मोतीलाल नेहरू के पिता कौन थे - moteelaal neharoo ke pita kaun the

भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नाम और उनके इतिहास को लेकर सोशल मीडिया पर झूठी खबरें फैलाई जा रही हैं.

भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से जुड़ी कई अफवाहें आज-कल वॉट्सऐप या सोशल मीडिया साइट्स पर काफी फैलाई जा रही हैं. उनमें से एक है कि जवाहरलाल नेहरू के पूर्वज मुगल थे और दूसरा आरोप सवाल के रूप में है कि ‘नेहरू’ सरनेम (surname) झूठा है और यह अन्य किसी राज्य या इलाके में नहीं पाया जाता. दूसरे दावे में यह भी सवाल किया जाता है कि अगर नेहरू कश्मीरी पंडित थे तो उनका गोत्र या कौटुम्बिक नाम क्या है?

इन सभी सवालों के जवाब की तलाश की जाए तो आसानी से यह पता चल जाएगा कि पूर्व प्रधानमंत्री पर लगाए गए यह सभी आरोप बेबुनियाद हैं. इन आरोपों का तार्किक खंडन नेहरू से जुड़ी या खुद उनके द्वारा लिखी गई किताबों में आसानी से मिल जाएगा. इन आरोपों के पीछे का सच जानने के लिए हमने नेहरू की आत्मकथा ‘माय स्टोरी’ के चंद पेज पलटे. उन्ही के बूते इन आरोपों का खंडन कर रहे हैं.

क्या नेहरू के पूर्वज मुगल थे?

इस सवाल का जवाब नेहरू ने अपनी आत्मकथा के पहले पेज पर ही दिया है. उन्होंने अपनी आत्मकथा जो कि जून 1934 से फरवरी 1935 के दरमियान जेल में लिखी थी, में बताया है कि वह कश्मीरी हैं और उनके पूर्वज 18वीं सदी की शुरुआत में धन और यश कमाने के लिए कश्मीर की तराइयों से नीचे के उपजाऊ मैदान में आए थे. 18वीं सदी की शुरुआत में मुगल साम्राज्य के अंत की भी शुरुआत लगभग होने लगी थी.

उन दिनों फर्रुखसियर मुगल बादशाह था. नेहरू के जो पुरखे सबसे पहले नीचे आए थे उनका नाम था राजकौल. जिनका नाम कश्मीर के संस्कृत और फारसी के विद्वानों में शामिल होता था. आत्मकथा के मुताबिक फर्रुखसियर जब कश्मीर गया तब उसकी मुलाकात राजकौल से हुई और शायद मुगल बादशाह के कहने पर ही राजकौल का परिवार कश्मीर से दिल्ली आया.

दिल्ली आने के बाद राजकौल को कुछ जागीर और एक मकान दिया गया. नेहरू के मुताबिक मकान नहर के किनारे था. इसी के कारण उनके कौटुम्बिक नाम कौल के साथ नेहरू जुड़ गया. जिसके बाद वह कौल-नेहरू हो गए. जवाहरलाल नेहरू ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि आगे चलकर कौल तो गायब हो गया और महज नेहरू रह गया.

कौल से नेहरू हुआ परिवार

जवाहरलाल नेहरू के मुताबिक इसी दरमियान उनके कुटुम्ब के वैभव का अंत हो गया और जागीर भी तहस नहस हो गई. इसी किस्से को लिखते हुए नेहरू बताते हैं कि उनके परदादा का नाम लक्ष्मीनारायण नेहरू था जो कि दिल्ली के बादशाह के दरबार में कंपनी सरकार के पहले वकील बने. जवाहरलाल नेहरू के मुताबिक उनके दादा गंगाधर नेहरू की 34 साल की उम्र में मृत्यु हो गई थी और वह 1857 की क्रांती के कुछ समय पहले तक दिल्ली के कोतवाल भी रहे थे.

तीन साल कानपुर में वकालत करने के बाद मोतीलाल नेहरू इलाहाबाद आ गए और हाईकोर्ट में वकालत शुरू की.

1857 के समर के बाद उनके परिवार के तमाम दस्तावेज तहस-नहस हो गए और सबकुछ लगभग खत्म होने के बाद उनका परिवार अन्य लोगों के साथ आगरा जा बसा. नेहरू के मुताबिक इस समय तक उनके पिता का जन्म नहीं हुआ था. आगरा में ही 6 मई 1861 को उनके पिता मोतीलाल नेहरू का जन्म हुआ. उनके दो बड़े भाई भी थे जो परिवार का पालन कर रहे थे. बंशीधर नेहरू जिन्हें जवाहर बड़े चाचा कहते थे वह ब्रिटिश सरकार के न्याय विभाग में नौकर थे और दूसरे चाचा नंदलाल नेहरू राजपूताना की एक रियासत के दीवान बन गए.

नेहरू परिवार आगरा से इलाहाबाद कैसे पहुंचा?

नंदलाल नेहरू ने कानून की पढ़ाई करने के बाद आगरा में वकालत शुरू की और उन्ही के साथ जवाहरलाल नेहरू के पिता काम करने लगे. नेहरू के छोटे चाचा (नंदलाल) हाई कोर्ट जाया करते थे और जब हाई कोर्ट इलाहाबाद चला गया तो उनका परिवार भी इलाहाबाद जा बसा और यहीं जवाहरलाल नेहरू का जन्म भी हुआ. जिस समय मोतीलाल नेहरू कानपुर और इलाहाबाद के कॉलेज में शिक्षा ग्रहण कर रहे थे तब तक उनके भाई इलाहाबाद के नामी वकीलों में पहचाने जाने लगे थे. कॉलेज से गोल्ड मेडल हासिल करने के बाद मोतीलाल नेहरू भी कानपुर की जिला अदालतों में वकालत करने लगे थे.

तीन साल कानपुर में वकालत करने के बाद मोतीलाल नेहरू इलाहाबाद आ गए और हाईकोर्ट में वकालत शुरू की. इसी दरमियान उनके बड़े भाई नंदलाल नेहरू की मौत हो गई. जिसके बाद उनके सभी केस मोतीलाल नेहरू को मिल गए. अपनी तेज तर्रार तकरीरों से मोतीलाल नेहरू की गिनती भी इलाहाबाद हाई कोर्ट के नामी वकीलों में होने लगी थी. बता दें की जवाहरलाल नेहरू का जन्म 14 नवंबर 1886 को इलाहाबाद में ही हुआ था.

इन तथ्यों के आधार पर देखा जाए तो आज-कल जो भी खबरें भारत के पहले प्रधानमंत्री के नाम और इतिहास को लेकर फैलाई जा रही हैं वह सच न होकर महज व्यक्तिगत या निजी हित को साधने का प्रयास मात्र है.

ये भी पढ़ें: चुनाव आयोग का ये नियम पढ़ लीजिए, प्रधानमंत्री मोदी की सीट पर भी हो सकता है बैलेट पेपर से चुनाव

गयासुद्दीन गाजी का इतिहास

गंगाधर नेहरू  (1827 – 4 फरवरी 1861)कहा जाता है उनका मूल नाम गयासुद्दीन गाजी था। एक भारतीय पुलिस अधिकारी थे, जिन्होंने 1857 के भारतीय विद्रोह के बाद इस पद को समाप्त होने  से पहले मुगल सम्राट बहादुर शाह द्वितीय के दरबार में दिल्ली (पुलिस प्रमुख) के रूप में कार्य किया था।

वह भारतीय स्वतंत्रता सेनानी मोतीलाल नेहरू के पिता और भारत के पहले प्रधानमंत्री, जवाहरलाल नेहरू के दादा थे, और इस तरह नेहरू-गांधी परिवार का हिस्सा थे

  • गयासुद्दीन गाजी का जीवन
  • गयासुद्दीन गाजी पर षड्यंत्र सिद्धांत

गयासुद्दीन गाजी का जीवन

19 वीं शताब्दी के शुरुआती दौर में, गंगाधर के पिता, लक्ष्मी नारायण नेहरू, ने ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए दिल्ली में एक मुंशी के रूप में काम किया था। गंगाधर नेहरू को मुगल सम्राट बहादुर शाह द्वितीय के दरबार में दिल्ली के कोतवाल (पुलिस प्रमुख के समान रैंक) नियुक्त किया गया था।वह इस पद पर काम करने वाले आखिरी व्यक्ति थे क्यूंकि 1857 के भारतीय विद्रोह के परिणामस्वरूप इस पद को समाप्त कर दिया गया था। बाद में जब ब्रिटिश सैनिकों ने शहर में शेलिंग बढ़ाई , तो वह अपनी पत्नी जियारानी और अपने चार बच्चों (दो किशोर पुत्रों, बंसीधर और नंदलाल और दो बेटियों, पटरानी और महारानी) के साथ आगरा भाग गए।

उनका सबसे छोटा बच्चा, मोतीलाल, उनके मरने के तीन महीने बाद पैदा हुआ था। गंगाधर के सबसे बड़े पुत्र, बंसी धर नेहरू ने ब्रिटिश सरकार के न्यायिक विभाग में काम किया और विभिन्न स्थानों पर क्रमिक रूप से नियुक्त होने के कारण, परिवार के बाकी सदस्यों से आंशिक रूप से कट गए। दूसरा बेटा, नंदलाल, एक भारतीय राज्य की सेवा में प्रवेश किया और दस वर्षों तक राजपूताना में खेतड़ी राज्य का दीवान था। बाद में उन्होंने कानून की पढ़ाई की और आगरा में एक प्रैक्टिसिंग वकील के रूप में बस गए।

गयासुद्दीन गाजी पर षड्यंत्र सिद्धांत

एक षड्यंत्र का सिद्धांत कहता है कि गंगाधर नेहरू(जवाहरलाल नेहरू के दादा  ) का मूल नाम ग़यासुद्दीन गाज़ी था। कहा जाता है,1857  में,शहर के कोतवाल गयासुद्दीन गाजी, अपने परिवार के साथ दिल्ली से भाग गए थे क्यूंकि उन्हें और उनके परिवार को उग्र ब्रिटिश सैनिकों के कब्जे में आने का डर था।  उन्हें कथित तौर पर आगरा में ब्रिटिश सैनिकों द्वारा रोका गया था क्योंकि उन्होंने एक मुगल  व्यक्ति के जैसे पोशाक पहनी थी । लेकिन वह उन्हें यह कहकर चकमा देने में कामयाब की चकमा देने में कामयाब रहा कि वह एक कश्मीरी हिंदू था जिसका नाम पंडित गंगाधर नेहरू था।

#सम्बंधित:- आर्टिकल्स

  • दस ऐसी घटनाएं जिन्होंने पलट कर रख दिया भारत का इतिहास
  • भारतीय इतिहास
  • संस्कृत भाषा का इतिहास
  • कश्मीरी पंडित
  • भारतीय इतिहास की 10 ऐसी महान महिलाएं जिन्होंने मनवाया समाज में अपना लोहा

Read Next

    December 6, 2020

    बाबरी मस्जिद विध्वंस: 1528 से 2020 तक अयोध्या में घटनाओं का घटनाक्रम

    May 30, 2020

    रवीन्द्रनाथ टैगोर की जीवनी: इंसानियत के कवि….

    October 3, 2020

    रानी लक्ष्मीबाई जीवनी: जन्म, परिवार, जीवन इतिहास मृत्यु और कविता

    August 29, 2020

    जैन धर्म का इतिहास और उसके सिद्धांत

    May 19, 2020

    एक्टिंग के जुनून ने बना दिया सुपरस्टार, जानें कैसा था नवाजुद्दीन सिद्दीकी का जीवन…

    May 29, 2020

    महेश नवमी क्यों मनाई जाती है, क्या है मान्यता और पूजा विधि, आइए जानें…

    July 6, 2020

    गाँधी और अम्बेडकर में मतभेद और पूना पैक्ट

    June 23, 2020

    राजा रणजीत सिंह :भगवान ने मुझे एक आंख इसलिए दी है ताकि मैं हिंदू, मुस्लिम, सिख और ईसाई सबको बराबर की दृष्टि से देख संकू

    May 21, 2020

    गांधीवादियों के लिए अच्छा विकल्प है, गाँधी हेरिटेज साइट्स मिशन…

    June 1, 2020

    ऑपरेशन ब्लू स्टार : आतंक के खिलाफ, भारतीय सेना का अभियान..

    मोतीलाल नेहरू के वंशज कौन थे?

    मोतीलाल के पुत्र जवाहरलाल नेहरू (1889-1964) ने स्वतन्त्रता संग्राम में हिस्सा लिया और 1929 में कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गये। जवाहरलाल नेहरू गान्धी के काफी करीब थे। नेहरू के कोई पुत्र न था, उनकी एक पुत्री इंदिरा गांधी थी। जिनका विवाह फिरोज़ गांधी से हुआ और इसी पीढ़ी से ये वंश चल रहा है।

    लक्ष्मी नारायण के पिता का नाम क्या था?

    Mansa Ram Nehruलक्ष्मी नारायण नेहरू / पिताnull

    नेहरू के दादा का क्या नाम था?

    Mansa Ram Nehruगंगाधर नेहरू / दादा या नानाnull

    संबंधित पोस्ट

    Toplist

    नवीनतम लेख

    टैग