राजपूतों पर तुर्क की विजय के क्या कारण थे? - raajapooton par turk kee vijay ke kya kaaran the?

युद्ध में किसी भी साम्राज्य की जीत या हार के कई कारण जिम्मेवार होते हैं. तुर्क आक्रणकारियों साथ हुए युद्ध में राजपूतों की पराजय के बहुत से कारण थे. इनमें से मुख्य रूप से निम्नलिखित कारण जिम्मेवार थे:-

1. स्थाई सेना का अभाव:- राजपूत शासकों के पास स्थाई सेना का अभाव था. वे मुख्य रूप से सामंतों की सेना पर ही निर्भर रहते थे. राजपूत राजाओं ने अपनी सैन्य संगठन को सुदृढ़ बनाने की दिशा में कभी ध्यान ही नहीं दिया. सामंतों की सेना में  उचित सैन्य प्रशिक्षण का अभाव था ना उनके पास युद्ध का कोई ख़ास अनुभव होता था. वे उचित सैन्य प्रशिक्षण और अनुशासन के अभाव में सुनियोजित सुनियोजित योजना के अनुसार लड़ नहीं पाते थे. इसके अलावा विभिन्न सामंतों की सम्मिलित सेना की स्वामीभक्ति बंटी हुई होती थी. अतः वे किसी एक सेनापति अथवा राजा के नेतृत्व में लड़ना अपनी मान-सम्मान के विरुद्ध समझते थे. राजपूत सैनिक पेशेवर होते थे. इसी वजह से उनमें किसी से राजा अथवा सेनापति की प्रति स्वामी स्वामी भक्ति भावना नहीं होती थी.  इसके विपरीत तुर्की आक्रमणकारियों के पास अनुभवी सेना थी. वे पूरी तरह युद्ध विद्या में निपुण थे तथा सैनिकों की स्वामी भक्ति एक ही राजा अथवा सेनापति के प्रति होते थे.

2. तुर्कों की शक्तिशाली अश्व सेना:- तुर्कों की अश्व सेना राजपूतों की अश्व तथा हाथियों की सेना की तुलना में काफी श्रेष्ठ थे. तुर्कों के पास कुछ कोटि के घोड़े थे. वहीं राजपूत सेना के पास साधारण नस्ल के घोड़े थे. राजपूतों के पास पैदल सैनिकों की संख्या अधिक थी. ये सैनिक गतिशील तुर्की अश्व सेना के पैंथरबाजी का सामना नहीं कर पाते थे.

3. राजपूतों की दोषपूर्ण युद्ध प्रणाली:- राजपूत अपनी परंपरागत युद्ध शैली का ही प्रयोग करते थे. उन्होंने समय के साथ-साथ युद्ध प्रणालियों पर बदलाव लाने की दिशा पर कोई जोर नहीं दिया. वहीं तुर्क सैनिक नई-नई युद्ध प्रणाली तथा रणनीतियों का सृजन करते थे. उनकी युद्ध कला उत्कृष्ट कोटि और आधुनिकतम होता था. राजपूत सैनिकों में हाथियों का बड़ा महत्व होता था. वे हाथी पर चढ़कर युद्ध करना अपना गौरव समझते थे. लेकिन उनकी ये आदत राजपूत सैनिकों के लिए  बहुत बड़ी भूल साबित हुई.  इस वजह से शत्रु आसानी से उनका पता करके हमला कर हाथियों को घायल कर देते थे. हाथियों के घायल हो जाने से वे बिगड़ कर अपनी ही सेना को रौंदने लगती थी. तुर्क हाथियों का प्रयोग हमेशा दुश्मन के दुर्ग तोड़ने और शत्रु की  हाथियों को रोकने के लिए करते थे.

4. राजपूत उनके द्वारा धर्म युद्ध करना:- राजपूत युद्ध छल कपट या अनैतिक क्रिया के द्वारा जीत हासिल करना है समझते थे. वे धर्म युद्ध के द्वारा ही विजय प्राप्त करना चाहते थे. वे हारे हुए शत्रु को यथासंभव हानि न पहुंचाकर उन्हें भगा देने में अपना कार्य पूर्ण समझते थे. इसके विपरीत मुस्लिम आक्रमणकारी युद्ध जीतने के लिए हर प्रकार के उचित अनुचित तरीकों का इस्तेमाल करती थी. वे राजपूत सैनिकों के द्वारा पीने वाले नदियों और तालाबों के पानी को भी दूषित कर देते थे. वे राजपूत सैनिकों के रसद सप्लाई का मार्ग काट कर उन्हें भूखे मारने की कोशिश करते थे. इसके अलावा तुर्क सैनिक गोरिल्ला युद्ध नीति अपनाते थे. राजपूत सैनिक इस प्रकार की युद्ध नीति से परिचित नहीं थे. इसी कारण वे धोखा खा जाते थे.

5. राजपूतों की रक्षात्मक की युद्ध नीति:- राजपूत हमेशा रक्षात्मक युद्ध नीति का पालन करते थे. जबकि तुर्क हमेशा आक्रमक युद्ध युद्ध नीति का प्रयोग करते थे. राजपूतों की रक्षात्मक युद्ध नीति के कारण यदि तुर्क हार भी जाते तो राजपूत उनका पीछा नहीं करते. जिससे तुर्कों को संभालने का मौका मिल जाता था.  इस वजह से तुर्कों को कोई विशेष हानि नहीं होती थी. आक्रमक युद्ध नीति के कारण तुर्क हमेशा राजपूतों पर भारी पड़ते थे.

6. गुप्तचर व्यवस्था की कमी:- राजपूतों के पराजित होने का मुख्य कारण उनमें गुप्तचर व्यवस्था की कमी थी. इसी वजह से हुए वे अपने दुश्मनों की कमजोरी और उनकी अन्य गतिविधियों से परिचित नहीं हो पाते थे. इसके विपरीत तुर्कों की गुप्तचर व्यवस्था काफी सक्रिय थी. वे राजपूत सैनिकों की हर कमजोरियों का पता लगा लेते थे. इसके साथ ही वे राजपूतों के विरोधियों को अपनी और मिलाने की भरसक कोशिश करते थे.

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मध्यकालीन भारतीय इतिहास

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