क्या पशु पक्षी अपने प्रति दर्शाए गए मानव प्रेम को समझते हैं? - kya pashu pakshee apane prati darshae gae maanav prem ko samajhate hain?

हमारी सभ्यता और संस्कृति के विकास के प्रारंभिक चरण में जब मानव जंगलों और गुफाओं में रहता था उस समय से ही हमें पशु और पक्षियों के प्रति मानव प्रेम के उदारहण देखने को मिलते हैं। हजारों साल प्राचीन शैल गुफाओं में मानव ने जो रेखाएं खींची उनमें पशु और पक्षियों के प्रतीक मिले हैैं। पशु-पक्षियों के बिना मानव जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है। वन्यजीवों,पशुओं एवं विभिन प्रजाति के पक्षियों से हमारा पारिस्थितिकीय तंत्र संतुलित रहने में मदद मिलती है। पक्षी परागण में सहायक होते हैं तथा कुछ फसलों के लिये कीटनाशी बनते हैं। रंगबिरंगी तितलियां,चिड़ियां, तोते ,सारस, बतख आदि पक्षी और विभिन्न किस्मों की एवं आकर प्रकार की रंगबिरंगी मछलियां देख कर भला कौन है जो आनन्दित नहीं होगा।
        पशु-पक्षी प्रेम का मानव सम्बंध अविरल चला आ रहा है। हमारी परम्परागत चित्रकला और धार्मिक स्थल इस बात के ठोस प्रमाण है। चित्रकला में रागनी चित्रों में विशेषकर प्रकृति के साथ मोर, चिड़ियां, हिरण, हाथी, घोडे़ आदि का चित्रण प्रचुरता से किया गया है। इसी प्रकार धार्मिक स्थलों की स्थापत्य कला में प्रकृति के बेल-बूटो एवं पुष्पों के साथ हाथी, घोडे़, बन्दर आदि की संरचनाएं ऊंकेरी गई हैं। पशु-पक्षियों के प्रति मानव प्रेम का इससे बड़ा उदारहण और क्या हो सकता है कि जिराफ, गेंडा, वनमानुष, बब्बर शेर जैसे लुप्त हो रही प्रजातियों के पशुओं के संरक्षण की योजनाएं चलाई जा रही हैं तथा नई पीढ़ी को इनसे अवगत कराने के लिए देश के विभिन्न राष्ट्रीय अभयारण्यों और जन्तुआलयों में रखा गया हैं। 
        पशु और पक्षी हमारे जनजीवन से इतने गहरे जुडे़ हैं कि कुत्ता एक पालतू जानवर हो गया है जिसे प्रेम करने वाले एक बच्चें के समान पाल-पोष कर बड़ा करते हैं। इसके बारें में कहावत बन गयी है कि कुत्ता सबसे वफादार जानवर है। इसी प्रकार पक्षी प्रेमी अपने घरों पर तोते, विभिन्न प्रकार रंगबिरंगी चिड़ियाएं, मुर्गी, कबूतर, खरगोश, जलीय जीव बतख एवं रंगबिरंगी विभिन्न प्रजातियों की मछलियां आदि पालते हैं। पशु एवं पक्षियों के प्रति उनका इतना ममत्व होता है कि वे इन्हें यथासंभव प्राकृतिक वातावरण उपलब्ध कराते हैं और इनके भोजन व पानी का पूरा ध्यान रखते हैं। 
          विशेषकर ग्रीष्म ऋतु में तेज गर्मी से पशु एवं पक्षी व्याकुुल हो जाते हैं। मूक प्रकृति के ये जीव अपनी व्याकुलता को व्यक्त भी नहीं कर पाते हैं इनकी प्यास बुझाने के लिए परिंडे बांधते हैं एवं दाना-पानी की व्यवस्था करते हैं। पशुओं से प्रेम करने वाले अपने घरों के सामने पशुओं के लिए एक टंकी रखकर पीने के पानी की व्यवस्था करते हैं।
         पशुओं के महत्व को देखते हुए लोग पशुपालन का व्यवसाय भी करते हैं। प्राचीन समय से ही गाय, भैस, बैल, ऊंट, बकरी एवं भेड पालन की परम्परा रही हैै। ये पशु कई प्रकार से उपयोगी होते है। जहां दुधारू पशु दूध की आपूर्ति करने में मददगार होते है वहीं ऊंट एवं बैल विविध प्रकार से खेती में किसान के लिए उपयोगी रहते हैं। आज पशुओं की नस्ल सुधार, इनके गोबर से खाद व कम्पोस्ट तैयार करने तथा दुग्ध उत्पादों को अधिक उपयोगी बनाने पर निरन्तर अनुसंधान किये जा रहे हैं। इन अनुसंधानों से पशुपालकों को आर्थिक रूप से समर्थ होने में सहायता मिल रही हैं। 
         वन्यजीवों  को हमारे जंगलों और अभयारण्यों में देखा जा सकता है। वन्यजजीवों को बचाने एवं संरक्षित करने के लिए देश में अभयारण्यों का विकास किया गया एवं कई जगह चिड़ियाघर विकसित किये गए। अनेक जीवों का अस्तित्व समाप्त होने के कगार तक पहुँच गया जिन्हें संरक्षित करने के लिये उनके संरक्षण की विशेष योजनाएं संचालित की गई। प्ररम्भ में स्थापित अभयारण्यों में से अनेक को देश में राष्ट्रीय प्राणी पार्क बनाये गए । देश का प्रथम कॉर्बेट राष्ट्रीय प्राणी उद्यान 1936 में उत्तराखंड( पूर्व में उत्तर-प्रदेश में शामिल) में स्थापित किया गया। जम्मू एवं कश्मीर का हेमिसा ,राजस्थान का मरुभूमि,उत्तराखंड का गंगोत्री, अरुणाचल प्रदेश का नमदाफा ,सिक्किम खांगचेगंडोंगा, छत्तीसगढ़ के गुरु घासीदास एवं इंद्रावती, गुजरात का गिर एवं पश्चिम बंगाल का सुन्दरबन  देश के प्रमुख  विख्यात  राष्ट्रीय प्राणी पार्क हैं। ये नेशनल पार्क लुप्त होते वन्य जीवों का संरक्षण तो करते ही हैं वहीं इन्हें  देखने के लिये पूरे विश्व से सैलानी आते हैं। भारत के इन प्रमुख राष्ट्रीय अभयारण्यों के साथ-साथ प्रत्येक राज्य एवं संघ शासित राज्यों में अनेक अभ्यारण्य स्थित हैं।

Source :

मनुष्य और पशु-पक्षी एक-दूसरे पर निर्भर

अक्सर इंसान और जानवर के बीच संघर्ष होने, एक-दूसरे पर हमला करने की वारदात होती रहती है। मनुष्य क्योंकि सोच सकता है इसलिए वह अपने लाभ के लिए उनकी नस्ल मिटाने में भी संकोच

अक्सर इंसान और जानवर के बीच संघर्ष होने, एक-दूसरे पर हमला करने की वारदात होती रहती है। मनुष्य क्योंकि सोच सकता है इसलिए वह अपने लाभ के लिए उनकी नस्ल मिटाने में भी संकोच नहीं करता जबकि प्रकृति की अनूठी व्यवस्था है कि दोनों अपनी-अपनी हदों में एक साथ रह सकते हैं।

प्राकृतिक संतुलन : देश में चीते समाप्त हो गए थे और जानकारों के मुताबिक उससे प्राकृतिक सतुंलन में विघ्र पड़ रहा था, इसलिए उन्हें फिर से यहां बसाया जा रहा है। कुछ तो महत्वपूर्ण होगा कि यह कवायद की गई। चीता सबसे तेज दौडऩे वाला जीव है, अपनी हदें पार न करने के लिए जाना जाता है, जैव विविधता और ईकोसिस्टम बनाए रखने में सहायक है। वन संरक्षण के लिए जरूरी जानवरों की श्रेणी में आता है जैसे शेर, बाघ, तेंदुआ, हाथी, गैंडा जैसे बलशाली, भारी भरकम और बहुउपयोगी पशु हैं।

सभी पशु पक्षी मनुष्य के सहायक हैं लेकिन यदि उनके व्यवहार को समझे बिना उनके रहने की जगह उजाडऩे की कोशिश की जाती है तो वे हिंसक होकर विनाश कर सकते हैं। उदाहरण के लिए हाथी जमीन को उपजाऊ  बना सकता है लेकिन उसे क्रोध दिला दिया तो पूरी फसल चौपट कर सकता है। इसी तरह गैंडा कीचड़ में रहकर मिट्टी की अदला-बदली का काम करता है, प्रतिदिन 50 किलो वनस्पति की खुराक होने से जंगल में कूड़ा-कर्कट नहीं होने देता और उसके शरीर पर फसल के लिए हानिकारक कीड़े जमा हो जाते हैं, वे पक्षियों का भोजन बनते हैं और इस तरह संतुलन बनाए रखते हैं। लेकिन यदि वह विनाश पर उतर आए तो बहुत कुछ नष्ट कर सकता है।

हाथी के दांत और गैंडे के सींग के लिए मनुष्य इनकी हत्या कर देता है जबकि ये दोनों पदार्थ उसकी कुदरती मौत होने पर मिल ही जाने हैं। इन पशुआें के सभी अंग और उनके मलमूत्र दवाइयां बनाने से लेकर खेतीबाड़ी के काम आते हैं और कंकाल उर्वरक का काम करते हैं। ये दोनों पशु कीचड़ में रहकर दूसरे जानवरों के पीने के लिए किनारे पर पानी का इंतजाम करते हैं और सूखा नहीं पडऩे देते, सोचिए अगर ये न हों तो जंगल में प्यास, गर्मी और सूखे से क्या हाल होगा?

मांसाहारी पशु शाकाहारियों का शिकार करते हैं और उनकी आबादी को नियंत्रित करने का काम करते हैं। जो घास फूस खाते हैं, वे वनस्पतियों को जरूरत से ज्यादा नहीं बढऩे देते और इस तरह जंगल में अनुशासन बना रहता है। इसका प्रभाव मनुष्य पर पड़ता है और वह प्राकृतिक संतुलन होने से मौसम का मिजाज बिगडऩे से होने वाले नुक्सान से बचा रहता है। यदि हम वन विनाश करते हैं, अंधाधुंध जंगलों को नष्ट करते हैं तो उसका सीधा असर हम पर पड़ता है।

निर्भरता : बहुत से पशु-पक्षी एेसे हैं जो न हों तो मनुष्य का जीना मुश्किल हो जाएगा। चमगादड़ जैसा जीव कुदरती कीटनाशक है। यह एक घंटे में खेतीबाड़ी के लिए हानिकारक एक हजार से अधिक कीड़े-मकौड़े खा जाता है। मच्छरों को पनपने नहीं देता और इस तरह कृषि और उसमें इस्तेमाल होने वाले जानवरों और दुधारू पशुओं की बहुत-सी बीमारियों से रक्षा करता है। ऊदबिलाव जैसा जीव बांधों और तालाबों में जमीन की नमी और हरियाली बनाए रखता है। इससे सूखा पडऩे पर आग नहीं लग पाती। वेटलैंड का निर्माण भी करते हैं और जरूरी कार्बन डाइअक्साइड का भंडार देते हैं।

मधुमक्खी, तितली और चिडिय़ों की प्रजाति के पक्षी अन्न उगाने में किसान की भरपूर सहायता करते हैं। परागण में कितने मददगार हैं, यह किसान जानता है। पेस्ट कंट्रोल का काम करते हैं। गिलहरी को तो कुदरती माली कहा गया है। केंचुआ जमीन को उपजाऊ  बनाने के लिए कितना जरूरी है, यह किसान जानता है। मारे जितने भी पाले जा सकने योग्य जानवर और दूध देने वाले पशु हैं, उनकी उपयोगिता इतनी है कि अगर वे न हों या उनकी संख्या में भारी कमी हो जाए तो मनुष्य की क्या दशा होगी, इसकी कल्पना की जा सकती है। गाय, भैंस, गधे, घोड़े, बैल, सांड से लेकर कुत्ते बिल्ली तक किसी न किसी रूप में मनुष्य के सहायक हैं। इसीलिए कहा जाता है कि पशु पक्षी आॢथक संपन्नता के प्रतीक हैं।

आज विश्व में इस बात की होड़ है कि गंभीर बीमारियों की चिकित्सा के लिए औषधियों की खोज और निर्माण के लिए भारतीय जड़ी-बूटियों और पारपंरिक नुस्खों को प्राप्त किया जाए। इसके लिए अंतर्राष्ट्रीय षड्यंत्र हो रहे हैं और इस बहुमूल्य संपदा की तस्करी करने वाले बढ़ रहे हैं। यह एक तरह से अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है क्योंकि लालच में आकर हम जो कर रहे हैं वह विनाश का निमंत्रण है।

इस स्थिति में सुधार तब ही संभव है जब सामान्य व्यक्ति यह समझ सके कि मनुष्य और पशु एक-दूसरे पर न केवल निर्भर हैं बल्कि पूरकभी हैं। दोनों का अस्तित्व ही खुशहाली का प्रतीक है। यदि जंगल से एक जीव लुप्त हो जाता है तो उसका असर सम्पूर्ण पर्यावरण पर पडऩा स्वाभाविक है। चीता इसका उदाहरण है। इस लुप्त हो गए जीव को फिर से स्थापित करने का प्रयास यही बताता है कि किसी भी भारतीय पशु के लुप्त होने का क्या अर्थ है। औद्योगिक विकास देश की अर्थव्यवस्था के लिए आवश्यक है लेकिन यदि इससे जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक असंतुलन पैदा होता है तो दोबारा सोचना होगा।-पूरन चंद सरीन

क्या आपको लगता है कि पशु पक्षी भी हमारे प्रेम को समझ लेते हैं?

वैसे तो जानवरों और पक्षियों से इंसान का प्यार कोई नयी बात नहीं है। युगों से इंसान पशु-पक्षियों से प्यार करता रहा है। दुनिया में कई सारे लोग हैं, जो पक्षियों और जानवरों से बेहद प्यार करते हैं। कई लोगों ने कुत्ता, बिल्ली जैसे जानवरों को ऐसे अपना लिया है कि वे उन्हें अपने घर-परिवार का बेहद अहम हिस्सा मानते हैं

पशु हो या पक्षी मानव के प्रेम को समझते हैं क्या आपने भी किसी पशु या पक्षी के प्रेम को कभी समझा है कैसे?

जी हां , पशु-पक्षियों में भी मनुष्यों की भांति प्रेम की भावना होती है । इसीलिए पशु-पक्षी समूह में रहते हैं और प्रकृति के नियमों के अनुसार चलते हैं । अकारण किसी पर हमला नहीं करते । दैनिक दिनचर्या के ऐसे काम जो मनुष्य नहीं कर सकता पशु सहज भाव में ही कर देते हैं

हमें पशु पक्षियों से प्रेम क्यों करना चाहिए?

जिस तरह हम इंसान एक दूसरे से प्रेम करते हैं उसी तरह हमें पशुओं से भी प्रेम करना चाहिए क्योंकि पशु हमारे कई काम आते हैं जैसे कि गाय हमें दूध मिलती है भेड़ से हमे ऊन मिलता है, तथा अन्य चिजो की प्राप्ति होती है। पशु बहुत अफादार होते है, और अपने मालिक की रक्षा करते है।

क्या पशु पक्षी हमारे भाव समझते हैं एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट कीजिए?

उत्तरः पशु-पक्षी हमारी ही तरह के जीव होते हैं उनमें भी हमारी तरह ही भावनाएँ होती हैं। वे खुश भी होते हैं, दुःखी भी। कष्टों का अनुभव करते हैं और सुख का भी। अगर हम उनको पालतू बनाकर रखेंगे तो इसका अर्थ यह हुआ कि उन्हें हम एक तरह से बंधक बनाकर रख रहे हैं, उनकी प्राकर्तिक स्वतंत्रता छीन रहे है।

संबंधित पोस्ट

Toplist

नवीनतम लेख

टैग