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शादी के बंगाल के जो नवाब था सिराजुद्दोला बंगाल के नवाब थे और इंडिया कंपनी के बीच जो लड़ाई हुई थी यह जो संघर्ष की लड़ाई थी प्लासी का युद्ध के कारण सबसे बड़ी कारण माने जाते हैं
shadi ke bengal ke jo nawab tha sirajuddola bengal ke nawab the aur india company ke beech jo ladai hui thi yah jo sangharsh ki ladai thi plassey ka yudh ke karan sabse badi karan maane jaate hain
शादी के बंगाल के जो नवाब था सिराजुद्दोला बंगाल के नवाब थे और इंडिया कंपनी के बीच जो लड़ाई
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plasi yudh karan, ghatnaye, parinaam;क्लाइव, सिराजुद्दौला को बंगाल की गद्दी पर से उतारने की योजना को पूर्ण करने मे लग गया और उसके पूर्ण होती ही उसने नवाब सिराजुद्दौला को एक पत्र लिखा, जिसमे उस पर विभिन्न प्रकार के आरोप लगाए। जब सिराजुद्दौला को यह पत्र प्राप्त हुआ तो उसने भी अपनी सैनिक तैयारियां करना प्रारंभ कर दीं और अपनी सेना को लेकर प्लासी नामक स्थान पर पहुंच गया। क्लाइव ने प्लासी के लिए प्रस्थान किया। नवाब के अधीन 50,000 सैनिक थे। जिनको देखकर क्लाइव घबरा गया। इसी समय उसको समाचार मिला कि मीर जाफर नवाब से मिल गया है तो उसकी चिंता और भी बढ़ गई। जब वह इस परिस्थिति पर विचार कर रहा था तभी उसको मीर जाफर का संदेश मिला, जिसमे उससे आगे बढ़ने के लिए संदेश था, उस समाचार के मिलते ही उसने नवाब की सेना पर आक्रमण करने का निश्चय किया।
प्लासी के युद्ध के कारण (plasi ke yudh ke karan)
प्लासी युद्ध क्लाईव के षड्यंत्र और हीन राजनीति का परिणाम था तथा यह सिराजुद्दौला और अंग्रेजों के मध्य 23 जून 1757 ई. को प्रारंभ हुआ। प्लासी के युद्ध के कारण इस प्रकार है--
1. उत्तराधिकार का संघर्ष
सिराजुद्दौला नवाब तो बन गया था लेकिन अलीवर्दी खाँ की पुत्री का पुत्र शौकत जंग जो पूर्णिया का शासक था, ने सिराजुद्दौला का विरोध किया। इस कार्य मे कलकत्ता के सिक्ख व्यापारी अमीचन्द, जगत सेठ, जावल्लभ (राय दुर्लभ) तथा ढाका की घसीटी बेगम एवं अंग्रेज मदद कर रहे थे तथा यह सभी मिलकर सिराजुद्दौला के विरूद्ध षड्यंत्र रच रहे थे।
2. यूरोप मे सप्तवर्षीय युद्ध
यूरोप मे सप्तवर्षीय युद्ध 1756 मे आरंभ हो चुका था अतः फ्रांसीसियों से सुरक्षा के लिये अंग्रेजों ने नवाब की अनुमति के बिना दुर्ग बनाना आरंभ कर दिया अतः नवाब ने इन्हें गिरा देने का आदेश दिया। इस आदेश का उल्लंघन संघर्ष का कारण बना।
3. अंग्रेज और फ्रांसीसी शत्रुता
अंग्रेजों और फ्रांसीसियों मे प्रतियोगिता बहुत पुरानी थी। दक्षिण मे भी इस कारण युद्ध हुये तथा बंगाल मे भी एक-दूसरे के खिलाफ संघर्ष के लिये तैयार रहते थे। अतः बंगाल मे भी फ्रांसीसियों के विरूद्ध का भय था इसलिए अंग्रेज सिराजुद्दौला को बंगाल की गद्दी से उतारना चाहते थे।
4. सुविधाओं का अंग्रेजों द्वारा दुरूपयोग
अंग्रेजों को वार्षिक रकम नवाब को देने के बदले मे बिना कर व्यापार करने की अनुमति मिली हुई थी। अतः अंग्रेज भारतीय व्यापारियों से रिश्वत लेकर अपने नाम की पर्ची दे देते थे, जिससे नवाब के कर्मचारी उनसे चुंगी नही ले पाते थे। अतः पूर्व मे अलीवर्दी खाँ और पश्चात् सिराजुद्दौला ने इस भ्रष्टाचार को रोकने का प्रयत्न किया तथा अंग्रेजों ने जब इस पर ध्यान नही दिया तो यही संघर्ष का कारण बना।
5. नबाव के शत्रुओं को शरण
शौकतजंग, रायवल्लभ (रायदुर्लभ), अमीचन्द और जगत सेठ नबाव के खिलाफ षड्यंत्र कर रहे थे। अंग्रेजों ने इनका साथ दिया तथा रायदुर्लभ के पुत्र कृष्णवल्लभ से भारी मात्रा मे खजाना लेकर अंग्रेजों की शरण मे चला गया। सिराजुद्दौला ने जब कृष्णवल्लभ की माँग की तो अंग्रेजों ने उसके आदेश को नही माना अतः संघर्ष आवश्यक हो गया था।
प्लासी के युद्ध का तात्कालिक कारण
सिराजुद्दौला ने 1756 मे अंग्रेजी किलों को घेर लिया तथा कलकत्ता पर अधिकार कर लिया एवं उनके कारखाने भी उसके अधिकार मे आ गये। सत्ताकांक्षी और लोभी अंग्रेजों यह बुरा लगना स्वाभाविक ही था।
प्लासी के युद्ध की घटनाएं (plasi yudh ki ghatnaen)
23 जून, 1757 ई. को प्रातः काल प्लासी युद्ध प्रारंभ हुआ। मीर मर्दन व फ्रांसीसियों ने अंग्रेजों का बड़ी वीरता व साहस के साथ सामना किया, किन्तु वे युद्ध मे लड़ते रहे, जब सिराजुद्दौला को मीरमर्दन की मृत्यु का समाचार मिला तो उसने मीरजाफर से अंग्रेजों पर आक्रमण करने को कहा, किन्तु उसने यूद्ध मे भाग नही लिया और चुपचाप युद्ध का तमाशा देखता रहा। जब सिराजुद्दौला ने यह देखा तो वह बड़ा भयभीत हुआ और भागने का निश्चय किया। वह युद्ध क्षेत्र से भागा किन्तु कुछ ही समय बाद उसे बना लिया गया और मीरजाफर के पुत्र मीरन के आदेशानुसार उसका वध कर दिया गया। उसके मृत शरीर को हाथी पर रखकर नगर मे घुमाया गया। शर्तों के अनुसार मीर जाफर को 24 जून को क्लाइव के द्वारा बंगाल, बिहार और उड़ीसा का नवाब घोषित कर दिया गया। इस प्रकार षड्यंत्रकारियों को अपने कार्यों मे सफलता प्राप्त हुई। नबाव की 50,000 सेना क्लाइव की 3,000 सेना के सामने देशद्रोहियों तथा षड्यंत्रकारियों के देश तथा नवाब के साथ विश्वासघात करने पर पराजित हुई।
प्लासी के युद्ध के परिणाम और महत्व (plasi yudh ke parinaam)
प्लासी के युद्ध मे सिराजुद्दौला की पराजय के कारण बंगाल मे उसका शासन समाप्त हो गया तथा मीर जाफर का शासन शुरू हो गया। 1756 से 1760 के बीच मीर जाफर ने कंपनी को 2 करोड़ 25 लाख रूपये की धनराशि दी तथा मीर जाफर ने उन्हें 24 परगने की जागीर भी दे दी। बंगाल, बिहार और उड़ीसा मे अंग्रेजों ने फैक्टरियाँ स्थापित की। 1757 ई. मे उन्होने कलकत्ते मे टकसाल स्थापित की। अभी तक कंपनी को व्यापार करने के लिए जो 75 प्रतिशत सोना-चाँदी इंग्लैंड से मँगाना पड़ता था, अब वह नही माँगना पड़ता था। कंपनी के अधिकारी हर प्रकार से निजी धन कमाने मे लग गये और सैनिक अधिकारियों का लालच भी बढ़ता गया। मीर जाफर ने अंग्रेज व्यापारियों को निजी व्यापार करने की सुविधा दी कंपनी ने बंगाल मे अफीम, शोरा और नमक के व्यापार पर एकाधिकार प्राप्त कर बहुत धन कमाया।
राजनैतिक महत्व की दृष्टि से भी प्लासी का युद्ध महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ और अप्रत्यक्ष रूप से अंग्रेजों का बंगाल पर अधिकार हो गया, क्योंकि दीवान राय दुर्लभ और बिहार के नायब दीवान रामनारयण पर अंग्रेजों की कृपा दृष्टि के कारण नवाब उन्हें दण्ड नही दे सकता था। अंग्रेजों का राजनैतिक प्रभुत्व इतना बढ़ चुका था कि मीर जाफर को उन्होंने बिना किसी रक्तपात के बड़ी आसानी से गद्दी से हटा दिया। एक दशक से भीतर ही अंग्रेज बंगाल के वास्तविक शासक बन बैठे थे। मेलसन ने लिखा है कि 'इतना तुरंत स्थायी और प्रभावशाली परिणामों वाला कोई युद्ध नही हुआ।"
इस युद्ध का नैतिक प्रभाव सर्वाधिक महत्वपूर्ण था। एक व्यापारिक कंपनी ने बंगाल शासक को परास्त कर दिया था, इससे भारत की राजनैतिक दुर्बलता सामने आ गयी।