उस समय उन जाट स्त्रियों के बयान भी लिए गए जिनको सीहोट के ठाकुर ने बेइज्जत कराया था।

कटराथल स्त्रियों की कांफ्रेंस 25.4.1934

ठाकुर देशराज[3] ने लिखा है .... सीकर की ठिकाना शाही सत्ता जब जाटों के आंदोलन से घबरा उठी तो उसने सभाओं पर दफा-144 लगा दी। उस समय कानून भंग करने का जाट नेताओं ने एक उपाय सोचा और वह यह है कि पुरुषों की सभाएं न करके स्त्रियों की सभाएं की जायें। लगभग 10000 स्त्रियों ने उस कांफ्रेंस में भाग लिया जिसकी सभापति श्रीमती उत्तमा देवी (स्वर्गीय पत्नी ठाकुर देशराज) और स्वागताध्यक्ष श्रीमती किशोरी देवी जी (धर्मपत्नी सरदार हरलाल) थी।

जहां के लोगों ने हिम्मत करके और पुलिस की मार खाकर भी इस कांफ्रेंस को सफल बनाया वह गांव कटराथल के नाम से मशहूर है। यहीं के चौधरी खुमानाराम के पुत्र चौधरी गोरु राम जी हैं।

किसान आन्दोलन का दमन

किसान आन्दोलन के दमन का सबसे भयंकर दृश्य शेखावाटी में था. जहाँ किसानों पर घोड़े दौडाए गए और जगह-जगह लाठी चार्ज हुआ. झुंझुनूं में 1 से 4 फ़रवरी 1939 तक एकदम अराजकता थी. पहली फ़रवरी को पंचायत के 6 जत्थे निकले, जिसमें तीस आदमी थे. इनको बुरी तरह पीटा गया. दो सौ करीब मीणे और करीब एक सौ पुलिस सिपाहियों ने जो कि देवी सिंह की कमांड में घूम रहे थे, लोगों को लाठियों और जूतों से बेरहमी से पीटा. जत्थे के नायक राम सिंह बडवासी व इन्द्राज को तो इतना पीटा कि वे लहूलुहान हो गए. रेख सिंह (सरदार हरलाल सिंह के भाई) को तो नंगा सर करके जूतों से इतना पीटा कि वह बेहोश हो गए. उनकी तो गर्दन ही तोड़ दी. चौधरी घासी राम, थाना राम भोजासर, ओंकार सिंह हनुमानपुरा, मास्टर लक्ष्मी चंद आर्य और गुमान सिंह मांडासी की निर्मम पिटाई की. इन दिनों जो भी किसान झुंझुनू आया उसको सिपाहियों ने पीटा. यहाँ तक कि घी, दूध बेचने आने वाले लोगों को भी पीटा गया. [4]

महिलाओं का जत्था - बाद में यह निर्णय हुआ की शेखावाटी के आन्दोलनकारी जत्थे बनाकर जयपुर जायेंगे और वहां धरना देंगे. पंडित तदाकेशावर शर्मा की योजना थी की पहले महिलाओं का जत्था झुंझुनू से जयपुर भेजा जाय. 18 मार्च की तिथि तय की गयी. अब जत्थे निरंतर जयपुर भेजे जाने लगे. श्रीमती दुर्गादेवी (पंडित ताड़केश्वर शर्मा की पत्नी) पचेरी के नेतृत्व में महिलाओं ने जयपुर के जौहरी बाजार में गिरफ़्तारी दी. इन महिलाओं में ऐसी भी शामिल थीं जिनकी गोद में अति अल्पायु के शिशु थे. सब पर सत्याग्रह का जूनून चढ़ा था, अतः व्यक्तिगत सुख-स्वार्थ की बात पीछे छूट गयी थी. इस जत्थे में किशोरी देवी पत्नी ख्याली राम भामरवासी , फूलां देवी माता हरलाल सिंह मांडासी , रामकुमारी पत्नी हरलाल सिंह मांडासी, गोरा पत्नी गंगासिंह हनुमानपुरा, मोहरी देवी पत्नी सुखदेव पातुसरी आदि प्रमुख रूप से सम्मिलित हुई. (राजेन्द्र कसवा, p. 172)

19 मार्च 1939 को एक जत्था, जिसमें करीब 50 महिलाएं थीं, किशोरी देवी (धर्म पत्नी सरदार हरलाल सिंह) के नेतृत्व में गिरफ़्तारी देने जयपुर गया परन्तु उनके पहुँचने से पहले ही सत्याग्रह समाप्त हो गया अतः वे जयपुर से लौट आईं. आगे चलकर समझौता होने पर सभी गिरफ्तार लोगों को जेल से रिहा कर दिया. (डॉ. ज्ञानप्रकाश पिलानिया: पृ. 40)

1 मार्च 1939 को किसान दिवस का आयोजन

जयपुर राज्य की किसान विरोधी नीति के कारण पूरे राज्य में 1 मार्च 1939 को किसान दिवस मानाने का निर्णय प्रजामंडल ने लिया. झुंझुनू में भी किसान दिवस मनाने की जोरों से तैयारी होने लगी. इसी समय प्रजामंडल के आगरा कार्यालय ने घोषणा की कि सरदार हरलाल सिंह 15 मार्च 1939 को झुंझुनू में गिरफ़्तारी देंगे. इससे लोगों में जोश की लहर फ़ैल गयी. किसानों ने 15 मार्च के लिए सत्याग्रहियों के जत्थे तैयार करने शुरू कर दिए. हर गाँव में लोग सत्याग्रही बनाने को तैयार थे. 15 मार्च के दिन नगर के चारों और घोड़ों पर चढ़े पुलिस स्वर चक्कर लगा रहे थे. सर्वत्र पुलिस फैली हुई थी. शहर का कोई आदमी नजर नहीं आ रहा था. पूरे शहर में धरा 144 लगी हुई थी. सुबह दस बजे का समय था. अचानक शहर की सरहदों से 'इन्कलाब जिंदाबाद' के नारे सुनाई देने लगे. झुंझुनू शहर के हर कोने से सत्याग्रहियों के जत्थे प्रविष्ट होने लगे. पुलिस का लाठी चार्ज शुरू हो गया. लाठियों की बौछार के बीच ही सत्याग्रही आगे बढ़ते गए. लोग खून से लथपथ हो गए. इसी समय सारा पुलिस घेरा तोड़कर सरदार हरलाल सिंह वहां पहुँच गए और भाषण देना शुरू कर दिया. पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर सेन्ट्रल जेल भेज दिया. इस प्रकार जयपुर राज्य और ठिकानेदारों की समस्त चालों और दुरभि संधियों को नाकाम करते हुए सरदार हरलाल सिंह ने अपना लक्ष्य पूरा किया. उनकी गिरफ़्तारी से बड़ी उत्तेजना फ़ैल गयी. लोगों के जत्थे निरंतर आते रहे और गिरफ्तार होते रहे. जनता पर इस समय जो कहर ढाए वे वर्णनातीत हैं. सैंकड़ों लोग बेहोश होकर गलियों में गिर पड़े. अनेकों के सर से रक्त की धरा बह निकली, पर उन्होंने झंडे को झुकने नहीं दिया. विद्यार्थी भवन से छात्रों की एक टोली झंडा लेकर निकली जिसे बेरहमी से पीटा गया. [5]

सरदार हरलाल सिंह के झुंझुनू पहुँचने की कहानी बड़ी रोचक है. पुलिस ने कमर कसली थी कि 15 मार्च 1939 को हरलाल सिंह तो क्या. किसी भी किसान को झुंझुनू नहीं पहुँचने दिया जायेगा. सरदार हरलाल सिंह आगरा में थे. पुलिस की योजना थी कि उन्हें रास्ते में ही गिरफ्तार किया जाये. लेकिन सरदार निश्चित दिवस से दो दिन पूर्व ही आगरा से रवाना हो गए. वे नारनौल तक गाड़ी में गए. वहां भेष बदला और ऊँट पर स्वर होकर रात को गुमनाम रास्ते से झुंझुनू के लिए चल पड़े. काटली नदी के किनारे बसे गाँव भामरवासी में वे ख्याली राम के घर रुके. दूसरी रात्रि को वे छुपते-छुपाते, झुंझुनू से सटी नेत की ढाणी में पहुंचे. वहां से पैदल चलकर झुंझुनू के एक सेठ रंगलाल गाड़िया के घर छुप गए. पुलिस और घुड़सवार पैनी दृष्टि गडाए थे लेकिन लम्बे-चोडे डील-डौल वाले सरदार हरलाल सिंह ने उनको चकमा दे दिया. उनको आगरा से सुरक्षित झुंझुनू पहुँचाने में ख्याली राम भामरवासी का विशेष योगदान बताया जाता है. ख्याली राम के साथ दु:साहसी युवकों की टोली रहती थी जो जोखिम भरे कार्य करने में हमेशा आगे रहती थी. [6]

सत्याग्रही किसान गाँवों से टिड्डी दल की तरह उमड़ पड़े. तिरंगा झंडा लिए महात्मा गाँधी की जय, पंडित नेहरु की जय, ब्रिटिश हुकूमत का नाश हो, जागीरदारी प्रथा ख़त्म हो, सरदार हरलाल सिंह की जय के नारे लगाते हुए आगे बढ़ने लगे. रेलवे स्टेशन के पास हजारों आदमियों को पुलिस व घुड़सवारों ने घेर रखा था. उन पर भयंकर बल प्रयोग किया गया. चार वर्ग किमी में घोड़े दौडाए गए , लाठी चार्ज किया गया परन्तु सत्याग्रहियों का आना जारी रहा. पुरुष जत्थों के पीछे महिला जत्थों का आना प्रारंभ हुआ. पुलिस एक बरगी हैरान रह गयी और आखिर उन पर टूट पडी. वीर महिलाएं अपने साथ सैंकड़ों अन्य महिलाओं को लेकर पहुँचीं. उन्होंने तिरंगे के पास पुलिस को फटकने नहीं दिया और आगे बढती गईं. पुलिस ने इन पर भी अकथनीय अत्याचार किये. निहत्थी और सर्वथा अहिंसक भीड़ पर घोड़े दौड़कर जागीरदारों ने नृशंस अत्याचार की पराकाष्ठ कर दी थी. [7]

अब जत्थे निरंतर जयपुर भेजे जाने लगे. श्रीमती दुर्गादेवी (पंडित ताड़केश्वर शर्मा की पत्नी) पचेरी ने जयपुर के जौहरी बाजार में गिरफ़्तारी दी. इन महिलाओं में ऐसी भी शामिल थीं जिनकी गोद में अति अल्पायु के शिशु थे. सब पर सत्याग्रह का जूनून चढ़ा था, अतः व्यक्तिगत सुख-स्वार्थ की बात पीछे छूट गयी थी. एक जत्था, जिसमें करीब 50 महिलाएं थीं, किशोरी देवी (धर्म पत्नी सरदार हरलाल सिंह) के नेतृत्व में गिरफ़्तारी देने जयपुर गया परन्तु उनके पहुँचने से पहले ही सत्याग्रह समाप्त हो गया अतः वे जयपुर से लौट आईं. आगे चलकर समझौता होने पर सभी गिरफ्तार लोगों को जेल से रिहा कर दिया. [8]

पाठ्यपुस्तकों में स्थान

शेखावाटी किसान आंदोलन ने पाठ्यपुस्तकों में स्थान बनाया है। (भारत का इतिहास, कक्षा-12, रा.बोर्ड, 2017)। विवरण इस प्रकार है: .... सीकर किसान आंदोलन में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही। सीहोट के ठाकुर मानसिंह द्वारा सोतिया का बास नामक गांव में किसान महिलाओं के साथ किए गए दुर्व्यवहार के विरोध में 25 अप्रैल 1934 को कटराथल नामक स्थान पर श्रीमती किशोरी देवी की अध्यक्षता में एक विशाल महिला सम्मेलन का आयोजन किया गया। सीकर ठिकाने ने उक्त सम्मेलन को रोकने के लिए धारा-144 लगा दी। इसके बावजूद कानून तोड़कर महिलाओं का यह सम्मेलन हुआ। इस सम्मेलन में लगभग 10,000 महिलाओं ने भाग लिया। जिनमें श्रीमती दुर्गादेवी शर्मा, श्रीमती फूलांदेवी, श्रीमती रमा देवी जोशी, श्रीमती उत्तमादेवी आदि प्रमुख थी। 25 अप्रैल 1935 को राजस्व अधिकारियों का दल लगान वसूल करने के लिए कूदन गांव पहुंचा तो एक वृद्ध महिला धापी दादी द्वारा उत्साहित किए जाने पर किसानों ने संगठित होकर लगान देने से इनकार कर दिया। पुलिस द्वारा किसानों के विरोध का दमन करने के लिए गोलियां चलाई गई जिसमें 4 किसान चेतराम, टीकूराम, तुलसाराम तथा आसाराम शहीद हुए और 175 को गिरफ्तार किया गया। हत्याकांड के बाद सीकर किसान आंदोलन की गूंज ब्रिटिश संसद में भी सुनाई दी। जून 1935 में हाउस ऑफ कॉमंस में प्रश्न पूछा गया तो जयपुर के महाराजा पर मध्यस्थता के लिए दवा बढ़ा और जागीरदार को समझौते के लिए विवश होना पड़ा। 1935 ई के अंत तक किसानों के अधिकांश मांगें स्वीकार कर ली गई। आंदोलन नेत्रत्व करने वाले प्रमुख नेताओं में थे- सरदार हरलाल सिंह, नेतराम सिंह गौरीर, पृथ्वी सिंह गोठड़ा, पन्ने सिंह बाटड़ानाउ, हरु सिंह पलथाना, गौरू सिंह कटराथल, ईश्वर सिंह भैरूपुरा, लेख राम कसवाली आदि शामिल थे। [9]

Gallery

  • लगान के विरोध में अंग्रेज़ी हुकूमत से टकराया था सीकर का किसान, ब्रिटिश संसद में गुंजा मामला, राजस्थान पत्रिका

  • महिलाएं बालों में छिपाकर ले गई थी गँड़ासी, ब्रिटिश संसद में गुंजा मामला, राजस्थान पत्रिका

  • अब स्कूलों में बच्चे पढ़ेंगे सीकर का इतिहास, पाठ्यक्रम में शामिल हुआ सीकर का किसान आंदोलन, राजस्थान पत्रिका

References

  1. डॉ. ज्ञानप्रकाश पिलानिया: राजस्थान स्वर्ण जयंती प्रकाशन समिति जयपुर के लिए राजस्थान हिंदी ग्रन्थ अकादमी जयपुर द्वारा प्रकाशित 'राजस्थान में स्वतंत्रता संग्राम के अमर पुरोधा - सरदार हरलाल सिंह', 2001, पृ. 18
  2. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.231-233
  3. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.309
  4. (डॉ पेमाराम, शेखावाटी किसान आन्दोलन का इतिहास, 1990, p. 167)
  5. डॉ. ज्ञानप्रकाश पिलानिया: पृ. 39
  6. राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश (वाया शेखावाटी), जयपुर, 2012, ISBN 978-81-89681-21-0, P. 170
  7. डॉ. ज्ञानप्रकाश पिलानिया: पृ. 39
  8. डॉ. ज्ञानप्रकाश पिलानिया: पृ. 40
  9. भारत का इतिहास कक्षा 12, माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान, 2017, लेखक गण: शिवकुमार मिश्रा, बलवीर चौधरी, अनूप कुमार माथुर, संजय श्रीवास्तव, अरविंद भास्कर, p.155

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सीकर आंदोलन की महिला नेता कौन थी?

25 अप्रेल, 1934 ई. को सीकर के कटराथल में सरदार हरलाल की पत्नी किशोरी देवी जाट ने 10 ,000 महिलाओं के नेतृत्व में विशाल महिला सम्मेलन आयोजित किया ।

राजस्थान का प्रथम किसान आंदोलन कौन सा है?

अप्रैल 1919 ई. में महाराणा ने न्यायमूर्ति बिन्दूलाल भट्टाचार्य की अध्यक्षता में एक जांच आयोग नियुक्त किया था। बिजौलिया आन्दोलन देश इतिहास में पहला संगठित किसान आन्दोलन था जो सर्वाधिक समय तक चलता रहा।

सीकर किसान आंदोलन के नेता कौन थे?

अन्य शेखावाटी किसान आंदोलन का नेतृत्व रामनारायण चौधरी ने किया था। 1931 में, क्षेत्रीय किसान जाट महासभा का गठन किया गया था। देशराज के नेतृत्व में सीकर किसान आंदोलन के दौरान 1934 में जाट-प्रजापत महायज्ञ किया गया था।

कुंदन कांड कब हुआ?

कुंदन ग्राम नरसंहार, 1934: वेब के प्रयासों के परिणामस्वरूप, 23-अगस्त -1934 को किसानों और थिकाना के बीच एक समझौता हुआ

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