संविधान सभा में एकमात्र दलित महिला कौन थी? - sanvidhaan sabha mein ekamaatr dalit mahila kaun thee?

दुर्गाबाई देशमुख, राजकुमारी अमृत कौर, हंसा मेहता, बेगम ऐजाज रसूल, अम्मू स्वामीनाथन, सुचेता कृपलानी, दकश्यानी वेलयुद्धन, रेनुका रे, पुर्निमा बनर्जी, एनी मसकैरिनी, कमला चौधरी, लीला रॉय, मालती चौधरी, सरोजिनी नायडू व विजयलक्ष्मी पंडित। आइये इनमें में से कुछ के भारत के स्वतंत्रता आंदोलन व उसके बाद दिए गए योगदान के बारे में जानते हैं।

राजकुमारी अमृत कौर

राजकुमारी अमृत कौर का जन्म 2 फरवरी 1889 में तत्कालीन संयुक्त प्रांत व वर्तमान उत्तर प्रदेश के शहर लखनऊ में हुआ था। स्वतंत्रता की लडा़ई में इनका अहम योगदान रहा है। आजादी के बाद ये प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की कैबीनेट में देश की पहली महिला कैबिनेट मिनिस्टर बनीं। उन्हें हेल्थ मिनिस्टर बनाया गया। वह संविधान सभा की सलाहकार समिति व मौलिक अधिकारों की उप समिति की सदस्य थीं। सभा में वह सेंट्रल प्राविंस व बेरार की प्रतिनिधि के तौर पर शामिल हुई थीं।

दुर्गाबाई देशमुख

दुर्गाबाई देशमुख का जन्म 15 जुलाई 1909 को आन्ध्र प्रदेश के राजमुंदरी में हुआ था। उन्होंने न सिर्फ देश को आजाद कराने बल्कि समाज में महिलाओं की स्थिति बदलने के लिए भी लडा़ई लडी़। भारत के दक्षिणी इलाकों में शिक्षा को बढा़वा देने के लिए इन्होंने 'बालिका हिन्दी पाठशाला' भी शुरू की। 12 साल की छोटी सी उम्र में वह असहयोग आंदोलन का हिस्सा बनीं। उन पर महात्मा गांधी का प्रभाव था। वकील होने के नाते उन्होंने संविधान के कानूनी पहलुओं में योगदान दिया।

हंसा मेहता

हंसा मेहता समाज सेविका व स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ ही कवयित्री व लेखिका भी थीं। वह 1946 में ऑल इंडिया वुमन कांफ्रेंस की अध्यक्ष भी रहीं थीं। वह संविधान सभा की मौलिक अधिकारों की उप समिति की सदस्य थीं। उन्हें संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार की सार्वभौमिक घोषणा में 'ऑल मेन आर बॉर्न फ्री एंड इक्वल' को बदलकर 'ऑल ह्यूमन बीइंग आर बॉर्न फ्री एंड इक्वल' करवाने के अभियान के लिए भी जाना जाता है। संविधान सभा में वह मुंबई के प्रतिनिधि के तौर पर शामिल हुई थीं।

बेगम ऐजाज रसूल

इनका जन्म 1908 में पंजाब के संगरूर जिले में हुआ था। वह अपने पति के साथ अल्पसंख्यक समुदाय की महत्वपूर्ण राजनीतिज्ञ बनकर उभरीं व मुस्लिम लीग की सदस्य थीं।  वह उत्तर प्रदेश विधानसभा की भी सदस्य रहीं। वह संविधान सभा की अकेली मुस्लिम महिला सदस्य थीं। वह सभा की मौलिक अधिकारों की सलाहकार समिति व अल्पसंख्यक उप समिति की सदस्य थीं। मौलाना अबुल कलाम आजाद व उन्होंने धार्मिक आधार पर पृथक निर्वाचन की मांग का विरोध किया था। लीग की भारतीय शाखा भंग होने के बाद वे 1950 में कांग्रेस पार्टी से जुड़ गईं।   

अम्मू स्वामीनाथन

अम्मू स्वामीनाथन एक सामाजिक कार्यकर्ता, स्वंत्रता संग्राम सेनानी और राजनीतिज्ञ थीं। इनका जन्म 1894 में केरल के पल्लकड़ जिले में हुआ था। इनका विवाह बहुत कम उम्र में डॉक्टर सुब्रम्मा स्वामीनाथन के साथ हो गया। संविधान सभा में ये मद्रास की प्रतिनिधि थीं। वह महात्मा गांधा के नक्शेकदम पर चलना चाहती थीं, इसलिए आजादी की लडा़ई में भाग लिया। इनके मुताबिक संविधान ऐसा होना चाहिए था जो आम आदमी की जेब में आराम से समा सके। उन्हें आजाद हिंद फौज की सदस्य कैप्टन लक्ष्मी सहगल की मां के तौर पर भी जाना जाता है।

दक्श्यानी वेलायुद्धन

इनका जन्म 1912 में कोचिन में हुआ। ये एक दलित समुदाय से आईं थीं। जिन्हें लोग छूने में घिन महसूस करते थे। वह संविधान सभा की अकेली दलित महिला सदस्य थीं। वह विज्ञान में स्नातक करने वाली भारत की पहली दलित महिला थीं। वे 1946 से 1952 तक प्रोविजनल पार्लियामेंट की मेंबर रहीं।


भारत में 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा द्वारा भारतीय संविधान अपनाया गया और 26 जनवरी 1950 को इसे लागू किया गया था। संविधान सभा में कुल 389 सदस्य थे। संविधान निर्माण में पंद्रह महिला सदस्यों का योगदान था। तो आइये जानते है उन पन्द्रह भारतीय महिलाओं के बारे में जिन्होंने भारत के संविधान निर्माण में अपना अमूल्य योगदान दिया है।

संविधान सभा के पन्द्रह ( 15 ) सदस्य

1. सुचेता कृपलानी
जन्म: 25 जून 1904, अम्बाला
मृत्यु: 1 दिसंबर 1974, नई दिल्ली

इन्हे वर्ष 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में उनकी भूमिका के लिए याद किया जाता है। कृपलानी ने वर्ष 1940 में कांग्रेस पार्टी की महिला विंग की भी स्थापना की। वह भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री (उत्तरप्रदेश) थीं।

2. दक्षिणानी वेलायुद्ध :
जन्म: 4 जुलाई 1912
मृत्यू: 20 जुलाई 1979

वर्ष 1945 में, दक्षिणानी को कोचीन विधान परिषद में राज्य सरकार द्वारा नामित किया गया था। वह साल 1946 में संविधान सभा के लिए चुनी गयी पहली और एकमात्र दलित महिला थीं।

3. बेगम एजाज रसूल :
जन्म: 2 अप्रैल 1909
मृत्यु: 1 अगस्त 2001

वह संविधान सभा की एकमात्र मुस्लिम महिला सदस्य थी। वर्ष 1950 में, भारत में मुस्लिम लीग भंग होने के बाद वह कांग्रेस में शामिल हो गयी। वर्ष 2000 में सामाजिक कार्य में उनके योगदान के लिए पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।

4. कमला चौधरी
जन्म: 22 फरवरी 1908
मृत्यू: 1970

वर्ष 1930 में गांधी द्वारा शुरू की गई नागरिक अवज्ञा आंदोलन में भी उन्होंने सक्रियता से हिस्सा लिया। वह अपने 54वे सत्र में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की उपाध्यक्ष थी।
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान ही उनके कई कहानी संग्रह प्रकाशित हुए। उन्माद (1934), पिकनिक (1936) यात्रा (1947), बेल पत्र और प्रसादी कमंडल।

5. हंसा जिवराज मेहता
जन्म: 3 जुलाई 1897
मृत्यु: 4 अप्रैल 1995

एक सुधारक और सामाजिक कार्यकर्ता होने के साथ-साथ वह एक शिक्षिका और लेखिका भी थीं। हंसा ने इंग्लैंड में पत्रकारिता और समाजशास्त्र का अध्ययन किया। वर्ष 1926 में बॉम्बे स्कूल कमेटी के लिए चुनी गयी और वर्ष 1945-46 में अखिल भारतीय महिला सम्मेलन की अध्यक्ष बनी।

6. दुर्गाबाई देशमुख
जन्म: 15 जुलाई 1909
मृत्यु: 9 मई 1981

वर्ष 1936 में उन्होंने आंध्र महिला सभा की स्थापना की। वर्ष 1971 में भारत में साक्षरता के प्रचार में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए दुर्गाबाई को चौथे नेहरू साहित्यिक पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। वर्ष 1975 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था।

7. लीला रॉय
जन्म: 2 अक्तूबर 1900
मृत्यु: 11 जून 1970

वर्ष 1921 में बेथ्यून कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और सभी बंगाल महिला उत्पीड़न समिति की सहायक सचिव बनी और महिलाओं के अधिकारों की मांग के लिए मीटिंग की व्यवस्था की। वर्ष 1923 में अपने दोस्तों के साथ उन्होंने दीपाली संघ और स्कूलों की स्थापना की जो राजनीतिक चर्चा के केंद्र बन गए। वर्ष 1937 में कांग्रेस में शामिल हो गईं और अगले वर्ष बंगाल प्रांतीय कांग्रेस महिला संगठन की स्थापना की। वह सुभाष चंद्र बोस द्वारा गठित महिला उपसमिती की भी सदस्य बन गईं।
वर्ष 1947 में, उन्होंने पश्चिम बंगाल में एक महिला संगठन और  भारतीय महिला संघती की स्थापना की। वर्ष 1960 में, वह फॉरवर्ड ब्लॉक (सुभाषिस्ट) और प्रजा समाजवादी पार्टी के विलय के साथ गठित नई पार्टी की अध्यक्ष बन गईं।

8. मालती चौधरी
जन्म: 1904, कोलकाता
मृत्यु: 15 मार्च 1998

नमक सत्याग्रह के दौरान, मालाती चौधरी और उनके पति भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए और आंदोलन में भाग लिया। उन्होंने सत्याग्रह के लिए अनुकूल वातावरण बनाने के लिए लोगों के साथ संवाद किया।

9. पूर्णिमा बनर्जी
जन्म: 1911
मृत्यु: 1951, नैनीताल

पूर्णिमा बनर्जी इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश) में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस कमेटी की सचिव थी। उन्हें सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन में उनकी भागीदारी के लिए गिरफ्तार किया गया था। शहर समिति के सचिव के रूप में वह ट्रेड यूनियनों, किसान मीटिंग्स और अधिक ग्रामीण जुड़ाव की दिशा में काम किया।

10. राजकुमारी अमृत कौर
जन्म: 2 फरवरी 1889, लखनऊ
मृत्यु: 6 फ़रवरी 1964, नई दिल्ली

अमृत कौर कपूरथला के पूर्व महाराजा के पुत्र हरनाम सिंह की बेटी थी। उन्हें इंग्लैंड के डोरसेट में शेरबोर्न स्कूल फॉर गर्ल्स में शिक्षित किया गया था। उन्होंने ट्यूबरकुलोसिस एसोसिएशन ऑफ इंडिया व सेंट्रल लेप्रोसी एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना की।

11. एनी मास्कारेन
जन्म: 6 जून 1902
मृत्यू: 19 जुलाई 1963

वह त्रावणकोर राज्य से कांग्रेस में शामिल होने वाली पहली महिलाओं में से एक थीं और त्रावणकोर राज्य कांग्रेस कार्यकारिणी का हिस्सा बनने वाली पहली महिला बनीं। मास्कारेन भारतीय आम चुनाव में साल 1951 में पहली बार लोकसभा के लिए चुनी गयी थी। वह केरल की पहली महिला सांसद थी।

12. सरोजिनी नायडू
जन्म: 13 फ़रवरी 1879, हैदराबाद
मृत्यु: 2 मार्च 1949, लखनऊ

वर्ष 1925 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष होने वाली भारतीय महिला थीं, और उन्हें भारतीय राज्य (उत्तरप्रदेश) की गवर्नर नियुक्त किया गया था। उन्हें लोकप्रिय रूप से ‘नाइटिंगेल ऑफ इंडिया’ भी कहा जाता है।

उनका पहला कविता संग्रह ''द गोल्डन थ्रेसहोल्ड'' 1905 में प्रकाशित हुआ था। 'द बर्ड ऑफ टाइम' और 'द ब्रोकन विंग' उनके लिखे प्रसिद्ध रचनाओं में से एक है।

13. अम्मू स्वामीनाथन :
जन्म: 22 अप्रैल 1894
मृत्यु: 4 जुलाई 1978

वर्ष 1946 में मद्रास निर्वाचन क्षेत्र से संविधान सभा का हिस्सा बन गईं। 24 नवंबर 1949 को संविधान के मसौदे को पारित करने के लिए डॉ बी आर अम्बेडकर ने एक चर्चा के दौरान भाषण में अम्मू ने कहा कि ‘बाहर के लोग कह रहे हैं कि भारत ने अपनी महिलाओं को बराबर अधिकार नहीं दिए हैं। अब हम कह सकते हैं कि जब भारतीय लोग स्वयं अपने संविधान को तैयार करते हैं तो उन्होंने देश के हर दूसरे नागरिक के बराबर महिलाओं को अधिकार दिए हैं।‘

14. विजयलक्ष्मी पंडित
जन्म: 18 अगस्त 1900, प्रयागराज
मृत्यु: 1 दिसंबर 1990, देहरादून

भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की बहन थीं। वर्ष 1936 में, वह संयुक्त प्रांत की असेंबली के लिए चुनी गयी और वर्ष 1937 में स्थानीय सरकार और सार्वजनिक स्वास्थ्य मंत्री बनी। वे पहली भारतीय महिला कैबिनेट मंत्री थी। वर्ष 1939 में ब्रिटिश सरकार की घोषणा के विरोध में इस्तीफा दे दिया।

15. रेनुका रे
जन्म : 1904
मृत्यू : 1997

लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से बीए की पढ़ाई पूरी की। साल 1934 में, एआईडब्ल्यूसी के कानूनी सचिव के रूप में उन्होंने ‘भारत में महिलाओं की कानूनी विकलांगता’ नामक एक दस्तावेज़ प्रस्तुत किया। रेणुका ने एक समान व्यक्तिगत कानून कोड के लिए तर्क दिया और कहा कि भारतीय महिलाओं की स्थिति दुनिया में सबसे अन्यायपूर्ण में से एक थी।
वर्ष 1943-46 तक वह केन्द्रीय विधान सभा, संविधान सभा और अनंतिम संसद की सदस्य थी। वर्ष 1952 से 1957 में, उन्होंने पश्चिम बंगाल विधानसभा में राहत और पुनर्वास के मंत्री के रूप में कार्य किया। उन्होंने अखिल बंगाल महिला संघ और महिला समन्वयक परिषद की स्थापना की। उनके कार्यों के लिए 1988 में पद्मभूषण से सम्मानित किया।

भारत की संविधान सभा में एकमात्र मुस्लिम महिला कौन थी?

वे भारतीय संविधान सभा की एकमात्र मुस्लिम महिला रहीं। इस संविधान सभा में रहकर देश के संविधान का मसौदा तैयार करने में अहम जिम्मेदारी भी निभाई। इसके अलावा वे 20 साल तक भारत महिला हाकी महासंघ की भी अध्यक्ष रहीं। इस मुस्लिम महिला का नाम था बेगम कुदसिया ऐजाज रसूल।

संविधान सभा में महिला सदस्य कौन कौन थी?

संविधान सभा की 15 महिला सदस्य है:.
दुर्गाभाई देशमुख.
राजकुमारी अमृत कौर.
हंसा मेहता.
बेगम एजाज रसूल.
अम्मू स्वामीनाथन.
सुचेता कृपलानी.
दक्षयानी वेलायुधान.
रेणुका राय.

संविधान सभा की पहली महिला कौन थी?

राजकुमारी अमृत कौर भी संविधान सभा की सदस्य थी. देश की पहली महिला मुख्यमंत्री सुचेता कृपलानी का भी संविधान के निर्माण में अहम योगदान था. 25 जून 1904 को हरियाणा के अंबाला शहर में जन्मी सुचेता कृपलानी ने 1942 में शुरू हुए भारत छोड़ो आंदोलन में अहम भूमिका अदा की थी.

भारत की संविधान सभा में कितनी महिलाएं थी?

बँटवारे के बाद कुल सदस्यों (389) में से भारत में 299 ही रह गए। जिनमे 296 चुने हुए थे। वहीं 70 मनोनीत थे। जिनमें कुल महिला सदस्यों की संख्या 15 , अनुसूचित जाति के 26, अनुसूचित जनजाति के 33 सदस्य थे।

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