मूल प्रवृत्ति का सिद्धांत किसने दिया था - mool pravrtti ka siddhaant kisane diya tha

Manav ki mool pravriti

Manav Mool Pravrati Hindi/ Manav ki Mool Pravrati

मानव जो कार्य बिना सीखे हुए जन्मजात या प्राकृतिक प्रेरणाओं के आधार पर करता है वह मानव की मूल प्रवृत्ति कहलाती है. या दूसरे शब्दों में कहें तो-

“मानव की मूल प्रवृत्ति वह क्रिया है जो जन्मजात होती है। यह एक आन्तरिक बल की तरह है जो हमारे आवश्यकता की पूर्ति के लिये आवश्यक होती है।”

उदाहरण के लिए: भूख ,प्यास, दुख, सुख, गुस्सा, आदि।

मानव की मूल प्रवृत्तियां 14 होती हैं. मूल प्रवृत्तियों का सिद्धांत विलियम मैकडूगल (William McDougall)ने दिया था. प्रत्येक मूल प्रवृत्ति से एक संवेग संबंधित होता है. संवेग की उत्पत्ति मूल प्रवृत्तियों से हुई है.

संवेग मतलब (Emotion): E+ Motion यानि अन्दर के भाव जब बाहर की तरफ गति करते हैं यानि अन्दर के भाव का बाहर प्रक्त होना ही संवेग या emotion है.

जन्म के समय बालक के अंदर तीन संवेग होते हैं:

भय, क्रोध और प्रेम

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मूल प्रवृत्तियां और उनके संवेग

मूल प्रवृत्ति संवेग
पलायन (भागना) भय
निवृति (अप्रियता) घृणा
युयुत्सा (युद्ध प्रियता) क्रोध
शिशु रक्षा वात्सल्य/ प्रेम
संवेदनशीलता कष्ट
काम प्रवृति कामुकता
जिज्ञासा आश्चर्य
आत्महीनता अधीनता की भावना
आत्म प्रदर्शन श्रेष्ठता की भावना
सामूहिकता एकाकीपन
भोजन तलाश भूख
संचय अधिकार की भावना
श्रचना रचना का आनंद ले
हास आमोद

सहज एवं मूल प्रवृत्ति

मनुष्यों की तरह पशुओं में भी जन्म से ही अनेक प्रकार के जटिल कार्य करने की क्षमता होती है। ये कार्य जीवनयापन के निमित्त अत्यंत आवश्यक होते हैं. जैसे: शिशु को स्तनपान कराना, संतान के हितगत पशु जाति का व्यवहार, चिड़िया की घोंसला बनाने की प्रवृत्ति, इत्यादि।
ऐसी प्रवृत्तियाँ भी जन्मजात प्रकृति का अंग होती हैं। यदि चौपाए भागते-दौड़ते हैं, जो पक्षी उड़ते फिरते हैं। जहाँ मधुमक्खी सुगंधित पुष्पों पर मंडराती है वहाँ छिपकली कीट, फतिंगों का शिकार करती है। ऐसी प्राकृतिक जीवनोपयोगी वृत्तियों को सहज प्रवृत्ति, वृत्ति व्यवहार (इंस्टिंक्ट) अथवा जातिगत प्रकृति भी कह सकते हैं।

पशुओं का प्रत्येक आचरण, मूल रूप से उसकी विशेष प्रकृति प्रदत्त प्रवृत्ति से ही विकसित होता है। एक बैल या उसका बछड़ा, घासफूस, पत्ते, तृण आदि से पेट भरता है। परंतु एक उच्च वर्ग का सभ्य आदमी तथा उसके बच्चे विशेष ढंग से पकवान बनवाकर और सही ढंग से बैठकर बर्तन आदि में भोजन करते हैं। सभ्यता के कृत्रिम आवरण में हम प्रकृति प्रदत्त मूल प्रवृत्ति की एक धुँधली सी झलक देख सकते हैं। Manav Mool Pravrati Hindi

विलियम मैक्डूगल के अनुसार प्रत्येक मूल प्रवृत्ति के तीन अंग होते हैं-

1. एक विशेष उद्दीपक परिस्थिति
2. एक विशिष्ट रसना अथवा संवेग और
3. एक विशिष्ट प्रतिक्रिया क्रम।

इनमें से संयोगवश उद्दीपक परिस्थिति तथा अनुकूल कार्य के क्रम में अत्यधिक परिवर्तन होता है। सामान्यत: कष्टप्रद अपमानजनक व दु:साध्य परिस्थिति में मनुष्य क्रोधित होकर प्रतिकार करता है। किंतु जहाँ बच्चा खिलौने से रुष्ट होकर उसे तोड़ने का प्रयास करता है, वहाँ एक वयस्क स्वदेशाभिमान के विरुद्ध विचार सुनकर घोर प्रतिकार करता है। जहाँ बच्चे का प्रतिकार लात, धूँसा तथा दाँत आदि का व्यवहार करता है, वहाँ वयस्क का क्रोध अपवाद, सामाजिक बहिष्कार, आर्थिक हानि तथा अद्भुत भौतिक रासायनिक अस्त्र शस्त्रों का प्रयोग करता है। किंतु क्रोध का अनुभव तो सब परिस्थितियों में एक समान रहता है।

प्रा. मैक्डूगल ने पशु वर्ग के विकास, तथा संवेगों के निश्चित रूप की कसौटी से एक मूल प्रवृत्तियों की सूची भी बनाई है। संवेग अथवा भय, क्रोध आदि को ही मुख्य मानकर तदनुसार मूल प्रवृत्तियों का नाम, स्वभाव आदि का वर्णन किया है। उनकी सूची बहुत लोकप्रिय है और उसकी ख्याति प्राय: अनेक आधुनिक समाजशास्त्रों में मिलती है। परंतु वर्तमानकाल में उसका मान कुछ घट गया है।

डॉ॰ वाटसन ने अस्पताल में सद्य:जात शिशुओं की परीक्षा की तो उन्हें केवल क्रोध, भय और काम वृत्तियों का ही तथ्य मिला। एक जापानी वैज्ञानिक डॉ॰ कूओं ने यह पाया है कि सभी बिल्लियाँ न तो चूहों को प्रकृत स्वभाव से मारती हैं और न ही उनकी हत्या करके खाती हैं। उचित सीख से तो बिल्लियों की मूल प्रवृत्ति में इतना अधिक विकार आ सकता है कि चूहेमार जाति की बिल्ली का बच्चा, बड़ा होकर भी चूहे से डरने लगता है। अत: अब ऐसा समझते हैं कि जो वर्णन मैक्डूगल ने किया है वह अत्यधिक सरल है। Manav Mool Pravrati Hindi

आधुनिक मनोवैज्ञानिक स्थिति को सरलतम बनाकर समझने के निमित्त, मानसिक उद्देश्यपूर्ति की उलझन से बचकर, शरीर के सूक्ष्म क्रियाव्यवहार को ही मूल प्रकृति मानने लगे हैं। उन्हें दैहिक तंतुओं के मूल गुण प्रकृति मर्यादित तनाव (Tissue Tension) में ही मूल प्रवृत्ति का विश्वास होता है। जब उद्दीपक वा परिस्थिति विशेष के कारण देह के भिन्न तंतुओं (रेशों) में तनाव बढ़ता है, तो उस तनाव के घटाने के हिव एक मूल वृत्ति सजग हो जाती है और इसकी प्रेरणा से जीव अनेक प्रकार की क्रियाएँ आरंभ करता है। जब उचित कार्य द्वारा उस दैहिक तंतु तनाव में यथेष्ट ढिलाव हो जाता है, तब तत्संबंधित मूल वृत्ति तथा उससे उत्पन्न प्रेरणा भी शांत हो जाती है। दैहिक तंतुओं का एक गुण और है कि विशेष क्रिया करते करते थक जाने पर विश्राम की प्रवृत्ति होती है। प्रत्येक दैहिक तथा मनोदैहिक क्रिया में न्यूनाधिक थकान तथा विश्राम का धर्म देखा जाता है। अत: निद्रा को यह आहार, भय, मैथुन आदि से सूक्ष्म कूठरस्थ वृत्ति मानते हैं। अर्थात आधुनिक मत केवल दो प्रकार की मूल प्रवृत्ति मानने का है-

(1) दैहिक तंतु तनाव को घटाने की प्रवृत्ति (या अपनी मर्यादा बनाए रखने की प्रवृति);

(2) दैहिक तंतुओं के थक जाने पर उचित विश्राम की प्रवृत्ति।

मैक्डूगल के अनुसार मानव की 14 मूल प्रवृत्तियां

क्रमांक मूल प्रवृति संवेग
1. पलायन/भागने की प्रवृत्ति                                                  भय
2. युयुत्सा / युद्धप्रियता की प्रवृत्ति                                         क्रोध
3. अप्रियता / विकर्षण दूसरों को नापंसद करने की प्रवृत्ति     घृणा
4. संतान कामना / शिशु रक्षा की प्रवृत्ति                               वात्सल्य
5. संवेदना / दया की प्रवृत्ति                                                   कष्ट
6. काम प्रवृत्ति                                                                       कामुकता
7. जिज्ञासा की प्रवृत्ति                                                            आश्चर्य
8. स्वयं को नापसंद करने की प्रवृत्ति                                      आत्महीनता
9. गौरव / आत्मप्रदर्शन / श्रेष्ठता की प्रवृत्ति                         आत्माभिमान
10. सामूहिकता का भाव                                                          एकाकीपन
11. भोजनान्वेषण की प्रवृत्ति (अन्वेषण – खोजना)                 भूख
12. संग्रहण / अधिकार की प्रवृत्ति अधिकार भावना                स्वामित्व
13. रचनात्मकता / सृजनात्मकता की प्रवृत्ति                        रचनाभूति
14. हास्य की प्रवृत्ति                                                               आमोद

फ्रायड ने मुख्यतः दो मूल प्रवृतियाँ बताई हैं:

  • जन्म मूल प्रवृति
  • मृत्यु मूल प्रवृति

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मूल प्रवृत्ति का जनक कौन है?

सर्वप्रथम मूल प्रवृति का सम्प्रत्यय का प्रयोग विलियम जेम्स द्वारा किया गया। लेकिन पूर्ण एवं व्यवस्थित रूप से इस सिद्धांत का प्रतिपादन विलियम मैक्डूगल द्वारा किया गया इसलिए विलियम मैक्डूगल को मूल प्रवृत्ति का जनक कहा जाता है।

मूल प्रवृत्ति का सिद्धांत किसका है?

मूल प्रवृत्तियों का सिद्धांत विलियम मैकडूगल (William McDougall) ने दिया था. प्रत्येक मूल प्रवृत्ति से एक संवेग संबंधित होता है.

मूल प्रवृत्ति कितने प्रकार के होते हैं?

मूल प्रवृत्तियाँ के चौदह प्रकार.
पलायन----भय.
युयुत्सा----क्रोध.
निवृत्ति----घृणा.
पुत्रकामना----वात्सल्य.
शरणागत----करूणा.
काम प्रवृत्ति----कामुकता.
जिज्ञासा----आश्चर्य.
दीनता----आत्महीनता.

जीवन मूल प्रवृत्ति को क्या कहा जाता है?

सिग्मंड फ्रायड ( 6 मई 1856 -- 23 सितम्बर 1939 ) आस्ट्रिया के तंत्रिकाविज्ञानी (neurologist) तथा मनोविश्लेषण के संस्थापक थे।

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