राजभाषा राष्ट्रभाषा और संपर्क भाषा से आप क्या समझते हैं? - raajabhaasha raashtrabhaasha aur sampark bhaasha se aap kya samajhate hain?

राष्ट्रभाषा , राजभाषा , संपर्कभाषा के रूप में हिंदी भाषा पर विचार । 

आज के विषय में हम राष्ट्रभाषा , राजभाषा , और संपर्कभाषा के रूप में हिंदी भाषा पर विचार करेंगे । विचार करने से पहले हमें यह जानना आवश्यक है कि राष्ट्रभाषा , राजभाषा , और संपर्कभाषा क्या है? इनके रूप में हिंदी भाषा पर विचार करेंगे।

तो आइए जानते है राष्ट्रभाषा , राजभाषा , और संपर्कभाषा के रूप में हिंदी किस प्रकार हैं । 

I. राजभाषा :-

जिस भाषा का प्रयोग देश के बहुत बड़े भाग में किया जाता हैं और जिसे देश की अधिकांश जनता बोल - समझ सके तथा देशवासियों की राष्ट्रीय भावनाएं जिससे जुड़ी हो , उसे राष्ट्र भाषा कहते है। स्वाधीनता संग्राम में देश को एकता के सूत्र में बांधने के लिए हिंदी को राष्ट्रभाषा का स्थान दिया गया। यह आवश्यक नहीं है कि राष्ट्रभाषा ही राजभाषा हो। हिंदी को से देश की राजभाषा स्वीकार किया गया है , लेकिन सविधान में उसे राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं दिया गया है। 

गांधीजी ने राष्ट्रभाषा के लिए पांच लक्षण बताए है:-

1. वह भाषा कर्मचारियों के लिए सरल हो।

2. उस भाषा के द्वारा भारतवर्ष  के परस्पर धार्मिक, आर्थिक और राजनीतिक व्यवहार निभा सके ।

3. उस भाषा को देश के अधिकांश निवासी बोलते हो।

4. वह भाषा राष्ट्र के लिए सरल हो।

5. वह भाषा क्षणिक या अल्पस्थायी स्थायी के उपर निर्भर ना हो।     

राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी :- 

राष्ट्रीय एकता की दृष्टि से भारत जैसे बहुभाषा -भाषी राष्ट्र में किसी एक राजभाषा का होना आवश्यक हैं। यद्यपि महत्व की दृष्टि से सभी भारतीय भाषाएं समान हैं और उसके बोलने वालो का विस्तृत क्षेत्र है तथापि व्यापकता की दृष्टि से देश मी हिंदीं का स्थान सर्वोपरि है। केवल देश के विशाल भू - भाग में ही नहीं , वरन् बोलने वालो की संख्या की दृष्टि से इसका स्थान विश्व मी तीसरा माना गया है। राष्ट्रभाषा हिन्दी भारतीय आर्य - भाषाओं की परम्परा में संस्कृत , पालि , प्राकृत , अपभ्रंश की उत्तराधिकारी भाषा है। राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी अनेक शताब्दियों से देश की संपर्क भाषा के रूप में तीर्थो तथा संत - महात्माओं द्वारा दूर - दूर तक प्रचारित - प्रसारित होती रही है। सांस्कृतिक , धार्मिक , सामाजिक , आर्थिक , राजनैतिक आदि कारणों से इसने देश में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया है। ग्यारहवीं से पंद्रहवीं शताब्दी तक लोक - व्यवहार से लेकर शासकीय प्रयोग के स्तर तक सभी प्रकार के सामाजिक - राजनैतिक - सांस्कृतिक और साहित्यक क्षेत्रों में हिंदी एक प्रकार से राष्ट्रभाषा के रूप में विकसित हो रही थी। इसी कारण समूचे राष्ट्र ने हिंदी को ही राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार कर लिया है। 

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II. राजभाषा :- 

जिस भाषा का प्रयोग सरकारी कामकाज ( शासन व्यवस्था ) चलाने के लिए किया जाता है उसे राजभाषा कहते है , इसे कार्यालयी हिंदी भी कहते है। सरकारी पत्राचार , प्रशासनिक कार्यों , न्याय व्यवस्था और संसदीय कार्यों में प्रयोग होने के कारण इसका विशेष महत्व है। यह सविधान द्वारा स्वीकृत होती है। राजभाषा के लिए आवश्यक नहीं है कि वह देश के सभी भागों के लोगो को आती हो , इसे निश्चित करते समय इस तथ्य को ध्यान में रखा जाता है कि इस भाषा में देश की शासन व्यवस्था सुचारू रूप से चलाई जा सके। यही कारण है कि हमरा देश प्रशासन चलाने की सुविधा को ध्यान में रखते हुए हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं को राजभाषा बनाया गया है। अंग्रेजी को सविधान में सह - राजभाषा के रूप में मान्यता दी गई हैं। इतना ही नहीं राज्यो को अपनी राजभाषा निर्धारित करने का अधिकार दिया गया है। यही कारण है कि विभिन्न राज्यों ने अपनी राजभाषा क्षेत्रीय भाषाओं को बनाया है ।

राजभाषा के रूप में हिंदी :-

भारत एक संघीय गणराज्य है। यहां हिंदी ( और साथ  ही अंग्रेजी ) को राजभाषा घोषित किए जाने का अर्थ है सभी राज्य सरकारें और सभी नागरिक केंद्रीय सरकार से इन्हीं दो भाषाओं में पत्र - व्यवहार करेंगे। किन्तु विभिन्न राज्यो की राजभाषा वहां को विधायिका द्वारा निश्चित की जा सकती हैं। अर्थात् प्रादेशिक स्तर पर अलग - अलग राज्यो में बंगला, मराठी , तमिल , तेलगु आदि भाषाएं उन प्रदेशों कि राजभाषा हो सकती हैं, और वहां के निवासी अपने इन प्रदेशों में कार्य - व्यवहार के लिए इन्ही को राजभाषा मान सकते हैं, किन्तु जब ये प्रादेशिक सरकारें तथा वहां के निवासी केंद्र सरकार से संपर्क करेगे, तब उन्हें हिंदी अथवा अंग्रेजी को ही राजभाषा के रूप में अपनाना होगा।

भारतवर्ष शताब्दियों तक मुस्लिम व ब्रिटिश - शासन के अधीन रहा , अतः यहां की राजभाषा के रूप में पहले अरबी , फारसी , मिश्रित उर्दू और बाद में अंग्रेजी का प्रयोग होता रहा। देश की स्वतंत्रता और तत्पश्चात 26 जनवरी सन् 1950 को इसे गणतंत्र घोषित किए जाने के फलस्वरूप एक स्वतंत्र राजभाषा की आवश्यकता का अनुभव किया गया। भारत का प्रथम सविधान बना , जिसमें उल्लेख किया गया कि देवनागरी - लिपि में लिखी जाने वाली हिंदी इस देश कि राजभाषा होगी। उस समय तक उर्दू और अंग्रेजी का बोलबाला होने के कारण हिंदी इतनी सक्षम नहीं बन पाई थी कि वह राजभाषा के दायित्व को अचानक संभाल सके। अतः सविधान में उस समय यह व्यवस्था भी की गई थी कि सन् 1965 तक अंग्रेजी में पुर्ववत राज - कार्य किया जाता रहेगा और हिंदी को भी प्रशासनिक क्षेत्रों में कार्य करने के अनुरूप सम्पन्न बनाने का निरंतर प्रयास किया जाएगा। 

III. संपर्क भाषा :- 

किसी देश में विभिन्न भाषाएं बोलने वाले लोग परस्पर विचारो के आदान - प्रदान के लिए जिस एक भाषा का प्रयोग करते हैं, उसे संपर्क भाषा कहते है। संपर्क भाषा का विकास अपनी आवश्यकताओ के अनुसार वहां का समाज करता है। इस भाषा का प्रयोग बात - चीत के साथ - साथ जीवन के सामाजिक , धार्मिक , सांस्कृतिक आदि सभी क्षेत्रों में किया जाता है। 

एक राज्य से दूसरे राज्य के तथा एक राज्य में भी अलग - अलग बोलियां बोलने वाले जब एक - दूसरे से बातचीत करना चाहेंगे तो वे संपर्क भाषा का ही प्रयोग करेंगे। भारत में संपर्क भाषा का बहुत महत्व है। यदि एक तमिल भाषी व्यक्ति , गुजराती बोलने वाले से बातचीत करेगा तो वह टूटी - फूटी हिंदी का ही प्रयोग करेगा। प्राचीन - काल में भारत कि संपर्क भाषा संस्कृत और प्राकृत - अपभ्रंश थी। मध्य काल में भी हिंदी संपर्क भाषा का कार्य कर रही थी और आधुनिक काल में भी संपर्क भाषा की भूमिका निभा रही है। 

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संपर्क भाषा के रूप में हिंदी :-

संपर्क भाषा से हमारा अभिप्राय उस भाषा से है , जो देश के विभिन्न भू - भागों में रहने वाले विभिन्न भाषा - भाषी  लोगों के मध्य संपर्क का कार्य करती हैं। व्यवहारिक प्रयोजन को दृष्टिगत करते हुए इसे अंग्रेजी के कॉन्टेक्ट लेंग्वेज अथवा लिंक लेंग्वेज के समकक्ष रखा जा सकता है। इस दृष्टि से हिंदी ही वह संपर्क भाषा है , जो भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अधिकाधिक बोली जाती है। इस प्रकार सम्पूर्ण राष्ट्र को परस्पर जोड़ती है। कर्नाटक और दूसरी ओर हरियाणा में रहने वाले लोग यदि परस्पर बात करना चाहे तो , यदि वो अपनी अपनी क्षेत्रीय भाषा में बात करें तो किसी की भी कुछ समझ नहीं आ सकता । अपने भावों को संप्रेक्षणीय बनाकर एक दूसरे तक पहुंचाने के लिए उन्हें एक संपर्क भाषा की आवश्यकता पड़ती है। इसलिए हिंदी कि वर्तमान में भिन्न भाषा - भाषियों के मध्य संपर्क भाषा के रूप में कार्य कर रही हैं। ऐसे में संपर्क भाषा के रूप में हिंदी का व्यवहार अत्यंत आवश्यक हो जाता है।

संपर्क भाषा के रूप में का प्रयोग अचानक ही प्रारम्भ नहीं हुआ , वरन् विगत अनेक वर्षों से इस ओर व्यापक प्रयत्न किए जा रहे हैं। एक ओर दक्षिण भारत हिंदी प्रचारिणी - सभा जैसी अनेक स्वैच्छिक संस्थाएं इस दिशा में कार्यरत है तो दूसरी ओर हिंदी सिनेमा , फिल्मों और टेलीविजन के हिंदी कार्यकर्मों द्वारा हिंदी का प्रचार - प्रसार किया जा रहा है, जिससे हिंदी अन्य भाषा - भाषी लोगों में भी निरंतर लोकप्रिय होती जा रही है और संपर्क भाषा के रूप में प्रयुक्त की जा रही है। 

संपर्क भाषा के रूप में हिंदी का महत्व असंदिग्ध है। देश की राजधानी दिल्ली में रहने वाले लोग जब किसी कार्य में आंध्रप्रदेश , चेन्नई ( तमिलनाडु ) , या कर्नाटक जायेंगे अथवा इं राज्यो के लोग जब दिल्ली आयेगे तो नित्य - प्रति के व्यवहार में , होटल - रेस्टोरेंट या यातायात अथवा पर्यटन के समय हिंदी का ही संपर्क भाषा के रूप में प्रयोग की जाने वाली यह सबसे अधिक लोकप्रिय संपर्क भाषा है। 

संपर्क भाषा के रूप में हिंदी केवल भारत में ही नहीं वरन् विदेशो में भी पर्याप्त लोकप्रिय और प्रभावशाली रही है। विश्व के अनेक देशों ( अमरीका, रूस , चीन , ज़र्मनी , जापान , कनाडा , थाईलैंड ‌,‌ मॉरीशस , फ़िजी आदि ) में हिंदी का प्रयोग वहां के प्रवासी भारतीयों के माध्यम से इन देशों के मूल निवासियों द्वारा भी किया जा रहा है। वहां के प्रवासी से भी अधिक विश्वविद्यालय में हिंदी के पठन - पाठन की व्यवस्था है। अतः संपर्क भाषा के रूप में हिंदी कि उपादेयता , सफलता और प्रभुष्णुता असन्दिग्ध है। भारत में सदियों से हिंदी ही संपर्क भाषा का दायित्व निभाती रही है। 

संपर्क भाषा और राष्ट्रभाषा से क्या समझते हैं?

संपर्क भाषा और राष्ट्रभाषा से भिन्न अर्थ में प्रयुक्त होती है। राष्ट्रभाषा में जहाँ मानक रूप को महत्व दिया जाता है, वहीं संपर्क भाषा दो या दो से अधिक भाषा-भाषियों के बीच सेतु का कार्य करती है। संपर्क भाषा का प्रमुख उद्देश्य एक दूसरे के मध्य अपनी बात को संप्रेषित करना होता है।

राजभाषा राष्ट्रभाषा से आप क्या समझते हैं?

राज्यों की विधानसभाएँ बहुमत के आधार पर किसी एक भाषा को अथवा चाहें तो एक से अधिक भाषाओं को अपने राज्य की राज्यभाषा घोषित कर सकती हैंराष्ट्रभाषा सम्पूर्ण राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करती है। प्राय: वह अधिकाधिक लोगों द्वारा बोली और समझी जाने वाली भाषा होती है। प्राय: राष्ट्रभाषा ही किसी देश की राजभाषा होती है।

संपर्क भाषा से आप क्या समझते हैं?

सम्पर्क भाषा या जनभाषा वह भाषा होती है जो किसी क्षेत्र, प्रदेश या देश के ऐसे लोगों के बीच पारस्परिक विचार-विनिमय के माध्यम का काम करे जो एक दूसरे की भाषा नहीं जानते। दूसरे शब्दों में विभिन्न भाषा-भाषी वर्गों के बीच सम्पे्रषण के लिए जिस भाषा का प्रयोग किया जाता है, वह सम्पर्क भाषा कहलाती है।

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