3 अप्रैल, 1931 भानपुरा (मध्यप्रदेश)। बनारस विश्वविद्यालय में एम०ए. हिंदी पारिभाषिक कोश के आदि निर्माता श्री सुखसंपतराय भंडारी बेटी होने के कारण लेखन-संस्कार पैतृक दाय केरूप में प्राप अजमेर में बीता, बाद में कार्यक्षेत्र कलकत्ता और दिल्ली। वर्षे विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस में हिंदीप्राध्यापिका के रूप में विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में प्रेमचंद सृजनपीठ की अध्यक्ष रही।बासु भटटाचार्य के निर्देशन में ‘यही सच है’,
‘एखाने आकाश नाहीं ‘त्रिशंकु’ नामक कथाकृतियों पर फिल्य निर्माणकिया गया ,और प्रसिद्ध फिल्म ‘स्वामी’ भी उन्हीं के उपन्यास-आलेख पर आधृत है। कृतियाँ उपन्यास-महाभोज, आपका बंटी, स्वामी, एक इंच मुस्कान (श्री राजेंद्र यादव के साथ)। कहानी-एक प्लेट सैलाब, मैं हार गई, तीन निगाहों की एक तस्वीर. यही सच है, त्रिशंकु, संपूर्ण कहानियाँ।
एक कहानी यह भी; नाटक-एकांकी-महाभोज, बिना दीवारों के घर, बाल पुस्तकें-आसमाता (उपन्यास), आँखोंदेखा झूठ, कलवा (कहानी)। नई कहानी को समृद्ध बनाने में जिन कथा-लेखिकाओं ने महत्त्वपूर्ण काय किया है,मन्नू भंडारी का नाम उनमें सर्वोपरि है। स्वभावतः इसमें उनका नारी-मनरूपायित हुआ है। आधुनिक नारी कीअस्मिता, उसकी अपनी पहचान और सामाजिक जड़ताओं से लड़ने के उसके साहस की उन्होंने बराबर रचनात्मकहिमायत की है। यह एक चुनौती भरा कार्य था, क्योंकि उनके अपने शब्दों में “कवयित्री की अपेक्षा नारी-कथाकारके साथ यह कठिनाइ और भी बढ़ जाती है कि उसे बिना लाक्षणिक भाषा का सहारा लिए अधिक खुलकर सामनेआना पड़ता है। वह घिसे-पिटे कथानकों और भाव धरातला को ही लेती रहे, तब तक तो ठीक है, लेकिन जहाँजीवन व्यापक क्षेत्रों को छूने का साहस उसने किया कि प्रत्यक्ष और परोछ उसकी ओर अँगुली उठाती सामने आखड़ी होती हैं।”
मनु भंडारी एक भारतीय रचनाकार है। इन्होने अनेक रचनाये की जिसमे से कुछ रचनाये कृतियाँ उपन्यास-महाभोज, आपका बंटी, स्वामी, एक इंच मुस्कान (श्री राजेंद्र यादव के साथ)। कहानी-एक प्लेट सैलाब, मैं हार गई, तीन निगाहों की एक तस्वीर. यही सच है, त्रिशंकु, संपूर्ण कहानियाँ। मनु
भंडारी की मृत्यु 15 November 2021 हुई क्या यह सच है कहानी मनु भंडारी की कहानी रचना है। मनु भंडारी के पिता जी का नाम श्री सुखसंपतराय भंडारी था मन्नू भंडारी का मूल नाम महेंद्र कुमारी था मन्नू भंडारी जी का जन्म ३ अप्रैल १९३१ को भानपुरा मध्यप्रदेश में हुआ मेरा नाम विष्णु मणि पांडेय है। जो की मै इस साइट पे आप जो भी पड़ते है देखते है वो सब अभी तो मेरे द्वारा ही किया जा रहा है। मुझे नयी जगह या नया चीज़ खोज कर काम करने में बहुत मज़ा आता है।जन्मः
आत्मकथा –
मनु भंडारी कौन थी?
मनु भंडारी कब मरी थी?
क्या यह सच है कहानी?
मन्नू भंडारी के पिता का नाम क्या था?
मन्नू भंडारी का मूल नाम
क्या है?
मन्नू भंडारी का जन्म कब हुआ था?
धन्यवाद
मन्नू भंडारी का जीवन परिचय - in 2023 Biography of Mannu Bhandari in Hindi
मन्नू भंडारी
Mannu Bhandari |
(manu bhandari) जी का जन्म :- 3 अप्रैल सन 1931 भानपुरा मध्य प्रदेश में हुआ था|
मन्नू भंडारी का मूल नाम क्या था :- महेंद्र कुमारी था, लेकिन लेखन के क्षेत्र में इन्होंने अपना नाम मन्नू अपनाया|
मन्नू भंडारीके पिता का नाम :- शुखसंपत राय भंडारी |
मन्नू भंडारी के पति का नाम :- श्री राजेंद्र यादव |
प्रमुख रचनाएं :
कहानी संग्रह ( Mannu Bhandari ki Kahani ka Naam Kya hai ):- एक प्लेट सैलाब, मैं हार गई, तीन निगाहों की एक तस्वीर, यही सच है, त्रिशंकु, आंखों देखा झूठ।
उपन्यास :- (राजेंद्र देव के साथ) आपका बंटी, महाभोज, स्वामी, एक इंच मुस्कान।
पटकथाएँ:- रजनी, निर्मला, स्वामी, दर्पण।
सम्मान:- हिंदी अकादमी दिल्ली का शिखर सम्मान, बिहार सरकार, भारतीय भाषा परिषद कोलकाता, राजस्थान संगीत नाटक अकादमी और उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा पुरस्कृत।
मनु भंडारी (Mannu Bhandari) हिंदी कहानी के उस समय सक्रिय हुईं जब नई कहानी आंदोलन उथान पर था। नई कहानी आंदोलन में जो नया मोड़ आया उनमें मनु जी का विशेष योगदान रहा उनकी कहानियों में कहीं पारिवारिक जीवन कहीं नारी जीवन और कहीं समाज के विभिन्न वर्गों के जीवन की विषमता विशेष आत्मीय अंदाज में व्यक्त हुई हैं। उन्होंने आक्रोश व्यंग और संवेदना को मनोवैज्ञानिक रचनात्मक आधार दिया है -- वह चाहे कहानी हो उपन्यास हो या फिर पटकथा ही क्यों न हो।
पटकथाएँ क्या है? (script)
पटकथा यानी पट या स्क्रीन के लिए लिखी गई वह कथा रजत पट फिल्म का स्क्रीन के लिए भी हो सकती है और टेलीविजन के लिए भी और मूल बात यह है कि जिस तरह मंच पर खेलने के लिए नाटक लिखे जाते हैं ठीक उसी तरह कैमरे में फिल्माए जाने वाले के लिए पटकथा लिखी जाती है। जिसे हम साधारण भाषा में (script) कहते हैं, उसे ही पटकथाएँ कहा जाता है।
कोई लेखक किसी भी दूसरी विधा में लेखन करके उतने लोगों तक अपनी बात नहीं पहुंचा सकता, जितना कि पटकथा लेखन द्वारा पहुंचाया जाता है।
क्योंकि पटकथा सूट होने के बाद धारावाहिक के फिल्मों के रूप में लाखों करोड़ो दर्शकों तक पहुंच जाती है इस लोकप्रियता के चलते ही पटकथा लेखन की और लेखकों का भी पर्याप्त रुझान हुआ है और पत्र पत्रिकाओं था पुस्तकों में भी पार्ट कथाएं छपने लगी हैं।
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