Gujarat Board GSEB Std 11 Hindi Textbook Solutions Aaroh Chapter 13 पथिक Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf. Show GSEB Std 11 Hindi Textbook Solutions Aaroh Chapter 13 पथिकGSEB Class 11 Hindi Solutions पथिक Textbook Questions and Answers अभ्यास कविता के साथ : प्रश्न 1. प्रश्न 2. समुद्र तल से उगता हुआ सूर्य जो कि आधा पानी में और आधा बाहर दिखाई देता है । प्रातःकालीन सूर्य की लालिमा मनोहर दिखाई देती है । प्रश्न 3. सन्दर्भ : प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कवि रामनरेश त्रिपाठी द्वारा रचित ‘पथिक’ नामक कविता से । लिया गया है । इन पंक्तियों में कवि रात्रि के सौंदर्य का वर्णन किया है। व्याख्या : प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने प्रकृति का सुंदर मानवीकरण किया है । कवि समुद्र किनारे से अर्द्ध-रात्रि के सुंदर नजारे का चित्र खींचता हुआ कहता है कि आधी रात में जब गहन अंधकार जगत को टैंक लेता है अर्थात् चारों ओर रात्रि का अंधकार छा जाता है, आकाश की छत पर तारे टिमटिमाने लगते हैं ऐसे समय में जगत का स्वामी अर्थात् ईश्वर मुस्कुराते हुए धीरे-धीरे आता है और समुद्र तट पर खड़ा होकर आकाश के मधुर गीत गाने लगता है । विशेष :
ख. कैसी मधुर मनोहर उज्ज्वल है यह प्रेम-कहानी विशेष :
प्रश्न 4. 1. ‘प्रतिक्षण नूतन वेश बनाकर रंग-बिरंग निराला 2. रत्नाकर गर्जन करता है । 3. ‘महिमामय रत्नाकर के 4. ‘लाने को निज पुण्य-भूमि पर लक्ष्मी की असवारी 5. ‘निर्भय, दृढ़, गंभीर भाव से गरज रहा सागर है’ 6. ‘जब गंभीर तम अर्द्ध-निशा में जग को टैंक लेता है किसी वस्तु को ढकने या छिटकने की क्रिया मनुष्य करता है किंतु यहाँ तम (अंधकार) को यह क्रिया करते हुए दिखाया गया है । यहाँ अंधकार जगत को ढंकता और आकाश में तारों को बिखेरता (टिमटिमाता) हुआ दिखाया है। 7. ‘सस्मित-वदन जगत का स्वामी मृदु गति से आता है यहाँ ईश्वर पर मानवीय भावों का आरोपण है । वह मुस्कराते हुए आकाश गंगा के गीत गाता है । 8. ‘उससे ही विमुग्ध हो नभ में चंद्र विहँस देता है । यहाँ चाँद का हँसना, वृक्षों का सजना-धजना, पक्षियों का हर्ष संभाल न पाना, फूल का साँस लेना आदि में मानवी भावों का आरोपण है । कविता के आस-पास प्रश्न 1. ज्वार भाटा क्यों उठते होंगे ? समुद्र दो देशों या दो महाद्वीपों को जोड़ता है । जलमार्ग के रूप में इसकी प्रथम कल्पना किसने की होगी ? इसके भीतर ना-ना प्रकार की वनस्पतियों और जीव-जंतु का संसार कैसा होगा ? सागर के तल में मरजीवा कैसे गोता लगाते होंगे ? इसकी विशाल जलराशि को पीने और सिंचाई करने योग्य बनाया जा सकता है क्या ? पूनम और अमावस्या के दिन समुद्र का नजारा अद्भुत होता है । वैसे ही सूर्योदय और सूर्यास्त के समय भी समुद्र का नजारा अद्भुत होता है । शांत समुद्र का अपना आकर्षण है, वहीं गरजते और तूफानयुक्त समुद्र की भयावहता का रोमांच अलग ही है । समुद्र की विकरालता को देखकर मन भयभीत हो उठता है और मन में होता है कि यदि कभी समुद्रयात्रा करते समय समुद्र की तूफानी लहरों के बीच पड़ गया तो ? और हृदय काँप उठता है । तुरंत ही समुद्र का उपकारक रूप ध्यान में आ जाता है । समुद्र रत्नाकर है । मानव को नमक समुद्र से ही मिलता । जलचक्र में समुद्र की महत्त्वपूर्ण भूमिका है । समुद्र और सूर्य का युति ही वर्षा का कारण है और वर्षा हमारे जीवन की धुरी है । जल के बिना जीवन की कल्पना असंभव है । मन समुद्र के प्रति कृतज्ञता से भर उठता है । आहार के मछलियाँ, मोती जैसी कीमती वस्तु अनेक प्रकार के रत्न, पेट्रोलियम पदार्थ समुद्र से मनुष्य प्राप्त करता है । समुद्र हमारे लिए रत्नाकर है । प्रश्न 2.
उपर्युक्त पहलुओं को ध्यान में रखते हुए विद्यार्थी स्वयं परिचर्चा आयोजित करें । प्रश्न 3. व्यक्ति कैसे प्रकृति के संपर्क में रह सकता है ? शहर की रफतार और फ्लेट कल्चर में लोग या तो तेज भाग रहा है या अपनीअपनी चहार दीवारी में कैद है । वह बदलते मौसमों का सही आनंद नहीं उठा सकता । प्रकृति से खिलवाड़ और प्रकृति से अलगाव दोनों मानवजाति के लिए चिन्ता का विषय है । प्रकृति से जुड़े रहने के लिए हम निम्नलिखित कदम उठा सकते हैं –
प्रश्न 4. Hindi Digest Std 11 GSEB पथिक Important Questions and Answers कविता के साथ प्रश्न 1. योग्य विकल्प पसंद करके रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए । प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. अपठित पद्य नीचे दी गई कविता को पढ़कर नीचे पूछे गए प्रश्नों के उचित उत्तर दीजिए – जो आदमी दुख में है प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. पथिक Summary in Hindiकवि परिचय : नाम – रामनरेश त्रिपाठी हिंदी के सुप्रसिद्ध कवि, सफल संपादक, सिद्धहस्त कहानीकार और कुशल नाटककार रामनरेश त्रिपाठी का जन्म जौनपुर जिले के कोइरीपुर नामक ग्राम में हुआ था । इनके पिता रामदत्त त्रिपाठी भगवद्भक्त और रामायण प्रेमी थे । प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय पाठशाला में तथा माध्यमिक शिक्षा जौनपुर में ग्रहण की । कोलकाता और राजस्थान में कुछ समय रहने के बाद इन्होंने प्रयाग को ही अपना स्थायी निवासस्थान बना लिया । वहाँ एक ‘हिन्दी-मंदिर’ की भी स्थापना की थी । राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्हें जेलयात्रा भी करनी पड़ी थी। रामनरेश त्रिपाठी छायावाद पूर्व की खड़ीबोली हिंदी के महत्त्वपूर्ण कवि माने जाते हैं । आरंभिक शिक्षा पूरी होने के बाद स्वाध्याय – से हिंदी, अंग्रेजी, बांग्ला और उर्दू का ज्ञान प्राप्त किया । उन्होंने उस समय के कवियों के प्रिय विषय समाज-सुधार के स्थान पर रोमांटिक प्रेम को कविता का विषय बनाया । उनकी कविताओं में देशप्रेम और वैयक्तिक प्रेम दोनों मौजूद है, लेकिन देशप्रेम को ही विशेष स्थान दिया गया है । कविता कौमुदी (आठ भाग) में उन्होंने हिन्दी, उर्दू, बांग्ला और संस्कृत की लोकप्रिय कविताओं का संकलन किया है । इसी के एक खंड में ग्रामगीत संकलित हैं, जिसे उन्होंने गाँव-गाँव घूमकर एकत्र किया था । लोक-साहित्य के संरक्षण की दृष्टि से हिंदी में यह उनका पहला मौलिक कार्य था । हिंदी में वे बाल साहित्य के जनक माने जाते हैं । उन्होंने कई वर्षों तक वानर नामक बाल पत्रिका का संपादन किया, जिसमें मौलिक एवं शिक्षाप्रद कहानियाँ, प्रेरक प्रसंग आदि प्रकाशित होते थे । कविता के अलावा उन्होंने नाटक, उपन्यास, आलोचना, संस्मरण आदि अन्य विधाओं में भी रचनाएँ की । त्रिपाठी जी गाँधीवादी सिद्धांतों से प्रभावित साहित्यकार हैं । स्वदेश भक्ति और राष्ट्रीय-प्रेम आपके साहित्य का प्रधान विषय रहा है । राष्ट्र के नवयुवकों को प्रेरणा देना ही उनके साहित्य का उद्देश्य रहा है । इन्होंने देशभक्ति में प्रेम तत्त्व का मिश्रण करके काव्य में माधुर्य का समावेश कर दिया है । ये एक बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न साहित्यकार हैं, जिसके कारण आज भी लोग उन्हें श्रद्धा की दृष्टि से देखते हैं । रामनरेश त्रिपाठी की काव्यभाषा शुद्ध खड़ीबोली है । भाषा परिमार्जित, सुव्यवस्थित तथा प्रसाद गुण सम्पन्न हैं । स्पष्टता एवं प्रवाह उनकी भाषा की विशेषता है । इनकी काव्य-शैली में गतिशीलता है । भावानुरूप भाषा-शैली के कारण हिन्दी काव्य-जगत में त्रिपाठी जी का स्थान महत्त्वपूर्ण है । काव्य सारांश : ‘पथिक’ कविता दरअसल कवि रामनरेश त्रिपाठी के प्रसिद्ध खण्डकाव्य ‘पथिक’ के प्रथम सर्ग से लिया गया अंश है । इसमें काव्य-नायक पथिक संसार की आपाधापी से विरक्त होकर कहीं दूर प्रकृति के प्रांगण में बस जाना चाहता है । पथिक प्रकृति के सौंदर्य पर वारि-वारि जाता है – मुग्ध हो जाता है । यहाँ किसी सज्जन की सलाह से देश-सेवा का व्रत लेता है । राजा उसे मृत्यु-दण्ड देता है, मगर उसकी कीर्ति समाज में बनी रहती हैं । सागर किनारे खड़ा पथिक सागर के मोहक रूप पर मुग्ध होकर बादलों पर बैठकर सवारी करके वह रत्नाकर (समुद्र) का कोना-कोना देखना चाहता है । सागर किनारे से सूर्योदय की सुंदर कल्पना करते हुए कवि कहता है सूर्य की किरणों ने लक्ष्मी को लाने के लिए मानो सोने की सड़क बना दी है । सागर की निर्भय, गंभीर गर्जन और लहरों का उठनागिरना मोहक दृष्य खड़ा कर रहा है, जिसे देखकर पथिक पुलकित हो रहा है । कवि ने सागर किनारे से दिखनेवाले चंद्रोदय और आकाश में तारों भरी रात का नजारा मनमोहक है । कवि उसके मोहक रूप पर मुग्ध है । चाँद हँसता-सा नज़र आता है और उसका चाँदनी से पेड़-पत्ते-पुष्प और तने सब सज-धजे से लगने लगते हैं । पेड़ सुंदर दिखने लगते हैं, पक्षी चहक उठते हैं, फूल महक उठते हैं । वन, उपवन, पर्वत और मैदानों में बादल बरस पड़ते हैं । पथिक प्रकृति सौंदर्य पर भावुक होकर नयन-नीर बहाने लगता है । कवि प्रकृति के इस मधुर, मनोहर, उज्ज्वल प्रेमकहानी को अक्षर का रूप देकर जन-जन तक पहुँचाना चाहता है । इतना ही नहीं, प्रकृति के निकट सांनिध्य को वह प्रेम का परम, सुंदर राज्य कहता है और वहीं सुख-चैन से जीना चाहता है । काव्य का भावार्थ : प्रतिक्षण नूतन वेश बनाकर रंग-बिरंग निराला । प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में कवि रामनरेश त्रिपाठी सांसारिक आपाधापी से मुक्त होकर प्रकृति के अनुपम सौंदर्य पर मुग्ध होकर वहीं बस जाना चाहता है । कवि ने पथिक के माध्यम से सुंदर प्रकृति चित्रण किया है । प्रस्तुत काव्यांश में पथिक पल-पल परिवर्तित होते हुए बादलों की रूपाकृति का वर्णन करते हुए कहता है कि सूर्य की रोशनी में रंग-बिरंगे बादल प्रति-क्षण नया-नया रूप धारण करते हैं, जो बड़े ही निराले लगते हैं । आकाश में वर्षा-बूंदों की झड़ी रवि के सम्मुख थिरकती-सी नज़र आती है । नीचे नीला समुद्र है और ऊपर नीलाकाश है । ऐसे मनोहर, मनभावन वातावरण में कविहृदय कल्पना लोक में पहुँच जाता है । उसका मन बादल पर सवार होकर नीले समुद्र और नीलगगन के बीच मन-भर उड़ना चाहता है, विचरण करना चाहता है । रत्नाकर गर्जन करता है, मलयानिल बहता है । प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में पथिक लहराते, गर्जन करते समंदर और मलय पर्वत से आनेवाली सुगंधित हवाओं को देखकर उत्साहित हो जाता है । अपनी प्रिया को संबोधित करते हुए कहता है, कि हे प्रिये ! ऐसे रम्य वातावरण में मेरे हृदय में हरदम यह हौसला उमड़ता रहता है कि इस विशाल, विस्तृत, अनंत और महिमामय समंदर के घर का कोना-कोना (दूर-दूर तक) लहरों पर सवार होकर घूम आऊँ । निकल रहा है जलनिधि-तल पर दिनकर-बिंब अधूरा । यहाँ कवि ने समुद्र के किनारे के सूर्योदय की सुंदर कल्पना की है । सूर्योदय हो रहा है, समुद्रतल पर उसका अधूरा प्रतिबिम्ब दिखाई दे रहा है । कारण यह है कि आधा सूर्य जल के भीतर और आधा बाहर दिखाई दे रहा है । यह दृश्य ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो लक्ष्मी देवी के स्वर्णमंदिर का चमकता हुआ कंगूरा है । पथिक ऐसी कल्पना कर रहा है कि समुद्र ने अपनी पुण्य-भूमि पर लक्ष्मी की सवारी लाने हेतु सुंदर सोने की सड़क निर्मित कर दी हो । (सुबह-सवेरे की सूर्यकिरणे स्वर्णिम दिखाई देती हैं । समुद्र किनारे , खड़े होकर जब हम दूर समुद्र में उगते हुए सूर्य को देखते हैं तब स्वर्णिम किरणें सड़क-सी ही प्रतीत होती है ।) कवि आगे समुद्र की गर्जन में निर्भयता, दृढ़ता एवं गंभीरता आदि भाव की प्रतीति करते हुए कहता है कि समुद्र निर्भीक होकर दृढ़ता व गंभीरता से गरज रहा है । ऐसे में समंदर की लहरें भी अपनी मस्ती में आकर लगातार उठती रहती हैं, जो अपने आप में बेहद सुंदर दृश्य उत्पन्न करता है । वह फिर अपनी प्रेममयी, कल्याणी प्रिया से प्रश्न करता है कि बताओ यहाँ से बढ़कर सुंदर दृश्य और कहीं देखने को मिलेगा ? अर्थात् यह नज़ारा अपने आप में सुंदर है, अनुपम है, अद्वितीय है । जब गंभीर तम अर्द्ध-निशा में जग को ढक लेता है । प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने प्रकृति का सुंदर मानवीकरण किया है । कवि समुद्र किनारे से अर्द्ध-रात्रि के सुंदर नजारे का चित्र खींचता हुआ कहता है कि आधी रात में जब गहन अंधकार जगत को ढंक लेता है अर्थात् चारों ओर रात्रि का अंधकार छा जाता है । आकाश की छत पर तारे टिमटिमाने लगते हैं । ऐसे समय में जगत का स्वामी अर्थात् ईश्वर मुस्कराते हुए धीरे-धीरे आता है । और समुद्र तट पर खड़ाकर आकाश के मधुर गीत गाने लगता है । ईश्वर के इस मधुर गीत पर मोहित होकर आकाश में चाँद भी हँसने लगता है । ऐसे में पेड़-पौधे भी मुग्ध होकर अपने-आप को पुष्पित पल्लवित करके सज्ज-धज्ज जाते हैं । पक्षी भी अपने-आप को कैसे वश में रख सकते हैं ? वे भी प्रकृति के इस मोहक रूप पर मुग्ध होकर चहक उठते हैं, गुनगुनाने लगते हैं, कलरव करने लगते हैं, मधुर गीत गाने लगते हैं । फूलों का तो क्या कहना ! वे सुख की साँस लेकर सानंद महक उठते हैं । वन, उपवन, गिरि, सानु, कुंज में मेघ बरस पड़ते हैं । प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने सार्वत्रिक वर्षा का सुंदर चित्र उपस्थित किया है । वह कहता है कि वन, उपवन, पर्वत, मैदान और कुंजों में मेघ उमड़-घुमड़ कर बरस रहें हैं । प्रकृति के ऐसे रम्य वातावरण में कवि आत्म-विभोर हो जाता है । अचानक ही उसकी आँखों से नयन-नीर (अश्रु) बहने लगते हैं । वह अपनी प्रिया से प्रकृति की बारहखड़ी को समझने और पढ़ने का आग्रह करते हुए कहता है कि प्रिय तुम लहर, तट, घास, पर्वत, आकाश, किरण, बादल, आदि पर छिंटकी हुई और विश्व को विमोहित करनेवाली प्रकृति की इस मधुर कहानी को पढ़ो । प्रकृति, सौंदर्य की यह प्रेम कहानी बहुत ही मधुर, मनोहर और पावन है । पथिक यह कामना करता है कि वह इस प्रेम कहानी का अक्षर बन जाए और विश्व की वाणी बन जाए । अर्थात् प्रकृति के इस मोहक रूप और उसके क्रिया-कलापों के रहस्यों को जनजन तक पहुँचा दे । यहाँ पर स्थिर (न बदलनेवाली) पवित्र आनंद प्रवाहित होता रहता है तथा सदैव सुखद शांति है । यहाँ प्रेम का परम सुंदर राज्य छाया रहता है, जो अपने आप में बेहद सुंदर है । कवि ने किसका राज्य परम बताया है?➲ (अ) प्रेम
⏩ कवि ने प्रेम का राज्य परम सुंदर बताया है। अर्थात कवि प्रकृति के सुंदर रूप पर मोहित हो उठा है और प्रकृति के अद्भुत सौंदर्य से अभिभूत होकर वह उसे सबसे अधिक सुंदर कहकर स्वयं को होने वाले अपने परम आनंद को अभिव्यक्त कर रहा है। इस तरह कवि ने प्रेम के राज्य को परम सुंदर बताया है।
कवि ने किस राज्य का सर्वाधिक सुन्दर कहाँ है?कवि ने प्रकृति रूपी प्रेम के राज्य को सर्वाधिक सुंदर कहा है।
कवि ने पथिक को क्या संदेश दिया है?Explanation: समुद्र के बारे में पथिक के माध्यम से कवि बताता है कि यह रत्नों से भरा हुआ है। यहाँ सुगंधित हवा बह रही है तथा समुद्र गर्जना कर रहा है। इसका अर्थ है कि कवि लहरों पर बैठकर महान तथा दूर-दूर तक फैले सागर का कोना-कोना घूमकर उसके अनुपम सौंदर्य को देखना चाहता है।
कवि किसके रूप पर मोहित है और क्यों?➲ कवि प्रकृति के सुंदर रूप पर मोहित है।
⏩ 'पथिक' कविता में कविता का नायक पथिक रूपी कवि प्रकृति के सुंदर रूप पर मोहित होकर उसी प्रकृति में बसने की इच्छा व्यक्त करता है। सागर के किनारे किनारे खड़ा पथिक सागर के अद्भुत सौंदर्य को निहार रहा है। वह प्रकृति के अद्भुत सौंदर्य को एक मधुर मनोहर कहानी की तरह पाना चाहता है।
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