शब्दों की रचना किससे होती है - shabdon kee rachana kisase hotee hai

Shabd Rachna हिंदी व्याकरण के सबसे महतवपूर्ण भाग है जो शब्दों की व्याख्या अन्य शब्दों के साथ मिलकर करता है. अर्थात, वर्णों के मेल से बनी सार्थक ध्वनि ही‘शब्द’ होती है. अकादमिक और प्रतियोगिता एग्जाम में शब्द रचना से सम्बंधित विभिन्न प्रकार के प्रश्न होते है.

ऐसे में आवश्यक है कि Shabd Rachna In Hindi से सम्बंधित सभी तथ्यों की जानकारी पहले से ही सुनिश्चित करे. ताकि एग्जाम में किसी भी प्रकार की समस्या उत्पन्न न हो. इसलिए, यहाँ शब्द रचना की परिभाषा, भेद, उदाहरण, नियम आदि उपलब्ध है जो इसके सम्बन्ध सभी महतवपूर्ण जानकारी प्रदान करता है.

Table of Contents

  • शब्द रचना की परिभाषा | Shabd Rachna in Hindi
    • शब्द रचना की व्याख्या
    • व्युत्पत्ति की दृष्टि से शब्द के भेद
      • 1. तत्सम शब्द की परिभाषा
      • 2. तद्भव शब्द
      • 3. देशज शब्द
      • 4. विदेशज शब्द
        • फारसी शब्द
        • अरबी शब्द
        • तुर्की शब्द
        • अँगरेजी शब्द 
        • पुर्तगाली शब्द
    • रचना अथवा बनावट के अनुसार शब्दों का वर्गीकरण
      • 1. रूढ़ शब्द
      • 2. यौगिक शब्द
      • 3. योगरूढ़ शब्द
    • FAQs: Shabd Rachna

शब्द रचना की परिभाषा | Shabd Rachna in Hindi

एक या अधिक वर्णों से बनी स्वतंत्र सार्थक ध्वनि को शब्द कहते हैं, जैसे- लड़की, आ, मैं, धीरे, परंतु इत्यादि।

दुसरें शब्दों में, शब्द रचना किसे कहते है?

ध्वनियों के मेल से बने सार्थक वर्ण समुदाय को ‘शब्द’ कहते हैं। शब्द अकेले और कभी दूसरे शब्दों के साथ मिलकर अपना अर्थ प्रकट करते हैं।

इन्हें हम दो रूपों में पाते हैं— एक तो इनका अपना बिना मिलावट का रूप है, जिसे संस्कृत में प्रकृति या प्रातिपदिक कहते हैं और दूसरा वह, जो कारक, लिंग, वचन, पुरुष और काल बतानेवाले अंश को आगे-पीछे लगाकर बनाया जाता है, जिसे पद कहते हैं।

यह वाक्य में दूसरे शब्दों से मिलकर अपना रूप झट सँवार लेता है। शब्दों की रचना (1) ध्वनि और (2) अर्थ के मेल से होती है।

अतः, शब्द मूलतः ध्वन्यात्मक होंगे या वर्णात्मक। किंतु, व्याकरण में ध्वन्यात्मक शब्दों की अपेक्षा वर्णात्मक शब्दों का अधिक महत्त्व है। वर्णात्मक शब्दों में भी उन्हीं शब्दों का महत्त्व है, जो सार्थक हैं, जिनका अर्थ स्पष्ट और सुनिश्चित है। व्याकरण में निरर्थक शब्दों पर विचार नहीं होता।

सामान्यतः शब्द दो प्रकार के होते हैं- सार्थक और निरर्थक। सार्थक शब्दों के अर्थ होते हैं और निरर्थक शब्दों के अर्थ नहीं होते। जैसे— ‘पानी’ सार्थक शब्द है और ‘नीपा’ निरर्थक शब्द, क्योंकि इसका कोई अर्थ नहीं।

भाषा की परिवर्तनशीलता उसकी स्वाभाविक क्रिया है। समय के साथ संसार की सभी भाषाओं के रूप बदलते हैं। हिंदी इस नियम का अपवाद नहीं है। संस्कृत के अनेक शब्द पालि, प्राकृत और अपभ्रंश से होते हुए हिंदी में आए हैं। इनमें कुछ शब्द तो ज्यों-के-त्यों अपने मूलरूप में हैं और कुछ देश-काल के प्रभाव के कारण विकृत हो गए हैं।

शब्द रचना की व्याख्या

हिंदी शब्दों की रचना मुख्यतः पांच प्रकार से होती है: जैसे;

उपसर्ग जोड़करअध + पका = अधपकाप्रत्यय जोड़करलड़ + आका = लड़ाकासमास द्वाराराजा + महल = राजमहलसंधि द्वारारवि + इंद्र = रवीन्द्रपुनरुक्ति या द्वरिरुक्ति द्वारागाँव-गाँव, लाल-लाल आदि.

अवश्य पढ़े,

  • अव्यय: परिभाषा, भेद, उदाहरण
  • काल (व्याकरण): काल की परिभाषा
  • वाच्य (Voice): परिभाषा, भेद, नियम और उदाहरण

व्युत्पत्ति की दृष्टि से शब्द के भेद

उत्पत्ति की दृष्टि से शब्दों के चार भेद हैं;

  • तत्सम शब्द
  • तद्भव शब्द
  • देशज शब्द
  • विदेशज शब्द

1. तत्सम शब्द की परिभाषा

किसी भाषा के मूलशब्द को ‘तत्सम’ कहते हैं। ‘तत्सम’ का अर्थ ही है- ‘उसके समान’ या ‘ज्यों-का-त्यों’ (तत्, तस्य-उसके–संस्कृत के, सम-समान)। यहाँ संस्कृत के उन तत्समों की सूची है, जो संस्कृत से होते हुए हिंदी में आए हैं

तत्समहिंदीतत्समहिंदीआम्रआमघोटकघोड़ाउष्ट्रऊँटशतसौत्वरिततुरत, तुरंतक्षीरखीरतिक्ततीतागोमल, गोमयगोबरचुल्लिःचूल्हासूचिसुईचंचुचोंचसपत्नीसौतचतुष्पादिकाचौकीपर्यकपलंगउद्वर्तनउबटनभक्तभातखर्परखपरा, खप्परसक्तुसत्तूशलाकासलाईहरिद्राहल्दी, हरदी

वैसे शब्द, जो संस्कृत और हिन्दी दोनों भाषाओं में समान रूप से प्रचलित हैं। अंतर केवल इतना है कि संस्कृत भाषा में वे अपने विभक्ति-चिह्नों हैं और हिन्दी में वे उनसे रहित होते है।

2. तद्भव शब्द

वैसे शब्द, जो तत्सम से विकास करके बने हैं। और कई रूपों में वे उनके (तत्सम के) समान नजर आते हैं। जैसे–

  • आम्र > आम
  • घोटक > घोड़ा
  • उष्ट्र > ऊँट
  • शलाका > सलाई

Note: तत्सम-तद्भव शब्दों की सूची दी गई है। इन्हें देखें और समझने की कोशिश करें कि इनमें समानता-असमानता क्या है?

तत्समतद्भवतत्समतद्भवकोकिलकोयलस्वश्रूसासअश्रुआँसूपौत्रपोताआम्रआमघटघड़ाग्रामगाँवशिक्षासिखगर्दभगदहाकाककागअग्निआगसुभागसुहागकर्णकानलोकलोगअंधअंधाकातरकायरचन्द्रचाँदगंभीरगहराक्षेत्रखेतश्रेष्ठीसेठचर्मकारचमारहास्यहँसीकाष्ठकाठस्नेहनेहउष्ट्रऊँटश्वशुरससुरकर्पूरकपूरबटबड़घृणाघिनधान्यधानउलूकउल्लूपत्रपत्ताघोटकघोड़ापौषपूसगोधूमगेहूँभल्लूकभालूइक्षुईखज्येष्ठजेठ

3. देशज शब्द

‘देशज’ वे शब्द हैं, जिनकी व्युत्पत्ति का पता नहीं चलता। ये अपने ही देश में बोलचाल से बने हैं, इसलिए इन्हें देशज कहते हैं। व्याकरण के विशेषज्ञों ने उन शब्दों को ‘देशी’ कहा है, जिनकी व्युत्पत्ति किसी संस्कृत धातु या व्याकरण के नियमों से नहीं हुई।

लोकभाषाओं में ऐसे शब्दों की अधिकता है; जैसे- छाती, बाप, बेटा, पिल्ला, तेंदुआ, चिड़िया, कटरा, अंटा, ठेठ, कटोरा, खिड़की, ठुमरी, खखरा, चसक, जूता, कलाई, फुनगी, खिचड़ी, पगड़ी, बियाना, लोटा, डिबिया, डोंगा, डाब इत्यादि.

इसे भी पढ़े,

  • क्रिया: परिभाषा, भेद, और उदाहरण
  • विशेषण: परिभाषा, भेद, नियम और उदाहरण
  • सर्वनाम: परिभाषा, भेद और उदाहरण

4. विदेशज शब्द

वैसे शब्द, जो न तो संस्कृत के है न ही हिंदी के है, यह अन्य विदेशी भाषाओं से हिंदी में आए है, इन्हें विदेशज शब्द कहते है।

इनमें फारसी, अरबी, तुर्की, अँगरेजी, पुर्तगाली और फ्रांसीसी भाषाएँ मुख्य हैं। अरबी, फारसी और तुर्की के शब्दों को हिंदी ने अपने उच्चारण के अनुरूप या अपभ्रंश रूप में ढाल लिया है। हिंदी में उनके कुछ हेर-फेर इस प्रकार हुए हैं:

1. शब्दों के अंतिम विसर्ग की जगह हिंदी में आकार की मात्रा लगाकर लिखा या बोला जाता है; जैसे – आईनः और कमीनः (फारसी) = आईना और कमीना (हिंदी) हैजः (अरबी) = हैजा (हिंदी), चम्चः (तुर्की) = चमचा (हिंदी) ।

2. शब्दों के अंतिम अनुनासिक आकार को ‘आन’ कर दिया जाता है; जैसे—दुकाँ (फारसी) = दुकान (हिंदी), ईमाँ (अरबी) = ईमान (हिंदी) ।

3. क़, ख़, ग़, फ़ जैसे नुक्तेदार उच्चारण और लिखावट को हिंदी में साधारणतया बेनुक्तेदार उच्चरित किया और लिखा जाता है; जैसे- क़ीमत (अरबी) = कीमत (हिंदी), ख़ूब (फारसी) = खूब (हिंदी), आग़ा (तुर्की) = आगा (हिंदी), फ़ैसला (अरबी) = फैसला (हिंदी) ।

4. शब्दों के अंतिम हकार की जगह हिंदी आकार की मात्रा कर दी जाती है; जैसे- अल्लाह (अरब) = अल्ला (हिंदी) ।

5. शब्दों के अंतिम आकार की मात्रा को हिंदी में हकार कर दिया जाता है; जैसे – परवा (फारसी) = परवाह (हिंदी) ।

6. बीच के आधे अक्षर को पूरा कर दिया जाता है; जैसे- अफसोस, गर्म, ज्ञह, किश्मिश, बेर्हम (फारसी)=अफसोस, गरम, जहर, किशमिश, बेरहम (हिंदी); तर्फ, नहू, कस्रत (अरबी) = तरफ, नहर, कसरत (हिंदी); चम्चः, तग्गा (तुर्की) = चमचा, तमगा (हिंदी)।

7. बीच के ‘इ’ को ‘य’ कर दिया जाता है, जैसे- काइदः (अरबी) = कायदा (हिंदी)।

8. बीच की मात्रा लुप्त कर दी जाती है; जैसे—आबोदानः (फारसी) = आबदाना (हिंदी); जवाहिर, मौसिम, वापिस (अरबी) = जवाहर, मौसम, वापस (हिंदी); चुगुल (तुर्की) = चुगल (हिंदी)।

9. बीच की ह्रस्व मात्रा को दीर्घ में, दीर्घ मात्रा को ह्रस्व में या गुण में, गुण मात्रा को ह्रस्व में और ह्रस्व मात्रा को गुण में बदल देने की परंपरा है; जैसे-खुराक (फारसी) खूराक (हिंदी) (ह्रस्व के स्थान में दीर्घ); आईनः (फारसी) = आइना (हिंदी) (दीर्घ के स्थान में ह्रस्व); उम्मीद (फारसी) = उम्मेद (हिंदी) (दीर्घ ‘ई’ के स्थान में गुण ‘ए): देहात (फारसी) = दिहात (हिंदी) (गुण ‘ए’ के स्थान में ‘इ), मुग़ल (तुर्की) = मोगल (हिंदी) (‘उ’ के स्थान गुण ‘ओ’) ।

10. बीच के आधे अक्षर को लुप्त कर दिया जाता जैसे- नश्शः (अरबी) = नशा (हिंदी)।

11. बीच में कोई ह्रस्व मात्रा (खासकर ‘इ’ की मात्रा) दे दी जाती है;।जैसे- आतशबाजी (फारसी) = आतिशबाजी (हिंदी); दुन्या, तक्यः (अरबी) = दुनिया, तकिया (हिंदी)।

12. अक्षर में सवर्गी परिवर्तन भी कर दिया जाता है; जैसे- बालाई (फारसी) = मलाई (हिंदी) (‘ब’ के स्थान में उसी वर्ग का वर्ण ‘म)।

फारसी शब्द

जिंदगी, जादू, जागीर, जान, आराम, आमदनी, आवारा, आफत, कुश्ता, किशमिश, कमरबंद, किनारा, कूचा, खाल, खुद, खामोश, खरगोश, खुश, अफसोस, आबदार, आबरू, आतिशबाजी, अदा, खुराक, खूब, गर्द, गज, गुम, गल्ला, गोला, गवाह, गिरफ्तार, गरम, गिरह, गुलूबंद, गुलाब, गुल, गोश्त, चाबुक, चादर, चिराग, चश्मा, चरखा, चूँकि, चेहरा, चाशनी, जंग, जहर, जीन, जोर, जबर, आवाज, आईना, उम्मीद, कद्द, कबूतर, कमीना, कुश्ती, पलक, पुल, पारा, पेशा, पैमाना, मुर्गा, मरहम, याद, यार, रंग, जुरमाना, जिगर, जोश, तरकश, तमाशा, सरदार, सरकार, सूद, सौदागार, तेज, तीर, दिल, दवा, नामर्द, नाव, नापसंद, पलंग, पैदावार, बेवा, बहरा, बेहूदा, बीमार, बेरहम, मादा, माशा, मलाई, मुर्दा, मजा, मलीदा, मुफ्त, वापिस, शादी, शोर, सितारा, सितार, सरासर, सुर्ख, मोर्चा, मीना रोगन, राह, लश्कर, लगाम, लेकिन, वर्ना, ताक, तबाह, तनख्वाह, ताजा, दीवार, देहात, दस्तूर, दुकान, दरबार, दंगल, दिलेर, हफ्ता, हजार इत्यादि

अरबी शब्द

किला, कसम, कीमत, कसरत, कुर्सी, किताब, कायदा, गरीब, गैर, जाहिल, जिस्म, जलसा, जनाब, जवाब, जहाज, दुनिया, दौलत, दान, दीन, नतीजा, नशा, नाल, नकद, अदा, अजब, अमीर, अजीब, अजायब, अदावत, तारीख, तकिया, तमाशा, तरफ, तै, तादाद, तरक्की, मुसाफिर, मशहूर, मजमून, मतलब, मानी, मात, यतीम, राय, लिहाज, लफ्ज, जालिम, जिक्र, जिहन, तमाम, तकाजा, मुहावरा, मदद, मुद्दई, मरजी, माल, मिसाल, लहजा, लिफाफा, लियाकत, लायक, दावत, दफ्तर, दगा, दुआ, दफा, दल्लाल, दुकान, वारिस, वहम, वकील, शराब, हिम्मत, हैजा, हिसाब, हरामी, हद, हज्जाम, हक, हुक्म, मुकदमा, मुल्क, मल्लाह, मवाद, मौसम, मौका, मौलवी, तजुरबा, दाखिल, दिमाग, दवा, हाजिर, हाल, हाशिया, हाकिम, हमला, हवालात, हौसला इत्यादि

तुर्की शब्द

चमचा, चुगुल, चकमक, बेगम, बहादुर, मुगल, कैंची, कुली, आगा, उर्दू, तलाश, लफंगा, कज्जाक, चेचक, जाजिम, तमगा, तोप, उजबक, कालीन, सौगात, सुराग, कुर्की, चिक, लाश, इत्यादि

अँगरेजी शब्द 

स्कूल, फीस, कोट, डॉक्टर, टीन, ग्लास, स्टेशन, स्लेट, इंच, मास्टर, डिग्री, फुट, ऑफिस, प्रेस, पेन, मीटर कलक्टर, रजिस्ट्री, नोटिस, फंड, कमिटी, बटन, कमीशन, स्टील, रेल, कंपनी, बॉक्स, कमर, खूब, जवान, अपील, क्रिकेट, काउंसिल,  कोर्ट, होल्डर, कॉलर, नंबर, नोटिस, नर्स, थर्मामीटर, दिसंबर, क्वार्टर, गार्ड, गजट, जेल, चेयरमैन, ट्यूशन, डायरी, डिप्टी, डिस्ट्रिक्ट बोर्ड, ड्राइवर, पेंसिल, पार्टी, प्लेट, पार्सल, फाउंटेन, ऑर्डर, पेट्रोल, इयरिंग, एजेंसी, कमीशन, कमिश्नर, पाउडर, प्रेस, मीटिंग, इत्यादि ।

पुर्तगाली शब्द

तंबाकू, आया, इस्पात, इस्तिरी, साया, सागू, गोभी, तौलिया, नीलाम, परात, कमीज, कनस्टर, पादरी, पिस्तौल, फर्मा, बुताम, मस्तूल, गोदाम, मेज, लबादा, कमरा, काजू, क्रिस्तान, गमला इत्यादि।

रचना अथवा बनावट के अनुसार शब्दों का वर्गीकरण

शब्दों अथवा वर्णों के मेल से नये शब्द बनाने की प्रक्रिया को ‘रचना या बनावट‘ कहते हैं। कई वर्गों को मिलाने से शब्द बनता है और शब्द के खंड को ‘शब्दांश‘ कहते हैं। जैसे – ‘राम’ में शब्द के दो खंड हैं— ‘रा’ और ‘म’। इन अलग-अलग शब्दांशों का कोई अर्थ नहीं है।

इसके विपरीत, कुछ ऐसे भी शब्द हैं, जिनके दोनों खंड सार्थक होते हैं; जैसे—विद्यालय। इस शब्द के दो अंश हैं— ‘विद्या’ और ‘आलय’। दोनों के अलग-अलग अर्थ हैं।

इस प्रकार, बनावट के विचार से शब्द के तीन प्रकार हैं—

  1. रूढ़ शब्द
  2. यौगिक शब्द
  3. योगरूढ़ शब्द

1. रूढ़ शब्द

वैसे शब्द, जो परम्परा से किसी विशेष अर्थ में प्रयुक्त होते है और जिनके खंडित रूप निरथर्क होते है। जैसे–  नाक, कान, पीला, झट, पर, कमल, धन, जग, मत, पुस्तक, नीला आदि। यहाँ प्रत्येक शब्द के खंड-जैसे, ‘ना’ और ‘क’, ‘का’ और ‘न’– अर्थहीन हैं।

2. यौगिक शब्द

ऐसे शब्द, जो दो शब्दों के मेल से बनते हैं और जिनके खंड सार्थक होते हैं, यौगिक कहलाते हैं। दो या दो से अधिक रूढ़ शब्दों के योग से यौगिक शब्द बनते हैं; जैसे—आग-बबूला, पीला-पन, दूध-वाला, छल-छंद, घुड़-सवार इत्यादि । । चूँकि ऐसे शब्द दो रूढ़ों के योग से बने होते हैं इसलिए इनके खंड सार्थक हुआ करते हैं। जैसे –

  • रसोई + घर = रसोईघर
  • पाठ + शाला = पाठशाला
  • दुर् + जन = दुर्जन 
  • निर् + जन = निर्जन
  • पानी + घाट = पनघट
  • बुद्धि + मान् = बुद्धिमान्
  • धन + वान् = धनवान्
  • फल + वाला = फलवाला

3. योगरूढ़ शब्द

ऐसे शब्द, जो यौगिक तो होते हैं, पर अर्थ के विचार से अपने सामान्य अर्थ को छोड़ किसी परंपरा से विशेष अर्थ के परिचायक हैं, योगरूढ़ कहलाते हैं। मतलब यह कि यौगिक शब्द जब अपने सामान्य अर्थ को छोड़ विशेष अर्थ बताने लगें, तब वे ‘योगरूढ़’ कहलाते हैं; जैसे- लंबोदर, पंकज, चक्रपाणि, जलज इत्यादि।

 ‘पंक + ज’  = पंकज (कमल के लिए प्रयुक्त)

पंक (कीचड़) में जन्म लेनेवाले कीड़े, जलीय पौधे, मच्छर, घोंघा, केंकड़ा हैं; परन्तु ‘पंकज’ केवल ‘कमल’ के लिए ही प्रयुक्त हुआ करता है।

FAQs: Shabd Rachna

Q. शब्द रचना कितने प्रकार के होते हैं?

रचना के आधार पर शब्दों के तीन भेद होते हैं:

  • रूढ़/मूल शब्द
  • यौगिक शब्द
  • योगरूढ़ शब्द

तथा उत्पत्ति के आधार पर शब्दों के चार भेद होते है;

  • तत्सम शब्द
  • तद्भव शब्द
  • देशज शब्द
  • विदेशज शब्द

Q. शब्दों की रचना कैसे होती है?

शब्दों की रचना उपसर्ग, प्रत्यय, समास, संधि आदि जोड़कर होती है. जैसे; श्रम+इक = श्रमिक, विधा+आलय = विद्यालय, श्रम+शील = श्रमशील आदि.

Q. शब्द रचना के प्रमुख तत्व कौन कौन से हैं?

शब्द रचना के प्रमुख तत्व निम्न प्रकार है:

  • उपसर्ग
  • प्रत्यय
  • समास
  • संधि, आदि.

उम्मीद है कि आपको Shabd Rachana यानि शब्द-रचना की परिभाषा, भेद और उदाहरण पसंद आए होंगे. यदि कोई संदेह हो तो कृपया हमें कमेंट अवश्य करे.

jikesh kumar

Hey, मैं Jikesh Kumar, Focusonlearn का Author & Founder हूँ. शिक्षा और शिक्षण शैली को सम्पूर्ण भारत में प्रसार के लिए हम अन्तःमन से कार्यरत है. शिक्षा एवं सरकारी योजना से सम्बंधित सभी आवश्यक जानकारी इस वेबसाइट के माध्यम से प्रदान किया जाता है जो शिक्षा और जागरूकता को बढ़ावा देने में सक्षम है.

शब्दों की रचना कैसे होती है?

वर्णों का ऐसा समूह जिसका निश्चित अर्थ होता है, उसे शब्द कहते हैं। वर्णों के मेल से बनी सार्थक ध्वनि 'शब्द' होती है। क + म + ल = कमल, यह शब्द है क्योंकि इसका अर्थ है।

शब्दों की रचना कितने प्रकार से की जाती है?

व्युत्पत्ति के आधार पर शब्दों के तीन भेद होते हैं। रूढ़ शब्द – ये ऐसे शब्द होते हैं जिनके हम खंड नहीं कर सकते हैं। यौगिक शब्द – ये शब्द दो या दो से अधिक शब्दों के मेल से बने होते हैं यौगिक शब्दों के खंड करके नए शब्द बनाए जा सकते हैं । योगरूढ़ शब्द – ये शब्द यौगिक तो होते हैं लेकिन अर्थ की दृष्टि से रूढ़ होते हैं।

शब्दों की रचना का आधार क्या है?

रचना के आधार पर शब्द के 'तीन' भेद हैं – रूढ़, यौगिक तथा योगरूढ़ शब्द। अतः विकल्प2 'तीन' सही है। जो शब्द हमेशा किसी विशेष अर्थ को प्रकट करते हो तथा जिनके खण्डों का कोई अर्थ न निकले, उन्हें 'रूढ़' कहते है। जैसे - नाक, कान, पीला, पर, झट आदि।

शब्द कितने प्रकार के होते हैं?

रचना के आधार पर शब्दों के तीन भेद होते हैं:.
रूढ़/मूल शब्द वे शब्द जिनके खंड करने पर कोई अर्थ न निकलता हो तथा जो पूर्ण रूप से स्वतंत्र होते हैं, रूढ़ शब्द कहलाते हैं। ... .
यौगिक शब्द दो अथवा दो से अधिक शब्दों के योग (मेल) से बनने वाले सार्थक शब्द, यौगिक शब्द कहलाते हैं। ... .
योगरूढ़ शब्द.

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