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Rajasthan Board RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 7 मैथिलीशरण गुप्तRBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 7 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तरRBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 7 वस्तुनिष्ठ प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 7 अतिलघु उत्तरात्मक प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 7 लघु उत्तरात्मक प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 7 निबन्धात्मक प्रश्न प्रश्न 1. इससे उसका नि:स्वार्थ प्रेम प्रगट होता है। यशोधरा की आत्मग्लानि तथा वेदना भी इस अंश में व्यक्त हुई है। उसके पति बिना उससे कुछ भी कहे चोरी-चोरी घर से चले गए। हैं, यह बात उसके संताप को बढ़ाने वाली है। उसने तो पति की प्रत्येक बात को माना था फिर ऐसा कारण क्या रहा कि उन्होंने उसकी उपेक्षा की। यह सोचकर यशोधरा-ग्लानि से भर उठती है तथा दु:ख के सागर में डूब जाती है। यशोधरा आशावादी है। उसको अपने पति की लक्ष्य-सिद्धि में पूर्ण विश्वास है। वह जानती है कि उसके पति से उसका पुनर्मिलन अवश्य होगा। जब वह आयेंगे तो उनकी अनुपम उपलब्धियाँ भी उनके साथ होंगी। इस प्रकार इस अंश में यशोधरा का पति से प्रेम, पति- भक्ति, आशावाद, आत्मग्लानि, क्षोभ तथा विरह, संताप आदि व्यक्त हुए हैं। प्रश्न 2. मातृभूमि के प्रति श्रद्धा भाव – गुप्त जी में मातृभूमि के प्रति अपूर्व श्रद्धा का भाव है। स्वदेश में उनको सर्वेश की साकार मूर्ति दिखाई देती है। करते अभिषेक प्रमोद हैं बलिहारी इस देश की। संकीर्णता विरोधी – गुप्त जी संकीर्ण विचारों तथा भावनाओं को राष्ट्र के लिए हितकर नहीं मानते। उनके काव्य में संकीर्णता का । विरोध मिलता है। वह धर्म, सम्प्रदाय, प्रदेश आदि का भेद नहीं मानते। उनकी एकता से ही राष्ट्र की एकता को वह सम्भव मानते हैं। गौरवमय अतीत – भारत के निवासी आर्य हैं, जिन्होंने विश्व को सभ्य और सुसंस्कृत बनाया है। अतीत पर गर्व का भाव भी गुप्त जी की राष्ट्रीय भावना का पोषक है यह पुण्यभूमि प्रसिद्ध है इसके निवासी आर्य हैं। राष्ट्र के प्रति समर्पण – गुप्त जी राष्ट्र के प्रति सम्पूर्ण समर्पण के प्रचारक हैं। राष्ट्र के लिए सर्वस्व त्यागने की भावना उनके काव्य में मिलती है जिएँ तो सदा इसी के लिए, यही उल्लास रहे यह हर्ष। प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्राचीन भारत सुसंस्कृत और सभ्य तो था ही वह सम्पन्न भी था। यहाँ धन-धान्य का भण्डार था। लोग सुखी और समृद्ध थे। इस . कारण अनेक बर्बर जातियों की लूट-खसोट तथा हिंसा का सामना भारत को करना पड़ा था। प्राचीन भारत के निवासी सुसंस्कृत, सभ्य तथा शिक्षित थे, वे परोपकारी, दानी, स्नेही तथा सेवाभावी थे। इस प्रकार भारत का अतीत अत्यन्त गौरवपूर्ण था। प्रश्न 5. RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 7 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तरRBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 7 वस्तुनिष्ठ प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 7 अतिलघु उत्तरात्मक प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. प्रश्न 18. प्रश्न 19. प्रश्न 20. RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 7 लघु उत्तरात्मक प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4.
प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 7 निबन्धात्मक प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. जिसको न निज गौरव तथा निज देश पर अभिमान है। मानवतावाद की स्थापना गुप्त जी के साथ की अन्य विशेषता है। यह भी नवजागरण का एक लक्षण है। कवि का कहना है वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे’। समाज में प्रचलित बुराइयों को मिटाकर मनुष्य-मुनष्य के बीच के भेद-भाव मिटाकर तथा समाज में उच्चादर्शों और प्रेम का प्रसार, करके ही इस संसार को उन्नत बनाया जा सकता है। ‘साकेत’ में गुप्त जी के राम कहते हैं संदेश यहाँ मैं नहीं स्वर्ग का लाया। प्रश्न 3. यशोधरा अपने मन की पीड़ा को अपनी सखी से बताती है उसके पति उसको छोड़कर सिद्धि पाने गए हैं। यह जानकर उसका मन गर्व से भर उठता है किन्तु उनका चोरी-चोरी उसको बिना बताए चले जाना उसको बहुत पीड़ा पहुँचा रहा है। यदि वे उससे कहकर जाते। तो क्या वह उनको जाने से रोकती, उसने तो सदैव वही काम किया जो उसके पति को अच्छा लगता था। उनकी अवज्ञा करने का तो वह विचार भी नहीं कर सकती थी। ऐसा लगता है कि उसको बहुत मान देकर भी उसके पति उसके मन को पढ़ नहीं पाये, अन्यथा वह चुपके-चुपके नहीं जाते। वह क्षत्राणी है। क्षत्रिय-नारियाँ अपने पति को युद्ध के लिए प्रसन्नता के साथ विदा करती हैं, फिर वह उनको सिद्धि हेतु जाने से क्यों रोकती। उसका दुर्भाग्य है कि किसी श्रेष्ठ लक्ष्य को पाने के लिए घर से जाने वाले अपने पति को वह खुशी-खुशी विदा भी नहीं कर सकी। यशोधरा को आशा है कि उसके पति सिद्धि प्राप्त करने में सफल होंगे, उसके पश्चात् वह लौटेंगे और यशोधरा को उनसे मिलने का अवसर मिलेगा। वह आयेंगे तो सिद्ध पाने के गौरव से सुशोभित होंगे। यह यशोधरा के लिए भी आनन्ददायक होगा। ‘यशोधरा’ काव्यांश में हम देखते हैं कि उसके मन की ग्लानि, वेदना, विरह-पीड़ा, आत्मसंतोष तथा आशा की भावना आदि का भव्य चित्रण हुआ है। प्रश्न 4. कवि – परिचय : प्रश्न 1. साहित्यिक परिचय – गुप्त जी द्विवेदी युग के सर्वाधिक लोकप्रिय कवि थे। आपकी रचनाओं में राष्ट्रीयता, स्वदेश प्रेम तथा भारतीय संस्कृति का वर्णन मिलता है। गुप्त जी ने भारत के अतीत कालीन गौरव का भव्य चित्रण किया है। किन्तु वह युग के परिवर्तन के विरोधी नहीं हैं। उनके काव्य में धर्मान्धता तथा साम्प्रदायिकता के विरोध तथा राष्ट्रीय एकता की प्रबल भावना मिलती है। द्विवेदी जी की प्रेरणा से आपने खड़ी बोली में काव्य रचना करके उसको काव्ये- भाषा के रूप में प्रतिष्ठित किया है। युग के अनुरूप प्राचीन पौराणिक कथाओं तथा पात्रों को आपने नवीन स्वरूप प्रदान किया है। उर्मिला, कैकयी, यशोधरा आदि नारी पात्रों पर युगीन प्रभाव स्पष्ट देखा जा सकता है। उनका चरित्र मनोवैज्ञानिक आधार पर चित्रित किया गया है। आपको हिन्दी साहित्य सम्मेलन से साहित्य वाचस्पति की उपाधि प्राप्त हुई। आपके महाकाव्य ‘साकेत’ पर आपको ‘मंगला प्रसाद’ पुरस्कार प्राप्त हो चुका है। गुप्त जी के काव्य में राष्ट्रीयता की भावना प्रमुख रूप में पाई जाती है। उसमें प्रकृति के सौन्दर्य का भव्य चित्रण भी मिलता है। आपने सामाजिक, पौराणिक तथा ऐतिहासिक विषयों को एक नवीन दृष्टि से देखा है। गुप्त जी की भाषा सरल-सरस तथा साहित्यिक खड़ी बोली है। उसमें लाक्षणिकता है। उनकी शैली वर्णनात्मक तथा इतिवृत्तात्मक है। उसमें आलंकारिकता तथा उक्ति वैचित्र्य है। आपने प्राचीन छन्दों में भी रचना की है। अनुप्रास, श्लेष, उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा आदि आपके प्रिय अलंकार हैं। कृतियाँ – 64 वर्ष की साहित्य सेवा में गुप्त जी ने लगभग 42 रचनाएँ हिन्दी को भेंट की हैं। कुछ प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं – पाठ – परिचय : यशोधरा – प्रस्तुत काव्यांश यशोधरा मैथिलीशरण गुप्त के प्रसिद्ध खण्डकाव्य ‘यशोधरा’ से संकलित है। कवि ने इसमें गीति शैली को अपनाकर गौतम बुद्ध की पत्नी यशोधरा की मनोभावना को प्रस्तुत किया है। गौतम बुद्ध अपनी-पत्नी यशोधरा तथा पुत्र राहुल को सोता हुआ छोड़कर घर से चले गए हैं। प्रात:काल उनको न पाकर यशोधरी अत्यन्त दु:खी होती है। वह अपनी सखी को सम्बोधित करके कहती है कि हे सखि, उनको मुझसे कहकर गृह त्याग करना चाहिए था। मैं उनको जाने से नहीं रोकती। वह संसार के हित के लिए सिद्धि पाने गए हैं, यह बात गौरवपूर्ण है परन्तु उनको चोरी-चोरी जाना मुझे दु:ख दे रहा है। वह मुझे पहचान ही नहीं सके मैं तो सदा उनके मन के अनुकूल चलती थी। मैं क्षत्रिय नारी हूँ, जो अपने पति को अपने हाथों से सजाकर युद्ध भूमि में भेजती हैं। दुर्भाग्य से मुझे यह अवसर भी नहीं मिला। वह मुझे अपने विरह से पीड़ित नहीं देख सकते थे। अत: तरस खाकर चुपचाप चले गए हैं। उनसे मुझे कोई शिकायत नहीं है। वे सफल हों और सुखी रहें, मेरी यही कामना है। अब वह मुझको पहले से भी अधिक प्रिय लग रहे हैं। मुझे विश्वास है कि वह अपूर्व उपलब्धियाँ पाकर पुनः आयेंगे और मेरा उनसे पुनः मिलन होगा। भारत की श्रेष्ठता – ‘भारत की श्रेष्ठता काव्यांश राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त के प्रसिद्ध काव्य ‘भारत – भारती’ से लिया गया है। ‘भारत-भारती’ गुप्त जी की राष्ट्रीय भावों से पूर्ण रचना है। भारत ऋषि-मुनियों की पावन-भूमि है। इसका प्राकृतिक सौन्दर्य अनुपम है। भारतवर्ष संसार के समस्त देशों का सिरमौर है। यह विश्व का सबसे पुराना देश है। ईश्वर ने इसी भूमि पर सृष्टि का शुभारम्भ किया है। इस पावन भूमि के निवासी आर्य विविध कलाओं तथा विधा में पारंगत थे, उनकी सन्तान आज पतित हो रही है। किन्तु उनकी श्रेष्ठता के लक्षण अभी भी विद्यमान हैं। पद्यांशों की सन्दर्भ एवं प्रसंग सहित व्याख्याएँ यशोधरा 1. सिद्धि-हेतु स्वामी गये, यह गौरव की बात, शब्दार्थ – सिद्ध-हेतु = सफलता पाने के लिए। व्याघात = चोट, पीड़ा। सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक से संकलित ‘यशोधरा’ शीर्षक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता राष्ट्र-कवि मैथिलीशरण गुप्त हैं। सिद्धार्थ अपनी पत्नी यशोधरा तथा पुत्र राहुल को रात में सोता छोड़कर चुपचाप तपस्या करने के लिए घर से चले गए है। उनका इस प्रकार जाना यशोधरा को बहुत पीड़ा देता है। वह अपने कष्ट की बात अपनी सहेली को बता रही है। व्याख्या – यशोधरा कहती है-हे सखि, मेरे पति तपस्या में सफलता पाने के लिए मुझे छोड़कर चले गए हैं। यह बात मुझे गौरव प्रदान करने वाली है, किन्तु वह मुझको बिना बताये चुपचाप चले गए, यह बात मुझे अत्यन्त चोट पहुँचा रही है। हे सखि, यदि वे मुझसे बताकर जाते तो मुझे इतना कष्ट न होता । तू ही बता, यदि वे मुझको बता देते तो क्या उनको सिद्धि के लिए जाने से रोकती ? मैं जानती । हैं कि उन्होंने मुझको बहुत माना है, किन्तु तब भी वह मुझे पूरी तरह पहचान नहीं पाए। मैंने कभी उनकी उपेक्षा नहीं की। जो बात उनको ठीक लगती थी, मैंने सदैव उसको ही अपनाया तथा महत्वपूर्ण माना। परन्तु वह मुझको बिना बताए ही चले गए। यदि वे मुझसे कहकर जाते तो मुझे इतनी पीड़ा न होती। विशेष –
2. स्वयं सुसज्जित करके क्षण में, शब्दार्थ – प्राणों का पण = जीवन का बाजार अर्थात् युद्ध भूमि। रण = युद्ध। क्षात्र-धर्म = क्षत्रिय का कर्तव्य। सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित “यशोधरा’ शीर्षक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त हैं। यशोधरा को पीड़ा इस बात की है कि उसके पति सिद्धार्थ ने उसको गृह-त्याग के सम्बन्ध में कुछ भी नहीं बताया । यदि वह उसको बताकर जाते तो वह उनको जाने के लिए स्वयं ही कह देती। व्याख्या – यशोधरा ने अपनी सखी से कहा-हम क्षत्राणियाँ हैं। जब स्वदेश की रक्षा के लिए युद्ध का आह्वान होता है, तो हम स्वयं अपने प्रिय पतियों को अस्त्र-शस्त्र से सजाकर युद्ध भूमि के लिए विदा करती हैं। उसमें थोड़ा भी विलम्ब नहीं होता। युद्ध भूमि में प्राणों का बाजार सजा होता है। किन्तु हम क्षत्रिय नारियों का जो कर्तव्य है, उसके पालन में देर नहीं करर्ती। काश ! वह मुझसे कहकर जाते। मुझे उन्होंने यह सौभाग्य भी प्रदान नहीं किया। मुझे तो अपने क्षत्राणी-धर्म के पालन करने पर गर्व करने की अवस्था भी प्राप्त नहीं हुई। कभी जिसने मुझे अपनी अर्धांगिनी के रूप में अपनाया था, अब उसने ही मुझको त्याग दिया है। अब तो मेरी यही कामना है कि वह मुझको याद आते रहें। हे सखि, यदि वे मुझसे बताकर जाते तो मुझे इतना दु:ख न होता। विशेष –
3. नयन उन्हें हैं निष्ठुर कहते, शब्दार्थ – निष्ठुर = दयाहीन, निर्दय। सदय = दयालु। सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित ‘यशोधरा’ शीर्षक कविता से उधृत है। इसके रचयिता मैथिलीशरण गुप्त हैं। यशोधरा के पति सिद्धार्थ गृह त्याग कर चले गए हैं। इससे दुःखी यशोधरा अपनी सखी से अपने संताप की चर्चा कर रही है। अपने पति को उसको बिना बताए चुपचाप चले जाना आहत कर रहा है। व्याख्या – यशोधरा कहती है-हे सखि, मेरे नेत्र कहते हैं कि मेरे पति निर्दय हैं तभी तो वह बिना बताए चुपचाप चले गए हैं। किन्तु यह बात सच नहीं है वह अत्यन्त दयालु हैं। यदि वह मुझे बताकर घर से जाते तो मेरी आँखों से दु:ख के कारण आँसू बहने लगते। उन आँसुओं को दयालु हृदय वाले मेरे वह प्रियतम सहन नहीं कर पाते। मुझ पर तरस खाकर ही उन्होंने मझे कुछ नहीं बताया और वह चुपचाप चले गए। काश ! वह मुझ से कहकर वन के लिए प्रस्थान करते। विशेष –
4. जाएँ, सिद्ध पावें वे सुख से, शब्दार्थ – सिद्धि = सफलता। इस जन = यशोधरा। उपालम्भ = उलाहना। भाते = अच्छे लगते हैं। व्याख्या – यशोधरा कहती है-हे सखि, मेरे पति चले जाएँ, मैं उनको नहीं रोकेंगी। वह सुख पावें और अपने लक्ष्य को पाने में सफल हों वह मेरे बारे में सोचकर अपने मन में दुःखी नहीं हों। मैं उनसे कोई उलाहना नहीं दे रही। मुझे तो आज वह पहले से भी अधिक प्रिय लगते हैं, अच्छा होता वह मुझसे कहकर जाते। वह चले तो गए हैं, किन्तु मुझे विश्वास है कि वह पुनः आयेंगे। जब वह आयेंगे तो अपने साथ अपनी अनोखी उपलब्धि, अपनी सिद्धि भी लायेंगे। आज मैं उनके विरह में आँसू बहा रही हैं किन्तु उनसे मिलकर मेरा कष्ट मिट जायेगा और मैं गा-गाकर उनका स्वागत-सत्कार करूंगी। हे सखि, यदि वह मुझसे कहकर जाते तो कितना अच्छा होता । विशेष –
1. भू-लोक का गौरव, प्रकृति का पुण्य लीला स्थल कहाँ ? शब्दार्थ – भू-लोक = धरती । पुण्य = पवित्र। लीलास्थल = क्रीड़ाभूमि। गिरि = पर्वत । उत्कर्ष = उत्थान। सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित “भारत की श्रेष्ठता’ शीर्षक कविता से लिया गया है। इसके रचयिता राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त हैं। गुप्त जी ने भारत के गौरवशाली अतीत का वर्णन करते हुए उसे संसार का सर्वश्रेष्ठ देश बताया है। भारत का प्राकृतिक सौन्दर्य अनुपम है। व्याख्या – कवि पूछता है कि इस पृथ्वी का गौरव कौन-सा देश है? प्रकृति की पवित्र क्रीड़ा भूमि कौन-सी है। सुन्दर पर्वत हिमालय कहाँ स्थित है तथा गंगा कहाँ प्रवाहित होती है ? वह कौन-सा देश है। जो संसार के सभी देशों में सर्वाधिक उन्नत है ? ऋषि-मुनियों का पावन स्थल कौन-सा है ? कवि स्वयं उत्तर देता है कि उस देश को भारतवर्ष कहते हैं। विशेष –
2. हाँ, वृद्ध भारतवर्ष ही संसार का सिरमौर है, शब्दार्थ – वृद्ध = बूढ़ा, प्राचीन । सिरमौर = सर्वश्रेष्ठ, सर्वोच्च । पुरातन = पुराना। और = अन्य, दूसरा। भव-भूति = सांसारिक वैभव । भण्डार = संग्रह। विधि = ब्रह्मा । नर-सृष्टि = जीवों का जन्म।। व्याख्या – कवि कहता है कि भारत संसार का प्रसिद्ध पावन स्थल है। इस देश के रहने वाले आर्य कहलाते हैं। आर्य श्रेष्ठ मनुष्य को कहते हैं। वे महान् विद्वान थे तथा अनेक विधाओं और कलाओं के शिक्षक थे। सर्वप्रथम उन्होंने ही संसार को सुशिक्षित बनाया था तथा कला-कौशल की शिक्षा दी थी। हम उन्हीं आर्यों की संतान हैं। यद्यपि आज हमारा पतन हो गया, किन्तु अब भी उनकी श्रेष्ठता और ऊँचेपन की अनेक पहचान संसार में बाकी हैं। तू तो मुझसे भी अभागा है के लेखक कौन है *?
सखि वे मुझसे कहकर जाते किसका कथन है?सखि वे मुझसे कहकर जाते कविता युग प्रवर्तक छायावादी कवि मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित हैं। मैथिलीशरण गुप्त अकेले ऐसे कवि हैं जिन्होंने द्विवेदी युग से आधुनिक काल तक अनेक व्यक्तियों को आत्मसात करते हुए हिंदी कविता को अनेकार्थक में समृद्ध किया। इसमें यशोधरा के स्वाभिमानी रूप वर्णन किया गया है।
मैथिलीशरण गुप्त की कौन कौन सी कविताएं हैं?मैथिलीशरण गुप्त की 10 प्रसिद्ध कविताएँ. भाषा का संदेश मैथिलीशरण गुप्त. मातृभूमि मैथिलीशरण गुप्त. नागरी और हिंदी मैथिलीशरण गुप्त. विजयदशमी मैथिलीशरण गुप्त. वर्षा-वर्णन मैथिलीशरण गुप्त. अपनी भाषा मैथिलीशरण गुप्त. सत्याग्रह मैथिलीशरण गुप्त. स्वराज मैथिलीशरण गुप्त. मैथिलीशरण गुप्त ने कितने महाकाव्य लिखे हैं?१२ दिसम्बर १९६४ ई. को दिल का दौरा पड़ा और साहित्य का जगमगाता तारा अस्त हो गया। ७८ वर्ष की आयु में दो महाकाव्य, १९ खण्डकाव्य, काव्यगीत, नाटिकायें आदि लिखी। उनके काव्य में राष्ट्रीय चेतना, धार्मिक भावना और मानवीय उत्थान प्रतिबिम्बित है।
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