प्लास्टिक पर्यावरण प्रदूषण का कारण है कोई दो उदाहरण द्वारा समझाइए - plaastik paryaavaran pradooshan ka kaaran hai koee do udaaharan dvaara samajhaie

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Updated: 05 जून, 2018 04:51 PM

पर्यावरण का संकट हमारे लिए एक चुनौती के रुप में उभर रहा है. संरक्षण के लिए अब तक बने सारे कानून और नियम सिर्फ किताबी साबित हो रहे हैं. पारस्थितिकी असंतुलन को हम आज भी नहीं समझ पा रहे हैं. पूरा देश जल संकट से जूझ रहा है. जंगल आग की भेंट चढ़ रहे हैं. प्राकृतिक असंतुलन की वजह से पहाड़ में तबाही आ रही है. पहाड़ों की रानी कही जाने वाले शिमला में बूंद-बूंद पानी के लिए लोग तरस रहे हैं. आर्थिक उदारीकरण और उपभोक्तावाद की संस्कृति गांव से लेकर शहरों तक को निगल रही है. प्लास्टिक कचरे का बढ़ता अंबार मानवीय सभ्यता के लिए सबसे बड़े संकट के रुप में उभर रहा है.

आज संकट बन गया है प्लास्टिक

आर्थिक उदारीकरण है मूल वजह

भारत में प्लास्टिक का प्रवेश लगभग 60 के दशक में हुआ. आज स्थिति यह हो गई है कि 60 साल में यह पहाड़ के शक्ल में बदल गया है. दो से तीन साल पहले भारत में अकेले आटोमोबाइल क्षेत्र में इसका उपयोग पांच हजार टन वार्षिक था संभावना यह जताई गयी भी कि इसी तरफ उपयोग बढ़ता रहा तो जल्द ही यह 22 हजार टन तक पहुंच जाएगा. भारत में जिन इकाईयों के पास यह दोबारा रिसाइकिल के लिए जाता है वहां प्रतिदिन 1,000 टन प्लास्टिक कचरा जमा होता है. जिसका 75 फीसदी भाग कम मूल्य की चप्पलों के निर्माण में खपता है. 1991 में भारत में इसका उत्पादन नौ लाख टन था. आर्थिक उदारीकरण की वजह से प्लास्टिक को अधिक बढ़ावा मिल रहा है. 2014 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार समुद्र में प्लास्टि कचरे के रुप में 5,000 अरब टुकड़े तैर रहे हैं. अधिक वक्त बीतने के बाद यह टुकड़े माइक्रो प्लास्टिक में तब्दील हो गए हैं. जीव विज्ञानियों के अनुसार समुद्र तल पर तैरने वाला यह भाग कुल प्लास्टिक का सिर्फ एक फीसदी है. जबकि 99 फीसदी समुद्री जीवों के पेट में है या फिर समुद्र तल में छुपा है.

समुद्र में प्लास्टि कचरे के रुप में 5,000 अरब टुकड़े तैर रहे हैं

दुनिया के 40 मुल्कों में प्रतिबंधित हैं प्लास्टिक

एक अनुमान के मुताबिक 2050 तक समुद्र में मछलियों से अधिक प्लास्टिक होगी. पिछले साल अफ्रीकी देश केन्या ने भी प्लास्टिक पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है. इस प्रतिबंध के बाद वह दुनिया के 40 देशों के उन समूह में शामिल हो गया है जहां प्लास्टिक पर पूर्ण रुप से प्रतिबंध है. यहीं नहीं केन्या ने इसके लिए कठोर दंड का भी प्राविधान किया है. प्लास्टिक बैग के इस्तेमाल या इसके उपयोग को बढ़ावा देने पर चार साल की कैद और 40 हजार डालर का जुर्माना भी हो सकता है. जिन देशों में प्लास्टिक पूर्ण प्रतिबंध है उसमें फ्रांस, चीन, इटली और रवांडा जैसे मुल्क शामिल हैं. लेकिन भारत में इस पर लचीला रुख अपनाया जा रहा है. जबकि यूरोपीय आयोग का प्रस्ताव था कि यूरोप में हर साल प्लास्टिक का उपयोग कम किया जाए.

यूरोपीय समूह के देशों में हर साल आठ लाख टन प्लास्टिक बैग यानी थैले का उपयोग होता है. जबकि इनका उपयोग सिर्फ एक बार किया जाता है. 2010 में यहां के लोगों ने प्रति व्यक्ति औसत 191 प्लास्टिक थैले का उपयोग किया. इस बारे में यूरोपीय आयोग का विचार था कि इसमें केवल छह प्रतिशत को दोबारा इस्तेमाल लायक बनाया जाता है. यहां हर साल चार अरब से अधिक प्लास्टिक बैग फेंक दिए जाते हैं. भारत भी प्लास्टिक के उपयोग से पीछे नहीँ है. देश में हर साल तकरीबन 56 लाख टन प्लास्टिक कचरे का उत्पादन होता है. जिसमें से लगभग 9205 टन प्लास्टिक को रिसाइकिल कर दोबारा उपयोग में लाया जाता है. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार दिल्ली में हर रोज़ 690 टन, चेन्नई में 429 टन, कोलकाता में 426 टन के साथ मुंबई में 408 टन प्लास्टिक कचरा फेंका जाता है. अब ज़रा सोचिए, स्थिति कितनी भयावह है.

2010 में यहां के लोगों ने प्रति व्यक्ति औसत 191 प्लास्टिक थैले का उपयोग किया.

सागर में सूप की शक्ल लेता प्लास्टिक

वैज्ञानिकों के विचार में प्लास्टिक का बढ़ता यह कचरा प्रशांत महासागर में प्लास्टिक सूप की शक्ल ले रहा है. प्लास्टिक के प्रयोग को हतोत्साहित करने के लिए आरयलैंड ने प्लास्टिक के हर बैग पर 15 यूरोसेंट का टैक्स  2002 में लगा दिया था. जिसका नतीजा रहा किं 95 फीसदी तक कमी आयी. जबकि साल भर के भीतर 90 फीसदी दुकानदार दूसरे तरह के बैग का इस्तेमाल करने लगे जो पर्यावरण के प्रति इको फ्रेंडली थे. साल 2007 में इस पर 22 फीसदी कर कर दिया गया. इस तरह सरकार ने टैक्स से मिले धन को पर्यावरण कोष में लगा दिया. अमेरिका जैसे विकसित देश में कागज के बैग बेहद लोकप्रिय हैं. वास्तव में प्लास्टिक हमारे लिए उत्पादन से लेकर इस्तेमाल तक की स्थितियों में खतरनाक है. इसका निर्माण पेट्रोलियम से प्राप्त रसायनों से होता है. पर्यावरणीय लिहाज से यह किसी भी स्थिति में इंसानी सभ्यता के लिए बड़ा खतरा है. यह जल, वायु, मुद्रा प्रदूषण का सबसे बड़ा कारक है. इसका उत्पादन अधिकांश लघु उद्योग में होता है जहां गुणवत्ता नियमों का पालन नहीं होता है.

मिट्टी की उर्वराशक्ति को निगलता प्लास्टिक

प्लास्टिक कचरे का दोबारा उत्पादन आसानी से संभव नहीं होता है. क्योंकि इनके जलाने से जहां जहरीली गैस निकलती है. वहीं यह मिट्टी में पहुंच भूमि की उर्वरा शक्ति नष्ट करता है. दूसरी तरफ मवेशियों के पेट में जान से नुकसान जानलेवा साबित होता है. वैज्ञानिकों के अनुसार प्लास्टि नष्ट होने में 500 से 1000 साल तक लग जाते हैं.  दुनिया में हर साल 80 से 120 अरब डालर का प्लास्टिक बर्बाद होता है. जिसकी वजह से प्लास्टि उद्योग पर रि-साइकिल कर पुनः प्लास्टिक तैयार करने का दबाब अधिक रहता है. जबकि 40 फीसदी प्लास्टिक का उपयोग सिर्फ एक बार के उपयोग के लिए किया जाता है. प्लास्टिक के उपयोग को प्रतिबंधित करने के लिए कठोर फैसले लेने होंगे. तभी हम महानगरों में बनते प्लास्टिक यानी कचरों के पहाड़ को रोक सकते हैं. वक्त रहते हम नहीं चेते तो हमारा पर्यावरण पूरी तरफ प्रदूषित हो जाएगा. दिल्ली तो दुनिया में प्रदूषण को लेकर पहले से बदनाम है. हमारे जीवन में बढ़ता प्लास्टिक का उपयोग इंसानी सभ्यता को निगलने पर आमादा है. बढ़ते प्रदूषण से सिर्फ दिल्ली ही नहीं भारत के जितने महानगर हैं सभी में यह स्थिति है.

कुलश प्रबंधन की है आवश्यकता

प्लास्टिक और दूसरे प्रकार के कचरों के निस्तारण का अभी तक हमने कोई कुशल प्रबंधन तंत्र नहीं खोजा है. जिससे कचरे का यह अंबार पहाड़ में तब्दील हो सके. उपभोक्तावाद की संस्कृति ने गांव गिराव को भी अपना निशाना बनाया है. यहां भी प्लास्टिक संस्कृति हावी हो गई है. बाजार से वस्तुओं की खरीददारी के बाद प्लास्टिक के थैले पहली पसंद बन गए हैं. कोई भी व्यक्ति हाथ में झोला लेकर बाजार खरीदारी करने नहीं जा रहा है. यहां तक चाय, दूध, खाद्य तेल और दूसरे तरह के तरल पदार्थ जो दैनिक जीवन में उपयोग होते हैं उन्हें भी प्लास्टिक में बेहद शौक से लिया जाने लगा है. जबकि खानेपीने की गर्म वस्तुओं में प्लास्टिक के संपर्क में आने से रसायनिक क्रिया होती है, जो सेहत के लिए हानिकारक है, लेकिन सुविधाजनक संस्कृति हमें अंधा बना रही है. जिसका नतीजा है इंसान तमाम बीमारियों से जूझ रहा है. लेकिन ग्लोबइजेशन के चलते बाजार और उपभोक्ता एंव भौतिकवाद का चलन हमारी सामाजिक व्यवस्था, सेहत के साथ-साथ आर्थिक तंत्र को भी ध्वस्त कर रहा है. एक दूषित संस्कृति की वजह से सारी स्थितियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है. सरकारी स्तर पर प्लास्टिक कचरे के निस्तारण के लिए ठोस प्रबंधन की जरुरत है. पर्यावरण को हम सिर्फ दिवस में नहीं समेट सकते हैं, इसके लिए पूरी इंसानी जमात को प्रकृति के साथ संतुलन बनाकर लंबी लड़ाई लड़नी होगी. समय रहते अगर हम नहीं चेते तो भविष्य में बढ़ता पर्यावरण संकट हमारी पीढ़ी को निगल जाएगा.

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प्लास्टिक पर्यावरण को कैसे प्रदूषित करता है?

Solution : प्लास्टिक के अपघटित होने में अनेकों वर्ष लग जाता है अतः यह पर्यावरण के लिए हानिकारक होते हैं तथा पर्यावरण को प्रदूषित करते हैं। जब संश्लेषित पदार्थों को जलाया जाता है तो यह आसानी से पूरी तरह जल नहीं पाता है। इसे पूरी जलने में लंबा समय लगता है।

प्लास्टिक प्रदूषण के कारण क्या है?

प्लास्टिक से बनी वस्तुओं का जमीन या जल में इकट्ठा होना प्लास्टिक प्रदूषण (Plastic pollution) कहलाता है जिससे वन्य जन्तुओं, या मानवों के जीवन पर बुरा प्रभाव पडता है। प्लास्टिक प्रदूषण पर प्रतिकूल वन्य जीवन, वन्यजीव निवास स्थान को प्रभावित करता है कि वातावरण में प्लास्टिक उत्पादों के संचय करना शामिल है।

प्लास्टिक का पर्यावरण का प्रदूषण क्यों कहा जाता है?

क्योंकि प्लास्टिक के दहन से इससे कई सारी हानिकारक गैसे उत्पन्न होती है, जोकि पृथ्वी के वातावरण और जनजीवन के लिये काफी हानिकारक हैं। इस वजह से प्लास्टिक वायु, जल तथा भूमि तीनो तरह के प्रदूषण फैलाता है।

प्लास्टिक का पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ता है?

प्लास्टिक के हानिकारक प्रभावोंप्लास्टिक एक गैर बायोडिग्रेडेबल पदार्थ है जो ना ही मिट्टी में मिलता है ना ही पानी में घुलता है। इसीलिए इसका प्रभाव सैकड़ों वर्षो तक रहता है। प्लास्टिक से वायु, जल और मिट्टी भी प्रदूषित होता है। जल स्रोत में प्लास्टिक और प्लास्टिक वस्तुओं को फेंकना जल जीवन के लिए जानलेवा है।

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