महाभारत: युद्ध के बाद भीम को मारने की धृतराष्ट्र ने बनाई थी सटीक योजना, श्रीकृष्ण ने चतुराई से ऐसे बचाई जान
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: July 2, 2019 12:50 PM2019-07-02T12:50:08+5:302019-07-02T12:50:08+5:30
क्या आपको मालूम है कि इस लड़ाई के ठीक बाद धृतराष्ट्र अपने पुत्र दुर्योधन की मृत्यु से इतने हताश थे कि उन्होंने भीम को मारने की योजना बना ली थी। धृतराष्ट्र अपनी इस योजना में कामयाब भी हो जाते अगर श्रीकृष्ण ने चतुराई से काम नहीं लिया होता।
श्रीकृष्ण ने चतुराई से बचाई भीम की जान
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Highlightsमहाभारत युद्ध के बाद भीम से बेहद नाराज थे दुर्योधन के पिता धृतराष्ट्रदुर्योधन के जांघ पर भीम के गदा से वार करने से नाराज से धृतराष्ट्र, मारने की बना ली थी योजनाश्रीकृष्ण की समझदारी से बच गई थी महारथी भीम की जान
महाभारत के युद्ध के लिए दुर्योधन के साथ-साथ धृतराष्ट्र के पुत्र मोह को भी बड़ा जिम्मेदार माना जाता है। यह धृतराष्ट्र का अपने पुत्र दुर्योधन के प्रति पुत्र मोह ही था जिसकी वजह से वे उसकी तमाम गलतियों और मनमानी पर पर्दा डालते चले गये। इसी का नतीजा हुआ कि बात युद्ध तक आ पहुंची और इसमें हजारों योद्धा वीरगति को प्राप्त हुए। पांडव महाभारत का युद्ध जीत गये लेकिन क्या आपको मालूम है कि इस लड़ाई के ठीक बाद धृतराष्ट्र अपने पुत्र दुर्योधन की मृत्यु से इतने हताश थे कि उन्होंने भीम को मारने की योजना बना ली थी। धृतराष्ट्र अपनी इस योजना में कामयाब भी हो जाते अगर श्रीकृष्ण ने चतुराई से काम नहीं लिया होता।
दरअसल, भीम ने ही गदा युद्ध का नियम तोड़ते हुए दुर्योधन की जंघा पर वार किया और उसे घायल कर मरने के लिए छोड़ दिया था। इस वजह से धृतराष्ट्र का पूरा गुस्सा भीम को लेकर था। धृतराष्ट्र साथ ही श्रीकृष्ण को लेकर भी नाराज थे, जिन्होंने भीम को दुर्योधन की जांघ पर मारने का इशारा किया था। सबसे पहले जानते हैं भीम ने कैसे दुर्योधन को मारा और इसमें श्रीकृष्ण की भूमिका क्या थी।
महाभारत युद्ध में भीम ने दुर्योधन को कैसे मारा?
महाभारत युद्ध अपने आखिरी चरण में था और दुर्योधन के सभी महारथी मारे जा चुके थे। ऐसे में एक शाम दुर्योधन अपनी माता गांधारी से मिलने पहुंचा। गांधारी ने दुर्योधन के संभावित मौत के डर से बचाने के लिए उसे एक खास आदेश दिया। गांधारी ने दुर्योधन से कहा कि वह नदी में स्नान करने निर्वस्त्र अवस्था में उनके सामने आये। गांधारी ने कहा दुर्योधन को आदेश दिया कि वह कोई वस्त्र अपने शरीर पर न डाले और उनके सामने आए।
दुर्योधन माता गांधारी के इस आदेश के कारण को तो नहीं समझ सका लेकिन उसने वही करने का निर्णय किया जो माता ने कहा था। दुर्योधन नदी से स्नान कर लौट ही रहा था कि श्रीकृष्ण ने उसे देख लिया। दुर्योधन को स्नान के बाद निर्वस्त्र होकर लौटते देख श्रीकृष्ण सारा माजरा समझ गये और उस समय दुर्योधन के पास आ गये और उसे लज्जा महसूस कराने के लिए हंसने लगे।
श्रीकृष्ण ने साथ ही पूछा कि वह इस तरह क्यों और किधर जा रहे हैं। दुर्योधन ने माता गांधारी के आदेश के बारे में बता दिया। इस पर श्रीकृष्ण ने दुर्योधन से पूछा कि वह क्या ऐसी अवस्था में अपनी मां के पास जाएगा। श्रीकृष्ण ने तंज कसते हुए कहा कि व्यस्क होने के कारण कम से कम कुछ तो कमर के हिस्से पर उसे रख लेना चाहिए। यह बात सुन दुर्योधन भी दुविधा में आ गया और एक केले का पत्ता अपने कमर के हिस्से पर डालकर गांधारी के पास पहुंचा।
दुर्योधन का शरीर बना पत्थर
दुर्योधन के पहुंचने पर माता गांधारी ने अपने आखों पर बंधी पट्टी कुछ देर के लिए खोली और अपने पुत्र के पूरे शरीर को निहारा। ऐसा होते ही दुर्योधन के शरीर के जिस-जिस भाग पर गांधारी की नजर पड़ी वह पत्थर का हो गया। हालांकि, जांघ और इसके कुछ ऊपर का हिस्सा आम शरीर की तरह रह गया। माता गांधारी ने यह देखा तो वे हैरान हो गईं और इस संबंध में पूछा। दुर्योधन ने भी श्रीकृष्ण से हुई बातचीत का जिक्र किया। इस पर गांधारी ने नाराज होते हुए दुर्योधन से कहा कि उसने न पहले कभी बड़ों की बात मानी और न ही आज मानी है, इसलिए आज कौरवों का ये हाल हुआ है।
इसके बाद अगले दिन जब भीम और दुर्योधन का गदा युद्ध हुआ। गदा युद्ध के नियम के अनुसार भीम कमर के ऊपरी हिस्से पर वार कर सकते थे और दुर्योधन का ऊपरी हिस्सा तो पत्थर हो चुका था, इसलिए कोई असर उस पर नहीं हो रहा था। ऐसे में श्रीकृष्ण ने भीम को जंघा पर वार करने का आदेश दिया। भीम ये इशारा समझ गये और उन्होंने ऐसा ही किया और इस तरह दुर्योधन मारा गया।
धृतराष्ट्र की योजना को कृष्ण ने किया विफल
युद्ध के बाद पांडव जब वापस हस्तिनापुर पहुंचे तो धृतराष्ट्र ने भीम से गले लगने की इच्छा जताई। श्रीकृष्ण इस समय तक धृतराष्ट्र के मन में चल रहे क्रोध को समझ गये थे और उन्होंने चुपके से एक लोहे का पुतला धृतराष्ट्र के सामने यह कहते हुए आगे बढ़ाया कि यही भीम है। धृतराष्ट्र देख नहीं सकते थे और इसलिए उन्होंने उस लोहे को पुतले को गले लगाया और इतनी जोर से दबाया कि उसके टुकड़े-टुकड़े हो गये।
धृतराष्ट्र को समझते देर नहीं लगी कि उनकी मंशा सबके सामने आ चुकी है। क्रोध शांत होने पर इस बात का उन्हें बहुत दुख हुआ और उन्होंने पांडु पुत्रों से माफी भी मांगी। कुछ दिन के बाद धृतराष्ट्र अपना सारा राजकाज पांडवों को सौंप पत्नी गांधारी और अपने छोटे भाई पांडु की पत्नी माता कुंती के साथ वन को प्रस्थान हो गये।