मनुष्य का कान किस प्रकार कार्य करता है?
(i) मनुष्य कर्ण, मनुष्य के शरीर का अत्यंत संवेदनशील भाग होता है, जो उसे ध्वनियों को सुनने योग्य बनाता है।
(ii) यह श्रवणीय आवृत्तियों द्वारा वायु में होने वाले दाब परिवर्तनों को विद्युत् संकेतों में बदलकर श्रवण तंत्रिका से होते हुए मस्तिष्क तक पहुँचाता है।
चित्र: मानव कर्ण के श्रवण भाग
(iii) इसके तीन मुख्य भाग होते हैं:
1) बाहरी कर्ण: बाहरी कान कर्ण पल्लव कहलाता है। यह आसपास से ध्वनि एकत्रित करता है। एकत्रित ध्वनि श्रवण नलिका से गुज़रती है। श्रवण नलिका के सिरे पर एक झिल्ली होती है जिसे कर्ण पटह झिल्ली कहते हैं। जब माध्यम के संपीडन कर्ण पटह तक पहुँचते हैं तो झिल्ली के बहारी क्षेत्र का दाब बढ़ जाता है जो कर्ण पटह को अंदर की ओर धकेलता है। इसी प्रकार विरलन कर्ण पटह को बाहर की ओर धकेलते हैं। इस प्रकार कर्ण पटह कंपन करता है।
2) मध्य कर्ण में तीन हड्डियाँ विद्यमान हैं: मुग्दरक, निहाई, और वलयक। ये इन कंपनों को कईं गुना बढ़ा देती हैं। मध्य कर्ण इन दाब परिवर्तनों को आतंरिक कर्ण तक संचारित करता है।
3) आतंरिक कर्ण में कर्णावर्त दाब परिवर्तनों को विद्युत् संकेतों में परिवर्तित करता है फिर ये विद्युत् संकेत श्रवण तंत्रिका से होते हुए मस्तिष्क तक पहुँचते हैं।
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ध्वनि
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विज्ञान
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Solution : उत्तर-हमारा बाहय कर्ण आस-पास की ध्वनियाँ ग्रहण करता है। यह ध्वनि फिर श्रवण तंत्रिका से गुजरती है। श्रवण तंत्रिका के अंत में एक पतली झिल्ली होती है, जिसे कान का पर्दा या कर्णपट्ट कहते हैं। जब वस्तु में उत्पन्न विक्षोभ के द्वारा माध्यम का संपीड़न कर्णपट्ट तक पहुँचता है, तो ये कर्णपट्ट को अंदर की ओर धकेलता है। इसी प्रकार, विरलन कर्णपट्ट को बाहर की ओर खींचता है। इस प्रकार कर्णपट्ट में कंपन उत्पन्न होता है। ये कंपन मध्यवर्ती कान में स्थित तीन हड्डियों (हथौड़ा, निघात और वलयक) की सहायता से कई गुना प्रवर्धित किया जाता है। फिर ये प्रवर्धित दबाव मध्यवर्ती कान द्वारा अंदरूनी कान तक पहुँचाया जाता है। अंदरूनी कान में ये प्रवर्धित दबाव कर्णावर्त के द्वारा विधुत संकेतों में परिवर्तित किया जाता है। फिर श्रवण नाड़ी के द्वारा ये विधुत संकेत मस्तिष्क तक पहुँचते हैं और मस्तिष्क इन्हें ध्वनि के रूप में परिवर्तित करता है। <br> <img src="//doubtnut-static.s.llnwi.net/static/physics_images/VRM_HIN_SCI_IX_PHY_C04_E03_013_S01.png" width="80%">
Solution : मनुष्य का कान, एक अतिसंवेदी युक्ति होता है, जिसकी सहायता से मनुष्य ध्वनि सुन पाते हैं। यह श्रवणीय आवृत्तियों द्वारा वायु में होने वाले दाब परिवर्तनों को विद्युत संकेतों में बदलता है, जो श्रवण तंत्रिका से होते हुए मस्तिष्क तक पहुँचते हैं। <br> मानव के कान द्वारा सुनने की प्रक्रिया-मानव कान के तीन भाग होते हैं <br> (1) बाह्य कर्ण (External Ear) (2) मध्य कर्ण (Middle Ear) (3) आंतरिक कर्ण (Inner Ear)। <br> (1) बाहरी कान .कर्ण पल्लव. कहलाता है। यह परिवेश से ध्वनि को एकत्रित करता है। एकत्रित ध्वनि श्रवण नलिका से गुजरती है। श्रवण नलिका के सिरे पर एक पतली झिल्ली होती है, जिसे .कर्ण पटह या कर्ण पटह झिल्ली. कहते हैं। जब माध्यम के संपीडन कर्ण पटह तक पहुँचते हैं तो झिल्ली के बाहर की ओर लगने वाला दाब बढ़ जाता है और यह कर्ण पटह को अन्दर की ओर दबाता है। इसी प्रकार, विरलन के पहुँचने पर कर्ण पटह बाहर की ओर गति करता है। इस प्रकार से कर्ण पटह कम्पन करता है। <br> (2) मध्य कर्ण में विद्यमान तीन हड्डियाँ [मुग्दरक, निहाई तथा वलयक (स्टिरप) ] इन कम्पनों को कई गुना बढ़ा देती हैं। मध्य कर्ण ध्वनि तरंगों से मिलने वाले इन दाब परिवर्तनों को आंतरिक कर्ण तक संचरित कर देता है। <br> (3) आंतरिक कर्ण में कर्णावर्त (Cochlea) द्वारा दाब परिवर्तनों को विद्युत संकेतों में परिवर्तित कर दिया जाता है। इन विद्युत संकेतों को श्रवण तंत्रिका द्वारा मस्तिष्क तक भेज दिया जाता है और मस्तिष्क इनकी ध्वनि के रूप में व्याख्या करता है। <br> <img src="//doubtnut-static.s.llnwi.net/static/physics_images/SNJ_HIN_SCI_IX_C12_E02_022_S01.png" width="80%">
मनुष्य का कान किस प्रकार कार्य करता है?
(i) मनुष्य कर्ण, मनुष्य के शरीर का अत्यंत संवेदनशील भाग होता है, जो उसे ध्वनियों को सुनने योग्य बनाता है।
(ii) यह श्रवणीय आवृत्तियों द्वारा वायु में होने वाले दाब परिवर्तनों को विद्युत् संकेतों में बदलकर श्रवण तंत्रिका से होते हुए मस्तिष्क तक पहुँचाता है।
चित्र: मानव कर्ण के श्रवण भाग
(iii) इसके तीन मुख्य भाग होते हैं:
1) बाहरी कर्ण: बाहरी कान कर्ण पल्लव कहलाता है। यह आसपास से ध्वनि एकत्रित करता है। एकत्रित ध्वनि श्रवण नलिका से गुज़रती है। श्रवण नलिका के सिरे पर एक झिल्ली होती है जिसे कर्ण पटह झिल्ली कहते हैं। जब माध्यम के संपीडन कर्ण पटह तक पहुँचते हैं तो झिल्ली के बहारी क्षेत्र का दाब बढ़ जाता है जो कर्ण पटह को अंदर की ओर धकेलता है। इसी प्रकार विरलन कर्ण पटह को बाहर की ओर धकेलते हैं। इस प्रकार कर्ण पटह कंपन करता है।
2) मध्य कर्ण में तीन हड्डियाँ विद्यमान हैं: मुग्दरक, निहाई, और वलयक। ये इन कंपनों को कईं गुना बढ़ा देती हैं। मध्य कर्ण इन दाब परिवर्तनों को आतंरिक कर्ण तक संचारित करता है।
3) आतंरिक कर्ण में कर्णावर्त दाब परिवर्तनों को विद्युत् संकेतों में परिवर्तित करता है फिर ये विद्युत् संकेत श्रवण तंत्रिका से होते हुए मस्तिष्क तक पहुँचते हैं।
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दो बालक किसी अलुमिनियम पाइप के दो सिरों पर हैं। एक बालक पाइप के एक सिरे पर पत्थर से आघात करता है। दुसरे सिरे पर स्थित बालक तक वायु तथा अलुमिनियम से होकर जाने वाली ध्वनि तरंगों द्वारा लिए गए समय का अनुपात ज्ञात कीजिए।
माना छड़ की लंबाई: x m
t = दूरी/चाल
1) वायु में ध्वनि की चाल: 344 m/s
वायु माध्यम से होकर ध्वनि द्वारा लिया जाने वाला समय: t1 = x m/344 m/s
2) अलुमिनियम में ध्वनि की चाल: 6420 m/s
अलुमिनियम पाइप से होकर ध्वनि द्वारा
लिया जाने वाला समय: t2 = x m/6420 m/s
वायु में लिया जाने वाला समय : पाइप से लिया जाने वाला समय
t1 : t2
18.55 : 1
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किस प्रयोग से यह दर्शाया जा सकता है कि ध्वनि संचरण के लिए एक द्रव्यात्मक माध्यम की आवश्यकता होती है
ध्वनि एक यांत्रिक तरंग है जिसके संचरण के लिए किसी माध्यम- वायु, जल, स्टील आदि की आवश्यकता होती है। इसका संचरण निर्वात में नहीं हो सकता।
प्रयोग:
1) एक बेलजार में विद्युत् घंटी को वायुरुद्ध रबड़ के साथ बेलजार के ढ़क्कन पर बाँधकर लटकाएँ।
2) बेलजार को निर्वात पम्प के साथ जोड़ें।
3) घंटी के स्विच को दबाएँ।
4) अभी घंटी की आवाज़ सुनाई देगी क्योंकि बेलजार में अभी हवा है।
5) अब निर्वात पम्प को चलाएँ।
6) अब धीरे-धीरे बेलजार से निर्वात पम्प द्वारा हवा निकली जा रही है।
7) अब घंटी की आवाज़ धीमी होती जा रही है।
8) और धीरे-धीरे हवा की अनुपस्थिति में घंटी की आवाज़ सुनाई नहीं देगी।
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एक चित्र के माध्यम से वर्णन कीजिए कि ध्वनि के स्रोत के निकट वायु में संपीडन तथा विरलन कैसे उत्पन्न होते हैं।
हवा के माध्यम से ध्वनि का उत्पादन
i) ध्वनि अनुदैर्ध्य तरंगों के रूप में हवा के माध्यम से यात्रा करती हैं।
ii) एक कंपमान स्वरित्र द्विभुज द्वारा उत्पन्न होने वाली ध्वनि तरंगों पर विचार कीजिए, जैसा कि इस चित्र में दर्शाया गया है।
चित्र: वायु में ध्वनि तरंगें उत्पन्न करता स्वरित्र द्विभुज
iii) कंपमान स्वरित्र द्विभुज की दोनों भुजाएँ पहले आगे के क्षेत्र (B1) की ओर कंपन करती हैं जिसे संपीडन कहते हैं (C क्षेत्र)।
iv) कंपमान स्वरित्र द्विभुज की दोनों भुजाएँ फिर पीछे के क्षेत्र (B2) की ओर कंपन करती हैं जिसे विरलन कहते हैं (R क्षेत्र)।
v) इसी प्रकार कंपमान स्वरित्र द्विभुज की दोनों भुजाएँ आगे पीछे गति करती हैं तथा संपीडन और विरलन की श्रेणी बन जाती है।
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500 मीटर ऊँची किसी मीनार की चोटी से एक पत्थर मीनार के आधार पर स्थित एक पानी के तालाब में गिराया जता है। पानी में इसके गिरने की ध्वनि चोटी पर कब सुनाई देगी? g = 10 ms–2 and speed of sound = 340 ms–1
मीनार की ऊँचाई, h = 500m
u= 0
त्वरण, g =10 ms–2
माना कि पत्थर को तालाब तक पहुँचने में t1 समय लगता है तब,
h = ut + 1/2gt2
500 = 0xt1+1/2x10xt12
या t12=
2x500/10 = 100
=> t1= 10s
अब पत्थर टकराता है और ध्वनि उत्पन्न होती है।
माना ध्वनि को उत्पन्न होने में t2 समय लगता है तब,
t2 = दूरी/चाल = 500m/340m/s = 1.47s
∴ कुल समय = t1+ t2= 11.47s
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क्या ध्वनि परावर्तन के उन्हीं नियमों का पालन करती है जिनका कि प्रकाश की तरंगें करती हैं? इन नियमों को बताइए।
ध्वनि परावर्तन के उन्हीं नियमों का पालन करती है जिनका कि प्रकाश की तरंगें करती हैं।
परावर्तक सतह पर खींचे गए अभिलंब तथा ध्वनि के आपतन होने कि दिशा तथा परावर्तन होने कि दिशा के बीच बने कोण आपस में बराबर होते हैं और ये सभी दिशाएँ एक ही ताल में होती हैं।
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