शिव के एक गण का नाम है नंदी। प्राचीनकालीन किताब कामशास्त्र, धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र और मोक्षशास्त्र में से कामशास्त्र के रचनाकार नंदी ही थे।
विश्व की लगभग सभी प्राचीन सभ्यताओं में बैल को महत्व दिया गया है। सुमेरियन, बेबीलोनिया, असीरिया और सिंधु घाटी की खुदाई में भी बैल की मूर्ति पाई गई है। इससे प्राचीनकल से ही बैल को महत्व दिया जाता रहा है। भारत में बैल खेती के लिए हल में जोते जाने वाला एक महत्वपूर्ण पशु रहा है।
पौराणिक कथा अनुसार शिलाद ऋषि ने शिव की तपस्या के बाद नंदी को पुत्र रूप में पाया था। नंदी को उन्हों वेदादि ज्ञान सहित अन्य ज्ञान भी प्रदान किया। एक दिन शिलाद ऋषि के आश्रम में मित्र और वरुण नाम के दो दिव्य संत पधारे और नंदी ने पिता की आज्ञा से उनकी खुब सेवा की जब वे जाने लगे तो उन्होंने ऋषि को तो लंबी उम्र और खुशहाल जीवन का आशीर्वाद दिया लेकिन नंदी को नहीं। तब शिलाद ऋषि ने उनसे पूछा कि उन्होंने नंदी को आशीर्वाद क्यों नहीं दिया?
तब संतों ने कहा कि नंदी अल्पायु है। यह सुनकर शिलाद ऋषि चिंतित हो गए। पिता की चिंता को नंदी ने भांप कर पूछा क्या बात है तो पिता ने कहा कि तुम्हारी अल्पायु के बारे में संत कह गए हैं इसीलिए चिंतित हूं। यह सुनकर नंदी हंसने लगा और कहने लगा कि आपने मुझे भगवान शिव की कृपा से पाया है तो मेरी उम्र की रक्षा भी वहीं करेंगे आप क्यों नाहक चिंता करते हैं। इतना कहते ही नंदी भुवन नदी के किनारे शिव की तपस्या करने के लिए चले गए। कठोर तप के बाद शिवजी प्रकट हुए और कहा वरदान मांगों वत्स। तब नंदी के कहा कि मैं ताउम्र आपके सानिध्य में रहना चाहता हूं।
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नंदी के समर्पण से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने नंदी को पहले अपने गले लगाया और उन्हें बैल का चेहरा देकर उन्हें अपने वाहन, अपना दोस्त, अपने गणों में सर्वोत्तम के रूप में स्वीकार कर लिया।
नई दिल्ली। Shiv Ke Vahan Nandi : भगवान भोलेनाथ के मंदिरों में देखा जाता है कि उनकी मूर्ति के सामने ही उनके नंदी की मूर्ति स्थापित होती है। दरअसल, नंदी भगवान भोलेनाथ के वाहन हैं, उन्हें भगावन भोलेनाथ का द्वारपाल भी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव की कृपा प्राप्त करनी है तो उनकी सवारी नंदी को खुश करना जरूरी है।
आपने देखा होगा कि लोग मंदिर में भगवान भोलेनाथ के दर्शन से पहले नंदी के आगे हाथ जोड़ते हैं, उनके कानों में अपनी मन्नत मांगते हैं, इसके पीछे क्या वजह है? आइए जानते हैं और कैसे नंदी के खुश होने पर भगवान भोलेनाथ की कृपा बरसने लगती है।
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जब देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन हुआ था उस वक्त भगवान शिव ने हलाहल विष पीकर इस संसार को बचाया था, विष की कुछ बूंदे जमीन पर गिर गई थीं, जिसे नंदी ने जीभ से चाट लिया था, नंदी का ये समर्पण देखकर भगवान शिव ने उन्हें अपने सबसे बड़े भक्त की उपाधि दी और ये आशीर्वाद दिया कि उनके दर्शन से पहले लोग नंदी के दर्शन करेंगे।
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नंदी को भगवान शिव का द्वारपाल कहा जाता है। भगवान शिव के दर्शन से पहले नंदी के दर्शन करने होते हैं, नंदी भक्त की परीक्षा लेते हैं, जो इस परीक्षा में पास होते हैं नंदी उसके लिए भगवान शिव के द्वार खोलते हैं। भगवान शिव से पहले भक्त नंदी के कान में अपनी मनोकामना बोलते हैं, नंदी ने अगर आपकी मनोकामना शिवजी को बता दी तो शिवजी आपकी वो इच्छा जरूर पूरी करेंगे।
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नंदी के कान में अपनी मनोकामना कहते समय इस बात का ध्यान रखें कि आपकी कही हुई बात कोई और न सुनें। अपनी बात इतनी धीमें कहें कि आपके पास खड़े व्यक्ति को भी उस बात का पता न लगे। अपनी बात नंदी के किसी भी कान में कही जा सकती है लेकिन बाएं कान में कहने का अधिक महत्व है।
अपनी बात कहते समय अपने होंठों को अपने दोनों हाथों से ढंक लें ताकि कोई अन्य व्यक्ति उस बात को कहते हुए आपको न देखें। नंदी के कान में कभी भी किसी दूसरे की बुराई, दूसरे व्यक्ति का बुरा करने की बात न कहें। नंदी को अपनी मनोकामना बोलने के बाद उनके सामने कोई चीज भी भेंट करें।
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यह भी पढ़ेंजैसे फल, धन या फिर प्रसाद। मनोकामना बोलने के बाद बोलें ये बोले कि 'नंदी महाराज हमारी मनोकामना पूरी करो'। अगर आप ऐसा करते है तो आपकी मनोकामना भगवान शिव तक पहुंच जाएगी और इसका फल आपको तुरंत प्राप्त होगा।
कैसे बने नंदी शिव के गण
कहा जाता है कि शिव की कठिन तपस्या के बाद शिलाद ऋषि ने नंदी को पुत्र के रूप में पाया था, नंदी को उनके पिता ने संपूर्ण वेदों का ज्ञान दिया। एक दिन शिलाद ऋषि के आश्रम में दो दिव्य ऋषि आए, नंदी ने उन दोनों ऋषियों की खूब सेवा की, ऋषि बहुत प्रसन्न हुए उन्होंने शिलाद ऋषि को तो लंबी उम्र का वरदान दिया लेकिन नंदी को नहीं दिया। जब शिलाद ऋषि ने उन दिव्य ऋषियों से इसका कारण जानना चाहा तो, उन्होंने बताया कि नंदी अल्पायु है।
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यह भी पढ़ेंयह सुनकर ऋषि शिलाद चिंतित हो गए, जब नंदी ने पिता से चिंता की वजह पूछी तो उन्होंने उसे सच्चाई बता दी। इस पर नंदी हंसने लगे और कहा कि शिव जी की कृपा से आपने मुझे प्राप्त किया था और वही मेरी रक्षा करेंगे। इसके बाद नंदी ने भुवन नदी के किनारे शिव जी की कठिन तपस्या की।
शिवजी प्रकट हुए तो नंदी ने कहा कि वो उम्रभर उनके सानिध्य में रहना चाहता हूं। नंदी के समर्पण से शिवजी प्रसन्न हुए और उन्हें बैल का चेहरा देकर अपना वाहन बनाकर अपने गण में शामिल कर लिया। साथ ही ये आशीर्वाद भी दिया कि जहां उनका निवास होगा वहां नंदी भी होंगे।
नंदी शिव की सवारी को क्या कहते हैं?
नंदी का दूसरा नाम क्या है?
नंदी | |
अन्य नाम | नंदीश्वर , शिववाहन, शिलादनंदन, शिवभक्त , कैलाश द्वारपाल , सुयशानाथ आदि |
संबंध | भगवान शिव औरपार्वती का वाहन और शिव का ही अवतार |
जीवनसाथी | सुयशा |
माता-पिता | शिलाद मुनि (पिता) |