सामाजिक परिवर्तन से आप क्या समझते हैं विशेषताएं बताइए? - saamaajik parivartan se aap kya samajhate hain visheshataen bataie?

सामाजिक परिवर्तन का अर्थ (samajik parivartan kya hai)

Samajik parivartan arth paribhasha visheshta karan;सामाजिक परिवर्तन मे दो शब्द है-- प्रथम सामाजिक और दूसरा परिवर्तन। सामाजिक शब्द से आशय है-- समाज से सम्बंधित। मैकाइवर ने समाज को सामाजिक सम्बंधों का जाल बताया है।

परिवर्तन शब्द का प्रयोग हम बहुधा करते है, किन्तु उसके अर्थ के प्रति बहुत सचेत नही होते। परिवर्तन का अर्थ है किसी वस्तु, चाहे वह भौतिक हो अथवा अभौतिक, मे समय के साथ भिन्नता उत्पन्न होना। भिन्नता वस्तु के बाहरी स्वरूप मे हो सकती है अथवा उसके आन्तरिक संगठन, बनावट या गुण मे। परिवर्तन प्रकृति का नियम है। यह सर्वकालीन एवं सर्वव्यापी है। यह भौतिक एवं जैविक जगत मे हो सकता है अथवा सामाजिक एवं सांस्कृतिक जगत में।
सामाजिक परिवर्तन समाज से सम्बंधित होता है। कुछ विद्वानों के विचार मे सामाजिक ढांचे मे होने वाला परिवर्तन, सामाजिक परिवर्तन कहलाता है। इसके विपरीत, अन्य विद्वान सामाजिक सम्बंधों के के अंतर को सामाजिक परिवर्तन कहते हैं।
इस लेख हम सामाजिक परिवर्तन क्या हैं? सामाजिक परिवर्तन किसे कहते है? सामाजिक परिवर्तन की परिभाषा, विशेषताएं एवं सामाजिक परिवर्तन के कारक या कारण जानेंगे। 

सामाजिक परिवर्तन के सम्बन्ध मे लैंडिस का कहना हैं कि " निश्चित अर्थों मे सामाजिक परिवर्तन से आश्य केवल उन परिवर्तनों से है जो समाज मे अर्थात् सामाजिक संबंधों के ढांचे और प्रकार्यों मे होते है। किंग्सले डेविस ने भी सामाजिक परिवर्तन को सामाजिक संगठन अर्थात् सामाजिक संरचना एवं प्रकार्यों मे परिवर्तन के रूप मे स्पष्ट किया है।

सामाजिक परिवर्तन की परिभाषा (samajik parivartan ki paribhasha)

जाॅनसन के अनुसार " अपने मौलिक अर्थ मे, सामाजिक परिवर्तन का तात्पर्य होता है सामाजिक संरचना मे परिवर्तन।"
गिलन और गिलिन के अनुसार " सामाजिक परिवर्तन जीवन की स्वीकृति विधियों मे परिवर्तन को कहते है। चाहे यह परिवर्तन भौगोलिक दशाओं मे परिवर्तन से हुआ हो अथवा सांस्कृतिक साधनों पर जनसंख्या की रचना अथवा सिध्दान्त मे परिवर्तन से हुआ हो अथवा ये प्रसार मे अथवा समूह के अन्दर आविष्कार से हुआ हों।"

डेविस के अनुसार," सामाजिक परिवर्तन से हम केवल उन्ही परिवर्तनों को समझते है, जो सामाजिक संगठन अर्थात समाज की संरचना और कार्यों से घटित होता है।" 

गिनसबर्ग के अनुसार," सामाजिक परिवर्तन से मैं सामाजिक संरचना मे परिवर्तन समझता हूं।" 

गर्थ तथा मिल्स के अनुसार," सामाजिक परिवर्तन के द्वारा हम उसे संकेत कहते है, जो समय के कार्यों, संस्थाओं अथवा उन व्यवस्थाओं मे होता है जो 'सामाजिक संरचना एवं उत्पत्ति' विकास एवं पतन से संबंधित होता है।" 

डासन और गेटिस के अनुसार," सांस्कृतिक परिवर्तन सामाजिक परिवर्तन है, क्योंकि समस्त संस्कृति, अपनी उत्पत्ति, अर्थ और प्रयोग मे सामाजिक है।" 

मैकाइवर और पेज के अनुसार," समाजशास्त्री होने के नाते हमारी विशेष रूचि प्रत्येक रूप मे सामाजिक संबंध से है। केवल इन सामाजिक संबंधों मे होने वाले परिवर्तन को सामाजिक परिवर्तन कहते है।"

डाॅसन व गेटिस के अनुसार," सांस्कृतिक परिवर्तन सामाजिक परिवर्तन है, क्योंकि समस्त संस्कृति अपनी उत्पत्ति, अर्थ और प्रयोगों मे सामाजिक है।" 

स्पेन्सर के अनुसार," सामाजिक परिवर्तन सामाजिक विकास है।" 

बी. कुप्पुस्वामी के अनुसार," सामाजिक परिवर्तन सामाजिक संरचना तथा सामाजिक व्यवहार मे परिवर्तन है।"

उपरोक्त सभी परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि सामाजिक परिवर्तन का क्षेत्र बहुत व्यापक है। समाज मे हमारे सभी व्यवहार किसी-न-किसी सामाजिक नियम से प्रभावित होते हैं हम अपने सामाजिक मूल्यों के अनुसार कुछ चीजों को अच्छा समझते हैं और कुछ को बुरा विभिन्न आयु, लिंग, नातेदारी और प्रतिष्ठा वाले व्यक्तियों से हमारे संबंध अलग-अलग तरह के होते हैं। इस प्रकार जब कभी भी इन सामाजिक नियमों, मूल्यों अथवा सामाजिक संबंधों मे परिवर्तन के तत्व स्पष्ट होने लगते हैं, तब सामाजिक व्यवस्था का रूप भी बदलने लगता हैं। परिवर्तन की इसी दशा को हम सामाजिक परिवर्तन कहते हैं।

सामाजिक परिवर्तन की विशेषताएं (samajik parivartan ki visheshta)

सामाजिक परिवर्तन की विशेषताएं या लक्षण इस प्रकार है--

1. परिवर्तन-सामज का एक मौलिक तत्व है
परिवर्तन समाज का मौलिक तत्व है। सभी समाजो मे परिवर्तन निश्चय ही होता है। यह तो सम्भव है कि प्रत्येक समाज मे परिवर्तन की मात्रा भिन्न हो, परन्तु सामाजिक परिवर्तन के न होने कि कोई सम्भावना नही होती है। समाज निरन्तर परिवर्तनशील रहा है।
2. परिवर्तन की गति मे भिन्नता होती है 
परिवर्तन की गति मे भिन्नता पाई जाती हैं। समाज मे होने वाले परिवर्तन की गति, उस समाज के मूल्यों तथा मान्यताओं पर निर्भर करती है। परम्परात्मक समाज की तुलना मे आधुनिक समाज मे परिवर्तन अधिक होता है जिन्हे हम अधिक स्पष्ट रूप से देख भी सकते है।
3. सामाजिक परिवर्तन को मापना सम्भव नही है
सामाजिक परिवर्तन को मापना असम्भव है। भौतिक वस्तुओं मे होने वाले परिवर्तन का एक बार मापन हो सकता है। परन्तु अभौतिक वस्तुओं मे होने वाले परिवर्तन का मापन सम्भव नही है। अभौतिक वस्तुओं की प्रकृति गुणात्मक होती है। ये परिवर्तन अमूर्त होते है। अमूर्त तथ्यों का मापन सम्भव नही है। मनुष्य के विचार, मनोवृत्तियो तथा रीतियों का मापन सम्भव नही है।
4. सामाजिक परिवर्तन की निश्चित भविष्यवाणी नही की जा सकती
सामाजिक परिवर्तन के बारे मे निश्चित रूप से भविष्यवाणी नही की जा सकती। अधिक से अधिक हम इसके बारे मे अनुमान लगा सकते हैं।
5. सामाजिक परिवर्तन का चक्रवात तथा रेखीय रूप
सामाजिक परिवर्तन चक्रवात तथा रेखीय दो रूपो मे होता है। चक्रवात परिवर्तन मे पुन: वही स्थिति आ जाती है जो परिवर्तन से पूर्व आरंभ मे थी। उदाहरण के लिए, पैण्ड की मोहरी पहले चौड़ी बनायी जाती थी। कुछ समय पश्चात संकरी मोहरी की पैण्ड पहनी जाने लगी। अब पुनः चौड़ी मोहरी की पैण्ड पहनने का फैशन आया है। रेखीय परिवर्तन एक ही दिशा मे होता है। इसकी पुनरावृत्ति नही होती है।
6. सामाजिक परिवर्तन सार्वभौमिक है
सामाजिक परिवर्तन की एक विशेषता यह है कि सामाजिक परिवर्तन सार्वभौमिक होता हैं अर्थात् परिवर्तन सभी समाजो मे होता हैं। किसी समाज मे परिवर्तन धमी गति से होता है तो किसी समाज मे तीव्र गति से परिवर्तन होता हैं। विश्व की सभी समाजों मे परिवर्तन होता है।
7. परिवर्तन अनिश्चित होता है
सामाजिक परिवर्तन निश्चित नही होता यह अनिश्चित होता है। जैसे की पूर्व मे कहा गया हैं कि सामाजिक परिवर्तन की स्पष्ट भविष्यवाणी नही की जा सकती। परिवर्तन का समय, परिवर्तन की दिशा और परिवर्तन के परिक्रम सब कुछ अनिश्चित होता है।

8. सामाजिक परिवर्तन एक सामुदायिक घटना है 

सामाजिक परिवर्तन का संबंध किसी व्यक्ति विशेष अथवा समूह विशेष के जीवन मे होने वाले परिवर्तनों से नही है। सामाजिक परिवर्तन का संबंध पूरे समुदाय से होता है। इस प्रकार सामाजिक परिवर्तन की अवधारण सामाजिक है व्यक्तिगत नही। 

9. सामाजिक परिवर्तन एक जटिल तथ्य है 

सामाजिक परिवर्तन की प्रकृति गुणात्मक होती है। इसकी माप संभव नही है। अतः यह एक जटिल तथ्य है। किसी भी संस्कृति मे होने वाले परिवर्तनों को नाप-तौल नही सकते। अतः ऐसे परिवर्तनों को सरलतापूर्वक समझ नही सकते।

सामाजिक परिवर्तन के कारक या कारण (samajik parivartan ke karak)

samajik parivartan ke karan;समाज मे परिवर्तन क्यों होता है? यह एक ऐसा प्रश्न है जिस पर विद्वन युगों से विचार करते आए है। आज भी अनेक समाज वैज्ञानिक अध्ययन प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सामाजिक परिवर्तन के कारण के अध्ययन से ही सम्बंधित है।
सामाजिक जीवन अनेक छोटे-मोटे कारणों से प्रभावित होता है। यदि हम उनकी सूची बनाएं तो शायद वे अनगिनत होगे। अध्ययन की सहूलियत की दृष्टि से एक प्रकार के समस्त कारणों को एक श्रेणी या वर्ग मे रख लिया जाता हैं, जिसे कारक कहते है। सामाजिक परिवर्तन के प्रमुख कारक/कारण इस प्रकार हैं---
1. प्राकृतिक कारक
इन्हें भौगोलिक कारक भी कहते है। मानव ने प्रकृति को अपने वश मे करने का प्रयास किया है, पर प्रकृति पर वह पूर्ण विजय प्राप्त नही कर सका है। प्रकृति अपने विनाशकारी रूप मे परिवर्तन लाती है। यह रूप भूकम्प, अकाल, बाढ़, महामारी आदि के समय दिखता है। प्राकृतिक अवस्था ही मानव सभ्यता के विकास और विनाश का कारण बनती है। जहां प्रकृति शान्त होती है वहां विज्ञान का विकास होता है तथा जहाँ प्रकृति रौद्र स्वरूप दिखाती है वहां धर्म का प्रभाव ज्यादा होता है।
2. आर्थिक कारक
समाज के शिकारी अवस्था से कृषि अवस्था कृषि अवस्था से औधोगिक अवस्था मे आने से सामाजिक जीवन मे महत्वपूर्ण परिवर्तन होते है। इस परिवर्तन से सामाजिक संस्थाओं, परम्पराओं, रीति-रिवाज, आदि मे परिवर्तन आते है। भारत मे आज इस प्रकार के परिवर्तन दिख रहे है, क्योंकि एक कृषि प्रधान देश औधोगिक समाज मे परिवर्तित हो रहा है।
3. सांस्कृतिक कारक
मनुष्य का सामाजिक जीवन विश्वास, धर्म, आदर्श, प्रथाएं, रूढिया आदि पर निर्भर होता है। सत्य सनातन धर्म (हिन्दु) मे विवाह एक आर्दश धर्म था।
विवाह ईश्वर स्वयं निश्चित करता है तथा विवाह की क्रिया ईश्वर को साक्षी रखकर सम्पन्न होती थी अतः ऐसे विवाह को तोड़ने की कल्पना नही होती थी। अतः विवाह-विच्छेद को हिन्दू विवाह मे कोई स्थान नही था पर अब यह आधार बदल गया है। अब लोग व्यक्तिगत सुख तथा यौन संतुष्टि के लिए विवाह करते है। अतः पारिवारिक स्थिरता कम हो गई है। विवाह-विच्छेद अब अधिक संख्या मे होने लगे है।
4. जनसंख्यात्मक कारक
जनसंख्या मे परिवर्तन, जन्मदर तथा मृत्यु दर घटने-बढ़ने व देशान्तरण की प्रकृति के कारण होते है। जन्मदर बढ़ती है और मृत्युदर घटती है तो जनसंख्या मे वृद्धि होती है। भारत मे आज यही स्थिति है। माल्थस के शब्दों मे " यह स्थिति समाज मे भुखमरी, महामारी, बेरोजगारी आदि को उत्पन्न करती है। इस प्रकार जन्मदर घट जाए और मृत्यु दर बढ़ जाए तो समाज मे कार्यशील जनसँख्या मे कमी हो जाती है। इससे प्राकृतिक संसाधनों का पूर्ण दोहन नही हो पाता और आर्थिक स्थिति कमजोर हो जाती है।
5. प्रौद्योगिकी कारक
नए मशीन या यंत्र का अविष्कार सामाजिक जीवन को प्रभावित करता है। मशीनों के अविष्कार से बड़े पैमाने पर उत्पादन संभव हुआ। श्रम विभाजन, विशेषीकरण हुआ। जीवन स्तर उच्च हुआ तथा जीवन शैली मे परिवर्तन आया। गंदी बस्तियों का विकास हुआ। संघर्ष और प्रतिस्पर्धा मे वृद्धि हुई। धर्म का प्रभाव कम हुआ तथा जीवन प्रकृति से दूर हुआ।
6. प्राणिशास्त्रीय कारक
यदि  किसी समाज मे स्वास्थ्य का स्तर नीचा है तो उसका प्रभाव सामाजिक जीवन पर दिखाई देता है। ऐसे समाज मे जन्मदर और मृत्युदर ज्यादा रहती है। बच्चों की मृत्युदर ज्यादा होने से जीवन-अविधि भी कम  होती है। जहां अनुभवी लोग कम होते है वहां आविष्कारों की सम्भावनाएं कम होती है।

7. राजनैतिक कारक

ये सभी सामाजिक परिवर्तन के लिए उत्तरदायी है-- द्वितीय महायुद्ध, हिटलर के अधिनायकवाद, बंग्लादेश की समस्या, भारत का विभाजन, कश्मीर समस्या आदि ने विभिन्न सामाजिक परिवर्तनों को जन्म दिया।

सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रियाएं

सामाजिक परिवर्तन की कुछ प्रक्रियाएं निम्नलिखित होती हैं-- 

1. क्रांति के रूप में 

क्रांति सामाजिक परिवर्तन का चरम स्वरूप होता है जो आकस्मिक, तीव्र तथा व्यापक होता हैं, यह राजनीतिक संगठन से शुरू होकर संपूर्ण सामाजिक संरचना एवं संगठन को प्रभावित करता है जिससे समाज में तीव्र सामाजिक परिवर्तन होता हैं। 

2. चक्रीय प्रक्रिया

इस प्रक्रिया में जहाँ से परिवर्तन शुरू होता है वहीं पर पुनः आना होता है। जैसे-- ॠतुओं एवं मौसमों में परिवर्तन। इसी तरह सामाजिक परिवर्तन भी एक चक्र के रूप में होता हैं। 

3. विकासवादी प्रक्रिया

सामाजिक परिवर्तन की यह उद्विकासवादी या विकासवादी प्रक्रिया निरंतर क्रियाशील रहती हैं, जिससे समाज में निरंतर क्रमिक सामाजिक परिवर्तन होता हैं। इस प्रक्रिया में आंतरिक तथा अस्पष्ट तत्व धीरे-धीरे अपने आप में स्वतः स्पष्ट होते जाते हैं तथा परिवर्तन लाते जाते हैं। 

4. अनुकूलन के रूप में 

अनुकूलन की प्रक्रिया के रूप में होने वाले सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया को समाज में समायोजन, अभियोजन, एकरूपता तथा सात्मीकरण के रूप में देखा जा सकता हैं। 

5. प्रगति के रूप में 

प्रगतिरूपी परिवर्तन वह परिवर्तन है जो समाज के सामाजिक मूल्यों, उद्देश्यों, लक्ष्यों इच्छाओं के अनुसार होते हैं, तथा जिनमें समाज का कल्याण या भलाई होती हैं। वर्तमान समय में विज्ञान और प्रौद्योगिकी की उन्नति से समाज में प्रगति रूपी सामाजिक परिवर्तन अत्यधिक होता हैं।

शायद यह जानकारी आपके के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी

सामाजिक परिवर्तन क्या है इसकी विशेषता बताएं?

सामाजिक परिवर्तन, समाज के आधारभूत परिवर्तनों पर प्रकाश डालने वाला एक विस्तृत एवं कठिन विषय है। इस प्रक्रिया में समाज की संरचना एवं कार्यप्रणाली का एक नया जन्म होता है। इसके अन्तर्गत मूलतः प्रस्थिति, वर्ग, स्तर तथा व्यवहार के अनेकानेक प्रतिमान बनते एवं बिगड़ते हैं। समाज गतिशील है और समय के साथ परिवर्तन अवश्यंभावी है।

सामाजिक संरचना से आप क्या समझते हैं इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए?

सामाजिक संरचना अमूर्त होती हैं अमूर्त का मतलब है कि जो जो मूर्त या आकार रूप में न हो,निराकार,देहरहित,निरवयव,अप्रत्यक्ष। सामाजिक संबंधों का आधार सामाजिक संस्थाएं,सामाजिक प्रतिमान तय करते हैं जो कि अमूर्त होते हैं। 2. सामाजिक संरचना बहुत उपसंरचनाओं से मिलकल बनती है जैसे की कुटुंब,नातेदार,संस्थाएं,समितियां,समूह वगैरह।

सामाजिक व्यवस्था की विशेषता क्या है?

उद्देश्य सामाजिक संरचना का निर्माण करते हैं। सामाजिक व्यवस्था से संबंधित सामाजिक संरचना के सदस्यों से एक निश्चित कार्य को परस्पर क्रियाओं द्वारा पूर्ण करने की आशा की जाती है। सामाजिक व्यवस्था की प्रकृति मनुष्य की जरूरत, लक्ष्य एवम् परिणाम से निर्धारित होती है।

सामाजिक परिवर्तन क्या है इसके प्रमुख कारणों की व्याख्या कीजिए?

समाज के अन्तर्गत विभिन्न सांस्कृतिक तत्व भी सामाजिक परिवर्तन के लिए उत्तरदायी हैं। संस्कृति के अन्तर्गत धर्म, विचार, नैतिक, विश्वास, आचार, प्रथाएँ, परम्पराएँ, लोकाचार एवं संस्थाओं को सम्मिलित किया जाता है। इन विभिन्न सांस्कृतिक तथ्यों में परिवर्तन होने के कारण सामाजिक परिवर्तन होता है।

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