प्रमुख कारण
यह बीमारी माइक्रोबैक्टीरियम लेप्रई के कारण होती है जो सबसे पहले तंत्रिका तंत्र पर आक्रमण करता है। इससे त्वचा और पैरों में स्थित तंत्रिकाएं विशेष रूप से प्रभावित होती हैं और इनमें सूजन आ जाती है। तंत्रिकाएं अक्रियाशील हो जाती हैं जिसके परिणामस्वरूप उस क्षेत्र की त्वचा की संवेदनशीलता समाप्त हो जाती है। जिन क्षेत्रों की तंत्रिकाएं प्रभावित होती हैं, वहां की मांसपेशियों की शक्ति भी धीरे-धीरे कम होने लगती है।
अधिक भीड़-भाड़ और गंदगी वाले इलाकों में यह रोग तेजी से फैलता है। जिन लोगों का रोग-प्रतिरोधक तंत्र बेहतर होता है उनमें इस रोग की तीव्रता कम होती है या उनके शरीर के कम क्षेत्रों की तंत्रिकाएं ही प्रभावित होती हैं। इस रोग का बैक्टीरिया बहुत धीमी गति से विकसित होता है। यह मस्तिष्क व स्पाइनल कोर्ड की तंत्रिकाओं पर भी आक्रमण कर सकता है। इसका प्रभाव आंखों और नाक की अंदरुनी परत की त्वचा पर भी हो सकता है।
रोग के लक्षण
चिकित्सकीय रूप से ये रोग दो प्रकार से दिखाई देता है। ट्यूबरक्युलॉयड और लेप्रोमैटस लेप्रेसी। ट्यूबरक्युलॉयड में रोगी के शरीर का एक या अधिक भाग संवेदनहीन हो जाता है। इन भागों की त्वचा सूख जाती है और वहां पिग्मेंटेशन (रंगत) कम हो जाता है जिसे हाइपोपिग्मेंटेशन कहते हैं। जिससे इन भागों की त्वचा हल्के रंग की हो जाती है। कई बार इन स्थानों के बाल भी झड़ जाते हैं।
इन क्षेत्रों की तंत्रिकाएं फूल जाती हैं और उनका आकार बढ़ जाता है साथ ही उनमें दर्द भी होता है। लेप्रोमैटस लेप्रसी में त्वचा का अधिक भाग शामिल होता है और पूरे शरीर की तंत्रिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाती हैं जिससे ये भाग संवेदनहीन हो जाते हैं। संवेदना समाप्त होने से बार-बार फोड़े व जलन होती है।
ऐसे फैलता है संक्रमण
ऐसे लोग जिनका रोग प्रतिरोधक तंत्र कमजोर होता है, वे इस बीमारी को फैलाने वाले बैक्टीरिया से बेहतर तरीके से नहीं लड़ पाते जिसके कारण यह बीमारी अत्यधिक फैल जाती है। इसमें शरीर की कई तंत्रिकाएं शामिल होती हैं। इसे लेप्रोमैटस लेप्रेसी कहते हैं। इन रोगियों की सांस में बैक्टीरिया होते हैं और ये दूसरों में संक्रमण फैलाने के स्रोत हैं।
उपचार
कुष्ठ रोगी आमतौर पर तब तक बीमार नहीं दिखता जब तक कि उसका शरीर कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाता है। इस रोग का इलाज पूरी तरह से संभव है। ट्यूबरक्युलॉयड लेप्रेसी का उपचार छह महीने और लेप्रोमैटस लेप्रेसी का एक साल तक चलता है। लेप्रोमैटस रोगी उपचार प्रारंभ होने से पहले दूसरों के लिए बहुत संक्रामक होते हैं लेकिन इलाज शुरू होने के एक सप्ताह के अंदर ही वे संक्रमणहीन हो जाते हैं।
इसके अलावा जरूरी है कि हम अपने आस-पास गंदगी न फैलने दें। कूड़़े-कचरे का सही प्रकार से निस्तारण करें। कुष्ठ रोग के मरीज को विटामिन ए से भरपूर चीजें जैसे गाजर, चुकंदर, पालक, पत्तागोभी और शकरकंद अपनी डाइट में शामिल करनी चाहिए। इसके अलावा रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए विटामिन सी से भरपूर चीजें खानी चाहिए।
बच्चे भी हो जाते हैं कुष्ठ रोग के शिकार।
दुनिया के कुष्ठ रोगियों में से 55 प्रतिशत भारत में है।
2010-11 में कुष्ठ रोग के 1 27 000 नए मामले पाए गए।
यह बीमारी माइक्रोबैक्-टीरियम लेप्रई के कारण होती है जो सबसे पहले तंत्रिका तंत्र पर आक्रमण करता है। इस रोग का बैक्टीरिया मस्तिष्क और स्पाइनल कोर्ड की तंत्रिकाओं को प्रभावित करता है।
विषयसूची
कुष्ठ रोग का सही इलाज क्या है?
इसे सुनेंरोकें- ऐसी स्थिति में बिना देरी के तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। अगर लेप्रसी या कुष्ठ रोग का पता प्रारंभिक अवस्था में ही चल जाता है और इसका सही तरीके से इलाज कराना शुरू कर दिया जाता है तो 6 महीने से लेकर डेढ़ साल के अंदर इस बीमारी को पूरी तरह खत्म किया जा सकता है।
इसे सुनेंरोकेंकुष्ठ रोग का पूर्ण उपचार संभव है। इसमें मरीज को घबराने की जरूरत नहीं है। समय पर उपचार लेने से इस बीमारी पर काबू पाया जा सकता है। कुष्ठ रोग का इलाज मल्टी ड्रग थेरेपी (एमडीटी) से किया जाता है।
कुष्ठ रोग में कौन सी दवा दी जाती है?
इसे सुनेंरोकेंबीसीजी (BCG) कुष्ठरोग तथा साथ ही तपेदिक के खिलाफ सुरक्षा की एक परिवर्तनीय मात्रा प्रस्तावित करती है।
कुष्ठ रोग कितने दिनों में ठीक होता है?
इसे सुनेंरोकेंअगर रोगियों का समय रहते इलाज होगा तो कुछ नाममात्र के संक्रामक मामलों में कुछ दिनों मई ही कमी आ जाएगी, क्योंकि कुष्ठ रोग के संक्रामक रोगी का इलाज शुरू होते ही कुछ दिनों में उसकी संक्रामकता खत्म हो जाती है, वैसे कुष्ठ रोग के अधिकतर मामले असंक्रामक ही होते हैं।
कुष्ट रोग कैसे होता है?
इसे सुनेंरोकेंलेप्रोसी या कुष्ठ रोग एक जीर्ण संक्रमण है, जिसका असर व्यक्ति की त्वचा, आंखों, श्वसन तंत्र एवं परिधीय तंत्रिकाओं पर पड़ता है। यह मायकोबैक्टीरियम लैप्री नामक जीवाणु के कारण होता है। हालांकि यह बीमारी बहुत ज्यादा संक्रामक नहीं है, लेकिन मरीज के साथ लगातार संपर्क में रहने से संक्रमण हो सकता है।
कुष्ठ रोग में क्या खाना चाहिए और क्या नहीं खाना चाहिए?
इसे सुनेंरोकेंकुष्ठ रोग के मरीज को विटामिन ए से भरपूर चीजें जैसे गाजर, चुकंदर, पालक, पत्तागोभी और शकरकंद अपनी डाइट में शामिल करनी चाहिए। इसके अलावा रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए विटामिन सी से भरपूर चीजें खानी चाहिए। बच्चे भी हो जाते हैं कुष्ठ रोग के शिकार। दुनिया के कुष्ठ रोगियों में से 55 प्रतिशत भारत में है।
कुष्ठ रोग कितने प्रकार के हैं?
इसे सुनेंरोकेंआयुर्वेद में 18 प्रकार के कुष्ठ रोग है। जिसमें आठ महाकुष्ठ और 11 क्षुद्रकुष्ठ हैं। एक्जिमा को आयुर्वेद में विचर्चिका नामक क्षुद्रकुष्ठ से तुलना की जा सकती है। मुख्य रूप से यह रोग पित्त और रक्त की दुष्टि के कारण होता है और चिकित्सा न कराने पर तेजी से शरीर में फैलता है।
कुष्ठ रोग में क्या खाएं क्या ना खाएं?
कुष्ठ रोग कितने प्रकार के होते हैं?
लेप्रोसी में क्या खाना चाहिए?
क्या कुष्ठ रोग छूने से फैलता है?
इसे सुनेंरोकेंकुष्ठ रोग न तो छूने से फैलता है और न ही यह पूर्वजन्म के पाप या व्यवहार का फल है। यह अनुवांशिक भी नहीं है। इसका इलाज संभव है और इसकी दवा भी सरकारी अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों पर निशुल्क मिलती है। इसका इलाज कराना चाहिए।