हिंद-आर्य भाषाएँ, एसआईएल के अनुसार समूहीकृत: ██ मध्य और पूर्व मध्य क्षेत्र ██ उत्तरी क्षेत्र ██ उत्तरपूर्वी क्षेत्र ██ पूर्वी क्षेत्र ██ दक्षिणी क्षेत्र ██ द्वीपीय
हिन्द-आर्य भाषाओं में लगभग २१० (एसआईएल अनुमान) भाषाएँ और बोलियाँ आती हैं जो एशिया में बहुत से लोगों द्वारा बोली जाती हैं; यह भाषा परिवार हिंद-इरानी भाषा परिवार का भाग है।
ऐतिहासिक[संपादित करें]
- प्राचीन हिंद (१५००-३०० ई.पू.)
- आरंभिक प्राचीन हिंद: वैदिक संस्कृत (१५०० से ५०० ई.पू.)
- अतिकालिक प्राचीन हिंद: महाकाव्यिक संस्कृत, शास्त्रीय संस्कृत (५०० से ३०० ई.पू.)
-
मध्य हिंद (३०० ई.पू. से १५०० ईस्वी)
- प्रारंभिक चरण: ३री शताब्दी ई.पू.
- अशोक-प्राकृत (३री शताब्दी ई.पू. क्षेत्रीय बोलियाँ)
- पाली (बौद्ध सिद्धांत की भाषा)
- आरंभिक अर्धमगधि (सबसे पुराने जैन सूत्रों की भाषा)
- मध्य चरण (२०० ई.पू. से ७०० ईस्वी)
- निया प्राकृत
- अर्धमगधि (अतिकालिक जैन सिद्धांत)
- नाटकीय प्राकृत (मौर्य काल)
- महाराष्ट्री प्राकृत
- मगधि प्राकृत
- सौरासेनी प्राकृत
- सिंहली प्राकृत
- संकर संस्कृत (महायान सिद्धांत)
- अतिकालिक चरण: अपभ्रंश (७०० ईस्वी से १५०० ईस्वी)
- अबहत्त (मगधि अपभ्रंश)
- इलू (सिंहली अपभ्रंश)
- प्रारंभिक चरण: ३री शताब्दी ई.पू.
- आरंभिक आधुनिक हिंद (मुगल काल, १५०० से
१८००)
- आरंभिक दक्खनी (कालमितुल-हकायत १५८०)
- खड़ीबोली का उद्भव (गोरा-बादल की कथा, १६२० का दौर)
- दिल्ली के किले पर "उर्दू" का उभरना (१६७० का दौर)
समकालीन भाषाएँ[संपादित करें]
यह वर्गीकरण कौसन का पालन करता है (२००५)। एसआईएल से भिन्नता उल्लेखित है। (एसआईएल हिंद-आर्य भाषाओं में नुरिस्तानी भाषाओं को सम्मिलित करता है)
दार्दी भाषाएँ[संपादित करें]
(दूसरी हिंद-आर्य भाषाओं से इस परिवार का सम्बन्ध अस्पष्ट है; एथ्नोलोग इसे पश्चिमोत्तर क्षेत्र में सम्मिलित करता है, इसके पश्चात भी की इन भाषाओं की व्याकरण संरचना शास्त्रीय हिंद-आर्य भाषाओं से बहुत अलग है।)
कुनर (कुनड़) भाषाएँ- पाशाई
- ग्वार-बती
- दामेली
- शुमश्ती
- नंगलामी (ग्रंगली सम्मिलित)
- खोवार
- कलश
- कालामी
- तोरवाली
- कलकोटी
- सिंधु कोहिस्तानी
- बटेरी
- चीलीस्सो
- गोवरो
- वोटापूरी-कटारक़लाई
- तीराही
- शीना भाषा
- ब्रोक्स्काद (बल्तिस्तान और लद्दाख़ की शीना)
- उशोजो
- डोमाकी
- पालूला
- सावी
- कश्मीरी
- पोगुली
उत्तरी क्षेत्र (पहाड़ी)[संपादित करें]
- नेपाली (गोरखाली; पाल्पा सम्मिलित)
- गढ़वाली (टिहरी सम्मिलित)
- कुमाँऊनी
उत्तर पश्चिमी क्षेत्र[संपादित करें]
क्षेत्र के मानचित्र जहां डोगरी-कांगड़ी भाषाएँ बोली जाती हैं
डोगरी-कांगड़ी भाषाएँ(एसआईएल द्वारा पहाड़ी में सम्मिलित)
- डोगरी - कांगड़ी
- गद्दी
- चुरही
- भात्तियाली
- बिलासपुरी
- हरिजन किन्नौरी
- चम्बाली
- मंडाली
- महासू पहाड़ी
- जौनसारी
- पंग्वाली
- पोत्वारी (मीरपुरी या पोथोहरी के नाम से भी जानी जाती है और कभी-कभी लहंदा के साथ समूहीकृत)
(एसआईएल द्वारा केंद्रीय क्षेत्र में सम्मिलित)
- पूर्वी या केंद्रीय पंजाबी
- माझी या मझैल
- मालवी या मलवई
- दोअबी
- पोवाधि
- लहंदा (पश्चिम पंजाबी)
- पोत्वारी (मीरपुरी या पोथोहरी के नाम से भी जानी जाती है और आमतौर पर पहाड़ी के रूप में वर्गीकृत)
- हिंद्को
- मीरपुरी पंजाबी
- सरैकी (दक्षिण पंजाबी या मुलतानी)
- उत्तरी गुजराती
- सिन्धी
- जद्गली
- कच्ची
पश्चिमी क्षेत्र[संपादित करें]
(एसआईएल इन भाषाओं को मध्य क्षेत्र में सम्मिलित करता है)
राजस्थानी भाषाएं- मारवाड़ी (मेवारी सम्मिलित)
- हरौती
- गोअरिया
- माल्वी
- निमाड़ी
- गुजरी
- बागड़ी
- लंबाडी
- लोअर्की
- दक्षिणी गुजराती
- वासवी
- सौराष्ट्र
- भीली (गामित सम्मिलित)
- अहिराणी (कन्देशी)
(क्लौसेन द्वारा एक अलग समूह के रूप में मानी जाती है)
- डोमरी
- रोमानी भाषाएँ
केंद्रीय क्षेत्र (मध्य या हिन्दी)[संपादित करें]
- हरयाणवी
- ब्रज भासा - कनौजी
- खड़ीबोली (हिन्दुस्तानी, मानक हिंदी, उर्दू)
- बुन्देली
- भया
- सांसी
- चमारी
- घेरा
- गोव्ली
(एसआईएल द्वारा हिंद-आर्य की अलग शाखा निर्मित)
- अवधी
- बघेली
- छत्तीसगढ़ी
- धनवार
- फिजी हिन्दी
पूर्वी क्षेत्र (मगधन)[संपादित करें]
ये भाषाएँ अर्धमागधी एवं मगधी प्राकृत भाषा से निकली है।
बिहारी भाषाएँ- अंगिका
- भोजपुरी (कैरिबियाई हिंदुस्तानी सम्मिलित)
- मैथिली
- मगही
- माझी
- मुससा
- नागपुरी
- खोरठा
- पंचपरगनिया
- कुरमाली
- असमिया
- बंगाली (बंग्ला) (मल पहरिया सम्मिलित)
- विष्णुप्रिया मणिपुरी (इमार थार)
- चकमा
- चित्तागोनियाई
- हाजोंग
- राजवंशी
- रोहिंग्या भाषा
- सिल्हेटी
- उड़िया
- आदिवासी उड़िया
- हल्बी
थारू, थारू लोगों की भाषा है, लगभग १० लाख वक्ताओं के साथ। थारू इस प्रकार उपविभाजित की जा सकती है
- चितवनिया थारू (आई एस ओ ६३९-३: १९९१ में ८०,००० वक्ता)
- कोचिला थारू (आई एस ओ ६३९-३: २००३ में २,५८,००० वक्ता), बोलियां: सप्तरी, मोरंगिया, उदयपुर, सुनसरी, सिराहा, महोत्तरी, सर्लाही और धनुषा
- राना थारू (आई एस ओ ६३९-३: २००० में ३,६८,००० वक्ता)
दक्षिणी क्षेत्र भाषाएँ[संपादित करें]
- मराठी (दखिनी उर्दू सम्मिलित)
● वरहाडी (मराठी की उपबोली) विदर्भ के बुलढाणा,अकोला, वाशिम, अमरावती, यवतमाळ और वर्धा जिले में बोली जाती है।
- कत्कारी
- कोंकणी, गोवानी
- कोंकणी
- कूकना
- फुदगी
- संवेदी
- वरली
द्वीपीय भाषाएँ श्रीलंका, मिनिकॉय और मालदीव के द्वीपों पर बोली जाती हैं। उनमें कई विशेषताएं जो उन्हें अपनी महाद्वीपीय भगिनी भाषाओं से बिलकुल अलग करती हैं। (एसआईएल उन्हें हिंद-आर्य भाषाओं की अलग शाखा मानता है)
- दिवेही (या महल)
- सिंहला
- वेद्दा
अवर्गीकृत[संपादित करें]
निम्नलिखित भाषाएँ हिंद-आर्य परिवार में वर्गीकृत नहीं की गईं हैं।
- टिप्पेरा
- कंजरी
- ओद
- उसुई
- वागरी बूली
- दरई
- कुम्हली
- चिनाली
इन्हें भी देखें[संपादित करें]
- नुरिस्तानी भाषाएँ
- आद्य-हिंद-ईरानी
- भारत की भाषाओं की सूची
सन्दर्भ[संपादित करें]
- अर्नस्ट कौसन, २००६।हिन्द-आर्य भाषाओं का वर्गीकरण माइक्रोसॉफ़्ट वर्ड १३३ किबा [1][मृत कड़ियाँ]
- एसआईएल एथनॉलॉग २०००। (ऑनलाइन संस्करण)