कवि ने किसका राज्य परम सुंदर बताया है बताइए? - kavi ne kisaka raajy param sundar bataaya hai bataie?

Gujarat Board GSEB Std 11 Hindi Textbook Solutions Aaroh Chapter 13 पथिक Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.

GSEB Std 11 Hindi Textbook Solutions Aaroh Chapter 13 पथिक

GSEB Class 11 Hindi Solutions पथिक Textbook Questions and Answers

अभ्यास

कविता के साथ :

प्रश्न 1.
पथिक का मन कहाँ विचरना चाहता है ?
उत्तर :
पथिक का मन बादल पर सवार होकर नीले समुद्र और नीलगगन के बीच मन-भर उड़ना चाहता है ।

प्रश्न 2.
सूर्योदय वर्णन के लिए किस तरह के बिंबों का प्रयोग हुआ है ?
उत्तर :
बिंब का अर्थ होता है – शब्दचित्र, जिसे अंग्रेजी में Image कहते हैं । Image अर्थात् शब्दों के द्वारा ऐसा चित्र खड़ा करना की उस दृश्य का प्रतिबिंब दिखाई देने लगे । ये बिंब पाँच प्रकार के होते हैं – दृश्यबिंब, स्वादबिंब, घ्राण बिंब, श्रव्य बिंब, स्पर्श बिंब । यहाँ कवि ने सूर्योदय का सुंदर दृश्य बिंब प्रस्तुत किया है, जैसे –

समुद्र तल से उगता हुआ सूर्य जो कि आधा पानी में और आधा बाहर दिखाई देता है । प्रातःकालीन सूर्य की लालिमा मनोहर दिखाई देती है ।
समुद्र जल में आधा बाहर दिखाई देनेवाला सूर्य लक्ष्मी जी के स्वर्ण मंदिर के कँगूरा-सा प्रतीत होता है ।
समुद्र में उगते हुए सूर्य की स्वर्णिम किरणें सड़क सी ही प्रतीत होती हैं, जिस सड़क होकर पर लक्ष्मी जी सवार आनेवाली हैं ।

कवि ने किसका राज्य परम सुंदर बताया है बताइए? - kavi ne kisaka raajy param sundar bataaya hai bataie?

प्रश्न 3.
आशय स्पष्ट करें ।
क. सस्मित-वदन जगत का स्वामी मृदु गति से आता है ।
तट पर खड़ा गगन-गंगा के मधुर गीत गाता है ।

सन्दर्भ : प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कवि रामनरेश त्रिपाठी द्वारा रचित ‘पथिक’ नामक कविता से । लिया गया है । इन पंक्तियों में कवि रात्रि के सौंदर्य का वर्णन किया है।

व्याख्या : प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने प्रकृति का सुंदर मानवीकरण किया है । कवि समुद्र किनारे से अर्द्ध-रात्रि के सुंदर नजारे का चित्र खींचता हुआ कहता है कि आधी रात में जब गहन अंधकार जगत को टैंक लेता है अर्थात् चारों ओर रात्रि का अंधकार छा जाता है, आकाश की छत पर तारे टिमटिमाने लगते हैं ऐसे समय में जगत का स्वामी अर्थात् ईश्वर मुस्कुराते हुए धीरे-धीरे आता है और समुद्र तट पर खड़ा होकर आकाश के मधुर गीत गाने लगता है ।

विशेष :

  1. प्रकृति का मनोहारी चित्रण है ।
  2. प्रकृति का मानवीकरण किया गया है ।
  3. कवि की कल्पना अद्भुत है ।
  4. संस्कृतनिष्ठ शब्दावलीयुक्त खड़ी बोली है ।

ख. कैसी मधुर मनोहर उज्ज्वल है यह प्रेम-कहानी
जी में हैं अक्षर बन इसके बनें विश्व की बानी ।
सन्दर्भ : प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कवि रामनरेश त्रिपाठी द्वारा रचित ‘पथिक’ नामक कविता से लिया गया है । कवि प्रकृति के रहस्य को वाणी देकर जन-जन तक पहुँचाने की कामना करता है । व्याख्या : प्रकृति सौंदर्य की यह प्रेम कहानी बहुत ही मधुर, मनोहर और पावन है । पथिक यह कामना करता है कि वह इस प्रेम कहानी का अक्षर बन जाए और विश्व की वाणी बन जाए । अर्थात् प्रकृति के मोहक रूप और उसके क्रिया-कलापों के रहस्यों को जन-जन तक पहुँचा दे ।

विशेष :

  1. ‘मधुर-मनोहर’ में अनुप्रास अलंकार है और ‘प्रेम-कहानी’ में सपक अलंकार है ।
  2. कल्पना की ऊँची उड़ान है ।
  3. प्रकृति चित्रण सुंदर है।

कवि ने किसका राज्य परम सुंदर बताया है बताइए? - kavi ne kisaka raajy param sundar bataaya hai bataie?

प्रश्न 4.
कविता में कई स्थानों पर प्रकृति को मनुष्य के रूप में देखा गया है । ऐसे उदाहरणों का भाव स्पष्ट करते हुए लिखें ।
उत्तर :
कविता में कई स्थानों पर प्रकृति का सुंदर मानवीकरण किया गया है, जैसे कि –

1. ‘प्रतिक्षण नूतन वेश बनाकर रंग-बिरंग निराला
रवि के सम्मुख्न थिरक रही है नभ में वारिद-माला’
यहाँ बादलों को मनुष्य की तरह नये-नये वेश बदलनेवाला अनोखा व्यक्ति बताया है । दूसरी पंक्ति में वर्षा जल को रवि के सम्मुख थिरकने (नाचने) वाली नृतकी बताया है ।

2. रत्नाकर गर्जन करता है ।
समुद्र को मनुष्य की तरह वीरता के साथ गर्जन या हंहकार भरता हुआ दिखाया है।

3. ‘महिमामय रत्नाकर के
घर के’ घर मनुष्य का होता है किंतु यहाँ घर समुद्र का दिखाया गया है ।

4. ‘लाने को निज पुण्य-भूमि पर लक्ष्मी की असवारी
रत्नाकर ने निर्मित कर दी स्वर्ण-सड़क अति प्यारी’
किसी को लाने, ले जाने, भेजने या बुलाने का काम मनुष्य करता है । किंतु यहाँ लक्ष्मी जी की सवारी लाने के लिए समुद्र को प्रयास करते दिखाया गया है । साथ ही सड़क निर्माण का काम मनुष्य करता है । यहाँ समुद्र को सड़क निर्माण का कार्य करते दिखाया गया है ।

5. ‘निर्भय, दृढ़, गंभीर भाव से गरज रहा सागर है’
निर्भयता, दृढ़ता, गंभीरता आदि मनुष्य के हृदयगत भाव हैं । यहाँ इन भावों का आरोपण सागर पर किया गया है।

6. ‘जब गंभीर तम अर्द्ध-निशा में जग को टैंक लेता है
अंतरिक्ष की छत पर तारों को छिटका देता है’ ।

किसी वस्तु को ढकने या छिटकने की क्रिया मनुष्य करता है किंतु यहाँ तम (अंधकार) को यह क्रिया करते हुए दिखाया गया है । यहाँ अंधकार जगत को ढंकता और आकाश में तारों को बिखेरता (टिमटिमाता) हुआ दिखाया है।

7. ‘सस्मित-वदन जगत का स्वामी मृदु गति से आता है
तट पर खड़ा गगन-गंगा के मधुर गीत गाता है ।

यहाँ ईश्वर पर मानवीय भावों का आरोपण है । वह मुस्कराते हुए आकाश गंगा के गीत गाता है ।

8. ‘उससे ही विमुग्ध हो नभ में चंद्र विहँस देता है ।
वृक्ष विविध पत्तों-पुष्पों से तन को सज लेता है ।
पक्षी हर्ष संभाल न सकते मुग्ध चहक उठते हैं ।
फूल सांस लेकर सुख की सानंद महक उठते हैं ।

यहाँ चाँद का हँसना, वृक्षों का सजना-धजना, पक्षियों का हर्ष संभाल न पाना, फूल का साँस लेना आदि में मानवी भावों का आरोपण है ।

कविता के आस-पास

प्रश्न 1.
समुद्र को देखकर आपके मन में क्या भाव उठते हैं ? लगभग 200 शब्दों में लिखें ।
उत्तर :
समुद्र को साक्षात् देखने से पहले उसकी विशालता, गहराई और अनंतता के बारे में बहुत कुछ सुना था । उसमें उठनेवाले ज्वार और भाटा के विषय में भी बहुत कुछ सुना था, पढ़ा था । मगर जब से समुद्र को देखा है, उसके विषय में जानने जिज्ञासा और भी बढ़ गई है । समुद्र को देखते ही उसकी अनंत जलराशि को कौन एकत्रित करता होगा, इसके किनारे कौन बनाता होगा, कभी तालाब या बाँध की तरह यह टूट गया या फूट गया तो क्या होगा ?

ज्वार भाटा क्यों उठते होंगे ? समुद्र दो देशों या दो महाद्वीपों को जोड़ता है । जलमार्ग के रूप में इसकी प्रथम कल्पना किसने की होगी ? इसके भीतर ना-ना प्रकार की वनस्पतियों और जीव-जंतु का संसार कैसा होगा ? सागर के तल में मरजीवा कैसे गोता लगाते होंगे ? इसकी विशाल जलराशि को पीने और सिंचाई करने योग्य बनाया जा सकता है क्या ?

पूनम और अमावस्या के दिन समुद्र का नजारा अद्भुत होता है । वैसे ही सूर्योदय और सूर्यास्त के समय भी समुद्र का नजारा अद्भुत होता है । शांत समुद्र का अपना आकर्षण है, वहीं गरजते और तूफानयुक्त समुद्र की भयावहता का रोमांच अलग ही है । समुद्र की विकरालता को देखकर मन भयभीत हो उठता है और मन में होता है कि यदि कभी समुद्रयात्रा करते समय समुद्र की तूफानी लहरों के बीच पड़ गया तो ?

और हृदय काँप उठता है । तुरंत ही समुद्र का उपकारक रूप ध्यान में आ जाता है । समुद्र रत्नाकर है । मानव को नमक समुद्र से ही मिलता । जलचक्र में समुद्र की महत्त्वपूर्ण भूमिका है । समुद्र और सूर्य का युति ही वर्षा का कारण है और वर्षा हमारे जीवन की धुरी है । जल के बिना जीवन की कल्पना असंभव है । मन समुद्र के प्रति कृतज्ञता से भर उठता है । आहार के मछलियाँ, मोती जैसी कीमती वस्तु अनेक प्रकार के रत्न, पेट्रोलियम पदार्थ समुद्र से मनुष्य प्राप्त करता है । समुद्र हमारे लिए रत्नाकर है ।

प्रश्न 2.
प्रेम सत्य है, सुंदर है – प्रेम के विभिन्न रूपों को ध्यान में रखते हुए इस विषय पर परिचर्चा करें ।
उत्तर :
प्रेम सत्य है, सुंदर है । सच कहें तो प्रेम ईश्वर का ही दूसरा नाम है । मध्यकालीन सूफी कवियों ने तो ईश्वर को प्राप्त करने का मार्ग ही प्रेम मार्ग बतलाया है । इसकी महिमा अनंत है । प्रेम के अनेक रूप हैं, यथा

  • राष्ट्रप्रेम
  • मातृप्रेम
  • पशु-प्राणी प्रेम
  • मानव प्रेम
  • प्रकृति प्रेम
  • पत्नी प्रेम
  • प्रेयसी प्रेम
  • परिवार प्रेम
  • समाज प्रेम
  • शिक्षा प्रेम
  • संतान प्रेम आदि

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उपर्युक्त पहलुओं को ध्यान में रखते हुए विद्यार्थी स्वयं परिचर्चा आयोजित करें ।

प्रश्न 3.
वर्तमान समय में हम प्रकृति से दूर होते जा रहे हैं, इस पर चर्चा करें और लिखें कि प्रकृति से जुड़े रहने के लिए क्या कर सकते हैं ?
उत्तर :
आज मनुष्य प्रकृति से दूर होता जा रहा है । इसके अनेक कारण हैं । जनसंख्या के बढ़ने से गाँव में भी लोग खेती की जमीन पर घर बना रहे हैं । जंगलों को अपने-अपने स्वार्थ के कारण लोग मनमाने ढंग से उजाड़ रहे हैं । जंगलों में भी बड़ी-बड़ी इमारतें बनाई जा रही हैं । रोजी-रोटी की तलाश में लोग बड़ी संख्या में शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं । महानगरों में रहनेवाला

व्यक्ति कैसे प्रकृति के संपर्क में रह सकता है ? शहर की रफतार और फ्लेट कल्चर में लोग या तो तेज भाग रहा है या अपनीअपनी चहार दीवारी में कैद है । वह बदलते मौसमों का सही आनंद नहीं उठा सकता । प्रकृति से खिलवाड़ और प्रकृति से अलगाव दोनों मानवजाति के लिए चिन्ता का विषय है । प्रकृति से जुड़े रहने के लिए हम निम्नलिखित कदम उठा सकते हैं –

  • शहरों में बड़ी-बड़ी आवासीय योजनाओं की अनुमति तभी दी जाये जब उसमें पर्याप्त पौधे और पार्क की व्यवस्था हो ।
  • बड़े-बड़े सार्वजनिक समारोह या कार्यक्रम नदी-तालाब या अन्य प्राकृतिक स्थलों पर आयोजित किए जाएँ ।
  • अपने-अपने घरों के आस-पास वृक्ष उगाए जाएँ ।
  • सार्वजनिक स्थलों, स्कूलों एवं सरकारी कार्यालयों में जहाँ गुंजाईश हो अधिकाधिक पेड़ लगाये जाएँ ।
  • सड़कों के दोनों किनारे और बीच (डिवाइडर) में पर्याप्त पेड़-पौधे लगाये जाएँ ।
  • खेती की जमीन को आवासीय जमीन में बदलने के नियम सख्त हों ।
  • जंगल और उसमें रहनेवाले जीव-जंतुओं का संरक्षण हो ।
  • शहरी लोगों को अवसर मिलने पर बीच-बीच में गाँव, जंगल, नदी, पहाड़, झरना आदि प्राकृतिक स्थलों की मुलाकात लेनी चाहिए ।

प्रश्न 4.
सागर संबंधी दस कविताओं का संकलन करें और पोस्टर बनाएँ ।
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं करें ।

Hindi Digest Std 11 GSEB पथिक Important Questions and Answers

कविता के साथ

प्रश्न 1.
पधिक अपनी प्रिया को क्या कहकर संबोधित करता है तथा उसे क्या बताना चाहता है ?
उत्तर :
पथिक ने अपनी प्रिया को ‘अनुराग-भरी कल्याणी’ कहकर संबोधित किया है । उससे प्रश्न करते हुए यह बताना चाहता है कि यहाँ से बढ़कर सुंदर दृश्य ओर कहीं देखने को मिलेगा ? अर्थात् यह नजारा अपने आप में सुंदर है, अनुपम है, अद्वितीय है ।

योग्य विकल्प पसंद करके रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए ।

प्रश्न 1.
रामनरेश त्रिपाठी का जन्म सन् …………… में हुआ था ।
(a) 1881
(b) 1882
(c) 1883
(d) 1884
उत्तर :
(a) 1881

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प्रश्न 2.
‘मिलन’, ‘पथिक’, ‘स्वप्न’ काव्य के रचनाकार ………… हैं ।
(a) जयशंकर प्रसाद
(b) रामनरेश त्रिपाठी
(c) महादेवी वर्मा
(d) निर्मला पुतुल
उत्तर :
(b) रामनरेश त्रिपाठी

प्रश्न 3.
रामनरेश त्रिपाठी रचित ……….. एक नाटक है।
(a) मानसी
(b) मोहनमाला
(c) प्रेमलोक
(d) तीनों
उत्तर :
(c) प्रेमलोक

प्रश्न 4.
रामनरेश त्रिपाठी रचित …………… एक कहानी है ।
(a) पेखन
(b) ग्राम साहित्य
(c) मिलन
(d) वानर संगीत
उत्तर :
(d) वानर संगीत

प्रश्न 5.
रामनरेश त्रिपाठी की मृत्यु सन् ……………. में हुई थी।
(a) 1962
(b) 1963
(c) 1964
(d) 1965
उत्तर :
(a) 1962

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प्रश्न 6.
रामनरेश त्रिपाठी जी के पिता का नाम ……………. था ।
(a) रामदत्त त्रिपाठी
(b) श्यामदत्त त्रिपाठी
(c) देवीदत्त
(d) देवव्रत
उत्तर :
(a) रामदत्त त्रिपाठी

प्रश्न 7.
हिंदी में ……… बाल साहित्य के जनक माने जाते हैं ।
(a) त्रिलोचन
(b) रामनरेश त्रिपाठी
(c) दुष्यंत कुमार
(d) सुमित्रानंदन पंत
उत्तर :
(b) रामनरेश त्रिपाठी

प्रश्न 8.
‘पथिक’ कविता के रचनाकार …………. हैं ।
(a) भवानीप्रसाद मिश्र
(b) अक्क महादेवी
(c) रामनरेश त्रिपाठी
(d) त्रिलोचन
उत्तर :
(c) रामनरेश त्रिपाठी

प्रश्न 9.
‘कोने-कोने’ में ………… अलंकार है ।
(a) पुनरुक्ति प्रकाश
(b) यमक
(c) श्लेष
(d) संदेह
उत्तर :
(a) पुनरुक्ति प्रकाश

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प्रश्न 10.
पथिक ने अपनी प्रिया को ……………. कहकर संबोधित किया है ।
(a) अनुरागभरी देवी
(b) अनुरागभरी कल्याणी
(c) अनुरागभरी प्रकृति
(d) अनुरागभरी भाषा
उत्तर :
(b) अनुरागभरी कल्याणी

प्रश्न 11.
प्रस्तुत कविता में कवि ने आँसुओं के लिए . ….. प्रयुक्त किया है ।
(a) अश्रु-कण
(b) नयन-जल
(c) नयन-नीर
(d) कोई नहीं
उत्तर :
(c) नयन-नीर

प्रश्न 12.
कवि ने प्रकृति के असीम सौन्दर्य को…………. का राज्य कहा है ।
(a) प्रेम
(b) राजा
(c) सुख
(d) प्रिय
उत्तर :
(a) प्रेम

प्रश्न 13.
‘धन पर बैठ, बीच में बिचरूँ ……………………. अलंकार है ।
(a) भ्रान्तिमान
(b) अप्रस्तुत प्रशंसा
(c) उदाहरण
(d) अनुप्रास
उत्तर :
(d) अनुप्रास

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प्रश्न 14.
सागर किनारे खड़ा होकर पथिक ………. के सौंदर्य पर मुग्ध है ।
(a) चंद्रोदय
(b) सूर्योदय
(c) नायिका
(d) प्रिया
उत्तर :
(b) सूर्योदय

अपठित पद्य

नीचे दी गई कविता को पढ़कर नीचे पूछे गए प्रश्नों के उचित उत्तर दीजिए –

जो आदमी दुख में है
वह बहुत बोलता है
बिना बात के बोलता है
वह कभी चुप्प स्थिर बैठ नहीं सकता
ज़रा-सी हवा लगते फेंकता लपट
बकता है लगातार
ईंट के भट्ठ-सा धधकता
जो सुखी सम्पन्न है
सन्तुष्ट है वह कम बोलता है काम की बात बोलता है
जो जितना सुखी है उतना ही कम बोलता है
जो जितना ताकतवर है उतना ही कम
वह लगभग नहीं बोलता है
हाथ से इशारा करता है
ताकता है
और चुप्प रहता है
जिसके चलते चल रहा है युद्ध कट रहे हैं लोग
उसने कभी किसी बन्दूक की घोड़ी नहीं दाबी
– अरुणकमल

प्रश्न 1.
कवि के अनुसार कैसा व्यक्ति कभी चुप – स्थिर बैठ नहीं सकता ?
उत्तर :
दुःख में पड़ा व्यक्ति कभी चुप या स्थिर नहीं बैठ सकता ।

प्रश्न 2.
दुःखी व्यक्ति कब अधिक बोलने (बकने) लगता है ?
उत्तर :
किसी के ज़रा-सा उकसाने या सहानुभूति दर्शाने पर दुःखी व्यक्ति बकने लग जाता है ।

प्रश्न 3.
‘ईट के भट्ठ-सा धधकता’ में कौन-सा अलंकार है ?
उत्तर :
‘ईंट के भट्टे-सा धधकता’ में उपमा अलंकार है ।

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प्रश्न 4.
कैसा व्यक्ति केवल काम की बात बोलता है ?
उत्तर :
सुखी-सम्पन्न तथा संतुष्ट व्यक्ति केवल काम की बात बोलता है ।

प्रश्न 5.
‘उसने कभी किसी बंदूक की घोड़ी नहीं दाबी ।’ का भाव बताइए ।
उत्तर :
जिसके कारण युद्ध हो रहा, ऐसा व्यक्ति कभी शस्त्र नहीं उठाता, बोलता नहीं बल्कि इशाराभर करता है ।

पथिक Summary in Hindi

कवि परिचय :

नाम – रामनरेश त्रिपाठी
जन्म – सन् 1881, कोइरीपुर, जिला जौनपुर (उ.प्र.)
प्रमुख रचनाएँ:
काव्य – मिलन, पथिक, स्वप्न (खण्डकाव्य), मानसी (कविता संग्रह)
नाटक – अजनबी जयन्त, पेखन, प्रेमलोक
आलोचना – तुलसीदास और उनकी कविता, ग्राम साहित्य, हिंदी साहित्य का संक्षिप्त इतिहास
कहानी – बाल कथा कहानी, गुपचुप कहानी, मोहन माला, वानर संगीत, बुद्धि-विनोद आदि ।
मृत्यु – सन् 1962

हिंदी के सुप्रसिद्ध कवि, सफल संपादक, सिद्धहस्त कहानीकार और कुशल नाटककार रामनरेश त्रिपाठी का जन्म जौनपुर जिले के कोइरीपुर नामक ग्राम में हुआ था । इनके पिता रामदत्त त्रिपाठी भगवद्भक्त और रामायण प्रेमी थे । प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय पाठशाला में तथा माध्यमिक शिक्षा जौनपुर में ग्रहण की । कोलकाता और राजस्थान में कुछ समय रहने के बाद इन्होंने प्रयाग को ही अपना स्थायी निवासस्थान बना लिया ।

वहाँ एक ‘हिन्दी-मंदिर’ की भी स्थापना की थी । राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्हें जेलयात्रा भी करनी पड़ी थी। रामनरेश त्रिपाठी छायावाद पूर्व की खड़ीबोली हिंदी के महत्त्वपूर्ण कवि माने जाते हैं । आरंभिक शिक्षा पूरी होने के बाद स्वाध्याय – से हिंदी, अंग्रेजी, बांग्ला और उर्दू का ज्ञान प्राप्त किया ।

उन्होंने उस समय के कवियों के प्रिय विषय समाज-सुधार के स्थान पर रोमांटिक प्रेम को कविता का विषय बनाया । उनकी कविताओं में देशप्रेम और वैयक्तिक प्रेम दोनों मौजूद है, लेकिन देशप्रेम को ही विशेष स्थान दिया गया है । कविता कौमुदी (आठ भाग) में उन्होंने हिन्दी, उर्दू, बांग्ला और संस्कृत की लोकप्रिय कविताओं का संकलन किया है ।

इसी के एक खंड में ग्रामगीत संकलित हैं, जिसे उन्होंने गाँव-गाँव घूमकर एकत्र किया था । लोक-साहित्य के संरक्षण की दृष्टि से हिंदी में यह उनका पहला मौलिक कार्य था । हिंदी में वे बाल साहित्य के जनक माने जाते हैं । उन्होंने कई वर्षों तक वानर नामक बाल पत्रिका का संपादन किया, जिसमें मौलिक एवं शिक्षाप्रद कहानियाँ, प्रेरक प्रसंग आदि प्रकाशित होते थे ।

कविता के अलावा उन्होंने नाटक, उपन्यास, आलोचना, संस्मरण आदि अन्य विधाओं में भी रचनाएँ की । त्रिपाठी जी गाँधीवादी सिद्धांतों से प्रभावित साहित्यकार हैं । स्वदेश भक्ति और राष्ट्रीय-प्रेम आपके साहित्य का प्रधान विषय रहा है । राष्ट्र के नवयुवकों को प्रेरणा देना ही उनके साहित्य का उद्देश्य रहा है । इन्होंने देशभक्ति में प्रेम तत्त्व का मिश्रण करके काव्य में माधुर्य का समावेश कर दिया है ।

ये एक बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न साहित्यकार हैं, जिसके कारण आज भी लोग उन्हें श्रद्धा की दृष्टि से देखते हैं । रामनरेश त्रिपाठी की काव्यभाषा शुद्ध खड़ीबोली है । भाषा परिमार्जित, सुव्यवस्थित तथा प्रसाद गुण सम्पन्न हैं । स्पष्टता एवं प्रवाह उनकी भाषा की विशेषता है । इनकी काव्य-शैली में गतिशीलता है । भावानुरूप भाषा-शैली के कारण हिन्दी काव्य-जगत में त्रिपाठी जी का स्थान महत्त्वपूर्ण है ।

कवि ने किसका राज्य परम सुंदर बताया है बताइए? - kavi ne kisaka raajy param sundar bataaya hai bataie?

काव्य सारांश :

‘पथिक’ कविता दरअसल कवि रामनरेश त्रिपाठी के प्रसिद्ध खण्डकाव्य ‘पथिक’ के प्रथम सर्ग से लिया गया अंश है । इसमें काव्य-नायक पथिक संसार की आपाधापी से विरक्त होकर कहीं दूर प्रकृति के प्रांगण में बस जाना चाहता है । पथिक प्रकृति के सौंदर्य पर वारि-वारि जाता है – मुग्ध हो जाता है । यहाँ किसी सज्जन की सलाह से देश-सेवा का व्रत लेता है ।

राजा उसे मृत्यु-दण्ड देता है, मगर उसकी कीर्ति समाज में बनी रहती हैं । सागर किनारे खड़ा पथिक सागर के मोहक रूप पर मुग्ध होकर बादलों पर बैठकर सवारी करके वह रत्नाकर (समुद्र) का कोना-कोना देखना चाहता है । सागर किनारे से सूर्योदय की सुंदर कल्पना करते हुए कवि कहता है सूर्य की किरणों ने लक्ष्मी को लाने के लिए मानो सोने की सड़क बना दी है ।

सागर की निर्भय, गंभीर गर्जन और लहरों का उठनागिरना मोहक दृष्य खड़ा कर रहा है, जिसे देखकर पथिक पुलकित हो रहा है । कवि ने सागर किनारे से दिखनेवाले चंद्रोदय और आकाश में तारों भरी रात का नजारा मनमोहक है । कवि उसके मोहक रूप पर मुग्ध है । चाँद हँसता-सा नज़र आता है और उसका चाँदनी से पेड़-पत्ते-पुष्प और तने सब सज-धजे से लगने लगते हैं ।

पेड़ सुंदर दिखने लगते हैं, पक्षी चहक उठते हैं, फूल महक उठते हैं । वन, उपवन, पर्वत और मैदानों में बादल बरस पड़ते हैं । पथिक प्रकृति सौंदर्य पर भावुक होकर नयन-नीर बहाने लगता है । कवि प्रकृति के इस मधुर, मनोहर, उज्ज्वल प्रेमकहानी को अक्षर का रूप देकर जन-जन तक पहुँचाना चाहता है । इतना ही नहीं, प्रकृति के निकट सांनिध्य को वह प्रेम का परम, सुंदर राज्य कहता है और वहीं सुख-चैन से जीना चाहता है ।

काव्य का भावार्थ :

प्रतिक्षण नूतन वेश बनाकर रंग-बिरंग निराला ।
रवि के सम्मुख थिरक रही है नभ में वारिद-माला ।
नीचे नील समुद्र मनोहर ऊपर नील गगन है ।
घन पर बैठ, बीच में बिचकै यही चाहता मन है ।।

प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में कवि रामनरेश त्रिपाठी सांसारिक आपाधापी से मुक्त होकर प्रकृति के अनुपम सौंदर्य पर मुग्ध होकर वहीं बस जाना चाहता है । कवि ने पथिक के माध्यम से सुंदर प्रकृति चित्रण किया है । प्रस्तुत काव्यांश में पथिक पल-पल परिवर्तित होते हुए बादलों की रूपाकृति का वर्णन करते हुए कहता है कि सूर्य की रोशनी में रंग-बिरंगे बादल प्रति-क्षण नया-नया रूप धारण करते हैं, जो बड़े ही निराले लगते हैं ।

आकाश में वर्षा-बूंदों की झड़ी रवि के सम्मुख थिरकती-सी नज़र आती है । नीचे नीला समुद्र है और ऊपर नीलाकाश है । ऐसे मनोहर, मनभावन वातावरण में कविहृदय कल्पना लोक में पहुँच जाता है । उसका मन बादल पर सवार होकर नीले समुद्र और नीलगगन के बीच मन-भर उड़ना चाहता है, विचरण करना चाहता है ।

रत्नाकर गर्जन करता है, मलयानिल बहता है ।
हरदम यह हौसला हृदय में प्रिये ! भरा रहता है ।
इस विशाल, विस्तृत, महिमामय रत्नाकर के घर के
कोने-कोने में लहरों पर बैठ फिरूँ जी भर के ।।

प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में पथिक लहराते, गर्जन करते समंदर और मलय पर्वत से आनेवाली सुगंधित हवाओं को देखकर उत्साहित हो जाता है । अपनी प्रिया को संबोधित करते हुए कहता है, कि हे प्रिये ! ऐसे रम्य वातावरण में मेरे हृदय में हरदम यह हौसला उमड़ता रहता है कि इस विशाल, विस्तृत, अनंत और महिमामय समंदर के घर का कोना-कोना (दूर-दूर तक) लहरों पर सवार होकर घूम आऊँ ।

निकल रहा है जलनिधि-तल पर दिनकर-बिंब अधूरा ।
कमला के कंचन-मंदिर का मानो कांत कँगूरा ।
लाने को निज पुण्य-भूमि पर लक्ष्मी की असवारी ।
रत्नाकर ने निर्मित कर दी स्वर्ण-सड़क अति प्यारी ।।
निर्भय, दृढ़, गंभीर भाव से गरज रहा सागर है ।
लहरों पर लहरों का आना सुंदर, अति सुंदर है ।
कहो यहाँ से बढ़कर सुख क्या पा सकता है प्राणी ?
अनुभव करो हृदय से, हे अनुराग-भरी कल्याणी ।।

यहाँ कवि ने समुद्र के किनारे के सूर्योदय की सुंदर कल्पना की है । सूर्योदय हो रहा है, समुद्रतल पर उसका अधूरा प्रतिबिम्ब दिखाई दे रहा है । कारण यह है कि आधा सूर्य जल के भीतर और आधा बाहर दिखाई दे रहा है । यह दृश्य ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो लक्ष्मी देवी के स्वर्णमंदिर का चमकता हुआ कंगूरा है ।

पथिक ऐसी कल्पना कर रहा है कि समुद्र ने अपनी पुण्य-भूमि पर लक्ष्मी की सवारी लाने हेतु सुंदर सोने की सड़क निर्मित कर दी हो । (सुबह-सवेरे की सूर्यकिरणे स्वर्णिम दिखाई देती हैं । समुद्र किनारे , खड़े होकर जब हम दूर समुद्र में उगते हुए सूर्य को देखते हैं तब स्वर्णिम किरणें सड़क-सी ही प्रतीत होती है ।)

कवि आगे समुद्र की गर्जन में निर्भयता, दृढ़ता एवं गंभीरता आदि भाव की प्रतीति करते हुए कहता है कि समुद्र निर्भीक होकर दृढ़ता व गंभीरता से गरज रहा है । ऐसे में समंदर की लहरें भी अपनी मस्ती में आकर लगातार उठती रहती हैं, जो अपने आप में बेहद सुंदर दृश्य उत्पन्न करता है । वह फिर अपनी प्रेममयी, कल्याणी प्रिया से प्रश्न करता है कि बताओ यहाँ से बढ़कर सुंदर दृश्य और कहीं देखने को मिलेगा ? अर्थात् यह नज़ारा अपने आप में सुंदर है, अनुपम है, अद्वितीय है ।

जब गंभीर तम अर्द्ध-निशा में जग को ढक लेता है ।
अंतरिक्ष की छत पर तारों को छिटका देता है ।
सस्मित-वदन जगत का स्वामी मृदु गति से आता है ।
तट पर खड़ा गगन-गंगा के मधुर गीत गाता है ।
उससे ही विमुग्ध हो नभ में चंद्र विहँस देता है ।
वृक्ष विविध पत्तों-पुष्पों से तन को सज लेता है ।
पक्षी हर्ष संभाल न सकते मुग्ध चहक उठते हैं ।
फूल साँस लेकर सुख की सानंद महक उठते हैं ।।

प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने प्रकृति का सुंदर मानवीकरण किया है । कवि समुद्र किनारे से अर्द्ध-रात्रि के सुंदर नजारे का चित्र खींचता हुआ कहता है कि आधी रात में जब गहन अंधकार जगत को ढंक लेता है अर्थात् चारों ओर रात्रि का अंधकार छा जाता है । आकाश की छत पर तारे टिमटिमाने लगते हैं । ऐसे समय में जगत का स्वामी अर्थात् ईश्वर मुस्कराते हुए धीरे-धीरे आता है ।

और समुद्र तट पर खड़ाकर आकाश के मधुर गीत गाने लगता है । ईश्वर के इस मधुर गीत पर मोहित होकर आकाश में चाँद भी हँसने लगता है । ऐसे में पेड़-पौधे भी मुग्ध होकर अपने-आप को पुष्पित पल्लवित करके सज्ज-धज्ज जाते हैं । पक्षी भी अपने-आप को कैसे वश में रख सकते हैं ? वे भी प्रकृति के इस मोहक रूप पर मुग्ध होकर चहक उठते हैं, गुनगुनाने लगते हैं, कलरव करने लगते हैं, मधुर गीत गाने लगते हैं । फूलों का तो क्या कहना ! वे सुख की साँस लेकर सानंद महक उठते हैं ।

वन, उपवन, गिरि, सानु, कुंज में मेघ बरस पड़ते हैं ।
मेरा आत्म-प्रलय होता है, नयन नीर झाड़ते हैं ।
पढ़ो लहर, तट, तृण, तरु, गिरि, नभ, किरन, जलद पर प्यारी ।
लिखी हुई यह मधुर कहानी विश्व-विमोहनहारी ।।
कैसी मधुर मनोहर उज्ज्वल है यह प्रेम-कहानी ।
जी में है अक्षर बन इसके बनूँ. विश्व की बानी ।
स्थिर, पवित्र, आनंद-प्रवाहित, सदा शांति सुखकर है ।
अहा ! प्रेम का राज्य परम सुंदर, अतिशय सुंदर है ।।

प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने सार्वत्रिक वर्षा का सुंदर चित्र उपस्थित किया है । वह कहता है कि वन, उपवन, पर्वत, मैदान और कुंजों में मेघ उमड़-घुमड़ कर बरस रहें हैं । प्रकृति के ऐसे रम्य वातावरण में कवि आत्म-विभोर हो जाता है । अचानक ही उसकी आँखों से नयन-नीर (अश्रु) बहने लगते हैं । वह अपनी प्रिया से प्रकृति की बारहखड़ी को समझने और पढ़ने का आग्रह करते हुए कहता है कि प्रिय तुम लहर, तट, घास, पर्वत, आकाश, किरण, बादल, आदि पर छिंटकी हुई और विश्व को विमोहित करनेवाली प्रकृति की इस मधुर कहानी को पढ़ो ।

प्रकृति, सौंदर्य की यह प्रेम कहानी बहुत ही मधुर, मनोहर और पावन है । पथिक यह कामना करता है कि वह इस प्रेम कहानी का अक्षर बन जाए और विश्व की वाणी बन जाए । अर्थात् प्रकृति के इस मोहक रूप और उसके क्रिया-कलापों के रहस्यों को जनजन तक पहुँचा दे । यहाँ पर स्थिर (न बदलनेवाली) पवित्र आनंद प्रवाहित होता रहता है तथा सदैव सुखद शांति है । यहाँ प्रेम का परम सुंदर राज्य छाया रहता है, जो अपने आप में बेहद सुंदर है ।

कवि ने किसका राज्य परम बताया है?

➲ (अ) प्रेम ⏩ कवि ने प्रेम का राज्य परम सुंदर बताया है। अर्थात कवि प्रकृति के सुंदर रूप पर मोहित हो उठा है और प्रकृति के अद्भुत सौंदर्य से अभिभूत होकर वह उसे सबसे अधिक सुंदर कहकर स्वयं को होने वाले अपने परम आनंद को अभिव्यक्त कर रहा है। इस तरह कवि ने प्रेम के राज्य को परम सुंदर बताया है।

कवि ने किस राज्य का सर्वाधिक सुन्दर कहाँ है?

कवि ने प्रकृति रूपी प्रेम के राज्य को सर्वाधिक सुंदर कहा है।

कवि ने पथिक को क्या संदेश दिया है?

Explanation: समुद्र के बारे में पथिक के माध्यम से कवि बताता है कि यह रत्नों से भरा हुआ है। यहाँ सुगंधित हवा बह रही है तथा समुद्र गर्जना कर रहा है। इसका अर्थ है कि कवि लहरों पर बैठकर महान तथा दूर-दूर तक फैले सागर का कोना-कोना घूमकर उसके अनुपम सौंदर्य को देखना चाहता है।

कवि किसके रूप पर मोहित है और क्यों?

कवि प्रकृति के सुंदर रूप पर मोहित है। ⏩ 'पथिक' कविता में कविता का नायक पथिक रूपी कवि प्रकृति के सुंदर रूप पर मोहित होकर उसी प्रकृति में बसने की इच्छा व्यक्त करता है। सागर के किनारे किनारे खड़ा पथिक सागर के अद्भुत सौंदर्य को निहार रहा है। वह प्रकृति के अद्भुत सौंदर्य को एक मधुर मनोहर कहानी की तरह पाना चाहता है।