सचेत हो जाइए। अगर किसी से कोई थोड़ी-बहुत तकरार होने पर थप्पड़ ही मार दिया तो लेने-के-देने पड़ जाएंगे। पहले पुलिस थप्पड़-मुक्के के विवाद को सीआरपीसी की दफा 107/51 के तहत निवारक कार्रवाई करके निपटा देती थी। लेकिन अब किसी ने थप्पड़ मार दिया तो पुलिस केवल निवारक कार्रवाई करके काम नहीं चलाएगी बल्कि आईपीसी की दफा 323 व 341 के तहत केस दर्ज करेगी। इन धाराओं के तहत केस दर्ज होने के बाद कोर्ट में पेशी भुगतनी पड़ेंगी और फिर दोषी पाए जाने पर एक साल तक की कैद हो सकती है। यानी कि थप्पड़ मारने से पहले चार बार सोच लीजिए नहीं तो थप्पड़ के कारण जेल की हवा खानी पड़ेगी। इस बारे में पुलिस उच्चाधिकारियों ने बकायदा सभी जाच अधिकारियों को औपचारिक निर्देश भी दे दिए है।
ये होता था पहले
थप्पड़-मुक्की की घटना में पुलिस सीआरपीसी की दफा 107/51 के तहत निवारक कार्रवाई करती थी। इसके तहत आरोपी को डयूटी मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाता था, जहा मौके पर ही एक साल तक नेक चाल-चलन की चेतावनी देकर छोड़ दिया जाता था।
ये होगा अब
पुलिस आईपीसी की दफा 323 व 341 के तहत केस दर्ज करेगी और ये धाराएं लगाने के बाद स्थिति के अनुसार इनमें कुछ अन्य धाराएं भी जोड़ी जा सकती है। इन धाराओं के तहत केस दर्ज होने के बाद पुलिस जाच अधिकारी सबूत एकत्रित करेगा। केस कोर्ट में चलेगा और दोषी पाए जाने पर एक साल तक की सजा व जुर्माना भी हो सकता है।
ये है धाराओं का फर्क
सीआरपीसी की दफा 107/51 असंज्ञेय अपराध की श्रेणी में आती है जिसकी जाच पुलिस नहीं करती बल्कि कोर्ट करती है। चूंकि आईपीसी की दफा 323 भी असंज्ञेय अपराध में आती है, जिस कारण से ही दफा 341 साथ में लगाई जाएगी। दफा 341 का मतलब किसी का रास्ता रोकना है। ऐसे में 323 के साथ 341 लगने के बाद दोनों ही धारा संज्ञेय अपराध मानी जाएंगी और पुलिस जाच करेगी। जाच के बाद पुलिस अधिकारी कोर्ट में चालान पेश करेगा और फिर सुनवाई के बाद कोर्ट फैसला देगी।
ऐसे निर्णय के पीछे सोच
पुलिस उच्चाधिकारियों का मानना है कि अगर कोई रोककर थप्पड़ मारता है तो आरोपी उसके रास्ते में अवरोधक तो बनता ही है बल्कि इससे पीड़ित की मानहानि भी होती है। निवारक कार्रवाई से तो आरोपी को कोई खास असर नहीं पड़ता, इसलिए सही में न्याय तभी मिलेगा जब कोर्ट में मामला चले और फिर सजा भी मिले।
ये है मकसद
पीड़ित को न्याय दिलाने के लिए ही ये धाराएं जोड़ने के निर्देश दिए है। वजह ये भी है कि मारपीट की हर घटना में खून तो निकलता नहीं और न ही कोई फैक्चर होता, जिस कारण अनेक लोग मेडिकल नहीं करवाते। ऐसे में मेडिकल न करवाने के बावजूद भी पीड़ित को न्याय दिलवाने के लिए यही विकल्प बनता है कि संज्ञेय अपराध की धाराएं लगाई जाएं।
ये होगा फायदा
= थप्पड़-मुक्की या मारपीट की घटनाओं पर अंकुश लगेगा।
= थप्पड़ मारने वाले व्यक्ति को सजा होगी तो पीड़ित को न्याय मिलेगा।
हा, पुलिस जाच अधिकारियों को थप्पड़-मुक्की की घटनाओं में संज्ञेय धाराएं जोड़ने के लिए निर्देश दिए है। इसका मकसद केवल पीड़ित को न्याय दिलवाना है।
भारतीय संविधान ने महिलाओं के अधिकारों (women and their rights) की रक्षा के लिए मजबूत कानून बनाया है. आइए अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (Women's day 2020) पर जानिए महिलाओं को ताकत देने वाली IPC की 10 धाराएं कौन सी हैं?
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कोई व्यक्ति अगर किसी महिला के साथ अभद्र भाषा, अभद्र गाने या आपत्तिजनक इशारे का इस्तेमाल करे तो धारा 294 के तहत आरोपी को 3 महीने की सजा हो सकती है.
किसी महिला को जबरन गर्भाधारण या गर्भपात के लिए मजबूर करने वाले व्यक्ति पर धारा 312-315 के तहत कार्रवाई हो सकती है. इसमें 3 से 10 साल तक की जेल है.
कोई अगर महिला के गहने, जमीन या सामान वापस नहीं करे तो धारा 406 के तहत आरोपी पर कार्रवाई हो सकती है. इस धारा के अंतर्गत 3 साल तक की सजा है.
शादी का वादा कर शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना करने पर धारा 493 के तहत कानूनी कार्रवाई हो सकती है. इसके तहत 10 साल की सजा का प्रावधान है.
अगर कोई किसी महिला को आत्महत्या के लिए उकसाता है तो धारा 306 के तहत उस पर कानूनी कार्रवाई की जा सकती है. ऐसे अपराध की सजा 10 साल तक हो सकती है.
किसी महिला का अपमान और उसकी मर्यादा पर प्रहार करना भी कानूनन अपराध है. धारा 499 के तहत आरोपी को 2 साल तक की सजा का प्रावधान है.
पीड़ित महिला अपनी निजी जानकारियां और पहचान को गुप्त रख सकती हैं. अगर कोई इसके खिलाफ काम करता है तो धारा 228A के तहत कार्रवाई संभव है.