पौधों में परिवहन से आप क्या समझते हैं? - paudhon mein parivahan se aap kya samajhate hain?

आज के आर्टिकल में हम जानेंगे पौधों में परिवहन (Transportation in plants) के बारे में- यह एक जैव प्रक्रिया है। जिसमें अवशोषित या संश्लेषित पदार्थ (जैसे- जल, ऑक्सीजन, भोजन, हार्मोन, इत्यादि) शरीर के एक भाग से दूसरे भाग तक विभिन्न जैव क्रियाओं के संचालन हेतु स्थानांतरित होते हैं।

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1 पौधों में परिवहन (Transportation in plants)

1.1 पौधों में शारीरिक समन्वयन (Physical coordination in plants)

1.2 पादप गति

पौधों में परिवहन (Transportation in plants)

पौधों में परिवहन से आप क्या समझते हैं? - paudhon mein parivahan se aap kya samajhate hain?

पौधों में परिवहन से आप क्या समझते हैं? - paudhon mein parivahan se aap kya samajhate hain?

पौधों में मुख्यतः जल,  खनिज, भोजन तथा हार्मोन इत्यादि पदार्थों का परिवहन होता है। जड़ों द्वारा अवशोषण के बाद जाइलम द्वारा पानी और तरलीकृत खनिज लवण ले जाया जाता है।

पत्तियों से पौधे के अन्य भागों तक भोजन का परिवहन तनु विलेन के रूप में होता है, इसे खाद स्थांतरण कहते हैं। भोजन हार्मोन इत्यादि के स्थानांतरण की प्रक्रिया चालनों की सारणी नालिकयों द्वारा होती है.

पौधों में शारीरिक समन्वयन (Physical coordination in plants)

पौधों में किसी उत्तेजना के फलस्वरूप प्रतिक्रिया वृद्धि या गति के रूप में होती है। इसका नियंत्रण विभिन्न आंतरिक एवं बाह्य कारको द्वारा होता है।

इसके अतिरिक्त विशेष पदार्थ पदार्थ हारमोंस  जैसे – ऑकिसन, साइटोकाइनिन, ईथाइलिंन, इत्यादि. दोबारा भी क्रियाओं का नियंत्रण एवं समन्वय(coordination) होता है। प्रकाश का प्रकार एवं मात्रा दिन रात की अवधि पुष्पन एवं बीजों के अंकुरण को नियंत्रित करती है।

पारिस्थितिकी और पर्यावरण

पादप गति

पौधों में विभिन्न मुद्दों के प्रति अनुक्रिया के रूप में अनेक प्रकार गतियां होती है। जब गति की दिशा उद्दीपन की दिशा द्वारा निर्धारित होती है तो इसे अनुवर्तनी गति कहते हैं. जैसे- प्रकाशानुवर्तन, गुरुत्वनवरत्न, रसायनानुवर्तन आदि।

जब गति की दिशा अंकित संतरा द्वारा निर्धारित होती है तो इसे अनुकुचन गति कहते हैं। जैसे – छूने पर छुई मूई की पत्तियों का बंद होना, पत्तियों एवं फूलों का दिन- रात के अनुसार खुलना बंद होना।

आज इस आर्टिकल में हमने आपको पौधों में परिवहन, पौधों में परिसंचरण तंत्र की क्रियाविधि, सजीवों में परिवहन, फ्लोएम परिवहन, जाइलम और फ्लोएम में अंतर, पादपों में परिवहन के बारे में बताया है।


कुछ पदार्थ जैसे गैसे पादपों में विसरण द्वारा प्रवेश करते है। पादप शरीर के निर्माण हेतु आवश्यक पदार्थ जैसे - नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, अन्य खनिज पदार्थ तथा जल मृदा से प्राप्त होते हैै। जिन्हें पादप की लंबार्इ के अनुसार लंबी दूरी तक संचरित करना होता है। जिसके लिये 2 प्रकार के परिवहन मार्ग पाये जाते है। जाइलम जो कि जल तथा खनिज पदार्थों का संवहन मृदा से पादपों के वायवीय भागों तक करते है। फ्लोयम जो कि खाद्य पदार्थे का संवहन प्राप्ति स्थल से उपयोग स्थल तक करते है।
जाइलम (काष्ठ): यह एक जटिल ऊतक है। जो कि कोशिका रस का संवहन करता है। जाइलम में 4 प्रकार की कोशिकाएँ पायी जाती है। जाइलम तंतु, जाइलम पेरेन्काइमा, जाइलम वाहिका, वाहिनिका, वाहिका तथा वाहिनिकी वाहिनीय अवयव कहलाते है। क्योंकि वे कोशिकारस के संवहन में भाग लेते है। वाहिनिय अवयव की भित्तियाँ लिग्नीकृत होती है।
फ्लोयम: यह एक प्रकार का जटिल ऊतक है जो कि भोजन के संवहन का कार्य करते है। फ्लोएम में 4 प्रकार की कोशिकाएँ पायी जाती है। चालनी कोशिकाएँ, सहचर कोशिकाएँ फ्लोयम पेरेन्काइमा तथा फ्लोएम तंतु। केवल फ्लोएम तंतु मृत कोशिकाएँ होती है। तथा अन्य कोशिकाएँ जीवित होती है।


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जंतुओं की तरह ही पादपों को भी विभिन्न पोषक तत्वों को सभी जगहों पर पहुँचाने की आवश्यक्ता होती है। पेड़ या पौधों के पूरे भाग को जल तथा अन्य खनिन, मिट्टी से प्राप्त होता है, जिसे जड़ (Root) के द्वारा अवशोषित कर विभिन्न भागों तक पहुँचाया जाता है। वहीं दूसरी ओर पेड़ तथा पौधों के द्वारा पत्तियों में प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया द्वारा भोजन बनाया जाता है, जिसे पत्तियों से पौधों के विभिन्न भागों तक पहुँचाया जाता है।

पादपों में परिवहन के लिये दो तरह के टिशू [Tissue (ऊतक)] होते हैं ये हैं ज़ाइलम (Xylem) तथा फ्लोएम (Phloem), ये दोनों टिशू [Tissue (ऊतक)] मिलकर पादपों में विभिन्न पदार्थों को जड़ (Root) से विभिन्न भागों तक तथा पत्तियों से जहाँ पर पादपों द्वारा भोजन तैयार किया जाता से पोषक तत्वों को विभिन्न भागों तक पहुँचाते हैं, अर्थात परिवहन करते हैं।

पौधों में जल का परिवहन (Transportation of water in trees)

पौधों में जल का परिवहन एक विशेष प्रकार के टिशू, जिसे जाइलम (Xylem) कहते हैं, के द्वारा होता है।

जाइलम (Xylem)

जाइलम (Xylem) टिशू [Tissue(ऊतक)] नलिकाओं के आकार का होता है, तथा इसका एक जाल पूरे पेड़ में फैला होता है। जाइलम (Xylem) टिशू [Tissue(ऊतक)] पौधों में जल का परिवहन करते हैं। पौधे जड़ के द्वारा मिट्टी से जल को अवशोषित करते हैं। इस जल में पौधों के विकास के लिए अन्य आवश्यक खनिज तथा लवण भी विलेय के रूप में उपस्थित रहते है। जड़ों के द्वारा अवशोषित जल तथा उसमें घुले हुए अन्य आवश्यक खनिज तथा लवण, जाइलम टिशू [Xylem Tissue(जाइलम ऊतक)] द्वारा पौधों के विभिन्न भागों तक पहुँचाये जाते हैं।

पौधों से विशेषकर रात्रि के समय पत्तियों के रंध्रों से वाष्पण की क्रिया होती है। इस वाष्पण की प्रक्रिया को ट्रांसपिरेशन (Transpiration) कहते हैं। इस वाष्पण की प्रक्रिया के कारण जाइलम (Xylem), जो एक प्रकार की नलिकाएँ होती हैं, में दाब कम हो जाता है। इस कम दाब के कारण एक बल उत्पन्न होता है जिसमें संतुलन बनाये रखने हेतु जड़ों से अवशोषित जल जाइलम (Xylem) में ऊपर चढ़ने लगता है तथा पेड़ों के विभिन्न भागों तक पहुँचता है।

जाइलम (Xylem) टिशू [Tissue(ऊतक)] में जल का परिवहन एक ही ओर होता है, अर्थात जाइलम (Xylem) टिशू [Tissue(ऊतक)] द्वारा जल को जड़ से पौधे के विभिन्न भागों तक जाते हैं।

पादपों में भोजन तथा दूसरे पदार्थों का स्थानांतरण

पेड़ तथा पौधों में प्रकाश संश्लेषण से बनाये गये भोजन से प्राप्त पोषक तत्वों का परिवहन फ्लोएम (phloem) नामक ऊतक द्वारा होता है। भोजन से प्राप्त पोषक तत्वों का परिवहन स्थानांतरण (Translocation) कहलाता है। इन पोषक तत्वों का स्थानांतरण विशेष रूप से जड़ के भंडारण अंगों, फलों, बीजों तथा बृद्धि वाले अंगों में होता है।

फ्लोएम (Phloem) द्वारा स्थानांतरण आवश्यकतानुसार दोनों दिशाओं में होता है अर्थात नीचे से ऊपर की ओर तथा ऊपर से नीचे की ओर। उदारण के लिये बसंत में जड़ व तने के ऊतकों में भंडारित शर्करा का स्थानांतरण कलिकाओं में होता है जिसे बृद्धि के लिये उर्जा की आवश्यकता होती है।

उत्सर्जन (Excretion)

जैव प्रक्रम जिसमें जीव द्वारा उपापचयी क्रियाओं में जनित हाइड्रोजन युक्त हानिकारक वर्ज्य पदार्थों का निष्कासन किया जाता है, उत्सर्जन कहलाता है।

बहुत से एककोशिक जीव इन अपशिष्टों को शरीर की सतह से जल में विसरित कर देते हैं जबकि जटिल बहुकोशिकीय जीव इस कार्य को पूरा करने के लिए विशिष्ट अंगों का उपयोग करते हैं।

मानव में उत्सर्जन

मानव का उत्सर्जन तंत्र एक जोड़ा वृक्क (Kidney), एक मूत्रवाहिनी, एक मूत्राशय तथा एक मूत्रमार्ग मिलकर बनता है। वृक्क उदर में रीढ़ की हड्डी के दोनों ओर स्थित होते हैं। उपापचयी क्रियाओं में बना हुआ हाइड्रोजन युक्त हानिकारक पदार्थ रूधिर (खून) के साथ मिलकर वृक्क में पहुँचता है, जहाँ ये निश्यंदित (छनित) होकर मूत्र के रूप में मूत्रमार्ग से बाहर निकल जाता है।

मूत्र किस प्रकार तैयार होता है?

मूत्र रूधिर (Blood) में से बर्ज्य पदार्थों को छानकर बाहर (उत्सर्जित) करने के लिये बनता है। रूधिर (Blood) में उपस्थित Carbon dioxide (कार्बन डाइऑक्साइड) फेफड़े में अलग होकर श्वास द्वारा बाहर निकल जाता है जबकि नाइट्रोजनी वर्ज्य पदार्थ जैसे यूरिया या यूरिक अम्ल आदि वृक्क में रूधिर (Blood) से अलग किया जाता है।

वृक्क में बेसिक फिल्टरेशन यूनिट, अत्यंत पतली दीवार वाली रूधिर कैपिलरी (केशिकाओं) का गुच्छा (cluster) होता है। वृक्क में प्रत्येक केशिका गुच्छ (capillary cluster) एक नलिका के कप के आकार के सिरे के अंदर होता है। यह नलिका छने हुए मूत्र को एकत्र कर्ती है। प्रत्येक किडनी (वृक्क) में ऐसे अनेक फिल्टरेशन यूनिट (निश्यंदन एकक) होते हैं, जिन्हें वृक्काणु (नेफ्रान) कहा जाता है, जो आपस में निकटता से से पैक रहते हैं।

प्रारंभिक छनन की प्रक्रिया में कुछ पदार्थ जैसे ग्लूकोज, अमीनो अम्ल, लवण और प्रचुर मात्रा में जल रह जाते हैं। जैसे जैसे मूत्र इस नलिका में प्रवाहित होता है इन पदार्थों का चयनित पुनरवशोषण हो जाता है। जल की मात्रा पुनरवशोषन शरीर में उपलब्ध अतिरिक्त जल की मात्रा पर, तथा कितना विलेय वर्ज्य उत्सर्जित करना है, पर निर्भर करता है।

प्रत्येक वृक्क में बनने वाल मूत्र एक लम्बी नलिका, मूत्रवाहिनी में प्रवेश करता है। यह मूत्रवाहिनी वृक्क को मूत्राशय से जोड़ती है। मूत्राशय में मूत्र भंडारित रहता है जब तक कि फैले हुए मूत्राशय का दाब मूत्रमार्ग द्वारा उसे बाहर न कर दे।

मूत्राशय पेशीय होता है जिसके कारण यह तंत्रिका नियंत्रण में में रहता है। तंत्रिका नियंत्रण में होने के कारण मानव प्राय: मूत्र निकासी को नियंत्रित कर लेते हैं।

कृत्रिम वृक्क (अपोहन) [Artificial Kidney (Hemodialysis)]

जीवित रहने के लिए किडनी एक अतिआवश्यक जैव अंग है। परंतु कई कारण यथा संक्रमण, चोट आदि किडनी की कार्यशीलता को कम कर देते हैं। इस स्थिति में शरीर से विषैले पदार्थ किडनी द्वारा छनित नहीं होने के कारण शरीर में ही जमा होने लगता है। इस स्थिति में मृत्यु तक हो जाती है।

किडनी के अपक्रिय होने की स्थिति में कृत्रिम किडनी का उपयोग कर शरीर से वर्ज्य हानिकारक पदार्थों को बाहर निकाला जाता है।

कृत्रिम वृक्क द्वारा शरीर के रूधित से विषैले पदार्थ को बाहर निकालने की प्रक्रिया अपोहन (Dialysis या Hemodialysis) कहलाती है।

कृत्रिम वृक्क में बहुत सी अर्ध्यपारगम्य आस्तर नलिकाएं होती है जिनमें शरीर से रूधिर को प्रवाहित किया जाता है। रूधिर में वर्तमान विषैले पदार्थ विसरण की प्रक्रिया द्वारा अर्ध्यपारगम्य नलिकाओं से अपोहन द्रव में विसरित हो जाती है। उसके पश्चात शुद्ध रक्त को शरीर में वापस भेज दिया जाता है।

परंतु कृत्रिम वृक्क में प्राकृतिक वृक्क की तरह कोई पुनरवशोषण नहीं होता है।

प्राय: एक स्वस्थ्य वयस्क में प्रतिदिन 180 लीटर आरंभिक निस्यंद वृक्क में होता है। यद्यपि एक दिन में उत्सर्जित मूत्र का आयतन वास्तव में एक या दो लीटर ही होता है, क्योंकि शेष निस्यंद वृक्क नलिकाओं में पुनरवशोषित हो जाता है।

पादप में उत्सर्जन

पादप में उत्सर्जन जंतुओं से विल्कुल भिन्न तरह से होता है।

प्रकाश संश्लेषण के क्रम में उत्पन्न ऑक्सीजन, जो कि पौधों के लिये एक प्रकार का अपशिष्ट उत्पाद है, को पत्तियों के रंध्र द्वारा हवा में छोड़ दिया जाता है।

पौधों में वर्तमान अतिरिक्त जल वाष्पोत्सर्जन (transpiration) द्वारा बाहर निकाला जाता है।

पादपों में बहुत सारे अपशिष्ट पदार्थ पौधों से गिरने वाली पत्तियों, रेजिन, गोंद आदि के रूप में तथा कुछ अपशिष्ट पदार्थ आसपास की मिट्टी में भी उत्सर्जित होता है।

पौधों के परिवहन से आप क्या समझते हैं?

पौधे अनेक प्रकार के अकार्बनिक पदार्थो के लवणों को अपने आस पास के पर्यावरण से हवा, जल तथा मृदा से प्राप्त करते है। इन पोषक पादपों की गति पर्यावरण से पौधों में तथा पौधे की एक कोशिका से दूसरी कोशिका तक आवश्यक रूप से पौधे के इस पार से उस पार होता है, इस प्रक्रिया को परिवहन कहा जाता है।

पादपों में परिवहन से आप क्या समझते हैं पौधों में जल भोजन तथा अन्य पदार्थों स्थानान्तरण को स्पष्ट कीजिए?

पौधों में जल, भोजन तथा अन्य पदार्थों के स्थानान्तरण को स्पष्ट कीजिए। Answer: जड़ के मुलरोमो द्वारा अवशोषित जल व उसमे घुले लवणों तथा पत्तियों में बने खाद पदार्थो को पोधो के विभिन्न भागो तक पहुंचाने के लिए सभी पादपों में चालन वाहिकाओं से निर्मित एक तंत्र होता है जिसे पादप परिवहन तंत्र कहते है

पौधों में परिवहन क्यों आवश्यक है?

Answer: पादपों अथवा जंतुओं में पदार्थों का परिवहन आवश्यक है क्योंकि पादप और जंतुओं के शरीर के सभी भागों को ऊर्जा की आवश्यकता होती है । यह ऊर्जा भोजन से प्राप्त होती है । शरीर के सभी भागों तक जल , ऑक्सीजन और भोजन पहुंचाना आवश्यक है और वहां उत्पन्न हुए अपशिष्ट पदार्थ को दूर करने की भी जरूरत है।

पौधों में पदार्थों का परिवहन कैसे होता है?

जाइलम मिट्टी से पानी, खनिजों और पोषक तत्वों को पौधे के सभी भागों तक पहुँचाता है । पौधों में दो प्रकार के "परिवहन" ऊतक होते हैं- जाइलम और फ्लोएम। जाइलम द्वारा पानी और विलेय को जड़ों से पत्तियों तक पहुँचाया जाता है, और भोजन को पत्तियों से पौधे के बाकी हिस्सों में फ्लोएम द्वारा पहुँचाया जाता है।