शतरंज के खिलाड़ी की कहानी का उद्देश्य क्या है? - shataranj ke khilaadee kee kahaanee ka uddeshy kya hai?

शतरंज के खिलाड़ी कहानी का उद्देश्य क्या है?

इसे सुनेंरोकेंशतरंज के खिलाड़ी भी तत्कालीन भारत की परिस्थतियों को चित्रित करती हुई, प्रेमचंद की एक सार्थक कहानी है, जिसमें एक तरफ प्रेमचंद ने विलासिता तथा अय्याशी में डूबे सुप्तप्राय जनजीवन को पुनः जागरूक होने का सन्देश दिया है और दूसरी तरफ रीतिकालीन साहित्य के, समाज से कटे हुए चरित्र का यथार्थवादी लेखन के रूप में एक विकल्प प्रस्तुत …

इसे सुनेंरोकेंशतरंज के खिलाड़ी की रचना प्रेमचन्द ने 1924 में की थी, जिसमें वाजिद अली शाह के शासनकाल की परिस्थितियों के यथार्थ का चित्रण है। कहानी में राजा और प्रजा सभी बटेर-तीतर लड़ाने, चौसर और शतरंज खेलने, अफ़ीम तथा गाँजा पीने में व्यस्त दिखाए गए हैं। प्रजा की आर्थिक स्थिति दयनीय थी।

शतरंज के खिलाड़ी में अमीर और मिर्जा का दुखद अंत क्यों हुआ?

इसे सुनेंरोकेंएक दिन की घटना है- मिरजा सज्जाद अली की बीवी बीमार हो जाती हैं। वह बार-बार नौकर को भेजती हैं कि मिरज़ा हकीम के यहाँ से कोई दवा लायें, कितु मिरज़ा तो शतरंज में डूबे हुए हैं। हर घड़ी उन्हें लगता है कि बस अगली बाजी उनकी है। अंत में तंग आकर मिरज़ा की बेगम उन दोनों को खरी-खोटी सुनाती हैं।

शतरंज के खिलाड़ी कहानी में शतरंज कौन खेल रहे हैं?

इसे सुनेंरोकेंडर था कि कही किसी बादशाही मुलाजिम की निगाह न पड़ जाय, नही तो बेगार में पकड़े जायँ हजारो रूपये सालाना की जागीर मुफ्त में ही हजम करना चाहते थे। एक दिन दोनो मित्र मस्जिद के खंडहर में बैठे हुए शतरंज खेल रहे थे। मिर्जा की बाजी कुछ कमजोर थी। मीर साहब को किश्त पर किश्त दे रहे थे।

मुंशी प्रेमचंद शतरंज के खिलाड़ी के माध्यम से क्या संदेश देना चाहते हैं?

इसे सुनेंरोकेंयहां तक कि फकीरों को पैसे मिलते तो वे रोटियां न लेकर अफीम खाते या मदक पीते. शतरंज, ताश, गंजीफ़ा खेलने से बुद्धि तीव्र होती है, विचार-शक्ति का विकास होता है, पेंचीदा मसलों को सुलझाने की आदत पड़ती है. ए दलीलें ज़ोरों के साथ पेश की जाती थीं (इस सम्प्रदाय के लोगों से दुनिया अब भी ख़ाली नहीं है).

शतरंज में कितने खिलाड़ी होते हैं?

इसे सुनेंरोकेंशतरंज एक चौपाट (बोर्ड) के ऊपर दो व्यक्तियों के लिये बना खेल है। चौपाट के ऊपर कुल ६४ खाने या वर्ग होते है, जिसमें ३२ चौरस काले या अन्य रंग ओर ३२ चौरस सफेद या अन्य रंग के होते है। खेलने वाले दोनों खिलाड़ी भी सामान्यतः काला और सफेद कहलाते हैं।

शतरंज के खिलाड़ी के मुख्य पात्र का नाम क्या था?

इसे सुनेंरोकेंसाहब मजबूर होकर अंदर गए तो बेगम साहबा ने त्योरियाँ बदलकर, लेकिन कराहते हुए कहा-तुम्हें निगोड़ी शतरंज इतनी प्यारी है। चाहे कोई मर ही जाय, पर उठने का नाम नहीं लेते। नौज, कोई तुम जैसा आदमी हो। मिरज़ा-क्या कहूँ, मीर साहब मानते ही न थे।

शतरंज जिस खेल पर आधारित है वह कहाँ से आया है?

इसे सुनेंरोकेंमाना जाता है कि शतरंज के खेल का आविष्कार भारत में होने के बाद यह पारसी देशों में प्रचलित हुआ, इसके बाद पूरे विश्व में पहुंचा। भारत में शतरंज खेलने की शुरुआत भी पांचवी-छठी शताब्दी के समय से मानी जाती है।

किसी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर आधारित कहानी को गहराई से समझने के लिए, उसके देशकालवातावरणऔर उद्देश्य से अवगत होना आवश्यक है। शतरंज के खिलाड़ी महान उपन्यासकार प्रेमचन्द की वाजिद अली शाह के शासनकाल को चित्रित करती हुई एक उत्कृष्ट रचना है।

वाजिद अली शाह लखनऊ और अवध के नवाब थे जिनका शासनकाल सन 1847 से 1856 तक रहा। इसी समय अंग्रेजों ने भी भारत में शासन किया। यह हिन्दी साहित्य के इतिहास का आधुनिक काल था जिसके पूर्व रीतिकाल  में साहित्य रचना राजदरबारों तक सीमित हो गई थी। इस समय कवियों को राज दरबारों में आश्रय प्राप्त था जो राजाओं की चाटुकारिता में कविताएं लिखते थे। रीतिकाल के बाद हिन्दी साहित्य के आधुनिक काल में खड़ी बोली गद्य का आविर्भाव हुआ। इस समय के प्रमुख लेखकों में प्रेमचन्द ने सर्वप्रथम यथार्थवाद को अपने उपन्यासों और कहानियों में स्थान दिया। उनका यथार्थवाद तत्कालीन राजनीतिकसामाजिकआर्थिक परिस्थितियों से प्रभावित था।

प्रेमचन्द का जन्म अंग्रेजों के शासनकाल में सन 1880 में हुआ तथा मृत्यु 1936 में हुई। यह एक सामन्तवादी युग था, जिसे अंग्रेजों का प्रश्रय मिला हुआ था। इसके पूर्व  भक्तिकाल में जातिपाँतिछूआछूतऊँचनीचआडम्बरकर्मफ़ल आदि सामन्तवादी बुराईयों को समाप्त करने के लिए जो आन्दोलन चला था वह ब्रिटिशराज में अंग्रेजों के सामन्तवाद के साथ अपने लाभ हेतु समझौता करने के कारण कमजोर पड़ गया। अंग्रेजों ने पूँजीवादी  व्यवस्था को जन्म दिया, जिसने भारत के उद्योग, धंधों तथा कृषि को अत्यन्त हानि पहुँचाई।

शतरंज के खिलाड़ी कहानी में प्रेमचन्द ने इसी सामन्तवादी व्यवस्था पर प्रहार किया है। प्रेमचन्द के समय 19वीं सदी के सामाजिक-सांस्कृतिक सुधार के आन्दोलन के रूप में भारतीय नवजागरण का उदय हो रहा था लेकिन ब्रिटिश राज को सामन्तवादी शक्तियों के साथ चलने में ही लाभ दिखाई दिया। इसलिए सामन्तवादी व्यवस्था की समाप्ति के प्रयत्न तथा नवजागरण का आन्दोलन कमजोर पड़ गया। अंग्रेजों के शासनकाल में  भारतीय शासक सामन्तवादी व्यवस्था के चलते विलासिता और अय्याशी में डूबे रहते थे। जनता में भी निष्क्रियता छाई हुई थी।

शतरंज के खिलाड़ी की रचना प्रेमचन्द ने 1924 में की थी, जिसमें  वाजिद अली शाह के शासनकाल की परिस्थितियों के यथार्थ का चित्रण  है। कहानी में राजा और प्रजा सभी बटेर-तीतर लड़ाने, चौसर और शतरंज खेलने, अफ़ीम तथा गाँजा पीने  में व्यस्त दिखाए गए हैं। प्रजा की आर्थिक स्थिति दयनीय थी। प्रेमचंद ने कहानी में एक स्थान पर लिखा है, “राज्य में हाहाकार मचा हुआ था. प्रजा दिन दहाड़े लूटी जाती थी। कोई फ़रियाद सुनने वाला न था। देहातों की सारी दौलत लखनऊ खिंची चली जाती थी। … देश में सुव्यवस्था न होने के कारण वार्षिक कर भी न वसूल होता था।” अवध सामाजिक, आर्थिक तथा  राजनीतिक सभी  प्रकार से  दयनीय स्थिति में था। जैसा कि प्रेमचंद ने लिखा है,“शासन विभाग में, साहित्य क्षेत्र में, सामाजिक व्यवस्था में, कला कौशल में, उद्योग धंधों में, आहार-विहार में, सर्वत्र विलासिता व्याप्त हो रही थी।”

कहानी के दो प्रमुख पात्र मिर्जा सज्जाद अली और मीर रौशन अली को, जो सांकेतिक रूप से अवध के सामंतवादी कुशासन का प्रतिनिधित्व करते हैं, शतरंज खेलने की लत है। घर-परिवार से उन्हें कोई मतलब नहीं है। जागीरदार होने के कारण दोनों के पास धन की कमी नहीं है, इसलिए उनका जीवन बिना कुछ उद्योग किए आराम से शतरंज की बाजियों में डूबा हुआ है। दिन-रात मिर्जा के घर पर शतरंज होने के कारण उनकी पत्नी के गुस्सा होने पर मीर साहब कहते है-“ बड़ी गुस्सेवर मालूम होती है। मगर आपने उन्हें यों सिर पर चढ़ा रखा है यह मुनासिब नहीं। उन्हें इससे क्या मतलब कि आप बाहर क्या करते हैं। घर का इंतजाम करना उनका काम है, दूसरी बातों से उन्हें क्या सरोकार।”

प्रेमचन्द ने यहाँ पुरूषों की स्त्रियों के प्रति सामन्तवादी मानसिकता पर भी कटाक्ष किया है। जब तक उनकी बेगम परेशान होते हुए भी दोनों की आवभगत करती रही, तब तक दोनों खुश रहते हैं। एक दिन अपनी परेशानी को व्यक्त करने पर उनके व्यवहार पर टीका-टिप्प्णी होने लगी और उनका दायरा घर तक सीमित रहने का भी संकेत दे दिया गया।

राजनीतिक उहापोह के बीच भी मिर्ज़ा और मीर का शतरंज का खेल उसी प्रकार चलता रहा, फिर चाहे उन्हें अपनी बिसात घर से दूर वीराने में एक मस्जिद के पास ही क्यों ना लगानी पड़ी हो। इस दौरान वाजिद अली शाह को अपना सिंहासन छोड़ना पड़ा और अवध का शासन ब्रिटिश के हाथों में चला गया पर इन दोनों पात्रों की शतरंज की लत पर कोई असर नहीं पड़ा। अंत में इसी लत ने दोनों मित्रों की आपसी लड़ाई में जान भी ले ली।

कबीर, नानक, रैदास, दादूदयाल, सुन्दरदास, तथा मलूकदास आदि सन्त कवियों ने जाति-पाँति का भेद, आडम्बर, रूढ़ियों के विरोध में भक्तिकाल में जनमानस को जागरूक करने के लिए काव्य रचना की, जिसका प्रभाव जनमानस पर पड़ा परन्तु इसके बाद रीतिकाल में काव्य रचना ने जनजीवन को जागरूक करने की अपेक्षा  दरबारी संस्कृति का रूप ले लिया। केशवदास, बिहारी, मतिराम, भूषण, चिन्तामणि आदि रीतिकाल के प्रमुख कवि हैं। इस काल में श्रांगारिक और संस्कृतनिष्ठ काव्य रचना प्रारम्भ हो गई। कवि राजाओं के आश्रय में रहते थे और उन्हीं की प्रशंसा और मनोरंजन के लिए लिखते थे। राजदरबार और प्रजा में  आमोद-प्रमोद, मद्यपान और विलासिता का  वातावरण व्याप्त था और साहित्य समाजसुधार की भावनाओं से विमुख हो गया था।

प्रेमचंद के साहित्य में कथा-शिल्प और कथा-वस्तु, दोनों ही में  समाज और साहित्य की इस बिगड़ती हुई परिस्थिति का प्रभाव दिखता है। इस समय सहित्य की गद्य विधा प्रारम्भ होने से  बात को विस्तृत रूप से प्रस्तुत करने की संभावना अधिक हो गई थी । प्रेमचंद ने साहित्य  की दिशा को  परिवर्तित  कर यथार्थवाद  का रूप दिया, जिसमें उन्होंने समग्रता से देश के सम्पूर्ण यथार्थ का चित्रण किया। शतरंज के खिलाड़ी भी तत्कालीन भारत की परिस्थतियों को  चित्रित करती हुई, प्रेमचंद की एक सार्थक कहानी है, जिसमें एक तरफ प्रेमचंद ने विलासिता तथा अय्याशी में डूबे  सुप्तप्राय जनजीवन को पुनः जागरूक होने का सन्देश दिया है और दूसरी तरफ रीतिकालीन साहित्य के, समाज से कटे हुए चरित्र का यथार्थवादी लेखन के रूप में एक विकल्प प्रस्तुत करने की चेष्टा भी की है।

अमिता चतुर्वेदी एक स्वतंत्र लेखिका हैं। यह लेख मूलत : उनके ब्लॉग अपना परिचय पर प्रकाशित हुआ था जिसे उनकी स्वीकृति के बाद यहाँ प्रकाशित किया गया है।

शतरंज के खिलाड़ी कहानी का क्या उद्देश्य है?

शतरंज के खिलाड़ी भी तत्कालीन भारत की परिस्थतियों को चित्रित करती हुई, प्रेमचंद की एक सार्थक कहानी है, जिसमें एक तरफ प्रेमचंद ने विलासिता तथा अय्याशी में डूबे सुप्तप्राय जनजीवन को पुनः जागरूक होने का सन्देश दिया है और दूसरी तरफ रीतिकालीन साहित्य के, समाज से कटे हुए चरित्र का यथार्थवादी लेखन के रूप में एक विकल्प प्रस्तुत ...

शतरंज के खिलाड़ी का लक्ष्य क्या था?

खेल का लक्ष्य शह और मात होता है अर्थात विरोधी खिलाड़ी के बादशाह को अपरिहार्य रूप से बंदी बना लेना होता है। यह आवश्यक नहीं कि खेल शह देकर मात की स्थिति में ही खत्म हो, बल्कि खिलाड़ी प्राय:, अपनी हार में यकीन हो जाने पर हार मान कर खेल छोड़ भी सकता है।

मुंशी प्रेमचंद शतरंज के खिलाड़ी के माध्यम से क्या संदेश देना चाहते हैं?

यहां तक कि फकीरों को पैसे मिलते तो वे रोटियां न लेकर अफीम खाते या मदक पीते. शतरंज, ताश, गंजीफ़ा खेलने से बुद्धि तीव्र होती है, विचार-शक्ति का विकास होता है, पेंचीदा मसलों को सुलझाने की आदत पड़ती है. ए दलीलें ज़ोरों के साथ पेश की जाती थीं (इस सम्प्रदाय के लोगों से दुनिया अब भी ख़ाली नहीं है).

शतरंज के खिलाड़ी कहानी के मुख्य पात्र कितने है?

इस कहानी के प्रमुख पात्र हैं - मिरज़ा सज्जाद अली और मीर रौशन अली।

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