स्तब्ध ज्योत्सना में जब संसार
चकित रहता शिशु सा नादान ,
विश्व के पलकों पर सुकुमार
विचरते हैं जब स्वप्न अजान,
न जाने नक्षत्रों से कौन
निमंत्रण देता मुझको मौन !
सघन मेघों का भीमाकाश
गरजता है जब तमसाकार,
दीर्घ भरता समीर निःश्वास,
प्रखर झरती जब पावस-धार ;
न
जाने ,तपक तड़ित में कौन
मुझे इंगित करता तब मौन !
देख वसुधा का यौवन भार
गूंज उठता है जब मधुमास,
विधुर उर के-से मृदु उद्गार
कुसुम जब खुल पड़ते सोच्छ्वास,
न जाने, सौरभ के मिस कौन
संदेशा मुझे भेजता मौन !
क्षुब्ध जल शिखरों को जब बात
सिंधु में मथकर फेनाकार ,
बुलबुलों का व्याकुल संसार
बना,बिथुरा देती अज्ञात ,
उठा तब लहरों से कर कौन
न जाने, मुझे बुलाता कौन !
स्वर्ण,सुख,श्री सौरभ में भोर
विश्व को देती है जब बोर
विहग कुल की कल-कंठ हिलोर
मिला देती भू नभ के छोर ;
न
जाने, अलस पलक-दल कौन
खोल देता तब मेरे मौन !
तुमुल तम में जब एकाकार
ऊँघता एक साथ संसार ,
भीरु झींगुर-कुल की झंकार
कँपा देती निद्रा के तार
न जाने, खद्योतों से कौन
मुझे पथ दिखलाता तब मौन !
कनक छाया में
जबकि सकल
खोलती कलिका उर के द्वार
सुरभि पीड़ित मधुपों के बाल
तड़प, बन जाते हैं गुंजार;
न जाने, ढुलक ओस में कौन
खींच लेता मेरे दृग मौन !
बिछा कार्यों का गुरुतर भार
दिवस को दे सुवर्ण अवसान ,
शून्य शय्या में श्रमित अपार,
जुड़ाता जब मैं आकुल प्राण ;
न
जाने, मुझे स्वप्न में कौन
फिराता छाया-जग में मौन !
न जाने कौन अये द्युतिमान !
जान मुझको अबोध, अज्ञान,
सुझाते हों तुम पथ अजान
फूँक देते छिद्रों में गान ;
अहे सुख-दुःख के सहचर मौन !
नहीं कह सकता तुम हो कौन !
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आपका प्रश्न की मौन निमंत्रण कविता का व्याख्या कीजिए तो दोस्तों मौन निमंत्रण कविता जो है दोस्तों वह सुमित्रानंदन पंत जी के द्वारा लिखा गया यह एक बहुत ही अच्छी कविता है
Romanized Version
सुमित्रानंदन पंत कविताए और व्याख्या से सम्बंधित प्रश्न BA में पूछे जाते है। पंत की काव्य कृति चिदंबरा पर इन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ है। पंत ने अपनी कविता नौका विहार में जिस चांदनी रात का वर्णन किया है। वह शुक्ल पक्ष की दशमी की तिथि की उदित चांदनी का वर्णन है। कभी चांदनी रात के प्रथम प्रहर में कालाकांकर के राजभवन से लगी हुई
नदी में अपने मित्रों के साथ नौका विहार कर रहा है।चंद्रमा की ज्योत्सना के प्रभाव से नदी के धवलता मैं रजत के कांति का आभास सर्वत्र होता है। उसी का अलंकारता भाषा में प्रस्तुत कविता में वर्णन किया गया है। सुमित्रानंदन पंत हिंदी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं। इस युग को जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' और रामकुमार वर्मा जैसे कवियों
का युग कहा जाता है। उनका व्यक्तित्व भी आकर्षण का केंद्र बिंदु था। गौर वर्ण, सुंदर सौम्य मुखाकृति, लंबे घुंघराले बाल, सुगठित शारीरिक सौष्ठव उन्हें सभी से अलग मुखरित करता था। जन्म स्थान कौसानी बागेश्वर उत्तराखंड सम्मान हिंदी साहित्य सेवा के लिए उन्हें पद्मभूषण(1961), ज्ञानपीठ(1968),
साहित्य अकादमी, तथा सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार जैसे उच्च श्रेणी के सम्मानों से अलंकृत किया गया। “चिदम्बरा” नामक रचना के लिये 1968 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित। “कला और बूढ़ा चांद” के लिये 1960 का साहित्य अकादमी पुरस्कार। इसके अलावा अनेकों प्रतिष्ठित सम्मान और पुरस्कार से सम्मानित किया गया आधुनिक हिन्दी काव्य जगत के जीवन पत्र कविता में कवि ने पतझड़ में डाल से टूटकर झड़ते हुए पत्तों के बहाने समाज में परिवर्तन के आकांक्षा व्यक्त की है। इस कविता में कवि ने जीवन जगत में नई चेतना एवं नवोद साह के
संचार की कामना को बादल के माध्यम से व्यक्त किया है। दर्शन अनुभूति के बाद की उस गंभीर ज्ञानात्मक अवस्था को कहा जाता है। जिसमें व्यक्ति भावना के क्षेत्र में उधर्वोमुख होकर जीवन और जगत के प्रति विश्लेषण की प्रवृत्ति अपनाता है। दर्शन के रूप में सामाजिक तथा आध्यात्मिक दर्शन में संकरी होने के कारण अंत में दार्शनिक बाद विवादों से मुक्त खंडन मंडात्मक प्रवत्ति नहीं पाई जाती। अपितु उन्होंने अपने प्रत्येक सिद्धांत को जीवन
की उपयोगिता की कसौटी पर परख कर स्वीकार है। पंत के काव्य पर उपनिषदों की विचारधारा के साथ ही अद्वैतवाद, मार्क्सवाद तथा गांधीवाद का प्रभाव भी देखा जा सकता है। उपनिषदों का मूल तत्व है। जिज्ञासा भाव पंत के इस भाव
के मौन नियंत्रण कविता में देखा जा सकता है। वह प्रारंभ से ही प्रकृति और उसके पीछे अव्यक्त सत्ता के प्रति जिज्ञासु है। ‘ना जाने तपक तड़ित में मौन निमंत्रण देता मुझको मौन’ सोनजुही कविता के रचयिता पंत ने सोनजुही लता के सौंदर्य का वर्णन प्रस्तुत कविता में किया है। सुमित्रानंदन पंत कविताए जो सुमित्रानंदन पंत जीवन परिचय
सुमित्रानंदन पंत कविताए
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