ले चल वहाँ भुलावा देकर कविता का मूल भाव क्या है? - le chal vahaan bhulaava dekar kavita ka mool bhaav kya hai?

ले चल मुझे भुलावा दे कर


 संर्दभ

ले ले चल मुझे भुलावा देकर कविता छायावादी प्रेम सौंदर्य के महान कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित है।साहित्यिक जगत में प्रसाद जी एक सफल व श्रेष्ठ कवि, नाटककार कथाकार व निंबंध लेखक के रूप में विख्यात रहे है।

प्रसंग

ले ले चल मुझे भुलावा देकर कविता में कवि ने पलायन वादी दृष्टिकोण को दर्शाया है। कवि कविता में एक ऐसे स्थान को खोज रहे हैं जिसमें कोई सांसरिकता ना हो। सत्य हो और निश्चल हो।


व्याख्या

कवि ईश्वर को नाविक के रूप में बताते हुए कहते हैं कवि ईश्वर से कहते हैं हे ईश्वर मेरे जीवन की नैया को धीरे धीरे इस सागर की लहरों से दूर ले चल मुझे एक ऐसी जगह ले चल जहां सत्य प्रेम का आवास हो जहां दूर-दूर तक कोई आवाज ना हो कानों में एक मधुर आवाज गूंजती रहे मुझे एक ऐसी जगह ले जा। जहां जीवन छाया के समान होकर कोमलता का भाव ले ले। और नेत्र आसमान के नीले रंग के समान शांत हो जाए। आगे कवि कहते हैं हे ईश्वर मुझे एक ऐसी दुनिया में ले चले जहां माधुर्य का वातावरण हो। जहां सुख दुख का सत्य वातावरण हो। जहां श्रम में भी आनंद की प्राप्ति हो जहां जागरुकता की ज्योति दिखाती हो। कवि संसार की संसरिकता से उब चुका है। उसे संसार में कहीं भी कोई तालमेल नहीं दिखाई दे रहा है। कभी अपनी जीवन रूपी नहीं आ ईश्वर के हाथ में देकर उन्हें कैसे जाने के लिए कह रहे हैं जहां इस सांसरिकता से मुक्ति मिल जाए।

विशेष

1) भाषा खड़ी बोली है

2) रहस्यवाद का वर्णन किया गया है

3) मानवीकरण अलंकार है।

विषयसूची

  • 1 ले चल मुझे बुलावा देकर किसकी रचना है?
  • 2 मेरे नाविक कविता में कवि का तज कोलाहल की अवनी रे से क्या तात्पर्य है?
  • 3 ले चल वहां भुलावा देकर कविता में कौन सी भाषा का प्रयोग किया गया है?
  • 4 ले चल मुझे बुलावा देकर में कौन सा अलंकार है?
  • 5 तुम कनक किरन के अंतराल में लुक छिप कर चलते हो क्यों?

ले चल मुझे बुलावा देकर किसकी रचना है?

इसे सुनेंरोकेंले चल वहाँ भुलावा देकर / जयशंकर प्रसाद

तूफानों की ओर घुमा दो के द्वारा कवि क्या कहना चाहते हैं?

इसे सुनेंरोकें’तूफ़ानों की ओर घुमा दो नाविक’ कविता में कवि शिवमंगल सिंह सुमन जी जीवन में साहस और धैर्य के साथ आगे बढ़ने की शिक्षा देते हैं। वे जीवन की चुनौतियों का, जो एक तूफ़ान के समान हैं, साहस और परिश्रम के साथ सामना करने की प्रेरणा देते हैं। वे कहते हैं कि मचलती हुई लहरों के साथ अपना स्वर मिला दो और तूफ़ान के प्यार को समझो।

मेरे नाविक कविता में कवि का तज कोलाहल की अवनी रे से क्या तात्पर्य है?

तज कोलाहल की अवनी रे । ताराओं की पाँति घनी रे । दुख-सुख बाली सत्य बनी रे । बिखराती हो ज्योति घनी रे !…

ले चल वहाँ भुलावा देकर -जयशंकर प्रसाद
जन्म 30 जनवरी, 1889
जन्म स्थान वाराणसी, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 15 नवम्बर, सन् 1937
मुख्य रचनाएँ चित्राधार, कामायनी, आँसू, लहर, झरना, एक घूँट, विशाख, अजातशत्रु

मेरे नाविक कविता के रचित कौन है?

इसे सुनेंरोकेंले चल वहाँ भुलावा देकर मेरे नाविक ! धीरे-धीरे l जयशंकर प्रसाद – YouTube.

ले चल वहां भुलावा देकर कविता में कौन सी भाषा का प्रयोग किया गया है?

इसे सुनेंरोकेंराजभाषा हिंदी: ले चल मुझे भुलावा देकर

ले चल वहाँ भुलावा देकर कविता का मूल भाव क्या है?

इसे सुनेंरोकेंले ले चल मुझे भुलावा देकर कविता में कवि ने पलायन वादी दृष्टिकोण को दर्शाया है। कवि कविता में एक ऐसे स्थान को खोज रहे हैं जिसमें कोई सांसरिकता ना हो। सत्य हो और निश्चल हो।

ले चल मुझे बुलावा देकर में कौन सा अलंकार है?

इसे सुनेंरोकें3) मानवीकरण अलंकार है।

ले चल वहां भुलावा देकर कविता का मूल भाव क्या है?

तुम कनक किरन के अंतराल में लुक छिप कर चलते हो क्यों?

इसे सुनेंरोकेंलुक छिप कर चलते हो क्यों? मोन बने रहते हो क्यो? अपनी पीते रहते हो क्यों? कलित हो यों छिपते हो क्यों?

लहर किसका काव्य संकलन है?

इसे सुनेंरोकेंलहर जयशंकर प्रसाद का कविता-संग्रह है, जिसका प्रकाशन सन् १९३५ ई॰ में भारती भंडार, इलाहाबाद से हुआ था।

जयशंकर प्रसाद की कविताएं-3

ले चल मुझे भुलावा देकर

ले चल मुझे भुलावा देकर,

मेरे नाविक! धीरे-धीरे!

जिस निर्जन में सागर लहरी

अम्बर के कानों में गहरी --

निश्छल प्रेम-कथा कहती हो,

तज कोलाहल की अवनी रे!

जहां सांझ-सी जीवन छाया

ढीले अपनी  कोमल काया,

नील नयन से ढलकाती हो,

ताराओं की  पांति घनी रे!

जिस गम्भीर मधुर छाया में --

विश्व चित्र-पट चल माया में --

विभुता विभु-सी पड़े दिखाई

दुःख-सुख वाली सत्य बनी रे!

श्रम-विश्राम क्षितिज-वेला से --

जहां  सृजन  करते मेला से --

अमर जागरण-उषा नयन से --

बिखराती  हो ज्योति  घनी रे!

ले चल वहां भुलावा देकर कविता का मूल भाव क्या है?

ले ले चल मुझे भुलावा देकर कविता में कवि ने पलायन वादी दृष्टिकोण को दर्शाया है। कवि कविता में एक ऐसे स्थान को खोज रहे हैं जिसमें कोई सांसरिकता ना हो। सत्य हो और निश्चल हो।

ले चल मुझे भुलावा देकर मेरे नाविक धीरे धीरे किसकी पंक्ति है?

ले चल वहाँ भुलावा देकर / जयशंकर प्रसाद

लहर किसका काव्य संकलन है?

लहर जयशंकर प्रसाद का कविता-संग्रह है, जिसका प्रकाशन सन् १९३३ ई॰ में भारती भंडार, इलाहाबाद से हुआ था।

21 ले चल मुझे भुलावा देकर किसकी रचना है A जयशंकर प्रसाद B महादेवी वर्मा C सुमित्रानन्दन पंत D इनमें से कोई नहीं?

ले चल वहाँ भुलावा देकर -जयशंकर प्रसाद

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