द्रव्यमान तथा ऊर्जा की तुल्यता क्या है सिद्ध करें E mc - dravyamaan tatha oorja kee tulyata kya hai siddh karen ai mch

द्रव्यमान-ऊर्जा समतुल्यता

भौतिकी में, द्रव्यमान-ऊर्जा समतुल्यता (mass–energy equivalence) के सिद्धान्त के अनुसार यदि किसी वस्तु में कुछ द्रव्यमान है तो उसमें उसके तुल्य एक ऊर्जा होती है और यदि उसमें कुछ ऊर्जा है तो उसके तुल्य एक द्रव्यमान होता है। द्रव्यमान और ऊर्जा, अलबर्ट आइंस्टीण के निम्नलिखित सूत्र से एक दूसरे से सम्बन्धित हैं- E.

3 संबंधों: ऊर्जा, द्रव्यमान, भौतिक शास्त्र।

ऊर्जा

दीप्तिमान (प्रकाश) ऊर्जा छोड़ता हैं। भौतिकी में, ऊर्जा वस्तुओं का एक गुण है, जो अन्य वस्तुओं को स्थानांतरित किया जा सकता है या विभिन्न रूपों में रूपांतरित किया जा सकता हैं। किसी भी कार्यकर्ता के कार्य करने की क्षमता को ऊर्जा (Energy) कहते हैं। ऊँचाई से गिरते हुए जल में ऊर्जा है क्योंकि उससे एक पहिये को घुमाया जा सकता है जिससे बिजली पैदा की जा सकती है। ऊर्जा की सरल परिभाषा देना कठिन है। ऊर्जा वस्तु नहीं है। इसको हम देख नहीं सकते, यह कोई जगह नहीं घेरती, न इसकी कोई छाया ही पड़ती है। संक्षेप में, अन्य वस्तुओं की भाँति यह द्रव्य नहीं है, यद्यापि बहुधा द्रव्य से इसका घनिष्ठ संबंध रहता है। फिर भी इसका अस्तित्व उतना ही वास्तविक है जितना किसी अन्य वस्तु का और इस कारण कि किसी पिंड समुदाय में, जिसके ऊपर किसी बाहरी बल का प्रभाव नहीं रहता, इसकी मात्रा में कमी बेशी नहीं होती। .

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द्रव्यमान

द्रव्यमान किसी पदार्थ का वह मूल गुण है, जो उस पदार्थ के त्वरण का विरोध करता है। सरल भाषा में द्रव्यमान से हमें किसी वस्तु का वज़न और गुरुत्वाकर्षण के प्रति उसके आकर्षण या शक्ति का पता चलता है। श्रेणी:भौतिकी श्रेणी:भौतिक शब्दावली *.

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भौतिक शास्त्र

भौतिकी के अन्तर्गत बहुत से प्राकृतिक विज्ञान आते हैं भौतिक शास्त्र अथवा भौतिकी, प्रकृति विज्ञान की एक विशाल शाखा है। भौतिकी को परिभाषित करना कठिन है। कुछ विद्वानों के मतानुसार यह ऊर्जा विषयक विज्ञान है और इसमें ऊर्जा के रूपांतरण तथा उसके द्रव्य संबन्धों की विवेचना की जाती है। इसके द्वारा प्राकृत जगत और उसकी आन्तरिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है। स्थान, काल, गति, द्रव्य, विद्युत, प्रकाश, ऊष्मा तथा ध्वनि इत्यादि अनेक विषय इसकी परिधि में आते हैं। यह विज्ञान का एक प्रमुख विभाग है। इसके सिद्धांत समूचे विज्ञान में मान्य हैं और विज्ञान के प्रत्येक अंग में लागू होते हैं। इसका क्षेत्र विस्तृत है और इसकी सीमा निर्धारित करना अति दुष्कर है। सभी वैज्ञानिक विषय अल्पाधिक मात्रा में इसके अंतर्गत आ जाते हैं। विज्ञान की अन्य शाखायें या तो सीधे ही भौतिक पर आधारित हैं, अथवा इनके तथ्यों को इसके मूल सिद्धांतों से संबद्ध करने का प्रयत्न किया जाता है। भौतिकी का महत्व इसलिये भी अधिक है कि अभियांत्रिकी तथा शिल्पविज्ञान की जन्मदात्री होने के नाते यह इस युग के अखिल सामाजिक एवं आर्थिक विकास की मूल प्रेरक है। बहुत पहले इसको दर्शन शास्त्र का अंग मानकर नैचुरल फिलॉसोफी या प्राकृतिक दर्शनशास्त्र कहते थे, किंतु १८७० ईस्वी के लगभग इसको वर्तमान नाम भौतिकी या फिजिक्स द्वारा संबोधित करने लगे। धीरे-धीरे यह विज्ञान उन्नति करता गया और इस समय तो इसके विकास की तीव्र गति देखकर, अग्रगण्य भौतिक विज्ञानियों को भी आश्चर्य हो रहा है। धीरे-धीरे इससे अनेक महत्वपूर्ण शाखाओं की उत्पत्ति हुई, जैसे रासायनिक भौतिकी, तारा भौतिकी, जीवभौतिकी, भूभौतिकी, नाभिकीय भौतिकी, आकाशीय भौतिकी इत्यादि। भौतिकी का मुख्य सिद्धांत "उर्जा संरक्षण का नियम" है। इसके अनुसार किसी भी द्रव्यसमुदाय की ऊर्जा की मात्रा स्थिर होती है। समुदाय की आंतरिक क्रियाओं द्वारा इस मात्रा को घटाना या बढ़ाना संभव नहीं। ऊर्जा के अनेक रूप होते हैं और उसका रूपांतरण हो सकता है, किंतु उसकी मात्रा में किसी प्रकार परिवर्तन करना संभव नहीं हो सकता। आइंस्टाइन के सापेक्षिकता सिद्धांत के अनुसार द्रव्यमान भी उर्जा में बदला जा सकता है। इस प्रकार ऊर्जा संरक्षण और द्रव्यमान संरक्षण दोनों सिद्धांतों का समन्वय हो जाता है और इस सिद्धांत के द्वारा भौतिकी और रसायन एक दूसरे से संबद्ध हो जाते हैं। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

द्रव्यमान-ऊर्जा-समतुल्यता।

मान लो कि गहन अंतरिक्ष में एक स्थिर डिब्बा तैर रहा है। इस डिब्बे की लंबाई L तथा द्रव्यमान M है। इस डिब्बे से एक E ऊर्जा वाले फोटान का उत्सर्जन होता है और वह बाएं से दायें प्रकाशगति c से जाता है। इस प्रयोग मे सम्पूर्ण प्रणाली के लिये संवेग की अविनाशिता के नियम के पालन हेतु डिब्बे को फोटान के विपरित दिशा मे दायें से बाएं जाना होगा। मान लिजीये की डिब्बे द्वारा तय की गयी दूरी x है, तथा गति v है।


फोटान का संवेग = E/c
डिब्बे का संवेग = Mv

संवेग की अविनाशिता के नियम के अनुसार फोटान का संवेग तथा डिब्बे का संवेग समान होगा।

1) Mv=E/c

फोटान द्वारा डिब्बे को पार करने मे लगने वाला समय

2 ) t=L/c

डिब्बे द्वारा तय की गयी दूरी

3) x=vt

इस समीकरण 3 मे समीकरण 1 और 2 का मूल्य रखने पर

x=[E/(Mc)](L/c)

कुछ समय पश्चात फोटान उसी डिब्बे के दूसरे हिस्से से टकराता है, जिससे उसका संवेग डिब्बे में स्थानांतरित हो जाता है। इस प्रयोग मे पूरे तंत्र का संवेग संरक्षित रहता है, जिससे अब डिब्बे की गति बंद हो जाती है। अब एक समस्या है, इस प्रणाली में कोई बाह्य बल कार्य नहीं कर रहा है, जिससे द्रव्यमान-केंद्र(Center of Gravity) को स्थिर रहना होगा। लेकिन डिब्बे में गति हुयी है। डिब्बे में हुयी गति की पूर्ती द्रव्यमान-केंद्र स्थिर रख कर कैसे होगी? आइन्स्टाइन ने स्पष्ट विरोधाभाष के समाधान के लिए प्रस्तावित किया कि फोटान ऊर्जा का कोई ‘द्रव्यमान समकक्ष‘ होना चाहीये| दूसरे शब्दों में फोटान की ऊर्जा , डिब्बे में द्रव्यमान के बाएं से दायें गति के तुल्य होना चाहिए। साथ में यह द्रव्यमान इतना होना चाहीये कि पूरे तंत्र का द्रव्यमान-केंद्र स्थायी रहेगा।

डिब्बे का द्रव्यमान केन्द्र स्थायी रखने के लिये

4) Mx=mL  (m :फोटान का द्रव्यमान)

समीकरण 4 मे समीकरण 3 द्वारा x का मूल्य रखने पर

5) M [E/(Mc)](L/c)=mL
EL/c2 = mL
E/c2=m
E=mc2

द्रव्यमान तथा ऊर्जा की तुल्यता क्या है सिद्ध करें e?

Solution : द्रव्यमान-ऊर्जा सम्बन्ध : यदि द्रव्यमान m को ऊर्जा में परिवर्तन किया जाये, तो प्राप्त ऊर्जा E का मान आइंस्टीन के निम्न सम्बन्ध से दिया जाता है : `E=mc^(2)` <br> जहाँ c प्रकाश की निविर्त में चाल है।

द्रव्यमान और ऊर्जा से क्या संबंध है?

आइन्सटीन ने यह सिद्ध किया कि द्रव्यमान तथा ऊर्जा एक दूसरे से सम्बन्धित हैं तथा प्रत्येक पदार्थ में उसके द्रव्यमान के कारण भी ऊर्जा होती है। E = ( 10-³ किग्रा) x (3 x 10⁸ मीटर/सेकण्ड)² = 9 × 10¹³ जूल। अर्थात् 1 ग्राम द्रव्यमान, 9 × 10¹³ जूल ऊर्जा के तुल्य है।

तुल्यता क्या है?

ज्यामिति में सर्वांगसमता, तुल्य सम्बन्ध का एक उदाहरण है। सबसे बाएँ वाले दो त्रिभुज सर्वांगसम हैं, किन्तु तीसरा और चौथा त्रिभुज यहाँ दिखाये गये किसी भी त्रिभुज के सर्वांगसम नहीं हैं। अतः प्रथम दो त्रिभुज एक ही तुल्य वर्ग में हैं, जबकि तीसरा और चौथा त्रिभुज अपने-अपने तुल्य वर्ग में हैं।

म्नलिखित में कौन संबंध द्रव्यमान और ऊर्जा के लिए सही है?

द्रव्यमान-ऊर्जा: आइंस्टीन ने अपने विशेष सापेक्षता के सिद्धांत से दर्शाया कि द्रव्यमान को ऊर्जा के दूसरे रूप में मानना ​​आवश्यक है। विशेष सापेक्षता के इस सिद्धांत के आगमन से पहले, यह माना जाता था कि एक अभिक्रिया में द्रव्यमान और ऊर्जा अलग-अलग संरक्षित होते हैं।

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