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विषय सूची
- 1 जीवन परिचय
- 2 राजा राम मोहन राय का योगदान
- 3 ब्रह्म समाज
- 4 शैक्षिक सुधार
जीवन परिचय
- आधुनिक भारत के पुनर्जागरण के पिता राजा राम मोहन राय का जन्म 22 मई, 1772 को बंगाल के राधानगर में एक रूढ़िवादी ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
- समाज सुधारक राजा राम मोहन राय की प्रारंभिक शिक्षा फारसी और अरबी भाषाओं में पटना में हुई, जहाँ उन्होंने कुरान, सूफी रहस्यवादी कवियों के काम तथा प्लेटो और अरस्तू के कार्यों के अरबी अनुवाद का अध्ययन किया था। बनारस में उन्होंने संस्कृत का अध्ययन किया और वेद तथा उपनिषद पढ़े।
- 16 वर्ष की आयु में अपने गाँव लौटकर उन्होंने हिंदुओं की मूर्ति पूजा पर एक तर्कसंगत आलोचना की।
- वर्ष 1803 से 1814 तक उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी के लिये वुडफोर्ड और डिग्बी के अंतर्गत निजी दीवान के रूप में काम किया।
- वर्ष 1814 में उन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया और अपने जीवन को धार्मिक, सामाजिक एवं राजनीतिक सुधारों के प्रति समर्पित करने के लिये कलकत्ता चले गए।
- नवंबर 1830 में वे सती प्रथा संबंधी अधिनियम पर प्रतिबंध लगाने से उत्पन्न संभावित अशांति का प्रतिकार करने के उद्देश्य से इंग्लैंड चले गए।
- राम मोहन राय दिल्ली के मुगल सम्राट अकबर II की पेंशन से संबंधित शिकायतों हेतु इंग्लैंड गए तभी अकबर II द्वारा उन्हें ‘राजा’ की उपाधि दी गई।
- टैगोर ने राम मोहन राय को भारत में आधुनिक युग के उद्घाटनकर्त्ता के रूप में भारतीय इतिहास का एक चमकदार सितारा कहा।
- राम मोहन राय पश्चिमी आधुनिक विचारों से बहुत प्रभावित थे और बुद्धिवाद तथा आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर बल देते थे।
- राजा राममोहन राय सिर्फ सती प्रथा का अंत कराने वाले महान समाज सुधारक ही नहीं, बल्कि एक महान दार्शनिक और विद्वान भी थे।वह जहां संस्कृत और हिंदी भाषा में दक्ष थे वहीं अंग्रेजी, ग्रीक, बांग्ला और फारसी भाषा में भी बेहद निपुण थे।
- राम मोहन राय मानना था कि धार्मिक रूढ़िवादिता सामाजिक जीवन को क्षति पहुँचाती है और समाज की स्थिति में सुधार करने के बजाय लोगों को और परेशान करती है।
- राजा राम मोहन राय ने निष्कर्ष निकाला कि धार्मिक सुधार, सामाजिक सुधार और राजनीतिक आधुनिकीकरण दोनों हैं।
- राम मोहन का मानना था कि प्रत्येक पापी को अपने पापों के लिये प्रायश्चित करना चाहिये और यह आत्म-शुद्धि और पश्चाताप के माध्यम से किया जाना चाहिये न कि आडंबर और अनुष्ठानों के माध्यम से।
- राय परंपरागत हिंदू प्रथाओं के खिलाफ थे और उन्होंने सती प्रथा, बहुपत्नी, जाति कठोरता और बाल विवाह के खिलाफ आवाज उठाई।
- राजा राम मोहन राय का मानना था कि जब तक महिलाओं को अशिक्षा, बाल विवाह, सती प्रथा जैसे अमानवीय रूपों से मुक्त नहीं किया जाता, तब तक हिंदू समाज प्रगति नहीं कर सकता।
- राजा राम मोहन राय की मौत 27 सितम्बर 1833 हुई थी।
- सती प्रथा को समाप्त कराने का श्रेय भी राजा राममोहन राय को जाता है। राजा राममोहन राय को ‘आधुनिक भारत का जनक‘ कहा जाता है।
राजा राम मोहन राय का योगदान
- राजा राममोहन राय मूर्तिपूजा और रूढ़िवादी हिन्दू परंपराओं के विरुद्ध थे. वे अंधविश्वास के खिलाफ थे. उन्होंने उस समय समाज में फैली कुरीतियों जैसे सती प्रथा, बाल विवाह के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई. सती प्रथा के ख़िलाफ़ क़ानून बनवाया
- वर्ष 1814 में उन्होंने मूर्ति पूजा, जातिगत कठोरता, निरर्थक अनुष्ठानों और अन्य सामाजिक बुराइयों का विरोध करने के लिये कलकत्ता में आत्मीय सभा की स्थापना की।
- उन्होंने ईसाई धर्म के कर्मकांड की आलोचना की और ईसा मसीह को ईश्वर के अवतार के रूप में खारिज कर दिया। प्रिसेप्टस ऑफ जीसस (1820) में उन्होंने न्यू टेस्टामेंट के नैतिक और दार्शनिक संदेश को अलग करने की कोशिश की जो कि चमत्कारिक कहानियों के माध्यम से दिये गए थे।
- राजा राम मोहन राय ने सुधारवादी धार्मिक संघों की कल्पना सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन के उपकरणों के रूप में की।
- उन्होंने वर्ष 1815 में आत्मीय सभा, वर्ष 1821 में कलकत्ता यूनिटेरियन एसोसिएशन और वर्ष 1828 में ब्रह्म सभा (जो बाद में ब्रह्म समाज बन गया) की स्थापना की।
- उन्होंने जाति व्यवस्था, छुआछूत, अंधविश्वास और नशीली दवाओं के इस्तेमाल के विरुद्ध अभियान चलाया।
- वह महिलाओं की स्वतंत्रता और विशेष रूप से सती एवं विधवा पुनर्विवाह के उन्मूलन पर अपने अग्रणी विचार और कार्रवाई के लिये जाने जाते थे।
- उन्होंने बाल विवाह, महिलाओं की अशिक्षा और विधवाओं की अपमानजनक स्थिति का विरोध किया तथा महिलाओं के लिये विरासत तथा संपत्ति के अधिकार की मांग की।
- ‘संवाद कौमुदी साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन 1821 में शुरू हुआ था और इसके प्रबंधक-संपादक थे प्रख्यात समाज सुधारक राजा राममोहन राय।
- ‘संवाद कौमुदी‘ के प्रकाशन के साथ ही सबसे पहले भारतीय नवजागरण में समाचार पत्रों के महत्व को रेखांकित किया गया था
ब्रह्म समाज
- 1828 में ब्रह्म सभा को राजा राममोहन और द्वारकानाथ टैगोर ने स्थापित किया था। जिसे बाद में ब्रह्म समाज का नाम दिया गया। इसका उद्देश्य हिन्दू समाज में व्याप्त बुराईयों, जैसे- सती प्रथा, बहुविवाह, वेश्यागमन, जातिवाद, अस्पृश्यता आदि को समाप्त करना था ।
- ब्रह्म समाज में वेदों और उपनिषदों के अध्ययन पर और एक ईश्वर के सिद्धांत पर जोर दिया गया।
- ब्रह्म समाज में तीर्थयात्रा, मूर्तिपूजा, कर्मकाण्ड आदि की आलोचना की गयी।
- यह आधुनिक भारत के सभी सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक आंदोलनों का अग्रदूत था। यह वर्ष 1866 में दो भागों में विभाजित हो गया, अर्थात् भारत के ब्रह्म समाज का नेतृत्व केशव चन्द्र सेन ने और आदि ब्रह्म समाज का नेतृत्व देबेंद्रनाथ टैगोर ने किया।
शैक्षिक सुधार
- राय ने देशवासियों के मध्य आधुनिक शिक्षा का प्रसार करने के लिये बहुत प्रयास किये। उन्होंने वर्ष 1817 में हिंदू कॉलेज खोजने के लिये डेविड हेयर के प्रयासों का समर्थन किया, जबकि राय के अंग्रेज़ी स्कूल में मैकेनिक्स और वोल्टेयर के दर्शन को पढ़ाया जाता था।
- वर्ष 1825 में उन्होंने वेदांत कॉलेज की स्थापना की जहाँ भारतीय शिक्षण और पश्चिमी सामाजिक और भौतिक विज्ञान दोनों पाठ्यक्रमों को पढ़ाया जाता था।
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राजा राममोहन राय कौन थे उनके बारे में लिखिए?
राजा राम मोहन राय (1772 – 1833) – मुख्य तथ्य
पंद्रह वर्ष की आयु तक, राजा राममोहन राय ने बांग्ला, फारसी, अरबी और संस्कृत सीख ली थी। उन्हें हिंदी और अंग्रेजी भी आती थी। वे वाराणसी गए और वेदों, उपनिषदों और हिंदू दर्शन का गहन अध्ययन किया। उन्होंने ईसाई धर्म और इस्लाम का भी अध्ययन किया।
राजा राममोहन राय ने कौन कौन से सामाजिक कार्य किए?
राजा राममोहन राय का योगदान
राजा राम मोहन राय ने वर्ष 1814 में मूर्ति पूजा, जातिगत कठोरता, निरर्थक अनुष्ठानों, अन्य सामाजिक बुराइयों, का विरोध करने के लिए कोलकाता के अंदर आत्मीय सभा की स्थापना भी की थी। राजा राम मोहन राय ने ईसाई धर्म के कर्मकांड की आलोचना भी की थी।
राजा राममोहन राय का उद्देश्य क्या था?
इसके प्रवर्तक, राजा राममोहन राय, अपने समय के विशिष्ट समाज सुधारक थे। 20 अगस्त,1828 में ब्रह्म समाज को राजा राममोहन और द्वारकानाथ टैगोर ने स्थापित किया था। इसका एक उद्देश्य भिन्न भिन्न धार्मिक आस्थाओं में बँटी हुई जनता को एक जुट करना तथा समाज में फैली कुरीतियों को दूर करना था।
राजा राममोहन राय कौन थे उन्हें समाज सुधारक क्यों कहा जाता है?
समाज सुधार:
वह महिलाओं की स्वतंत्रता और विशेष रूप से सती एवं विधवा पुनर्विवाह के उन्मूलन पर अपने अग्रणी विचार और कार्रवाई के लिये जाने जाते थे। उन्होंने बाल विवाह, महिलाओं की अशिक्षा और विधवाओं की अपमानजनक स्थिति का विरोध किया तथा महिलाओं के लिये विरासत तथा संपत्ति के अधिकार की मांग की।