Solution : अभिभावक अपने बच्चों को पढ़ाना-लिखाना नहीं चाहते थे। यहाँ तक कि परचून वाले दुकानदार और आढ़ती भी अपने बच्चों को बहीखाता लिखना सिखाना काफी समझते थे। उनमें प्रगति की अंधी भूख नहीं थी अत: गाँव के अनेक बच्चे स्कूल नहीं जाते थे और जो जाते थे उन्हें स्कूल जाना अच्छा नहीं लगता था। उनका मानना था कि उनके बच्चे हिसाब-किताब करना सीख लें वही काफी है क्योंकि आगे चलकर उन्हें अपना पैतृक व्यवसाय ही तो संभालना है। यही कारण था कि अभिभावकों को अपने बच्चों की पढ़ाई में रुचि नहीं थी और न ही वे उन्हें स्कूल जाने की जिद करते थे और न ही खेलने से रोकते थे।
सपनों के से दिन के आधार पर लिखिए कि अभिभावकों को बच्चों की पढ़ाई में रुचि क्यों रही थी?
उनका मानना था कि उनके बच्चे हिसाब-किताब करना सीख लें वही काफी है क्योंकि आगे चलकर उन्हें अपना पैतृक व्यवसाय ही तो संभालना है। यही कारण था कि अभिभावकों को अपने बच्चों की पढ़ाई में रुचि नहीं थी और न ही वे उन्हें स्कूल जाने की जिद करते थे और न ही खेलने से रोकते थे।
अभिभावकों की बच्चों की पढ़ाई में रूचि क्यों नहीं थी पढ़ाई को व्यर्थ समझने के पीछे उनके क्या तर्क थे?
शायद वे समझा सकते हैं।
पाठ सपनों के से दिन के आधार पर बताइए कि खेल आपके लिए क्यों ज़रूरी हैं?
ये खेलकूद एक ओर हमारे शारीरिक और मानसिक विकास के लिए आवश्यक हैं, तो दूसरी ओर सहयोग की भावना, पारस्परिकता, सामूहिकता, मेल-जोल रखने की भावना, हार-जीत को समान समझना, त्याग, प्रेम-सद्भाव जैसे जीवन-मूल्यों को उभारते हैं तथा उन्हें मजबूत बनाते हैं। इन्हीं जीवन-मूल्यों को अपना कर व्यक्ति अच्छा इनसान बनता है।