देश के सैनिकों के प्रति हमारा क्या कर्तव्य है? - desh ke sainikon ke prati hamaara kya kartavy hai?

Solution : देश की सीमा पर बैठे फौजी अपना जीवन कड़कड़ाती ठंड, बर्फ, गर्म रेगिस्तान, वर्षा, दलदल जैसी उन सभी विषमताओं के बीच बिताते हैं जिनकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते। उन्हीं के कारण हम अपने घरों में चैन की नींद सो पाते हैं। देश और देशवासियों की सुरक्षा के लिए सैनिकों द्वारा अपने सुख-चैन और जीवन का बलिदान देना सचमुच सराहनीय है। हमारा कर्तव्य है कि हम उनका सम्मान करें। उनके परिवार के प्रति सम्माननीय भाव तथा आत्मीय संबंध बनाए रखें। सैनिकों के दूर रहते हुए उनके परिवार को हर प्रकार से सहयोग दें। उन्हें अकेलेपन का एहसास न होने दें तथा विषम परिस्थितियों में उन्हें निराशा से बचाएँ।

अपने जीवन को कुर्बान कर देने वाले, पल-प्रति-पल मौत के साये में बैठे रहने वाले, अपने घर-परिवार से दूर नितांत निर्जन में कर्तव्य निर्वहन करने वाले जाँबाज़ सैनिकों के लिए बस चंद शब्द, चंद वाक्य, चंद फूल, दो-चार मालाएँ, दो-चार दीप और फिर उनकी शहादत को विस्मृत कर देना, उन सैनिकों को विस्मृत कर देना.

बस! इतना सा ही तो दायित्व निभाते हैं हम. ये अपने आप में कितना आश्चर्यजनक है साथ ही विद्रूपता से भरा हुआ कि जिन सैनिकों के चलते हम स्वतंत्रता का आनंद उठा रहे हैं उन्हीं सैनिकों को हमारा समाज न तो जीते-जी यथोचित सम्मान देता है और न ही उनकी शहादत के बाद. समूचे परिदृश्य को राजनैतिक चश्मे से देखने की आदत के चलते, वातावरण में तुष्टिकरण का रंग भरने की कुप्रवृत्ति के चलते, प्रत्येक कार्य के पीछे स्वार्थ होने की मानसिकता के चलते समाज में सैनिकों के प्रति भी सम्मान का भाव धीरे-धीरे तिरोहित होता जा रहा है. न केवल सरकारें वरन आम नागरिक भी सैनिकों को देश पर जान न्यौछावर करने वाले के रूप में नहीं वरन सेना में नौकरी करने वाले व्यक्ति के रूप में देखने लगे हैं; उनके कार्य को देश-प्रेम से नहीं बल्कि जीवन-यापन से जोड़ने लगे हैं; उनकी शहादत को शहादत नहीं वरन नौकरी करने का अंजाम बताने लगे हैं.

ऐसा इसलिए सच दिखता है क्योंकि अब सैनिकों के काफिले शहर से ख़ामोशी से गुजर जाते हैं. उनके निकलने पर न कोई बालक, न कोई युवा, न कोई बुजुर्ग जयहिन्द की मुद्रा में दिखता है, न ही भारत माता की जय का घोष सुनाई देता है. समाज की ऐसी बेरुखी के चलते ही सरकारें भी सैनिकों के प्रति अपने कर्तव्य-दायित्व से विमुख होती दिखने लगी हैं. यदि ऐसा न होता तो किसी शहीद सैनिक के नाम पर कोई नेता अपशब्द बोलने की हिम्मत न करता; किसी सैनिक की शहादत को तुष्टिकरण से न जोड़ा जाता; किसी सैन्य कार्यवाही को फर्जी न बताया जाता.

संभव है कि एक सैनिक के लिए अपनी जीविका के लिए सेना में जाना मजबूरी रहती हो किन्तु किसी सैनिक की शहादत के बाद भी उसकी संतानों के द्वारा उस पर गर्व करना, सैनिक बनकर देश की रक्षा करने का संकल्प लेना, उस अमर शहीद के परिजनों द्वारा तिरंगे पर बलिदान होते रहने की कसम उठाना तो मजबूरी नहीं हो सकती? बहरहाल, देर तो अभी भी नहीं हुई है. हम सभी को एकसाथ जागना होगा, निरंतर जागे रहना होगा. न सही प्रतिदिन तो माह में किसी एक दिन समस्त सैनिकों को पूरे सम्मान के साथ याद तो कर ही सकते हैं. न सही उनके लिए कोई भव्य आयोजन मगर अपने बच्चों को अपने सैनिकों की वीरता के बारे में तो बता ही सकते हैं. न सही किसी राजनीति का समर्थन किन्तु सैनिकों के अपमान में बोले जाने वाले वचनों का पुरजोर विरोध तो कर ही सकते हैं.

समाज किसी भी दशा में जाए, राजनीति अपनी करवट किसी भी तरफ ले, तुष्टिकरण की नीति क्या हो, यह अलग बात है मगर सच यह है कि ये सैनिक हैं, इसलिए हम हैं; सच यह है कि सैनिकों की ऊँगली ट्रिगर पर होती है, तभी हम खुली हवा में साँस ले रहे हैं; सच यह है कि वह हजारों फीट ऊपर ठण्ड में अपनी हड्डियाँ गलाता है, तभी हम बुद्धिजीवी होने का दंभ पाल पाते हैं; सच यह है कि वह सैनिक अपनी जान को दाँव पर लगाये बैठा होता है, तभी हम पूरी तरह जीवन का आनन्द उठा पाते हैं; सच यह है कि एक सैनिक अपने परिवार से दूर तन्मयता से अपना कर्तव्य निभाता है, तभी हम अपने परिवार के साथ खुशियाँ बाँट पाते हैं.

देखा जाये तो अंतिम सच यही है; कठोर सच यही है; आँसू लाने वाला सच यही है; तिरंगे पर मर मिटने वाला सच यही है; परिवार में एक शहादत के बाद भी उनकी संतानों सैनिक बनाने वाला सच यही है. कम से कम हम नागरिक तो इस सच को विस्मृत न होने दें; कम से कम हम नागरिक तो सैनिकों के सम्मान को कम न होने दें; कम से कम हम नागरिक तो उनकी शहादत पर राजनीति न होने दें; कम से कम हम नागरिक तो उन सैनिकों को गुमनामी में न खोने दें. आइये संकल्पित हों, अपने देश के लिए, अपने तिरंगे के लिए और उससे भी आगे आकर अपने जाँबाज़ सैनिकों के लिए. 

जय हिन्द, जय हिन्द की सेना..!!

किसी भी देश की सबसे बड़ी ताकत सैनिक होते हैं. देश की सुरक्षा में हमेशा मुस्तैद. जरूरत पड़ने पर जान देने को तैयार, ताकी आम नागरिक चैन से जी सकें. इन्हीं शूरवीरों के सम्मान में हर वर्ष सशस्त्र सेना ध्वज दिवस मनाया जाता है. यह दिन एक नागरिक के तौर पर सैनिकों, शहीदों और उनके परिवारों के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को दर्शाता है.

हैदराबाद : सन् 1949 से हर वर्ष सात दिसंबर को देशभर में सशस्त्र सेना ध्वज दिवस मनाया जाता है. इसका उद्देश्य वर्दी धारियों के प्रति सम्मान व्यक्त करना है, जिन्होंने अनगिनत मौकों पर देश की सुरक्षा के लिए अपनी जान खतरे में डालते हैं.

इस दिन थल सेना, नौसेना और वायु सेना के जवानों द्वारा प्रदान की गई सेवाओं को याद किया जाता है. ध्वज के लाल, गहरे नीले और हल्के नीले रंग क्रमशः भारतीय सेना, भारतीय नौसेना और भारतीय वायु सेना के प्रतीक हैं.

सैनिक किसी भी देश की सबसे बड़ी ताकत होते हैं. वह राष्ट्र के संरक्षक हैं और अपने नागरिकों की हर कीमत पर रक्षा करते हैं. अपने कर्तव्यों को पूरा करने के लिए उन्होंने अनेकों त्याग किए हैं. देश हमेशा वीर सपूतों का ऋणी रहेगा.

यह हर नागरिक का कर्तव्य है कि वह वीरों और उनके परिवार के प्रति आभार व्यक्त करे, क्योंकि वीरों के बलिदान में परिवार का महत्वपूर्ण योगदान होता है. केंद्र और राज्य स्तर पर कई सरकारी योजनाएं उपलब्ध हैं. हालांकि, हमारे देश के प्रत्येक नागरिक की नैतिक जिम्मेदारी है कि वह जरूरतमंदों को देखभाल, सहायता, पुनर्वास और वित्तीय सहायता प्रदान करे.

ध्वज दिवस युद्ध में घायल सैनिकों, वीर नारियों, शहीदों के परिवारों और जिन्होंने देश के लिए अपना बलिदान दिया है उनकी देखभाल करने की हमारी प्रतिबद्धता को दर्शाता है.

सशस्त्र सेना ध्वज दिवस का इतिहास

भारत के रक्षा मंत्रालय के तहत 28 अगस्त, 1949 को एक समिति का गठन किया गया था. सात दिसंबर को एक वार्षिक ध्वज दिवस मनाने का निर्णय लिया गया था. इसका उद्देश्य छोटी मोटी वस्तुएं वितरित कर धन एकत्रित करना था.

ध्वज दिवस का महत्व
ध्वज दिवस मनाने के तीन महत्वपूर्ण उद्देश्य

⦁ सेवारत कर्मियों और उनके परिवारों का कल्याण

⦁ पूर्व सैनिकों और उनके परिवारों का पुनर्वास और कल्याण

⦁ युद्ध के हताहतों का पुनर्वास

सशस्त्र सेना ध्वज दिवस कोष में योगदान के लिए आम जनता से अपील
रक्षा मंत्रालय का भूतपूर्व - सैनिक कल्याण विभाग विधवाओं, शहीद और पूर्व सैनिकों के परिजनों, दिव्यांग के कल्याण और पुनर्वास के लिए काम कर रहा है. विभाग उन लोगों की चिह्नित की गई व्यक्तिगत जरूरतों, जैसे कि गरीबी अनुदान, बच्चों की शिक्षा के लिए अनुदान, अंतिम संस्कार अनुदान, चिकित्सा अनुदान और अनाथ/दिव्यांग बच्चों के लिए अनुदान, के लिए वित्तीय सहयता प्रदान कर रहा है.

यह वित्तीय सहायता सशस्त्र सेना ध्वज दिवस कोष (एएफएफडीएफ) से प्रदान की जाती है. इसके लिए सशस्त्र सेना ध्वज दिवस, जो हर साल सात दिसंबर को मनाया जाता है, के अवसर पर आम जनता से योगदान प्राप्त होता है.

प्रेस विज्ञप्ती में कहा गया कि भारत के सभी नागरिकों से यह अनुरोध किया जाता है कि वे युद्ध-विधवाओं, ईएसएम, शहीद सैनिकों के परिजनों के हितों से जुड़ें और हमारे सैनिकों और उनके परिजनों या आश्रितों के साथ एकजुटता प्रदर्शित करते हुए एएफएफडीएफ में उदारतापूर्वक योगदान दें.

पूरे माह मनाया जाएगा सशस्त्र सेना ध्वज दिवस
केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने घोषणा की कि सशस्त्र सेना ध्वज दिवस पूरे दिसंबर में मनाया जाएगा. सैनी बोर्ड के साथ केंद्र और राज्य पूरे दिसंबर में सशस्त्र सेना ध्वज दिवस मनाएंगे, यह हमारे सुरक्षाकर्मियों के परिवारों का समर्थन करने के लिए हमारी राष्ट्रीय जिम्मेदारी है.

सशस्त्र सेना ध्वज दिवस पर केंद्रीय सैनिक बोर्ड ने नागरिकों को MyGov मंच के माध्यम से सशस्त्र सेना ध्वज दिवस पेंटिंग प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया है.

प्रतियोगिता का विषय 'सशस्त्र सेना के दिग्गजों को श्रद्धांजलि' है.

सैनिकों के प्रति हमारा क्या कर्तव्य होना चाहिए?

Answer: सैनिक शिक्षण की सुविधाऐं जिन्हें प्राप्त हो सकें उसे सीखना चाहिए और व्यक्तिगत आवश्यक कार्यो की तरह राष्ट्र रक्षा के लिए भी तत्पर रहना चाहिए। एक जिम्मेदार और सक्षम नागरिक को रक्षा कोष में उदारता पूर्वक दान देना चाहिए

देश की रक्षा के लिए लड़ रहे सैनिकों के प्रति हमारा क्या कर्तव्य है?

प्रत्येक को देश के अच्छे नागरिक होने के साथ ही देश के प्रति वफादार भी होना चाहिए। लोगों को सभी नियमों, अधिनियमों और सरकार द्वारा सुरक्षा और बेहतर जीवन के लिए बनाए गए कानूनों का पालन करना चाहिए। कर्तव्यपरायणता की यह सीख हम सेना के जवानों से ले सकते हैं। युवाओं को सेना में भर्ती होना चाहिए।

क्या आप देश के सैनिकों का सम्मान करते?

सैनिक ही नहीं, देश के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह अपनी मातृभूमि के सम्मान में हमेशा तत्पर रहे। कुछ परिस्थितियों के कारण कई बार लोग इसकी पूरी जिम्मेदारी सैनिकों के ऊपर ही थोप देते हैं। वर्तमान में इंटरनेट युग है। देश के अंदरूनी मामलों को फैलते देर नहीं लगती है।

सैनिक जीवन को त्याग मई क्यों कहा जाता है?

वे अपने सुख जीवन का त्याग करते हैं। धूप, बारिश और बर्फ का सामना करते हुए भी देश की रक्षा करते हैं। हर समय उनको सर्तक रहते हैं। इस लिए उनको नींद भी अच्छी तरह से नहीं मिलती हैं।

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