खिलजी वंश के बाद कौन सा वंश आया - khilajee vansh ke baad kaun sa vansh aaya

क़ुतुबुद्दीन मुबारक ख़िलजी (1316-1320 ई.) ख़िलजी वंश के सुल्तान अलाउद्दीन ख़िलजी का तृतीय पुत्र था। अलाउद्दीन के प्रभावशाली व्यक्तियों में से एक मलिक काफ़ूर इसका संरक्षक था। कुछ समय बाद मलिक काफ़ूर स्वयं सुल्तान बनने का सपना देखने लगा और उसने षड़यंत्र रचकर मुबारक ख़िलजी की हत्या करने की योजना बनाई। किंतु मलिक काफ़ूर के षड़यंत्रों से बच निकलने के बाद मुबारक ख़िलजी ने चार वर्ष तक सफलतापूर्वक राज्य किया। इसके शासनकाल में राज्य में प्राय: शांति व्याप्त रही।

खिलजी वंश (1290 से 1320 ई.)

        तुर्कों की 64 शाखाएं मानी जाती हैं, जिनमें से एक थे खिलजी। यह शाखा अफगानिस्तान की हेललमंद घाटी में चौथी शताब्दी में ही बस चुकी थी। इस क्षेत्र को खिलजी क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता था। खिलजी क्रांति ने न केवल गुलाम वंश को समाप्त कर नवीन खिलजी वंश की स्थापना की बल्कि इस क्रांति के परिणामस्वरूप दिल्ली सल्तनत का सुदूर दक्षिण तक विस्तार हुआ। इसके द्वारा तुर्की अमीर वर्ग का सत्ता पर एकाधिकार और तुर्की लोगों की जातीय तानाशाही समाप्त हो गई। जलालुद्दीन का राज्यारोहण मध्यकालीन भारत के राजनीतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास में एक क्रान्ति का प्रतीत था।

खिलजी वंश में 6 सुल्तान हुए, जिनके नाम क्रमवार निम्नलिखित हैं-

  • जलालुद्दीन (1290-96 ई.)
  • रूकनुद्दीन खिलजी (1296 ई.)
  • अलाउद्दीन खिलजी (1296-1316 ई.)
  • शहाबुद्दीन उमर (1316 ई.)
  • मुबारक खिलजी (1316-20 ई.)
  • खुसरो (1320 ई.)

जलालुद्दीन फिरोज खिलजी (1290-96 ई.)

  • खिलजी वंश का संस्थापक फिरोज खिलजी था, जिसने भारत में सत्ता स्थापना के बाद जलालुद्दीन की पदवी धारण की।
  • खिलजी वंश के संस्थापक तुर्क थे, हालांकि इतिहासकारों में इस बात को लेकर मतभेद है।
  • जलालुद्दीन खिलजी ने बलबन के कार्यकाल में एक अच्छे सेनानायक के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त की थी। उसने कई अवसरों पर मंगोल आक्रमणकारियों का मुकाबला किया और सफलता प्राप्त की।
  • जलालुददीन का राजनीतिक उत्कर्ष कैकुबाद (1286-1290 ई.) के समय में प्रारंभ हुआ। कैकुबाद के समय वह ‘समाना’ का सूबेदार तथा सर-ए-जहांदार (शाही अंगरक्षक) के पद पर नियुक्त था। कैकूबाद  ने उसको ‘शाइस्ता खां’ की उपाधि दी।
  • 1290 ई. में कैकूबाद द्वारा निर्मित किलोखरी के महल में जलालुद्दीन ने अपना राज्याभिषेक कराया और दिल्ली का सुल्तान बना। इसने किलोखरी को अपनी राजधानी बनाया। राज्याभिषेक के समय जलालुद्दीन की आयु 70 वर्ष थी।
  • बलबन की ‘रक्त और लौह’ की नीति त्यागकर इसने उदार नीति अपनाई और मध्यकाल का पहला शासक बना, जिसने जनता की इच्छा को शासन का आधार बनाया। वस्तुतः जलालुद्दीन ने ‘अहस्तक्षेप की नीति’ को अपनाया।
  • जलालुद्दीन के समय 1292 ई. में अब्दुल्ला के नेतृत्व में मंगोलों ने आक्रमण किया। इसी के समय एक और मंगोल आक्रमण हलाकू के पौत्र उलूग खां के नेतृत्व मे हुआ।
  • जलालुद्दीन के काल में लगभग 4 हजार मंगोल इस्लाम धर्म को स्वीकार कर दिल्ली के निकट मुगलपुर/मंगोलपुरी में बस गए, जो ‘नवीन मुसलमान’ कहलाए।
  • जलालुद्दीन के शासनकाल में ही अलाउद्दीन ने देवगिरि (शासक-रामचंद्र देव) का सफलअभियान किया।
  • जुलाई 1296 ई. में अली गुर्शास्प (अलाउद्दीन खिलजी) ने सुल्तान जलालुद्दीन को कड़ा-मानिकपुर बुलाकर गले मिलते समय धोखे से चाकू मारकर हत्या कर दी और सत्ता पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया।

अलाउद्दीन खिलजी

  • अलाउद्दीन खिलजी का जन्म 1266-67 ई. में हुआ था, उसके पिता का नाम शिहाबुद्दीन खिलजी था, जो कि जलालुद्दीन फिरोज खिलजी का भाई था। पिता की अकाल मृत्यु हो जाने के उपरान्त उसके चाचा जलालुद्दीन फिरोज खिलजी ही उसके संरक्षक थे।
  • अलाउद्दीन 1296 से 1316 ई. तक दिल्ली का सुल्तान रहा। वह जलालुद्दीन खिलजी का भतीजा था। 1296 ई. में उसने जलालुद्दीन की हत्या कर दी और सुल्तान बन गया। उसने जलालुद्दीन के पुत्रों की भी हत्या कर दी। अलाउद्दीन ने कई दमनकारी नीतियां अपनाई और अपने विद्रोहियों का निर्ममतापूर्वक सफाया कर दिया।
  • इसके दिल्ली सल्तनत पर आसीन होने के बाद सल्तनत का विस्तार हुआ। उसने एक बड़ी सेना का गठन किया और दिल्ली सल्तनत के विस्तार के लिए कई अभियान शुरू किए।
  • प्रथम अभियान में उसने अपने भाई उलूग खां और वजीर नुसरत खां के नेतृत्व मे गुजरात के हिंदू राजा कर्णदेव पर हमला किया। सोमनाथ मंदिर को ध्वस्त कर दिया गया तथा अन्हिलवाड़ा से बड़ी मात्रा में सम्पत्ति लूटकर लाई गई।
  • लूट में खिलजी सेना ने काफूर हजार दिनारी को कैद कर दिल्ली लाया। उसे बाद में अलाउद्दीन ने मलिक नायब का पद दिया।
  • इसके बाद भी अलाउद्दीन ने अपने अभियान को जारी रखा तथा अनेक राजयों पर विजय प्राप्त की। 1301 ई. में उसने रणथम्भौर को, 1303 ई. में चित्तौड़  को, 1309 ई. में सिवाना को तथा इसी के आपपास जालौर को भी अपने अधीन कर लिया।
  • उसने उज्जैन, धार, मांडू और चंदेरी को भी जीत लिया।
  • अलाउद्दीन की सेना ने इसके बाद मलिक काफूर के नेतृत्व में दक्षिणी अभियान की शुरूआत की।
  • 1307 ई. में देवगिरि को पुनः जीता तथा 1310 ई. में ओरंगल के काकतीय राज्य को ध्वस्त कर डाला। 1310 ई. में ही द्वारसमुद्र अभियान की शुरूआत की। 1311 ई. में द्वारसमुद्र की घेराबंदी के दौरान बल्लालदेव ने आत्मसमर्पण कर दिया।
  • इस प्रकार मुसलमानी राज्य कन्याकुमारी तक दोनों तटों पर पहुंच गया। अलाउद्दीन की सेना 1311 ई. में अपार सम्पत्ति के साथ दिल्ली लौटा। अब, अलाउद्दीन के सल्तनत का विस्तार हिमालय से कन्याकुमारी तक हो गया।
  • अलाउद्दीन के राज्य में कवियों को आश्रय प्राप्त था। अमीर खुसरो और अमीर हसन को आश्रय मिला था। अलाउद्दीन इमारतें बनवाने का शौकीन था। उसने कई मस्जिदें भी बनवाई।
  • अपने शासन के आरंभकाल में हुए विद्रोहों पर विचार करने के बाद अलाउद्दीन ने चार कारण निकाले-(1) सुल्तान का अक्षम होना (2) मद्यपान (3) अमीरों की आपसी तालमेल (4) बेशुमार सम्पत्ति
  • इन सभी कारणों को ध्यान में रखते हुए उसने कई कदम उठाए। शराब पीने और बेचने पर पाबंदी लगा दी गई। गुप्तचर संगठन बनाया गया और सुल्तान की इजाजत के बिना अमीरों के रिश्ते कायम होने पर पाबंदी लगा दिए गए। सभी निजी सम्पत्ति को राज्य के अधिकार में कर लिया गया। लोगों पर भारी कर लगाए गए और कर वसूली के सख्त कानून बनाए गए
  • अलाउद्दीन सैन्य व्यवस्था पर विशेष ध्यान रखता था। इसकी पैदल सेना को 234 रूपए वार्षिक वेतन मिलता था। सरकार की ओर से निश्चित मूल्य पर सामानों के विक्रय का प्रबंध था। यद्यपि उसने अपने शासनकाल में तलवार और युद्ध के बल पर अपना शौर्य बनाए रखा लेकिन 1312 ई. के बाद उसे कोई बड़ी सफलता प्राप्त नहीं हुई। 2 जनवरी, 1316 ई. को अलाउद्दीन का निधन हो गया।

राजनैतिक अभियान

उत्तर भारत की विजय

गुजरात पर आक्रमण (1298-99 ई.)

  • गुजरात का राज्य उपजाऊ भूमि एवं व्यापार के कारण समृद्ध था। अलाउद्दीन के समय यहां का शासक रायकर्ण था। इस राज्य पर आक्रमण के लिए अलाउद्दीन ने दो दिशाओं से सेना भेजी।  उलूग खां को सिंध की ओर से तथा नुसरत खां को राजपूताना के मार्ग से भेजा।
  • गुजरात का शासक रायकर्ण इस आक्रमण का सामना नहीं कर सका और वह दक्षिण की ओर भाग गया। रायकर्ण ने देवगिरि के शासक रामचंद्र देव के यहां शरण ली।
  • सुल्तान की सेना ने गुजरात विजय के बाद सूरत सहित कई नगरों व सोमनाथ मंदिर को लूटा। इसी राज्य के खंभात बंदरगाह पर आक्रमण के समय एक हिंदू किन्नर (हिजड़ा) मलिक काफूर को नुसरत खां ने खरीदा जो बाद में अलाउद्दीन के दक्षिण अभियानों का प्रमुख सेनापति बना।
  • मलिक काफूर को ‘हजार दीनारी’ भी कहा जाता है।

रणथंभौर पर आक्रमण (1301 ई.)

  • रणथंभौर राजपूताना का सबसे शक्तिशाली राज्य माना जाता था। यह पहले दिल्ली राज्य का अंग रहा चुका था।
  • अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय यहां का शासक हम्मीरदेव था।
  • सुल्तान ने रणथंभौर पर आक्रमण के लिए उलूग खां एवं नुसरत खां को भेजा।
  • माना जाता है कि यहां लगभग एक साल तक सुल्तान की सेना को कोई सफलता नहीं मिली।
  • अंत में 1301 ई. में हम्मीरदेव का प्रधानमंत्री रणमल सुल्तान से जा मिला। राणा हम्मीरदेव युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुआ। सुल्तान की तरफ से नुसरल खां इस युद्ध में मारा गया।
  • ‘हम्मीर रासो’ के अनुसार, हम्मीर की रानी रंग देवी के साथ अनेक राजपूत महिलाओं ने जौहर (आग में कूदकर आत्मदाह किया) कर लिया।

चित्तौड़ की विजय (1303 ई.)

  • रणथंभौर के पश्चात 1303 ई. में अलाउद्दीन ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया। ऐसा माना जाता है कि चित्तौड़ की रानी पद्मिनी की सुंदरता से प्रभावित होकर अलाउद्दीन ने चित्तौड़ आक्रमण की योजना बनाई।
  • मलिक मुहम्मद जायसी ने अपनी रचना ‘पद्मावत’ में इसका उल्लेख किया।
  • इस अभियान में अमीर खुसरो अलाउद्दीन के साथ था।
  • इस समय चित्तौड़ का शासक राणा रतन सिंह था।
  • इसी अभियान के दौरान मंगोल तारगी बेग ने दिल्ली में सुल्तान की अनुपस्थिति का लाभ उठाकर चढ़ाई कर दी, परंतु अलाउद्दीन ने चित्तौड़ की घेरेबंदी नहीं तोड़ी।
  • चित्तौड़ के राणा रतन सिंह ने घेरेबंदी के सात माह बाद आत्मसमर्पण कर दिया। अलाउद्दीन ने अपने बेटे खिज्र खां को चित्तौड़ विजय के बाद यहां का शासक नियुक्त किया और चित्तौड़ का नाम बदलकर खिज्राबाद कर दिया गया।
  • अलाउद्दीन खिलजी की सेना को 1303 में काकतीय शासकों की सेना ने वारंगल में परास्त किया था।

मालवा की विजय (1305 ई.)

  • चित्तौड़ की विजय के बाद राजपूतों की रियासतों ने अलाउद्दीन की अधीनता स्वीकार करना प्रारंभ कर दिया। उसमें मालवा के राजा महलकदेव ने अधीनता स्वीकार नहीं की।
  • अलाउद्दीन ने प्रतिक्रियास्वरूप मुल्तान के सूबेदार आइन-उल-मुल्क को मालवा पर आक्रमण के लिए 1305 ई. में भेजा, जहां उसे प्रारंभ में कठिन प्रतिरोध झेलना पड़ा, किंतु अंत में आइन-उल-मुल्क का किले पर अधिकार हो गया। तत्पश्चात् उज्जैन, मांडू, धार, चंदेरी तथा जालौर पर भी सुल्तान का अधिकार हो गया।

मारवाड़ की विजय (1308 ई.)

  • सुलतान ने 1308 ई. में मारवाड़ को जीतने का प्रयास किया।
  • मारवाड़ के परमार राजपूत शासक शीतलदेव ने कड़ा संघर्ष किया, अंततः वह मारा गया। कमालुद्दीन गुर्ग को सेवान (मारवाड़) का शासक नियुक्त किया गया।

जालौर की विजय (1311 ई.)

  • जालौर का शासक कर्णदेव परास्त हुआ।
  • जालौर की विजय ने अलाउद्दीन खिलजी की राजस्थान की विजय को पूर्ण कर दिया।

दक्षिण भारत की विजय

  • उत्तर भारत के विपरीत यहां अप्रत्यक्ष शासन, क्योंकि प्रत्यक्ष साम्राज्य विस्तार से साम्राज्य का स्थायित्व प्रभावित होता।
  • मध्य युग का पहला शासक जिसने विंध्य पार किया। कुछ इतिहासकारों के अनुसार उसका मुख्य उद्देश्य दक्षिण की अथाह संपदा को हासिल करना था।
  • दक्षिण भारत के अभियानों का नेतृत्व मलिक काफूर ने किया।
  • दक्षिण अभियान की विस्तृत जानकारी बरनी कृत ‘तारीख-ए-फिरोजशाही’ तथा अमीर खुसरो की रचना ‘खजायन-उल-फुतूह’ एवं इसामी की रचना ‘फुतूह-उस-सलातीन’ से मिलती है।

देवगिरी का आक्रमण (1307 से 08 ई.)

  • अलाउद्दीन ने सुल्तान बनने से पहले भी 1296 ई. में देवगिरि के राजा रामचंद्र देव को पराजित किया था, बाद में रामचंद्र ने सुल्तान को कर देना बंद कर दिया। साथ ही उसने गुजरात के शासक रायकर्ण को शरण दी थी।प्रतिक्रिया स्वरूप अलाउद्दीन ने 1307-08 ई. में मलिक काफूर को देवगिरि पर आक्रमण के लिए भेजा। मलिक काफूर ने रामचंद्र देव को पराजित कर दिल्ली भेज दिया।
  • अलाउद्दीन ने राजा के साथ अच्छा व्यवहार किया और उसे ‘राय रायन’ की उपाधि दी, साथ ही उसका राज्य वापस कर दिया। इस व्यवहार से रामचंद्र इतना प्रभावित हुआ कि उसने फिर कभी भी सुल्तान के विरूद्ध विद्रोह नहीं किया।

तेलंगाना (वारंगल) की विजय (1309-10 ई.)

  • 1303 ई. में वारंगल के असफल अभियान के कलंक को धोने के लिए अलाउद्दीन ने 1309-10 ई. के बीच मलिक काफूर ने नेतृत्व में एक सेना भेजी। इस युद्ध अभियान में मलिक काफूर को देवगिरि के राजा रामचंद्र देव की सहायता भी प्राप्त हुई।
  • मलिक काफूर और वारंगल के शासक प्रताप रूद्रदेव के बीच लड़े गए युद्ध में जल्द ही प्रताप रूद्रदेव ने समर्पण कर दिया। सुल्तान की अधीनता स्वीकार कर उसने भी वार्षिक कर देना स्वीकार किया।
  • तेलंगाना के काकतीय वंश के शासक प्रताप रूद्रदेव ने अपनी सोने की मूर्ति बनवाकर ओर उसके गले में सोने की जंजीर डालकर आत्मसमर्पण हेतु मलिक काफूर के पास भेजा। इसी अवसर पर प्रताप रूद्रदेव ने मलिक काफूर को प्रसिद्ध कोहिनूर हीरा दिया था।
कोहिनूर हीरा 

पांड्य राज्य की विजय (1311 ई.)

  • पांड्य राज्य दक्षिण भारत के अंतिम छोर पर था। वहां सुंदर पांड्य और वीर पांड्य, दोनों भाइयों के बीच सिंहासन को लेकर गृहयुद्ध चल रहा था।
  • सुन्दरद पांड्य ने अपने भाई के विरूद्ध सुल्तान अलाउद्दीन से सहायता मांगी। सुल्तान ने अवसर का लाभ उठाकर 1311 ई. में मलिक काफूर को आक्रमण के लिए भेजा।
  • काफूर ने जल्द ही पांड्य राज्य की राजधानी मदुरै पर अधिकार कर लिया, वीर पांड्य वहां से भाग खड़ा हुआ। मलिक काफूर ने नगर में लूटपाट की, अनेक मंदिर नष्ट किये। अपने साथ वह लूट की अपार धन-संपत्ति लाया, जो इसके पूर्व कभी नहीं लाया था।

देवगिरि पर पुनः आक्रमण (1313 ई.)

  • राजा रामचंद्र देव की मृत्यु के बाद उसका पुत्र शंकरदेव या सिंहनदेव गद्दी पर बैठा। उसने अपने को दिल्ली शासन से स्वतंत्र कर लिया और ‘कर’ देना बंद कर दिया।
  • प्रतिक्रिया स्वरूप 1313 ई. में सुल्तान ने मलिक काफूर को पुनः देवगिरि पर आक्रमण के लिए भेजा, इस युद्ध में शंकरदेव मारा गया। यहां भी काफूर ने विभिन्न नगरों को लूटा।

अलाउद्दीन का बाजार नियंत्रण

  • विभिन्न आवश्यक वस्तुओं के मूल्यों को नियंत्रित करने तथा लोगों को बिना किसी असुविधा के इसकी आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए अलाउद्दीन ने कई आर्थिक सुधारों की घोषणा की।
  • उसने वस्तुओं के मूल्य ‘उत्पादन लागत’ के सिद्धांत पर आधारित किए। अलाउद्दीन एक महत्वाकांक्षी शासक था। उसकी आकांक्षाओं में अपने राज्य का विस्तार और मंगोलो का मुकाबला करना प्रमुख था।
  • इन दोनों ही आकांक्षाओं की पूर्ति हेतु एक विशाल स्थायी सेना की आवश्यकता तो थी ही। इनती बड़ी सैनिक शक्ति के बोझ को इस प्रकार कायम रखना कि राज्य के साधनों पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े, निश्चय ही एक कठिन कार्य था। यह तभी सम्भव था जब सैनिक व्यय कम किया जाता।
  • इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु उसने दैनिक जीवन की उपयोगी वस्तुओं का मूल्य इतना कम कर दिया कि निम्न वेतनभोगी सैनिक भी अपना जीवन-यापन आराम से कर सके। अलाउद्दीन ने अनाज, कपड़ा तथा अन्य वस्तुओं का मूल्य साधारण बाजार की दर से बहुत कम निश्चित किया।
  • उसने खालसा गांवों से भू-राजस्व वस्तु के रूप में प्राप्त किया तथा अनाजों को सरकारी भंडारगृह में एकत्रित किया। इन भंडारों से संकटकालीन परिस्थितियों में लोगों को निम्न दर पर अनाज की आपूर्ति की जाती थी। किसानों से अनाज खरीदने के लिए सरकारी परमिट की व्यवस्था की गई। कोई आम व्यक्ति किसान से अनाज नहीं खरीद सकता था।
  • दिल्ली के सभी व्यापारियों को शहाने-मण्डी नामक पदाधिकारी के दफ्तर में अपने नाम लिखाने पड़ते थे। जिन व्यापारियों के पास अपनी पर्याप्त पूंजी नहीं थी। उन्हें राज्य की ओर से अग्रिम धन दिया जाता था। इन व्यापारियों को निश्चित दर पर क्रय-विक्रय करना होता था तथा नियम से विचलित होने की अनुमति नहीं थी। यदि कोई व्यापारी इन नियमों का उल्लंघन करता था तो जितना सौदा वह तौल में कम देता था उतना मांस उसके शरीर से काट लिया जाता था।
  • व्यापारियों को अनाज या अन्य वस्तुएं जमा करके रखने का अधिकार नहीं था, बल्कि मांग के अनुसार उन्हें वे वस्तुएं बेचनी पड़ती थीं। प्रमुख व्यक्तियों, अमीरों, पदाधिकारियों तथा अन्य धनी पदाधिकारियों को बाजार से बहुमूल्य वस्तुएं खरीदने से पहले शहाने-मण्डी के दफ्तर से अनुमति लेनी पड़ती थी।
  • इन नियमों का कठोरतापूर्वक पालन करवाने हेतु दीवान-ए-रियासत एवं शहाने-मण्डी के अधीनस्थ कई कर्मचारी होते थे तथा अद्ल नामक एक न्यायाधीश भी होता था।
  • अलाउद्दीन खिलजी की मूल्य एवं बाजार नियंत्रण की नीति काफी सफल हुई लेकिन इसका विस्तार दिल्ली एवं इसके निकटवर्ती क्षेत्रों तक ही विशेष रूप से रहा। सम्पूर्ण देश में इन नियमों को लागू करना कठिन था, लेकिन अलाउद्दीन को इस बात का श्रेय मिलता है कि उसने विपरीत परिस्थितियों में समस्या को हल करने का प्रयत्न किया।
  • अलाउद्दीन मुद्रास्फीति तथा मूल्य वृद्धि के दुष्चक्र से राज्य की अर्थव्यवस्था की सुरक्षा करने में सफल रहा। उसने मुद्रा-प्रसार को रोकने तथा रहन-सहन के खर्च को कम करने में भी सफलता प्राप्त की। 

    अलाउद्दीन के बाजार नियंत्रण अधिकारी

    1. शहना-ए-मण्डी

    बाजार अधीक्षक

    2. दीवान-ए-रियासत

    बाजार नियंत्रणक

    3. सराय अद्ल

    न्याय अधिकारी

    4. बरीद-ए-मंडी

    बाजार निरीक्षक

    5. मन्हैयान

    गुप्तचर

  • अलाउद्दीन की मंत्रिपरिषद

    1. दीवाने वजारत

    वजीर (मुख्यमंत्री)

    2. दीवाने इंशा

    शाही आदेश का पालन

    3. दीवाने आरिज

    सैन्य मंत्री

    4. दीवाने रसातल

    विदेश विभाग

प्रशासनिक सुधार

  • अलाउद्दीन खिलजी ने प्रशासन को मजबूत बनाया तथा अनुशासनहीनता, भ्रष्टाचार एवं रिश्वतखोरी आदि पर पाबंदी लगाने का उल्लेखनीय कार्य किया।
  • उसने सार्वजनिक सेवाओं में भर्ती के मामले में राज्य की नीति को उदार बनाया। मामलुक सुल्तानों ने सभी उच्च पदों को विदेशी आप्रवासियों के लिए आरक्षित कर दिया था।
  • अलाउद्दीन खिलजी ने प्रजातीय विभेदीकरण की दस नीति को पृथक कर दिया तथा सार्वजनिक सेवाओं को विशेषाधिकार प्राप्त मुस्लिम आप्रवासियों सहित, जनसाधारण तथा इस्लाम धर्म अपनाए हिंदुओं तक के लिए खुला छोड़ दिया गया। इस कदम से अलाउद्दीन खिलजी को काफी ख्याति प्राप्त हुई।
  • उसकी वित्तीय नीतियां काफी प्रभावी साबित हुईं और देश में कम से कम दो शताब्दियों तक आर्थिक  स्थिरता कायम रहीं। उसके द्वारा किए गए आर्थिक सुधारों में मूल्यों का निर्धारण उपभोक्ता वस्तुओं की राशनिंग, बाजार नियंत्रण आदि प्रमुख थे।
  • सही पद के लिए उचित व्यक्ति की नियुक्ति करने में वह माहिर था। सभी दक्ष एवं कुशल व्यक्तियों को राज्य के लिए सेवाएं अर्पित करने का अवसर दिया गया तथा उन पर गुप्त नियंत्रण रखने के लिए गुप्तचर तंत्र की भी व्यवस्था की गई।

सैनिक सुधार

  • सल्तनत काल में स्थायी सेना रखने वाला पहला सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ही था।
  • राजस्व संबंधी सिद्धांतों को कार्यान्वित करने, विजय को सुनिश्चित करने तथा मंगोल आक्रमणों से सुरक्षा के लिए स्थायी सेना का प्रबंधन आवश्यक था। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए उसने सैनिक सुधार की ओर ध्यान दिया।
  • उसने स्थायी सेना का प्रबंध किया तथा उसे राजधानी में  रखा। इस समय सैनिकों की नियुक्ति प्रत्यक्षतः केंद्रीय सैन्य अधिकारी की निगरानी में में होती थी।
  • सैनिकों को नकद वेतन दिया जाता था। सामान्यतः, एक सैनिक का वेतन 234 टंका था, जबकि एक अतिरिक्त घोड़ा रखने वाले सैनिक को 78 टंका अधिक दिया जाता था।
  • अलाउद्दीन ने सैनिकों का हुलिया रखने तथा घोड़ों को दागने की प्रथा शुरू की। फरिश्ता के अनुसार अलाउद्दीन खिलजी की अश्वारोही सेना में 4,75,000 अश्वारोही थे। सेना के संगठन, रूपसज्जा तथा अनुशासन पर अलाउद्दीन स्वयं निगरानी रखता था।

मुबारक खिलजी

  • अलाउद्दीन की मृत्यु के पश्चात मलिक काफूर ने दिल्ली सल्तनत का सुल्तान बनने के लिए षड्यंत्र किया। उसने अलाउद्दीन के नवजात शिशु शहाबुद्दीन उमर को शासक बना दिया और स्वयं सत्ता का उपभोग करने लगा। लेकिन, काफूर की हत्या कर दी गई और मुबारक खिलजी को शासक बनाया गया।
  • मुबारक ने कई उदारतापूर्ण कार्य किए। अलाउद्दीन द्वारा बंदी बनाए गए सभी व्यक्तियों को उसने छोड़ दिया, लोगों से छीनी गई जमीन लौटा दी गई तथा सैनिकों का वेतन बढ़ा दिया।
  • अपने शासनकाल के दौरान उसने दक्षिण भारत के देवगिरि राज्य को दिल्ली सल्तनत में मिला लिया। मुबारक के शासनकाल के दौरान खुसरो खां के प्रभाव में वृद्धि हुई और वह सुल्तान का विश्वासपात्र बन गया। उसने मुबारक की हत्या कर दी और स्वयं सुल्तान बन गया।

नासिरूद्दीन खुसरो खां (अप्रैल-सितम्बर 1320)

  • मुबारक शाह के पश्चात दिल्ली का सिंहासन रिक्त हो गया। अलाउद्दीन के 4 पुत्रों की हत्या पहले ही की जा चुकी थी। शेष बचे पुत्रों की भी हत्या कर दी गई। सभी महत्वपूर्ण दरबारियों पर दबाव डालकर अथवा उनके समर्थन से खुसरो स्वयं सुल्तान बन बैठा।
  • उसने अपने नाम का खुतबा पढवाया और अपने नाम के सिक्के भी ढलवाए।
  • उसने पैगम्बर के सेनापति की उपाधि ग्रहण की थी। उसके शत्रुओं ने उसके विरूद्ध इस्लाम का शत्रु व इस्लाम खतरे में है, के नारे लगाया।
  • तुगलक वंश के गयासुद्दीन ने खुसरो की हत्या कर दी और तुगलक वंश की नींव डाली। 8 सितंबर 1320 ई. को वह गियासुद्दीन तुगलक के नाम से सिंहासन पर बैठा था।

खिलजी वंश के बाद कौन सा वंश आया था?

इसके बाद तुगलक वंश का शासन आया

अलाउद्दीन खिलजी के बाद खिलजी वंश का शासक कौन था?

अलाउद्दीन की मृत्यु के पश्चात मलिक काफूर ने दिल्ली सल्तनत का सुल्तान बनने के लिए षड्यंत्र किया। उसने अलाउद्दीन के नवजात शिशु शहाबुद्दीन उमर को शासक बना दिया और स्वयं सत्ता का उपभोग करने लगा। लेकिन, काफूर की हत्या कर दी गई और मुबारक खिलजी को शासक बनाया गया।

खिलजी वंश का अंतिम राजा कौन था?

इस प्रकार गाजी मलिक, गयासुद्दीन तुगलक नाम से दिल्ली का सुल्तान बना एवं दिल्ली में तुगलक वंश की स्थापना हुई। नोट - खिलजी वंश का अन्तिम शासक नासिरूद्दीन सुसरो शाह था

खिलजी वंश में कुल कितने शासक हुए?

को सुल्तान बना। इस प्रकार गाजी मलिक, गयासुद्दीन तुगलक नाम से दिल्ली का सुल्तान बना एवं दिल्ली में तुगलक वंश की स्थापना हुई। नोट – खिलजी वंश का अन्तिम शासक नासिरूद्दीन सुसरो शाह था। खिलजी वंश में कुल 5 शासकों ने शासन किया।